हम हैं आपके साथ

कृपया हिंदी में लिखने के लिए यहाँ लिखे.

आईये! हम अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी में टिप्पणी लिखकर भारत माता की शान बढ़ाये.अगर आपको हिंदी में विचार/टिप्पणी/लेख लिखने में परेशानी हो रही हो. तब नीचे दिए बॉक्स में रोमन लिपि में लिखकर स्पेस दें. फिर आपका वो शब्द हिंदी में बदल जाएगा. उदाहरण के तौर पर-tirthnkar mahavir लिखें और स्पेस दें आपका यह शब्द "तीर्थंकर महावीर" में बदल जायेगा. कृपया "निर्भीक-आजाद पंछी" ब्लॉग पर विचार/टिप्पणी/लेख हिंदी में ही लिखें.

गुरुवार, दिसंबर 30, 2010

अब आरोपित को ऍफ़ आई आर की प्रति मिलेगी

  आरोपित को ऍफ़आईआर की प्रति 
दिल्ली पुलिस को 24 घंटे में देनी होगी
आप सभी दोस्तों/ पाठकों मुझे यह बताते हुए काफी ख़ुशी हो रही कि मैंने अपनी दिनांक 6 सितम्बर 2010 की एक पोस्ट " क़ानूनी समाचारों पर बेबाक टिप्पणियाँ (1)" में अपने एक बुरे अनुभव के आधार पर माननीय उच्चतम न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय सुझाव भेजा था. उस पर एक संतोषजनक यह बात हुई है कि-अब आरोपित को ऍफ़ आई आर की प्रति दिल्ली पुलिस को 24 घंटे में देनी होगी. काश यह कानून पूरे भारत देश में भी लागू हो जाये तो कुछ हद तक भ्रष्टाचार कम हो जायेगा.
मेरा निम्नलिखित सुझाव था
मेरा  अपने अनुभव के आधार पर माननीय उच्चतम न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय को विन्रम अनुरोध के साथ उपरोक्त बहुमूल्य सुझाव है कि-एक आरोपी को अपने खिलाफ दर्ज हुई ऍफ़.आई.आर की एक प्रति निकलवाने के लिए वकीलों को या अदालतों में एक-एक हजार रूपये देने पड़ते है. जिससे न्यायालयों में भ्रष्टाचार चरम-सीमा पर पहुँच चुका है. अगर कुछ ऐसी व्यवस्था कर दी जाये कि-माना "अ" ने "ब" के खिलाफ "स" थाने में FIR दर्ज करवाई है और जोकि "द" नामक अदालत के क्षेत्राधिकार में आता है. तब "ब" आरोपी "द" नामक अदालत की वेबसाइट पर FIR के कालम पर क्लिक करके अपना और "अ" का नाम के साथ ही "स" थाने का नाम डालकर उपरोक्त आंकडें जमा करा दें. तब उसकी FIR की संख्या दिखें. उस संख्या पर क्लिक करके "ब" आरोपी अपनी FIR का इन्टरनेट से प्रिंट आउट निकाल सकेंगा. इससे न्यायालयों और थानों में भ्रष्टाचार रुकने के साथ ही एक बेकसूर आरोपी वकीलों और चारों ओर से लुटने से बच जायेगा. अपने बचाव के लिए उचित कदम उठा सकेंगा. इससे एक बेकसूर आरोपी थानों के अधिकारीयों व वकीलों द्वारा मानसिक व आर्थिक शोषण होने से बच जायेगा और एक आम-आदमी का न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास कायम होगा. धन्यबाद!
उपरोक्त सुझाव पर दिल्ली उच्च न्यायालय का यह था निर्णय

 # निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन: 09868262751, 09910350461 email: sirfiraa@gmail.com, महत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें.हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. नेत्रदान महादान आज ही करें. आपके द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है

शुक्रवार, नवंबर 05, 2010

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ

शुभ दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
हर आंगन, हर चौखट पर, हर धड़कन, हर उम्मीद पर, हर शब्द और हर पन्ने पर जले प्यार की बाती "शकुन्तला प्रेस" परिवार की ओर से हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी शुभ दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
          
आपके घर में रौशनी की जगमग हो. स्वादिस्ट पकवान बनें और मिठाइयों का आदान-प्रदान हो. पूजा के दौरान श्री लक्ष्मी माता का आगमन हो. आपके चारों खुशियों का वातावरण हो. दु:खों-ग़मों और मुसीबतों का बेसरा बस मेरे घर तक ही सीमित हो. आपका व आपके परिवार का इनसे दूर-दूर तक कोई वास्ता भी न हो. इन्हीं मंगल कामनाओं के साथ....
एक फिर से "शकुन्तला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन" परिवार और "शकुन्तला एडवरटाईजिंग एजेंसी" की ओर से आप व आप सभी के परिवारों को दीपावली, गोबर्धन पूजा और भैया दूज की हार्दिक शुभकामनायें
#आपका अपना शुभाकांक्षी-निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन:9868262751, 9910350461 email: sirfiraa@gmail.com, महत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें.हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. नेत्रदान महादान आज ही करें. आपके द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है.

मंगलवार, नवंबर 02, 2010

सड़कों पर खाना हजम करें

 दिल्ली की सड़कों पर खाना हजम करें

नई दिल्ली :दिल्ली की सड़के तौबा-तौबा! हमारी दिल्ली को कहा जाता है कि-भारत की राजधानी है मगर राजधानी होने के कारण जैसी शान होनी चाहिए वैसी है नहीं. समाचार के साथ लगी यह फोटो कर्मपुरा से जखीरा की ओर जाने वाली सड़क की हैं. इसकी हालत इतनी जर्जर हैं कि-आप अपनी गाडी या वाहन के साथ यहाँ से गुजर जाने के बाद आपके पेट की रोटी हजम हो जाती है. जैसे फुटबाल के खेल में फुटबाल पर कभी किक एक बार इधर से लगती है और कभी उधर से लगती है. ठीक उसी प्रकार से यहाँ पर एक बार वाहन का पहिया इस गड्डे में गिरता है और कभी उस गड्डे में गिरता है. वाहन का पहिया गड्डे में गिरने से इतना जोर का झटका लगता है. इसे पेट की सारी आतिड़ियों की कसरत हो जाती है और आपका खाना हजम हो जाता है. उपरोक्त संवाददाता को राहगीर रिटार्ड कर्नल सरदार हरनारिंदर  सिंह  ने  बताया  कि यह सडक  पिछले  दस  सालों  से नहीं बनी है और जहाँ पर मंत्री रहते हैं वहां की सड़के ठीक से बनी हुई है मगर जिन सड़कों से आम आदमी गुजरते हैं उनकी हालत खस्ता है. एक अन्य राहगीर नितिन अरोड़ा का कहना है कि-काश दिल्ली सरकार ने कोमनवेल्थ के नाम  पर इतना पैसा बर्बाद न करके उसका 1% पूरी ईमानदारी से दिल्ली की सड़कों पर लगाया होता तो वो ज्यादा कहीं अच्छा होता. कर्मपुरा से उत्तम नगर की ओर जाने वाली रोड की मरम्मत  करवाता  दिल्ली नगर निगम के एक अधिकारी  ने  नाम  न  छापने का अनुरोध  करते हुए बताया  कि- अगर पूरी दिल्ली के लिए (एक मशीन की ओर इशारा करते हुए) इसी चार-पाँच मशीनें आ जाए तो दिल्ली की एक भी सडक टूटी हुई नहीं रह सकती है मगर मशीने मंगवाने वाली फाइल विभागों में अटकी पड़ी रहती है.

शनिवार, अक्तूबर 09, 2010

पुलिस को पता नहीं कैसे होती है छानबीन

कैसे होती है छानबीन, पुलिस को पता नहीं !


नई दिल्ली : रेप केस में पुलिस की छानबीन के तरीके पर हाई कोर्ट ने सवाल उठाए। हाईकोर्ट ने कहा कि एफआईआर का मजमून पढ़ने से साफ है कि यह फर्जी है। जस्टिस शिवनारायण ढींगड़ा ने शकरपुर थाने में दर्ज रेप का केस रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि पूरे मामले को देखने से लगता है कि पुलिस को पता नहीं है कि इस मामले में क्या छानबीन करनी है और छानबीन होती कैसे है? मौजूदा मामले में रमेश और रेखा (बदले हुए नाम) अदालत में पेश हुए और कहा कि दोनों शादी कर चुके हैं और उन्हें बच्चा भी है। ऐसे में एफआईआर रद्द की जाए। लड़की ने बयान दिया कि अपने पैरंट्स के दबाव में उसने लड़के के खिलाफ केस दर्ज करा दिया था। सरकारी वकील पवन शर्मा के मुताबिक पुलिस ने 2009 में लड़की के बयान पर एफआईआर दर्ज की थी। लड़की का बयान था कि पहले आरोपी ने उसे नशीला पदार्थ पिलाया और फिर रेप किया, लेकिन बाद में कहा कि वह उससे शादी कर लेगा इसलिए उसने पहले शिकायत नहीं की। इस दौरान शादी का झांसा देकर रमेश लगातार रेप करता रहा। वह गर्भवती हो गई। पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर छानबीन शुरू की। इस बीच रमेश और सीमा दोनों जस्टिस ढींगड़ा की कोर्ट में पेश हुए। कोर्ट को बताया गया कि जब एफआईआर दर्ज कराई गई उससे काफी पहले से उनके बीच अफेयर चल रहा था। लड़की ने कोर्ट को बताया कि उसने अपने पैरंट्स के दबाव में झूठी एफआईआर दर्ज कराई थी क्योंकि वह गर्भवती थी और उसे डर था कि कहीं वह अपने होने वाले बच्चे को खो न दे। हालांकि इसी बीच दोनों ने शादी कर ली और अब उनकी एक बच्ची भी है। पिछले एक साल से वे एकसाथ खुशी-खुशी रह रहे हैं। ऐसे में एफआईआर रद्द की जाए। जस्टिस ढींगड़ा ने कहा कि पीडि़ता के बयान पर दर्ज की गई एफआईआर देखने से साफ है कि वह झूठी है। छानबीन के बाद पुलिस को क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करनी चाहिए थी। धारा-376 की शिकायत का यह मतलब नहीं है कि पीडि़ता का सिर्फ बयान दर्ज किया जाए और कोई छानबीन न की जाए। ऐसा देखने में आ रहा है कि पुलिस रेप के केस में अक्सर ऐसा ही करती है। देखा जाए तो यह मामला बिना दोनों पार्टियों के समझौते के ही रद्द होना चाहिए क्योंकि मौजूदा एफआईआर ही झूठी है। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की अर्जी स्वीकार कर ली और रेप का केस रद्द कर दिया।

शुक्रवार, अक्तूबर 08, 2010

बच्चा नहीं लौटा

बच्चा नहीं लौटा घर ट्यूशन गया था

नई दिल्ली :पश्चिमी दिल्ली के रनहोला थाना इलाके में ट्यूशन पढ़ने गया 13 साल का बच्चा लापता हो गया है। पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर ली है। नजफगढ़ के जय विहार इलाके में रहने वाले वीरेंद्र सिंह नेगी का बेटा दुर्गेश मंगलवार दोपहर बाद चार बजे घर से ट्यूशन पढ़ने निकला था। यह ट्यूशन सेंटर उसके घर की गली में ही है। वह घर नहीं लौटा। उसके परिवार ने उसे खोजने की काफी कोशिश की, लेकिन वह नहीं मिला। उन्होंने नजफगढ़ थाने में कंप्लेंट दी। वहां से जानकारी मिली कि दुर्गेश के घर का इलाका रनहोला थाने के तहत है। रनहोला पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर ली है। अभी तक बच्चे का सुराग नहीं मिल सका है।
विंडो ग्रिल तोड़कर डेढ़ लाख की चोरी
नई दिल्ली :पश्चिमी दिल्ली के एक बंद फ्लैट की विंडो ग्रिल तोड़कर डेढ़ लाख रुपये का सामान चोरी किया गया है। पीडि़त के बयान के बावजूद हरिनगर थाना पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की है। यह वारदात बुधवार को हुई। जेल रोड पर वीरेंद्र नगर में रहने वाले भूपेंद्र सिंह की बेटी विदेश में गई हुइ है। भूपेंद्र सिंह और उनकी पत्नी अपने घर को बंद कर उससे कुछ दूरी पर अपनी बेटी के घर में रह रहे हैं। उनका फ्लैट ग्राउंड फ्लोर पर है। बुधवार सुबह वह अपने घर आए थे। दोपहर 12 बजे उनके पड़ोसी ने भी घर ठीकठाक देखा था। इसके बाद 12 से दो बजे के दरम्यान उनके घर की विंडो ग्रिल तोड़कर वारदात की गई। घर के मेन गेट का ताला सही सलामत था। अंदर लॉकर टूटे हुए थे। घर में रखे 20 हजार रुपये और सात तोले गोल्ड जूलरी चुराई गई। भूपेंद्र सिंह ने पुलिस को खबर दी। काफी देर बाद हरिनगर पुलिस मौके पर पहुंची। भूपेंद्र ने बताया कि पुलिस उनके बयान लेकर चली गई। पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की है। 

बिंदापुर थानाध्यक्ष निलंबित

बिंदापुर थानाध्यक्ष निलंबित, युवक की पिटाई महंगी पड़ी
नई दिल्ली : पश्चिमी दिल्ली के थाना बिंदापुर के थानाध्यक्ष को विगत दिन 7 अक्तूबर 2010 को निलंबित कर दिया. जब नाविक ही नाव को डुबोयेंगा, तब सवारियों का क्या होगा? एसएचओ पर कुछ महीने पहले एक युवक के साथ मारपीट करने का आरोप लगाया था. विजिलेंस विभाग इस मामले की जांच कर रहा था. उसकी रिपोर्ट आने के बाद पुलिस आयुक्त के निर्देश पर अतिरिक्त पुलिस आयुक्त आर.एस.कृष्णैया ने थानाध्यक्ष को निलंबित कर दिया. अब थाने का कार्यभार अतिरिक्त थानाध्यक्ष प्यारेलाल सम्भल रहे है. सूत्रों के अनुसार इसी साल की 4 फरवरी को थाना बिंदापुर इलाके के एक युवक को थानाध्यक्ष ऋषि देव ने खूब पीटा था. युवक पर पड़ोसी महिला के साथ नाजायज संबंध रखने का आरोप था. इस बात पर महिला के पति ने तीन फरवरी को युवक की पिटाई कर दी थी. इसके बाद चार फरवरी को थानाध्यक्ष ने भी उसे पीटा. पाँच फरवरी को इसकी शिकायत करने युवक और उसके पिता, पड़ोसी व स्वयंसेवी संस्था के सदस्यों के साथ थाने गया. वहां फिर थानाध्यक्ष ने उसकी पिटाई की. विरोध करने पर उसके पिता को भी पीटा. इस मामले की युवक ने कई उच्च अधिकारियों से शिकायत करने के साथ ही उपरोक्त घटना की पुलिस आयुक्त वाई.एस.डडवाल को जानकारी दी. इस पर आयुक्त ने विजिलेंस जांच के आदेश दिए. कई महीने की छानबीन में विजिलेंस ने थानाध्यक्ष ऋषि देव को दोषी पाया.

सूत्रों के अनुसार इस दौरान थानाध्यक्ष ऋषिदेव ने मामला रफा-दफा करने के लिए युवक पर दबाब भी बनाया था. विजिलेंस टीम ने अपनी रिपोर्ट पुलिस आयुक्त को सौंपी. इसके बाद पुलिस आयुक्त के निर्देश पर दक्षिणी-पश्चिमी जिले के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त आर.एस.कृष्णैया ने बिंदापुर थानाध्यक्ष ऋषिदेव को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया.

गौरतलब है उपरोक्त संवाददाता रमेश कुमार जैन का ऍफ़ आई आर दर्ज करने के भी दो प्रार्थना पत्र थानाध्यक्ष ऋषिदेव के पास पेडिंग पड़ें थें. प्रार्थना पत्र की शिकायत के अनुसार उसमें सारे सबूत सलंग्न थें. मगर फिर भी तरह-तरह के बहाने बनाये जा रहे थें कि-थाने में सीडी सुनने की सुविधा नहीं है आदि. जिसका सन्दर्भ ब्लॉग (बायीं तरफ) पर "मार्मिक अपील-मदद सिर्फ एक फ़ोन की !" के नाम से दर्ज है. जब एक पत्रकार के आवेदन पर कार्यवाही नहीं हो रही है तब आम जनता का क्या हाल करते होंगे भ्रष्ट पुलिस वाले? भ्रष्ट पुलिस वालों की कार्यशैली और कार्यप्रणाली पर यह एक प्रश्न चिन्ह है, यह समाचार एक जीता-जागता उदाहरण है.
# निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन: 09868262751, 09910350461 email: sirfiraa@gmail.com, महत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें.हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है.

बुधवार, अक्तूबर 06, 2010

देश का कैसा कानून है?

यह हमारे देश का कैसा कानून है?

जो वेकसुर लोगों पर ही लागू होता है. जिसकी मार हमेशा गरीब पर पड़ती है. इन अमीरों व राजनीतिकों को कोई सजा देने वाला हमारे देश में जज नहीं है, क्योंकि इन राजनीतिकों के पास पैसा व वकीलों की फ़ौज है. इनकी दिल्ली में व केंद्र में सरकार है. दिल्ली नगर निगम व दिल्ली पुलिस में इतनी हिम्मत नहीं है कि-इन पर कार्यवाही कर सकें. बेचारों को अपनी नौकरी की चिंता जो है. कानून तो आम-आदमी के लिए बनाये जाते हैं. एक ईमानदार व जागरूक इंसान की तो थाने में ऍफ़ आई आर भी दर्ज नहीं होती हैं. उसे तो थाने, कोर्ट-कचहरी, बड़े अधिकारीयों के चक्कर काटने पड़ते है या सूचना का अधिकार के तहत आवेदन करना पड़ता है. एक बेचारा गरीब कहाँ लाये अपनी FIR दर्ज करवाने के लिए धारा 156 (3) के तहत कोर्ट में केस डालने के लिए वकीलों (जो फ़ीस की रसीद भी नहीं देते हैं) की मोटी-मोटी फ़ीस और फिर इसकी क्या गारंटी है कि-ऍफ़ आई आर दर्ज करवाने वाला केस ही कितने दिनों में खत्म (मेरी जानकारी में ऐसा ही एक केस एक साल से चल रहा है) होगा. जब तक ऍफ़ आई आर दर्ज होगी तब तक इंसान वैसे ही टूट जाएगा. उसके द्वारा उठाई अन्याय की आवाज बंद हो जाएगी तब यह कैसा न्याय ?
सैंया भये कोतवाल फिर डर काहे का संदेश देते होडिग्स. हैं किसी के माई के लाल में दम जो इनको सजा दें सकें या जुर्माना कर सकें.
# निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन: 09868262751, 09910350461 email: sirfiraa@gmail.com, महत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें.हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. नेत्रदान महादान आज ही करें. आपके द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है.

सोमवार, अक्तूबर 04, 2010

महाराजा अग्रसेन जयन्ती

महाराजा अग्रसेन जयन्ती समारोह सम्पन्न हुआ
नई दिल्ली : पश्च्मि दिल्ली के उत्तम नगर थाना के अंतगर्त श्री गांधी-शास्त्री जी की जयंती के सुअवसर पर ही विगत दिन 2 अक्तूबर को अग्रवाल धर्मशाला, मेन नजफगढ़ रोड उत्तम नगर में श्री अग्रवाल सभा ट्रस्ट (पंजीकृत) उत्तम नगर के तत्वाधान में महाराजा अग्रसेन जयन्ती समारोह बड़ी धूमधाम से मनाया गया. जिसमें वैश्य समाज के अनेकों गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही.समारोह का शुभारम्भ हवन होने के बाद श्री सुरेश गर्ग(पूर्व चेयरमैन,अग्रवाल सभा-जनकपुरी) के द्वारा ध्वजारोहण करने के साथ हुआ. फिर श्री रमेश बंसल की अध्यक्षता में श्री बजरंगलाल सिंघल ने ज्योति प्रचंड की और रोशनलाल अग्रवाल द्वारा अग्रदूत पत्रिका विमोचन किया गया. अनेक स्कूलों के विद्धार्थियों द्वारा अतिथियों का स्वागत करने के साथ ही मुख्य अतिथि श्री प्रदीप मित्तल (पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन), श्री विजेंद्र गुप्ता(अध्यक्ष, दिल्ली प्रदेश भाजपा) और अति विशिष्ट अतिथि श्री रामकृष्ण गुप्ता(चेयरमैन, लवकुश रामलीला), सरिता जिंदल, सुनील जिंदल आदि का स्वागत फूलमाला पहनाकर किया. इस अवसर पर अनेकों स्कूलों ने अनेकों सांस्कृतिक कार्यक्रम किये.इस अवसर पर श्री रामभज अग्रवाल,ब्रहमप्रकाश गुप्ता, ईश्वरचंद गोयल, रोशनलाल बंसल, सिंघल स्टोर वाले पवन सिंघल,सामाजिक कार्यकर्त्ता नरेश कुमारअग्रवाल,मदनलाल बंसल, रामस्वरूप अग्रवाल और देवीशरण अग्रवाल आदि व्यक्तियों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही.समारोह का समापन दसवीं व बारहवीं में अच्छे अंक प्राप्त करने वाले छात्र-छात्रों को परितोषिक वितरण होने के बाद प्रसाद ग्रहण के साथ हुआ.
                         समारोह की सुरक्षा तैनात थाना उत्तम नगर के पुलिस अधिकारी.
इन्टरनेट या अन्य सोफ्टवेयर में हिंदी की टाइपिंग कैसे करें और हिंदी में ईमेल कैसे भेजें जाने हेतु और आम आदमियों की परेशानियों को लेकर क़ानूनी समाचारों पर बेबाक टिप्पणियाँ पढ़ें. उच्चतम व दिल्ली उच्च न्यायालय को भेजें बहुमूल्य सुझाव पर अपने विचार प्रकट करने हेतु मेरे ब्लॉग http://rksirfiraa.blogspot.com & http://sirfiraa.blogspot.com देखें. अच्छी या बुरी टिप्पणियाँ आप करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे.अपने बहूमूल्य सुझाव व शिकायतें अवश्य भेजकर मेरा मार्गदर्शन करें.

रविवार, अक्तूबर 03, 2010

संस्था के वार्षिक चुनाव

संस्था के वार्षिक चुनाव सम्पन्न हुए
नई दिल्ली : पश्च्मि दिल्ली के थाना-बिंदापुर के अंतगर्त आने वाली शीशराम पार्क कालोनी की वेलफेयर एसोसिएश्न "शीश राम पार्क सुधार सभा" (पंजीकृत) के वार्षिक चुनाव श्री गिरवर सिंह वशिष्ठ की अध्यक्षता में विगत दिन 2 अक्तूबर को संपन्न हुआ. जिसमें सर्वसम्मति से श्री गिरवर सिंह वशिष्ठ (सरंक्षक), श्रीराम शर्मा (प्रधान), अनिल बंसल (उपप्रधान), डॉ. बृजपाल शर्मा (महासचिव), चन्द्रशेखर(सहसचिव), राजकुमार अग्रवाल (कोषाध्यक्ष) और के. के. सक्सेना (लेखानिरीक्षक) आदि पदाधिकारियों की नियुक्ति की.

बांये से दांये-शीश राम पार्क सुधार सभा के पदाधिकारी श्री राजकुमार अग्रवाल, श्रीराम शर्मा, श्रीमती संतरा देवी, श्रीमती राजरानी, डॉ. बृजपाल शर्मा, अनिल बंसल, और चन्द्रशेखर.

इसके साथ ही हर वर्ष की भांति "शिव मंदिर धमार्थ सभा" (पंजीकृत) के भी चुनाव संपन्न हुए. जिसमें सर्वसम्मति से सरदार करनैल सिंह (सरंक्षक), लक्ष्मीचंद अग्रवाल (प्रधान), मास्टर प्रताप सिंह मुदगल (उपप्रधान), रामगोपाल त्यागी (महासचिव), बजरंग लाल गुप्ता (सहसचिव), जय भगवन अग्रवाल (कोषाध्यक्ष) और के. के. सिंह (लेखानिरीक्षक) आदि पदाधिकारियों की नियुक्ति की.

बांये से दांये-शिव मंदिर धमार्थ सभा के पदाधिकारी रामगोपाल त्यागी, के. के. सिंह, सरदार करनैल सिंह, लक्ष्मीचंद अग्रवाल, जय भगवन अग्रवाल, राणा राम गोयल और बजरंग लाल गुप्ता.

इसके बाद दोनों संस्थाओं के पदाधिकारियों ने आपसी सम्मति से क्षेत्रीय समाचार पत्र "जीवन का लक्ष्य" के संपादक श्री रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" को दोनों संस्थाओं के लिए  "मीडिया प्रभारी" के रूप में नियुक्त किया. जिससे समय-समय पर संस्था द्वारा किये जा रहे कार्यों की सूचनाओं से सभी अवगत हो सके.
बांये से दांये-शीश राम पार्क सुधार सभा व शिव मंदिर धमार्थ सभा के सरंक्षक श्री गिरवर सिंह वशिष्ठ और सरदार करनैल सिंह.

घरेलू क्लेश-फाँसी लगाई

घरेलू क्लेश से दुखी व्यक्ति ने लगाई फाँसी

नई दिल्ली : पश्च्मि दिल्ली के थाना बिंदापुर के अंतगर्त आने वाली शीशराम पार्क कालोनी में विगत दिन 30सितबर की सुबह अश्वनी कुमार (46 ) ने पंखे से लटककर ख़ुदकुशी कर ली. माँ कैलाश देवी ने सुबह मंदिर से आने के बाद कई आवाज लगाकर अश्वनी को ढूंढा. तब पहली मंजिल पर बने कमरे में पंखे से लटका देखा. फिर पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलने पर मौके पर पहुंची पुलिस ने शव को दीनदयाल उपाध्यय अस्पताल भिजवाया. अश्वनी कुमार उत्तम नगर में स्थित मानस कुञ्ज रोड पर परचून की दुकान करते थें और इनके दो बेटे है. जिनकी आयु क्रमश: लगभग 19 साल और 12 साल है. सूत्रों की माने तो यह कहा जा रहा है कि-अश्वनी कुमार ने घरेलू क्लेश से दुखी होकर ही आत्महत्या की. पिछले तीन महीने से पत्नी ने मारपीट कर घर से बाहर निकाल रखा था. मानसिक तनाव के चलते डेढ़ महीने इधर-उधर भटकने के बाद ही पिछले डेढ़ महीने से अपनी माँ के पास रह रहा था. सभी परिजन मानसिक तनाव से उबरने के समझा-बुझा रहे थें. पति की सुरक्षा हेतु कोई कारगर कानून होने की वजह से अक्सर पत्नी से उत्पीडत पति आत्महत्या कर लेते है. पुलिस को कोई सुसाईट नोट बरामद नहीं हुआ. पुलिस की जांच जारी है.

रविवार, सितंबर 12, 2010

बेबाक टिप्पणियाँ (8)

क़ानूनी समाचारों पर बेबाक टिप्पणियाँ (8)

प्रिय दोस्तों व पाठकों, पिछले दिनों मुझे इन्टरनेट पर हिंदी के कई लेख व क़ानूनी समाचार पढने को मिलें.उनको पढ़ लेने के बाद और उनको पढने के साथ साथ उस समय जैसे विचार आ रहे थें.उन्हें व्यक्त करते हुए हर लेख के साथ ही अपने अनुभव के आधार पर अपनी बेबाक टिप्पणियाँ कर दी.लेखों पर की कुछ टिप्पणियाँ निम्नलिखित है.किस लेख पर कौन सी की गई है यह जाने के लिए आपको http://teesarakhamba.blogspot.com/,  http://adaalat.blogspot.com/  और http://rajasthanlawyer.blogspot.com/  पर जाना होगा.इन पर प्रकाशित लेख व समाचारों को पढना होगा.

(1) अदालत ने एक कंपनी के 'गांधी नंबर वन' साबुन की बिक्री से रोक दी है। गोदरेज ने कहा था कि यह नाम उसके 'गोदरेज नंबर वन'ब्रैंड से मिलता-जुलता है। उच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश की 'गांधी सोप एंड डिटरर्जेंट'को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए पूछा है क्यों न गोदरेज को इस मामले में राहत दी जाए। अदालत ने गांधी सोप्स पर 13 सितंबर तक इस उत्पाद के विपणन एवं बिक्री पर रोक लगा दी है।

आज तो केवल 'गांधी सोप एंड डिटरर्जेंट' ही है पता नहीं हमारे देश में कल "गांधी जी" के नाम से लोग क्या-क्या शुरु करेंगे? आज लोगों की मानसिकता पर अफ़सोस होता है कि-यह कैसा सम्मान है?

(2) आपके उपरोक्त लेख के विचारों से संपूर्ण रूप से और बी.एस.पाबला,महफूज अली, राज भाटिया, शिक्षा मित्र, जय कुमार झा, ताऊ रामपुरिया,पी.एन.सुब्रमनियन और काजल कुमार आदि से भी सहमत हूँ.

(3) आप द्वारा दी बहुत अच्छी जानकारी कभी समय मिले तब कृपया करके हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13, 24 और 27 के बारे में विस्तार से जानकारी देने का कष्ट करें.
(4) आपने उपरोक्त लड़की को बहुत अच्छी राय दी है. आपको मेरे पूरे नाचीज़ से प्रकाशन परिवार की ओर से पचपनवें जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ। मुझे काफी देरी से पता चला उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ. इस नये वर्ष में आप अपने तमाम केसों पर विजय प्राप्त करके नई बुलंदी पर पहुंचे. इन्ही कामनाओं के साथ .............आपका शुभाकांक्षी
(5) मैं काजल कुमार, मंसूर अली, सुमन, सुरेश शिप्लुनकर, शिक्षा मित्र, राजेंद्र, जय कुमार झा, डॉ. महेश सिन्हा, विवेक सिंह, बी.एस. पाबला, सतीश पंचम, राकेश शेखावत और आपके विचारों से पूर्णत: सहमत हूँ.
(6) आज जिस तरह से लोगों की नैतिकता गिरती जा रही है.उसी को देखते हुए ही लोग अपना मकान किराये पर न देकर ख़ाली रखना ज्यादा पंसद करते हैं और अगर देते भी है तो संविदा (कंट्रेक्ट) कर के दे रहे है. आज विश्वासघात करना एक फैशन बनता जा रहा है.
(7) मैंने जनवरी 2010 में एक आर.टी.आई रजिस्ट्रार को-आँप सोसायटी, दिल्ली में डाली थी.उसका मुझे जवाब नहीं मिला. तब मैंने "केंद्रीय सूचना आयोग" की वेबसाइट पर बहुत कोशिश की. मगर शिकायत की बहुत लम्बी प्रक्रिया होने की वजय से शिकायत दर्ज नहीं हुई.तब मैंने वेबसाइट से उनके उच्च अधिकारीयों की ईमेल id नोट करके 27 अप्रैल, 31 जुलाई व 6 अगस्त को ईमेल करा दी और अपनी परेशानी के बारे में भी लिख दिया था कि-शिकायत की प्रक्रिया सरल बनाये और प्लीज उचित कार्यवाही करे. क्या आपका rti@india.gov.in ईमेल आईडी ठीक नहीं है. उस पर ई-मेल जाती ही नहीं है. थंकयू!

मुझे आज तक "केंद्रीय सूचना आयोग" से कोई ईमेल या पत्र प्राप्त नहीं हुआ है. इस अनुभव को देखते हुए क्या यह नहीं कहा जा सकता कि-आवाम में सब नंगे है और कोई अपनी जिम्मेदारी समझना ही नहीं चाहता है. आम-आदमी को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के नाम का एक झुनझना थमा दिया है. जिससे सूचना के नाम पर हिलाता रहे जब प्रधानमंत्री कार्यालय सूचना देने में आनाकानी कर रहा है. तब दुसरे क्या क्या करते होंगे. इस बात का आप अंदाजा लगाकर देखिये. मेरे पास ऐसे अनेकों पुख्ता सबूत है. जहाँ पर सूचना मांगने वालों जान से मारने की धमकी मिलती और कईओं के साथ मारपीट भी की. इसके अलावा उनके वाहन कार व स्कूटर में आग लगा दी गई थीं.

(8) आपने बिलकुल सही लिखा है. हमारे देश के नेता चाहते ही नहीं कि-आम आदमी का भला हो.इसलिए ही तो सरकारें हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में कानून उपलब्ध नहीं कराती है.


# निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन: 09868262751, 09910350461 email: sirfiraa@gmail.com, महत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें.हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. नेत्रदान महादान आज ही करें.के द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है

बेबाक टिप्पणियाँ (7)

क़ानूनी समाचारों पर बेबाक टिप्पणियाँ (7)

प्रिय दोस्तों व पाठकों, पिछले दिनों मुझे इन्टरनेट पर हिंदी के कई लेख व क़ानूनी समाचार पढने को मिलें. उनको पढ़ लेने के बाद और उनको पढने के साथ साथ उस समय जैसे विचार आ रहे थें. उन्हें व्यक्त करते हुए हर लेख के साथ ही अपने अनुभव के आधार पर अपनी बेबाक टिप्पणियाँ कर दी. लेखों पर की कुछ टिप्पणियाँ निम्नलिखित है.किस लेख पर कौन सी की गई है यह जाने के लिए आपको http://teesarakhamba.blogspot.com/,  http://adaalat.blogspot.com/  और http://rajasthanlawyer.blogspot.com/  पर जाना होगा.इन पर प्रकाशित लेख व समाचारों को पढना होगा.

(1) मात्र अपनी संतान के प्रति मोह और प्रेम के कारण पत्नी की क्रूरता सहन करनी आवश्क तो नहीं है। फिर भी आपने काफी अच्छी जानकारी दी है.
(2) ऐसे मामलों में कुछ समाचार पत्रों के भ्रष्ट पत्रकार भी मात्र कुछ विज्ञापन के लिए मोबाईल कम्पनियों का साथ देते हैं. मेरे पास ऐसे अनेकों मामलों के पुख्ता सबूत है.फिर भी मैं श्री रतन सिंह शेखावत, बी.एस.पाबला, राहुल प्रताप सिंह राठौड़, महेंद्र मिश्र, नरेश सिंह राठौड़ और ताऊ रामपुरिया के भी विचारों से सहमत हूँ.

(3) आपने मुझे बहुत अच्छी जानकारी दी थी. उसी के आधार पर एक अन्य वकील के माध्यम से तीसरी बार अपनी जमानत याचिका लगवाई थी. मगर अफ़सोस- ढ़ाक के वहीँ तीन पात! चाहे पुरुष या महिला जज हो सब पक्षपात करते हैं और जो आरोप वुमंस सेल और धारा 125 के केस में थें/है ही नहीं उनको आधार बनाकर जमानत देने से इंकार कर रहे हैं और उन आरोपों के सन्दर्भ में कोई सबूत ही नही है.जिसका(छोटी मानसिकता का परिचय वाली बात कहकर) जिक्र मैंने आपको एक ईमेल में किया था.

हमारे देश के जजों, पुलिस और महिला आयोग की मानसिकता यह बनी हुई है कि आदमी ही औरत पर अत्याचार करता है, बल्कि आज महिला (पत्नी) और उसके परिवार वाले ज्यादा अत्याचार करते है. मगर यह सब जानते हुए भी जिम्मेदार अधिकारी पैसो के लालच में खामोश रहता है और पति पर जुल्म करता है. मात्र कुछ कागज के टुकडों के लिए अपना ईमान और ज़मीर को भी बेच देता है या हम यह कहे सारे आवाम में नंगे है.
कम से कम जजों को अपनी (समय को देखते हुए) मानसिकता बदलने की जरूरत है.जहाँ पर देश के नेताओं पर कोई उम्मीद न हो. अब आप बताये कहाँ संघर्ष करूँ और कैसे. 20 अक्तूबर का जन्मदिन मनाकर और दीपावली के बाद आत्महत्या करने के सिवाय मेरे पास चारा ही क्या बचा है? पूरी तरह से भ्रष्ट न्याय व्यवस्था में कहाँ बगैर पैसों के न्याय की गुहार लगाऊ समझ नहीं आ रहा है. मेरा लगातार वजन भी गिरता जा रहा और हलक से रोटी भी नहीं उतरती है.
पहले वाले वकील ने पहली व दूसरी बार किन कारणों से जमानत नहीं हुई की कोई रिपोट नहीं दी थीं. उसने मेरे पैसे भी खा लिये और अदालत में सारे तथ्य भी सही से नहीं रखें. यह जानकारी आग्रमी जमानत ख़ारिज करने के आदेश की कापी निकलवाने पर पता चला है.उसी से जानकारी प्राप्त हुई कि- आग्रमी जमानत ख़ारिज करने की, स्वीकार करने की (जिससे आरोपी को गिरफ्तार न करे) और आवेदन करने की सूचना जांच अधिकारी को भेजी जाती है. तब जांच अधिकारी ने मेरी पत्नी को मेरे आवेदन की सूचना की जानकारी दी है. फिर वो उस दिन जज के पास हाजिर हुई है. मैं अपनी डिप्रेशन की बीमारी के चलते ही दुसरे प्रश्न में "आग्रमी" लिखना भूल गया था और कुछ उपरोक्त प्रश्न का जबाब (आपके अपने पेशे में बिजी होने के कारण ) बहुत देरी से प्राप्त हुआ और एक वकील को मात्र दूसरी बार के एक आदेश की प्रति के लिये एक हजार रूपये (अपनी विधवा माँ की पेंशन के लेकर) देने पड़े.

(4) आपके उपरोक्त लेख से संपूर्ण रूप से सहमत हूँ. कानून के शिकंजे में हमेशा छोटी मछलियाँ ही फंसती है.बड़े लोगों के पास वकीलों के लिये पैसा और सफेदपोश(जिनके लिये पैसा ही सब कुछ है) नेताओं का सहारा होता है.
(5) संयोग से जांच और पूछताछ के दौरान बॉलीवुड अभिनेता शाइनी आहूजा ने स्वीकार किया था कि उन्होंने नौकरानी की सहमति से उसके साथ यौन संबंध बनाए थे। उन्होंने कथित तौर पर नौकरानी से दुष्कर्म की बात भी स्वीकार की थी। शाइनी और प्रताड़ित महिला की चिकित्सा जांच और डीएनए जांच से दुष्कर्म की पुष्टि हुई थी। शाइनी पर 14 जून, 2009 को उनके घर में उनकी घरेलू नौकरानी के साथ दुष्कर्म करने का आरोप लगा था। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और बंबई उच्च न्यायालय से 50,000 रुपये की जमानत राशि पर जमानत मिलने से पहले उन्हें पुलिस व न्यायिक हिरासत में विभिन्न जेलों में 110 दिन बिताने पड़े थे। इस घटना पर देशभर में व्यापक हंगामा होने के बाद राष्ट्रीय महिला आयोग और मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने इसमें हस्तक्षेप कर प्रताड़ित महिला को जल्द न्याय दिलवाने के लिए मामले को त्वरित अदालत में ले जाने का निर्देश दिया था।                                                                              
मेरी राय: नौकरानी का यह कहना कि-उसके साथ इस तरह की घटना कभी नहीं हुई। क्या पहले की गई जांचें झूठी थी? या अब मामला ले-देकर निपटा दिया है. अब राष्ट्रीय महिला आयोग की कार्यशैली पर एक प्रश्न चिन्ह है? क्या राष्ट्रीय महिला आयोग जेल में बिताये 110 दिनों का कोई हिसाब देगा? इसका राष्ट्रीय महिला आयोग और सरकार मुआवजा देंगी? या यह कहे कि-कोई भी महिला किसी व्यक्ति को झूठे आरोप लगाकर जेल करवा दें उसका कोई माई का लाल जज कुछ नहीं बिगाड़ सकता है. अब मेरी कानून व्यवस्था को यह चुनौती हैकि-अब क्यों नहीं कोई अदालत इस घटना पर संज्ञान लेती हैं? (क्रमश:)

बेबाक टिप्पणियाँ (6)

क़ानूनी समाचारों पर बेबाक टिप्पणियाँ (6)

प्रिय दोस्तों व पाठकों, पिछले दिनों मुझे इन्टरनेट पर हिंदी के कई लेख व क़ानूनी समाचार पढने को मिलें. उनको पढ़ लेने के बाद और उनको पढने के साथ साथ उस समय जैसे विचार आ रहे थें.उन्हें व्यक्त करते हुए हर लेख के साथ ही अपने अनुभव के आधार पर अपनी बेबाक टिप्पणियाँ कर दी. लेखों पर की कुछ टिप्पणियाँ निम्नलिखित है.किस लेख पर कौन सी की गई है यह जाने के लिए आपको http://teesarakhamba.blogspot.com/,  http://adaalat.blogspot.com/  और http://rajasthanlawyer.blogspot.com पर जाना होगा.इन पर प्रकाशित लेख व समाचारों को पढना होगा.

(1) पत्नी ओ.सी.डी. (जुनूनी बाध्यकारी विकार) रोग की रोगी है, मुझे क्या करना चाहिए ? मेरे विचार से धोखे की सजा मिलनी चाहिए. पत्नी को वापिस लाकर भी कोई सुधार नहीं हुआ या कहे कुत्ते की दम सीधी नहीं हुई तब क्या होगा? इसका जीता-जागता सबूत है मेरे ऊपर दर्ज FIR नं.138 /2010 में धारा 498a और 406 के झूठे आरोपों की कहानी.
(2) दोस्त बिलकुल आगे आपको जरुर फँसा देगी? अगर आपकी पत्नी अब आती भी है तो आपके खिलाफ सबूत बनाने या इकठ्ठा करने के लिए आएगी. वैसे आप पर अब तक कोई कोई झूठा केस दर्ज नहीं हुआ है,यह बहुत अच्छी बात है. तब भविष्य में भी दर्ज नहीं होगा. दोस्त मैंने 5 -6 बार वापिस बुलाने गलती की थी.उसकी सजा आज भुगत रहा हूँ.दोस्त मेरा तो यहीं अनुभव है.इसका जीता-जागता सबूत है मेरे ऊपर थाना-मोती नगर, दिल्ली में दर्ज FIR नं.138 /2010 में धारा 498a और 406 के झूठे आरोपों की कहानी.

(3) मैं केवल ताऊ रामपुरिया के विचारों से और आपके लेख से सहमत हूँ

(4) लोक अदालत में ऐसा माहौल पैदा किया जाता है कि न्यायार्थी को लगने लगता है कि उस ने न्याय के लिए अदालत आ कर गलती कर दी। वैसी अवस्था में या तो वह अपने अधिकारों को छो़ड़ कर समझौता कर लेता है या फिर अपनी लड़ाई को छोड़ बैठता है।(इस पैरा 100 % सही लिखा है मेरे पिता स्व. रामस्वरूप जैन पर जानलेवा हमले का एक केस तीस हजारी कोर्ट में पिछले सात साल से चल रहा है, उसमें जज की यहीं कोशिश हो रही है. इसलिए हमें आठ-नौ महीने की तारीख देता है. गौरतलब है कि-आरोपी(जैन बंधू) हमारे जैन समाज में आकर माफ़ी मांगने को भी तैयार नहीं है)  लेकिन क्या एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए समझौतों और लोक अदालतों की यह प्रक्रिया उचित है? मेरी राय में नहीं। इस से हम एक न्यापूर्ण समाज की ओर नहीं जा रहे हैं, अपितु अन्याय करने वालों को एक सुविधा प्रदान कर रहे हैं। वैसी ही जैसे किसी को एक झापड़ कस दिया जाए और फिर माफी मांग ली जाए। फिर भी नाराजगी दूर न होने पर कहा जाए कि बेचारे ने माफी तो मांग ली अब क्या एक झापड़ के लिए उस की जान लोगे क्या। (इस पैरा 100%सही लिखा है हम अन्याय करने वालों को एक सुविधा प्रदान कर रहे हैं। लोक अदालतों की यह प्रक्रिया उचित नहीं है. एक बेकसूर को झापड़ कीमत मात्र माफी नहीं बल्कि जितने लोगों के बीच आरोपी ने झापड़ मारा है उतने ही लोगों के बीच बेकसूर व्यक्ति आरोपी को दो झापड़ मारे)

(5) होनेस्टी प्रोजेक्ट डेमोक्रेसी के जय कुमार झा का कहना ... मूल समस्या न्यायिक व्यवस्था में बैठे लोगों के चरित्र का है ,अब देखिये एक जज अपनी मेहनत और ईमानदारी से 30000 मुकदमों को निपटा देता है साल में वहीँ एक भ्रष्ट जज 30 मुकदमे भी नहीं निपटा सकता,इनकी जवावदेही स्पष्ट नहीं है इनके ऊपर शिकायत पर ठोस कार्यवाही की कोई व्यवस्था नहीं है जिससे न्याय की जगह अन्याय हो रहा है ...भ्रष्ट जजों और वकीलों के गठजोड़ ने पूरी न्यायिक प्रक्रिया को सड़ाने का काम किया है.  होनेस्टी प्रोजेक्ट डेमोक्रेसी के जय कुमार झा के विचारों से और टिप्पणियों पर प्रकाशित आपके लेख में दर्ज विचारों पर भी सहमत हूँ.
(6) सरकार को जनता को न्याय दिलाने की न तो कोई इच्छा है और न ही उस की कोशिश कहीं नजर आती है। सरकारों की नीयत स्पष्ट दिखाई देती है कि वे देश के करोड़पतियों और अरबपतियों को तो न्याय दिलाने को कटिबद्ध हैं लेकिन जनता का उन के सामने कोई मूल्य नहीं है। इस मामले में सभी दलों की राज्य सरकारें एक जैसी साबित हुई हैं चाहे वे कांग्रेस के नेतृत्व की सरकारे हों या फिर भाजपा, सपा, बसपा या माकपा के नेतृत्व की सरकारें क्यों न रही हों। जनता को न्याय प्रदान करने में किसी को कोई रुचि नहीं है। ताऊ रामपुरिया said... अब सरकार न्याय दिलाने की फ़ुरसत कहां से निकाले? अपनी जेब का न्याय करने तक ही दिलचस्पी रखती है सरकार क्योंकि 5 साल बीतते देर नही लगती. आपके उपरोक्त लेख की विचारधारा और ताऊ रामपुरिया के विचारों से सहमत हूँ.

(7) काफी अच्छी जानकारी दी है आपने.सूचित वकील ही सर्वोच्च न्यायालय में पैरवी कर सकते हैं। एक अन्य जिज्ञासा-सर्वोच्च न्यायालय में ऑन रिकॉर्ड के रूप में पंजीकृत वकील की जानकारी कहाँ पर उपलब्ध होती है? क्या इसकी सूचना इन्टरनेट पर भी है? (क्रमश:)

बेबाक टिप्पणियाँ (5)

क़ानूनी समाचारों पर बेबाक टिप्पणियाँ (5)

प्रिय दोस्तों व पाठकों, पिछले दिनों मुझे इन्टरनेट पर हिंदी के कई लेख व क़ानूनी समाचार पढने को मिलें. उनको पढ़ लेने के बाद और उनको पढने के साथ साथ उस समय जैसे विचार आ रहे थें. उन्हें व्यक्त करते हुए हर लेख के साथ ही अपने अनुभव के आधार पर अपनी बेबाक टिप्पणियाँ कर दी. लेखों पर की कुछ टिप्पणियाँ निम्नलिखित है.किस लेख पर कौन सी की गई है यह जाने के लिए आपको http://teesarakhamba.blogspot.com/, http://adaalat.blogspot.com/  और http://rajasthanlawyer.blogspot.com/  पर जाना होगा.इन पर प्रकाशित लेख व समाचारों को पढना होगा.

(1) पटना उच्च न्यायालय ने चुटकी लेते याचिकाकर्ता से कहा- अपनी पत्‍‌नी से हर मर्द परेशान ही रहता है........ खुशी मनाइये और संभव हो तो मिठाई भी बांटिये। हाईकोर्ट ने वाइफ की परिभाषा इस तरह की- रांग इनवाइटेड फॉर एवर। पराए मर्द के साथ चली गई अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए पति की ओर से दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत की यह टिप्पणी कोर्ट परिसर में खासी चर्चा में रही। आखिरकार याचिकाकर्ता को अपनी पत्नी वापस नहीं मिल सकी। जोधपुर में तैनात आर्मी में लांस नायक मलय कुमार की ओर से दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को वापस करते हुए हाइकोर्ट ने उन्हें किसी सक्षम न्यायालय की शरण में जाने का निर्देश दिया। अदालत ने उन्हें निचली अदालत में जाने की छूट देते हुए पत्नी को वापस कराने में असमर्थता जाहिर की। याचिका में मूलत: जहानाबाद (बिहार) के मकदूमपुर थाना के सुमेरा गांव वासी लांसनायक ने अदालत के सामने अपनी व्यथा रखी। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसकी शादी 2003 में अनुराधा के साथ हुई। शुरू में सब कुछ ठीक रहा हाईकोर्ट ने वाइफ की परिभाषा काफी अच्छी की.रांग इनवाइटेड फॉर एवर-हमेशा के लिए गलत।


(2) प्रदेश में एडीजे की सीधी भर्ती परीक्षा में कथित धांधली के विरोध में आंदोलन कर रहे वकीलों के समर्थन में बार काउंसिल ऑफ राजस्थान ने अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति का समर्थन करके बहुत अच्छा किया है.

(3) दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हुए अगर एक पक्ष रिश्ते से बाहर आ जाए तो दूसरा बेवफाई की शिकायत नहीं कर सकता। यह रिश्ते आकस्मिक होते हैं और किसी डोर से बंधे नहीं होते और न ही इन रिश्तों में रहने वालों के बीच कोई कानूनी बंधन होता है। दिल्ली हाईकोर्ट ने बहुत सही फैसला किया है. मैं संपूर्ण रूप से सहमत भी हूँ और पिछले लगभग आठ महीने से हाईकोर्ट के जस्टिस श्री शिव नारायण ढींगड़ा द्वारा किये फैसलों को पढ़ रहा हूँ. मैंने अक्सर देखा कि-इन्होंने इसे केसों पर बहुत अच्छे फैसले दिए है.जिनका प्रभाव आज समाज में पड़ रहा है और दिल्ली पुलिस ने प्रभाव में केस दर्ज कर लिया था.

(4) एक आपराधिक मामले में न्यायालय ने किसी और आरोपी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया, लेकिन विवेचक सब इंस्पेक्टर ने किसी और को कोर्ट में पेश कर दिया। इस मामले का खुलासा तब हुआ, जब जेल जा चुके बेगुनाह युवक के परिवार ने अदालत में शिकायत की। इस मामले में एडीजे श्री केसरवानी ने एसआई कमलेश चौरिया को जमकर फटकार लगाई और उसे 5 हजार का क्षतिपूर्ति देने के निर्देश दिये।मेरे विचार से एडीजे श्री केसरवानी ने कुछ भी नहीं किया बल्किएसआई कमलेश चौरिया से रवि सिंह को 50 हजार रूपये दिलवाने चाहिए थे और उतनेही दिनों की सजा काटने का,निलंबित करने का और प्रिंट मीडिया को एसआई कमलेश चौरिया की फोटो सहित समाचार प्रकाशित करने का आदेश देना चाहिए था. मुझे अफ़सोस है हमारेदेश की न्याय व्यवस्था पर बेकसूर आदमी की इज्जत की कीमत मात्र 5 हजार लगाई.

(5) आरटीआई कार्यकर्ता अमित जेठवा की हत्या के सिलसिले में पुलिस ने भाजपा सांसद दीनू सोलंकी के भतीजे शिवा सोलंकी को गिरफ्तार किया गया है। दीनू सोलंकी जूनागढ से भाजपा सांसद हैं। उल्लेखनीय है कि आरटीआई कार्यकर्ता अमित जेठवा ने गिर के जंगलों में हो रहे अवैध खनन के खिलाफ उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की थी। इसके कुछ समय बाद ही 20 जुलाई को मोटरसाइकिल सवार बदमाशों ने गुजरात उच्च न्यायालय के नजदीक जेठवा की गोली मारकर हत्या कर दी थी।सूत्रों के मुताबिक इस हत्याकांड में गिरफ्तार आरोपियों ने पूछताछ के दौरान शिवा सोलंकी का नाम लिया था। अमित की हत्या के बाद ही उनके पिता भीकाभाई जेठवा ने जूनागढ़ से सांसद दीनू सोलंकी पर अपने बेटे की हत्या का आरोप लगाया था।
जब-जब हमारे देश में किसी भी ईमानदार व्यक्ति ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई हैं, तब-तब उसका ईमान खरीदने की कोशिश की जाती है.अगर उसका ईमान नहीं खरीद पाते हैं तब भ्रष्टाचारियों के हाथों यूँ ही मारे जाते हैं. मेरी भी इसे ही किसी एक दिन भ्रष्टाचारी के हाथों मौत होनी है क्योंकि मैं किसी भी को रिश्वत नहीं देने वाला. इसलिए अपनी मौत के सन्दर्भ में अर्ज है:-  
"खुदा ने पूछा बोल कैसी चाहता है अपनी मौत,
मैंने कहाकि-दुश्मन की आँखें झलक आये ऐसी चाहता हूँ मौत." 
"मौत ने पूछा कि-मैं आऊंगी तो स्वागत करोंगे कैसे,
मैंने कहाकि-राहों में फूल बिछाकर पूछूँगा आने में देर इतनी करी कैसे"


(6) मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने दो टूक शब्दों में कहा कि सरकार देश भर के निजी स्कूलों में समग्र शिक्षा के तहत 25 फीसदी गरीब बच्चों के दाखिले को लेकर सख्त और इस नियम का पालन नहीं करने वाले स्कूलों को बंद कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि समग्र शिक्षा के तहत निजी स्कूलों में 25 फीसदी गरीब बच्चों का नामांकन अनिवार्य है और सरकार इससे एक इंच भी पीछे नहीं हटेगी।
अगर मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल जी सख्त हो जाये तो वाकई स्कूलों की अपनी गुंडागर्दी पर रोक लग जाएगी.


(7) एडीजे सीधी भर्ती परीक्षा में कथित धांधली के आरोपों को लेकर पिछले सात दिन से हड़ताल पर उतरे वकीलों ने मंगलवार को जोधपुर में वाहन रैली निकाली। वकीलों के इस विरोध प्रदर्शन के चलते शहर के कई इलाकों में यातायात जाम हो गया और वाहन चालकों को अपने गतंव्य स्थलों तक पहुंचने में खासी मशक्कत करनी पड़ी। यातायात पुलिस के प्रयास भी कम पड़ गए।
भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना अच्छी बात है. सभी वकील और सभ्य व्यक्ति थें. इसलिए रैली मानव श्रंखला(वाहनों की कतार) के रूप में निकालकर आम आदमी की परेशानी नहीं बढानी चाहिए थी. इस प्रकार पढ़े-लिखें और अनपढ़ों में कोई फर्क नहीं रह जायेगा. (क्रमश:)

बेबाक टिप्पणियाँ (4)

क़ानूनी समाचारों पर बेबाक टिप्पणियाँ (4)

प्रिय दोस्तों व पाठकों, पिछले दिनों मुझे इन्टरनेट पर हिंदी के कई लेख व क़ानूनी समाचार पढने को मिलें. उनको पढ़ लेने के बाद और उनको पढने के साथ साथ उस समय जैसे विचार आ रहे थें.उन्हें व्यक्त करते हुए हर लेख के साथ ही अपने अनुभव के आधार पर अपनी बेबाक टिप्पणियाँ कर दी.लेखों पर की कुछ टिप्पणियाँ निम्नलिखित है.किस लेख पर कौन सी की गई है यह जाने के लिए आपको http://teesarakhamba.blogspot.com/ , http://adaalat.blogspot.com   और http://rajasthanlawyer.blogspot.com/   पर जाना होगा.इन पर प्रकाशित लेख व समाचारों को पढना होगा
(1) धारा 197 का उल्लेख है कि किसी भी न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट या लोक सेवक जिसे सरकार द्वारा या उस की मंजूरी से ही उस के पद से हटाया जा सकता है,यह धारा और सरकार द्वारा अभियोजन की अनुमति प्राप्त करने की जटिल प्रक्रिया के कारण ही अपनी पदीय कर्तव्य के दौरान अपराधिक कृत्य करने वाले न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट और लोक सेवकों को बचाती है। इस से पदीय कर्तव्यों के दौरान अपराधिक कृत्य किए जाने की संख्या लगातार बढ़ रही है।

(2)  अपने बिलकुल सही कहा है कि- इस कानून में निश्चित ही ऐसा परिवर्तन जल्द से जल्द किया जाना निहायत आवश्यक है जिस से कोई भी अपराधी दंड से बचा न रह सके। क्या कोई लोक सेवक यह स्वीकार करेंगा कि उसने लालचवश आपराधिक कृत्य किया है?उपरोक्त धारा में आश्चर्यजनक यह है कि लोकसेवक से पूछा जा रहा है, क्या तुमको तुम्हारे पद से हटा दिया जाये?क्या कोई लोकसेवक कमाई वाला पद यूँ ही आसानी से छोड़ देंगा ?जय कुमार झा (होनेस्टी प्रोजेक्ट डेमोक्रेसी) की विचारों से भी सहमत हूँ.

(3) मैं शिक्षा मित्र के भी विचारों से सहमत हूँ. बहुत अच्छी जानकारी भी मिली.

(4) बहुत अच्छी सलाह; ऐसा तो कुछ जरुर होगा. सर ने सही कहा है कीर्ति जी, आप को यह तलाशना होगा कि ऐसा क्या है जिसे प्राप्त करने के लिए आप के पति को उस स्त्री से संबंध बनाना पड़ा है। आप के पति को वह सब अपने घर में प्राप्त हो जिसे प्राप्त करने के लिए उन्हें अन्य स्त्री के साथ संबंध बनाना पड़ा है.

(5) मैं राज भाटिया और ताऊ जी के विचारों से भी सहमत हूँ. इस रिश्ते का भविष्य भी अच्छा नहीं होता.

(6)  आप अपने ब्लॉग पर साधारण नागरिकों को क़ानूनी सलाह देते है, मगर अपने पेशे से जुड़े व्यक्ति को भी जानकारी देकर आपने साबित कर दिया कि आपके यहाँ भेदभाव नहीं होता है और आप बड़े दिल वाले है. बहुत अच्छी जानकारी का आभार !

(7) मैं नीरज जाट, पी.सी.गोदियाल , नरेश सिंह राठौड़ और ताऊ जी के विचारों से भी सहमत हूँ. मेरी और से भी सुप्रीम कोर्ट को धन्यबाद ! जहाँ नेता हो जाये नाकारा , वहां सुप्रीम कोर्ट का सहारा!

(8) एक जागरूक नागरिक भी किसी भी अपराध की शिकायत दर्ज करा सकता है. चाहे वो अपराध से प्रभावित हो या नहीं. बहुत अच्छी जानकारी.

(9) श्रीमान द्विवेदी जी, आपने सही कहा है कि यह संख्या सही नहीं है, मेरे विचार से समाचार लिखने में कुछ कमी है या रह गई है. वैसे यह हो सकता है कि उपरोक्त संख्या सन 1995 में दर्ज मामलों की हो, जो पिछले 15 सालों से चल रहे हो. संपुर्ण समाचार न होने से यह भी कहा जा सकता है. उपरोक्त मामले आपसी सहमति से तलाक लेने वालों के हो.

(10) माननीय सुप्रीम कोर्ट ने क्या आज पहली बार सरकार व विधि आयोग को कहा हैं कि दहेज़ विरोधी कानून और घरेलू हिंसा अधिनियम संबंधित कानून के दुरुपयोग पर रोक लगाने के लिए आवश्यक संशोधन करने की.झूठे मुकदमों में बचाव पक्ष को भले ही बरी कर दिया जाए.लेकिन उन्हें जिन मानसिक परेशानियों से गुजरना होता है.उसकी कल्पना नहीं की जा सकती।

(11) मैं यह पूछना चाहता हूँ क्या ऐसे मामलों में पीड़ित को सरकार कोई मुआवजा दिला सकती हैं अपने खर्चे पर? अगर नहीं! तो फिर ऐसे कानूनों में बदलाव शीघ्रता क्यों नहीं करती है? सरकार में शामिल नुमंदे ही कुछ प्रयास नहीं कर रहे हैं तब बेचारा एक जज क्या कर सकता है?

(12) श्री नारायण दत्त तिवारी जी, आपने रोहित की याचिका पर डीएनए परीक्षण कराने से इंकार कर दिया और आपने इस बात से भी इंकार कर दिया था कि उसकी मां से उनका कोई शारीरिक रिश्ता भी था। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि आप अगर सच्चे हैं तो किस बात से डर रहे हैं. साँच को आंच नहीं आती है. फिर क्यों नहीं टेस्ट करवाकर सच्चे का बोलबाला और झूठे का मुंह काला वाली कहावत क्यों नहीं चरितार्थ कर रहे हैं.

(13) अगर उपरोक्त समाचार में ज्यूडिशियल एकादमी की वेबसाइट का नाम व पता दिया जाता तब उसको देखकर जानकारी प्राप्त की जा सकती थी. (क्रमश:)

गुरुवार, सितंबर 09, 2010

बेबाक टिप्पणियाँ (3)

क़ानूनी समाचारों पर बेबाक टिप्पणियाँ (3)

प्रिय दोस्तों व पाठकों, पिछले दिनों मुझे इन्टरनेट पर हिंदी के कई लेख व क़ानूनी समाचार पढने को मिलें.उनको पढ़ लेने के बाद और उनको पढने के साथ साथ उस समय जैसे विचार आ रहे थें.उन्हें व्यक्त करते हुए हर लेख के साथ ही अपने अनुभव के आधार पर अपनी बेबाक टिप्पणियाँ कर दी. लेखों पर की कुछ टिप्पणियाँ निम्नलिखित है.किस लेख पर कौन सी की गई है यह जाने के लिए आपको http://teesarakhamba.blogspot.com/, http://adaalat.blogspot.com/  और http://rajasthanlawyer.blogspot.com/  पर जाना होगा.इन पर प्रकाशित लेख व समाचारों को पढना होगा.

(1) कभी कभी लगता है कि हमारी न्यायपालिका लकीर की फकीर है.अरे चाहे संविधान में लिखा हो या ना हो जब भारत के ज्यादातर लोग हिन्दी जानते हैं और अघोषित रूप से उसे राष्ट्रभाषा मानते हैं.तब उसे कानूनी तौर पर भी राष्ट्रभाषा मान लिया जाना चाहिए,क्योंकि इसी में देशहित है.न्यायपालिका एक चीज़ और स्पष्ट करे कि कानून जनता के लिए होता है या जनता कानून के लिए?आज भी भारत में तो अंग्रेजों का कानून लागू है.हिंदी का हिंदुस्तान में अपमान निश्चय ही यह गंभीर मामला है और सुप्रीमकोर्ट ने ऐसे गंभीर मामले को सुनवाई के लिए नहीं स्वीकार करके देश के लोगों के बीच अपनी छवि को ख़राब करने का काम किया है.कम से कम सुप्रीमकोर्ट को देश और देश की भावनाओं से जुडें मुद्दों पर ऐसा रुख नहीं अपनाना चाहिए था.देश के लोग सुप्रीमकोर्ट की तरफ न्याय और हर कीमत पर न्याय........... के लिए देखते हैं.जिसका सम्मान सुप्रीम कोर्ट को भी करना चाहिए.
(2) घरेलू हिंसा अधिनियम व दहेज क़ानून का दुऱुउयोग हो रहा है.वूमन्स सेल में जाँच के नाम पर अपनी रिश्व्त के लिए सौदेबाजी ज़्यादा होती है. अगर महिला आयोग इतना ही दूध का धुला है तब क्यो नही पति-पत्नी के पक्ष की विडीयो फिल्म बनवाता है. आज हमारे देश के जजो व पुलिस की मानसिकता बन गई है कि आदमी अत्याचार करता है.498अ नामक हथियार लङकी के हाथ आने से लङकी और मां-बाप के लिए पैसे कमाने का धंधा बन गया है और जो एक प्रकार से बेटी बेचने के समान है. इस मे जल्द से जल्द बदलाव होना चाहिए.
(3) किसी भी व्यवस्था की आलोचना के बिना उस की कमियों, कमजोरियों और दोषों को दूर किया जाना संभव नहीं है और ये कमियां, कमजोरियां तथा दोष ही व्यवस्था में जन-विश्वास को समाप्त कर देते हैं। न्याय प्रणाली में जन-विश्वास को केवल कमियों, कमजोरियों और दोषों को दूर करने और सुव्यवस्थित कार्यप्रणाली के द्वारा ही अर्जित किया जा सकता है,जन-हस्तक्षेप से ही दोषों का उपाय संभव है। श्रीमान जी आपने बिलकुल सही कहा है. जब तक किसी व्यक्ति या व्यवस्था की कमजोरियां पता नहीं चलेंगी तब तक सुधार नहीं हो सकता है.
(4) बहुत अच्छी विचारधारा के साथ ही बहुत अच्छे सुझाव दिए है. काश ऐसा संभव होता तो मेरा देश महान होता.
(5) आप बहुत अच्छा कार्य कर रहें हैं.इससे और ज्यादा लोगों को दुसरे ब्लोगों के बारे में भी पता चलता है. इसके अलावा एक नई पहचान मिलती है और काफी लोगों से जुड़ने का मौका मिलता है. छोटी सी जिंदगी में नया प्राप्त होता है. आपकी यह कोशिश सफल हो ऐसी कामना करता हूँ. आपके इस से ब्लोगेर्स को भी काफी फायदा होगा ऐसा मेरा विचार है.
(6) आप सभी(शुभचिंतकों) ने मेरी समस्या पर दी क़ानूनी सलाह पर टिप्पणी करते हुए मेरा जो उत्साह बढ़ा है.उसके लिए आप सभी का धन्यबाद करता हूँ
(7) शबास हर नागरिक को ऐसा ही जागरूक होने की जरुरत है.एक काम की बात कोई भी सामान लेते समय बिल जरूर ले यही तो आप की जीत का आधार है और इससे आप किसी प्रकार के धोखा होने से बचते है. अन्याय के खिलाफ यह एक पुख्ता सबूत के तौर पर काम आता है.
(8) हमारे देश की कहानी ही कुछ और है.यहीं कानून भी वोट को देखकर बनाये जाते है.जब राजनेता इस में फंसते है तब बदलाव की बात करते हैं
(9) पुलिस अगर जयादा से जयादा लोगो का नाम शामिल नहीं करेगी तो उसकी कमी कैसे होगी. घरेलू हिंसा अधिनियम व दहेज क़ानून का दुऱुउयोग हो रहा है.
(10) ताऊ रामपुरिया के विचारों से भी सहमत हूँ. 14 साल के बाद ही याद आई कुछ दस्तावेजों की बात कुछ हैरानी वाली है. इन कंपनियों की गुंडागर्दी रोकने के लिए सरकार को जल्द कुछ करना चाहिए.
(11) 60 वर्ष पूर्व पारिवारिक भूमि का मौखिक रूप से बँटवारा हो चूका है. मगर लालच ने नियत खराब कर दी है. इसलिए दुसरे पक्ष को कोर्ट कहचरी में घसीटना चाहता है.
(12) सभी जज लोक सेवक हैं, अगर कोई जज भ्रष्टतापूर्वक या विद्वेष पूर्वक फैसला देगा,या सुनाएगा.वह भी कारावास या जुर्माने से,या दोनों से,दंडित किया जाएगा।काफी अच्छी जानकारी है
(13) चाहे कोई कितना दूर का रिश्तेदार क्यों न हो वो हिन्दू धर्म के नि:सन्तान व्यक्ति (जिसने वसीयत न की हो ) की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति में हक़दार हो सकता है.आपने काफी अच्छी जानकारी दी है 
(14) लोगों को क़ानूनी जानकारी न होने की वजय से अपने क़ानूनी अधिकारों से वंचित रह जाते है.आप उन्हें जानकारी देकर उनके अधिकार दिलवा रहे हैं.आप बहुत अच्छा कर रहे हैं.  
(15) शिक्षण संस्थान प्रोस्पेक्टस में रोजगार दिलवाने की बातें तो बड़ी-बड़ी करते है.मगर छात्रों की धनराशी लेकर अक्सर भाग जाते है और बेचारे मुहं ताकते रह जाते है और उनके सभी ख्याब अधूरे रह जाते है.आपने काफी अच्छी जानकारी दी है. (क्रमश:)

मंगलवार, सितंबर 07, 2010

बेबाक टिप्पणियाँ (2)

क़ानूनी समाचारों पर बेबाक टिप्पणियाँ (2)

प्रिय दोस्तों व पाठकों, पिछले दिनों मुझे इन्टरनेट पर हिंदी के कई लेख व क़ानूनी समाचार पढने को मिलें.उनको पढ़ लेने के बाद और उनको पढने के साथ साथ उस समय जैसे विचार आ रहे थें. उन्हें व्यक्त करते हुए हर लेख के साथ ही अपने अनुभव के आधार पर अपनी बेबाक टिप्पणियाँ कर दी. लेखों पर की कुछ टिप्पणियाँ निम्नलिखित है.किस लेख पर कौन सी की गई है यह जाने के लिए आपको http://teesarakhamba.blogspot.com/, http://adaalat.blogspot.com/और http://rajasthanlawyer.blogspot.com/ पर जाना होगा.इन पर प्रकाशित लेख व समाचारों को पढना होगा.
(1) अपराधों की जानकारी होने पर भी किसी मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को उन की सूचना न देने के दायित्व को पूरा न करना भारतीय दंड संहिता की धारा 176 व 202 के अंतर्गत दंडनीय अपराध घोषित किया गया है जिस के लिए उस व्यक्ति को छह माह के कारावास या जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
बहुत अच्छी जानकारी,मगर पुलिस ही अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ लेती है.तब एक जागरूक नागरिक का उत्साह कम हो जाता है. फिर पुलिस वालों का यह जुमला कि-"अच्छा तू है समाज सुधारक! तू सुधरेगा समाज को, अच्छा बता क्या करता है तू. वहां उस समय क्या काम गया था घर में नहीं बैठा रहा गया तेरे सै" एक सभ्य व्यक्ति को अंदर तक आहत कर जाता है.

(2) यदि पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न करे तो कोई भी व्यक्ति न्यायालय के समक्ष अपना परिवाद प्रस्तुत कर सकता है(मेरी राय:आज एक तो समय की कमी है, ऐसे मामलो में उस व्यकित को सरकारी वकील आसानी से मिलना चाहिए या उस व्यक्ति को बगैर वकील की सहायता के उपरोक्त विवाद पेश करने की अनुमति होनी चाहिए) जिसे न्यायालय पुलिस थाने को मामला दर्ज करने के लिए भेज सकता है (मेरी राय:आज एक-एक न्यायालय ऐसे मामलो में फैसले देने में एक-दो साल लगा देती है) और पुलिस उस में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर आगे कार्यवाही कर सकती है।(मेरी राय: पुलिस ऐसे मामलो में चिढ़ी रहती है) न्यायालय यह भी कर सकता है कि परिवाद प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति का बयान ले और अन्य सबूत व गवाह प्रस्तुत करने के लिए कहे। इस तरह के बयान दर्ज हो जाने के उपरांत न्यायालय उसी समय प्रसंज्ञान ले कर मुकदमा दर्ज कर सकता है.(मेरी राय: जब तक आदेश होता है और जाँच होती है तब तक अधिकांश सबूत व गवाह नष्ट हो चुके होते है या दबाब के कारण इनकार कर देते हैं और पुलिस ऐसे मामलो में जांच प्रक्रिया में कोताही बरती है)
(3) एक महत्वपूर्ण फैसला कि नपुंसकता के आधार तलाक लेने के लिए यह आवश्यक है कि इसे सिद्घ करने के लिए खास मेडिकल सबूत हों। मेरा यह विचार है कि-पत्नी द्वारा दो बार गर्भवती होने के बाद भी अपने पति पर नपुंसक होने का आरोप लगते हुए पति को अपनी जांचों के लिए मजबूर किये जाने को और बगैर किसी मेडिकल सबूत के अपने पति पर नपुंसक होने का आरोप लगाने वाली महिला को भी क्रूरता का दोषी माना जाए. ऐसी महिला के पति को क्रूरता के आधार पर तलाक दें देना चाहिए और उसको किसी प्रकार का कोई मुआवजा भी नहीं दिलवाना चाहिए. बल्कि उससे आदेश दिया जाना चाहिए कि अपने पति की समाज में बदनामी की है. जिससे उसका मान-सम्मान की हानि हुई है. इसलिए वो इतना.....मुआवजा दे अथवा इतने .....दिनों की सजा जेल में काटें. जब ऐसे आदेश आने शुरू होंगे, तब देखना कि- नपुंसकता के आरोप लगाने वाले केस कितने कम हो जाते हैं.
(4) देर आया एक बहुत अच्छा फैसला है कि-जीवनसाथी द्वारा क्रूरता की कुछ घटनाएं भी तलाक का पर्याप्त आधार हो सकती है. तलाक पाने की खातिर मानसिक या शारीरिक क्रूरता को साबित करने के लिए उत्पीड़न की हर घटना का उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है. कभी-कभार जीवनसाथी द्वारा की गयी क्रूरता को साबित करने के लिए दो या तीन घटनाएं पर्याप्त होती हैं. मानसिक क्रूरता शारीरिक क्रूरता से ज्यादा कठोर होती है. न्यायमूर्ति अरुणा सुरेश ने कहा पक्ष के लिए आवश्यक नहीं है कि वह जीवनसाथी के आचरण को क्रूरता की श्रेणी में लाने के लिए हर घटना बतायें.
(5) यह एक शर्मनाक घटना है कि-आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों को प्रोन्नति के लिए परीक्षा दे रहे न्यायाधीश परीक्षा के दौरान नकल करते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया गया। न्यायपालिका की तौहीनी करने के आरोप में रंगा रेड्डी के वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश के.अजीत सिम्हाराव, अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (द्वितीय) विजयानंद, बापातला के वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश श्रीनिवास चारी, अनंतपुर के वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश एम.किश्तप्पा और वारंगल के कनिष्ठ सिविल न्यायाधीश हनुमंत राव निलंबित कर दिया गया। अदालत ने राज्य सरकार को भी निर्देश दिया कि वह सभी न्यायाधीशों के खिलाफ कार्रवाई करे, क्योंकि इन्होंने कानून के पेशे को बदनाम किया है। मुझे तो उपरोक्त जजों द्वारा आज तक किये फैसलों पर भी संदेह हो रहा है कि-क्या इन्होने जानकारी के अभाव में कहीं गलत फैसले न दिए हों और किसी वेकसूर को सजा न हो गई हों क्योकि इन्हें जानकारी के अभाव में ही नकल का सहारा लेना पड़ा होगा.
(6) वाह! यह कमाल हो गया मुख्य आरोपी जेल में बंद, सह आरोपी फरार. याचिका उसकी और जमानत सह आरोपी की.
(7) बहुत अफ़सोस है कि-नौवीं योजना में सरकार ने न्यायिक प्रणाली के लिए सिर्फ 385 करोड़ रुपये आवंटित और राष्ट्रमंडल खेलों में करीब 40 हजार करोड़ रुपये के खर्च किए। 120 करोड़ की आबादी वाले देश के उच्च न्यायालय में 600 न्यायाधीश हैं, देश की आठ हजार अदालतों में दो करोड़ 40 लाख मामले लंबित हैं। न्यायाधीशों की वर्तमान संख्या और वर्तमान लंबित मामलों के समाधान में ही 300 से ज्यादा वर्ष लग जाएंगे।
यह हमारे देश के लोगों की बहुत बड़ी बदनसीबी हैं कि-आज देश की न्याय व्यवस्था इतनी ख़राब हो चुकी है फिर भी हमारे देश के नेता के सुधार हेतु इच्छुक नहीं है. होना तो यह चाहिए कि-आबादी को देखते हुए उच्च न्यायालयों में कम से कम 12000 न्यायाधीश और न्यायिक प्रणाली के लिए 20,000 करोड़ रुपये आवंटित हो
(8) उपरोक्त लेख पर मैं बबली, परमजीत सिंह बाली, अंतर सोहिल, नरेश सिंह राठौड़, महेंदर मिश्र, ताऊ रामपुरिया और राज भाटिया के विचारों से सहमत हूँ. आज के युग जहाँ एक ओर व्यक्तिओं की कागज के मात्र कुछ टुकड़ों के लिए नैतिकता गिरती जा रही है. वहां पर हर कार्य लिखित में करना आज की जरूरत बन गया है. आज लोग थूक कर चाटने को तैयार रहते हैं यानि अपनी कही बात से एक मिनट में मुकर जाते हैं. आज प्राण जाए मगर वचन न जाए का ज़माना नहीं रहा है. आज तो लोगों का कहना है कि-वचन जाए मगर पैसा न जाए.(क्रमश:)

# निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन: 09868262751, 09910350461 email: sirfiraa@gmail.com, महत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें.हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. नेत्रदान महादान आज ही करें. आपके द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है.

सोमवार, सितंबर 06, 2010

बेबाक टिप्पणियाँ (1)

  क़ानूनी समाचारों पर बेबाक टिप्पणियाँ (1)
प्रिय दोस्तों व पाठकों, पिछले दिनों मुझे इन्टरनेट पर हिंदी के कई लेख व क़ानूनी समाचार पढने को मिलें. उनको पढ़ लेने के बाद और उनको पढने के साथ साथ उस समय जैसे विचार आ रहे थें. उन्हें व्यक्त करते हुए हर लेख के साथ ही अपने अनुभव के आधार पर अपनी बेबाक टिप्पणियाँ कर दी. लेखों पर की कुछ टिप्पणियाँ निम्नलिखित है.किस लेख पर कौन सी की गई है यह जाने के लिए आपको http://teesarakhamba.blogspot.com , http://adaalat.blogspot.com और http://rajasthanlawyer.blogspot.com पर जाना होगा.इन पर प्रकाशित लेख व समाचारों को पढना होगा.
उच्चतम न्यायालय/दिल्ली उच्च न्यायालय हेतु बहुमूल्य सुझाव
मेरा अपने अनुभव के आधार पर माननीय उच्चतम न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय को विन्रम अनुरोध के साथ उपरोक्त बहुमूल्य सुझाव है कि-एक आरोपी को अपने खिलाफ दर्ज हुई ऍफ़.आई.आर की एक प्रति निकलवाने के लिए वकीलों को या अदालतों में एक-एक हजार रूपये देने पड़ते है. जिससे न्यायालयों में भ्रष्टाचार चरम-सीमा पर पहुँच चुका है. अगर कुछ ऐसी व्यवस्था कर दी जाये कि-माना "अ" ने "ब" के खिलाफ "स" थाने में FIR दर्ज करवाई है और जोकि "द" नामक अदालत के क्षेत्राधिकार में आता है. तब "ब" आरोपी "द" नामक अदालत की वेबसाइट पर FIR के कालम पर क्लिक करके अपना और "अ" का नाम के साथ ही "स" थाने का नाम डालकर उपरोक्त आंकडें जमा करा दें. तब उसकी FIR की संख्या दिखें. उस संख्या पर क्लिक करके "ब" आरोपी अपनी FIR का इन्टरनेट से प्रिंट आउट निकाल सकेंगा. इससे न्यायालयों और थानों में भ्रष्टाचार रुकने के साथ ही एक बेकसूर आरोपी वकीलों और चारों से लुटने से बच जायेगा. अपने बचाव के लिए उचित कदम उठा सकेंगा.इससे एक बेकसूर आरोपी थानों के अधिकारीयों व वकीलों द्वारा मानसिक व आर्थिक शोषण होने से बच जायेगा और एक आम-आदमी का न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास कायम होगा. धन्यबाद!
होना पड़ेगा वकीलों को भी हाईटेक :-
अब वकीलों को भी अदालत से तादात्म्य स्थापित रखना है तो हाईटेक होना होगा, किसी भी केस में वकालतनामा दाखिल करने के साथ-साथ अपना ई-मेल पता भी उसमें लिखकर देना होगा ताकि कोई भी सूचना या मांगा गया दस्तावेज ई-मेल के माध्यम से भेजा जा सके। इस संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के निर्देशानुसार रजिस्ट्रार जनरल राकेश कपूर ने कड़कड़डूमा कोर्ट, तीस हजारी, पटियाला हाउस, रोहिणी, द्वारका और साकेत कोर्ट में काम करने वाले सभी न्यायिक अधिकारियों को सर्कुलर जारी किया है। इसमें कहा गया है कि ई-मेल पता उन्हीं वकीलों को देना होगा, जिनका ई-मेल एकाउंट है। यह बाध्यता नहीं है, मगर ऐसा करने से वकीलों को अधिक से अधिक फायदा जरूर होगा। कई बार समन एवं आदेश वकीलों तक नहीं पहंच पाते। ऐसे में ई-मेल के जरिये वकीलों तक केस के संबंध में कोई भी संदेश भेजना आसान हो जाएगा। इसके अतिरिक्त कोई वकील किसी फैसले की प्रति के लिए अदालत में आवेदन करता है तो उसे फैसले की प्रति ई-मेल के जरिए भेज दी जाएगी। वकील इसके लिए भागदौड़ से बच जाएगा। हाईकोर्ट ने सर्कुलर के माध्यम से राजधानी के सभी न्यायिक अधिकारियों को यह भी निर्देश जारी किया है कि अगर कोई वकील आपराधिक मामले में किसी व्यक्ति की पैरवी के लिए वकालतनामा दाखिल करता है तो उसको अदालत के समक्ष यह भी विवरण देना होगा कि आरोपी पर उस तरह के अपराध में कितनी अदालतों में केस चल रहा है। इससे अदालतों को रिकार्ड व्यवस्थित करने में वकीलों से मदद मिलेगी। उल्लेखनीय है कि दिल्ली हाईकोट राजधानी की सभी जिला अदालतों के कार्यो व प्रक्रिया को अधिक से अधिक हाईटेक करने की प्रक्रिया चला जा रहा है। इसके तहत जिला अदालतों के रिकार्ड को कम्प्यूटरीकृत किया जा चुका है। देखने की बात यह है कि राजधानी से चली ये बयार देश के कोने कोने तक कब पहुँचती है?
(1) दिल्ली हाईकोर्ट ने यह बहुत अच्छा किया है. आज संचार माध्यमों द्वारा सभी अदालतों को सुसज्जित करना ही समय की मांग है. दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा उठाया यह कदम प्रशंसा योग्य है. अगर संभव हो तो दोनों पक्षों का भी ईमेल उनकी इच्छा पर लिया जाये और फैसले या आदेश की एक प्रति शुल्क जमा करने पर उससे भी भेज दी जाये तो इससे वकीलों द्वारा अपने मुक्किवल से आदेश की प्रति के नाम पर काफी ज्यादा ली जाती राशी का वचाव होगा और भ्रष्टाचार पर भी रोक लग जाएगी.
(2) किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले उसे नोटिस जारी करने को अनिवार्य बनाने संबंधी विधेयक दंड प्रक्रिया संहिता 'संशोधन' विधेयक 2010 उपरोक्त संशोधन कब से लागू होगा और क्या इस कानून पर महामहिम राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचना जारी होने के बाद ही लागू होगा? वैसे इस कानून के पूरी ईमानदारी से पालन करने पर वेकसुर व्यक्ति पुलिस द्वारा शोषित होने से बच सकेंगा.
(3)दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस एस.एन.ढींगरा ने एक पारिवारिक अदालत द्वारा दिए गए निर्णय को दरकिनार करते हुए यह व्यवस्था दी है कि किसी व्यक्ति की निजी आय उसकी परित्यक्ता पत्नी के गुजारे-भत्ते का निर्णय करने के लिए आधार होना चाहिए न कि उसकी पारिवारिक संपत्ति। पारिवारिक अदालत ने एक व्यक्ति को अपनी परित्यक्ता पत्नी को गुजारे-भत्ते के लिए 45,000 रुपए प्रति माह देने का आदेश दिया था, जबकि उस व्यक्ति की निजी आय 41,000 रुपए प्रति माह है। जस्टिस ढींगरा ने सत्र न्यायालय के फैसले को अनुचित करार देते हुए कहा कि किसी व्यक्ति के आत्मनिर्भर और बारोजगार होने के बाद उस व्यक्ति की निजी आय ही उस पर निर्भर रहने वाली उसकी पत्नी या उसके बच्चों के लिए गुजारे भत्ते की राशि तय करने के लिए आधार होना चाहिए और उपरोक्त व्यक्ति की मौजूदा संपत्ति उसके पिता, माता और भाभी के नाम है, जिसे उसकी पत्नी की संपत्ति के तौर पर विचारित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि उसके भाई या अभिभावकों के नाम की संपत्ति को गुजारा-भत्ता तय करने का आधार नहीं बनाया जा सकता है। किसी व्यक्ति के स्तर का आंकलन उसके भाई या पिता के स्तर के आधार पर नहीं हो सकता है। जस्टिस ढींगरा ने उसके गुजारे-भत्ते की राशि को 45,000 रुपए से घटाकर 20,000 रुपए कर दिया है। यहाँ गौरतलब है कि- सत्र न्यायालय ने पत्नी द्वारा घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत दाखिल सुरक्षा और गुजारे-भत्ते की अर्जी को स्वीकार कर लिया था और मैट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा तय रखरखाव की राशि को बढ़ाकर 10,000 रुपए से 30,000 रुपए कर दिया था और घर के किराए की राशि को 5 हजार रुपए से बढ़ाकर 15,000 रुपए कर दिया था। हाईकोर्ट एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसने सत्र न्यायालय के फैसले को इस आधार पर चुनौती दी थी कि उसकी परित्यक्ता पत्नी के लिए गुजारे-भत्ते की राशि तय करने में उसके परिवार के स्तर और संपत्ति को आधार नहीं बनाया जा सकता है।
वाह! सत्र न्यायालय ने कमाल कर दिया रुमाल को खींचकर धोती बना दिया. निजी आय से ज्यादा गुजारा भत्ता देने का निर्णय दे दिया. इससे कहते हैं आँखें होते हुए भी आँखों का न होना या पक्षपात करना या बंद आँखों से निर्णय देना.
(4) प्रदेश में एडीजे की सीधी भर्ती परीक्षा में कथित धांधली के विरोध में आंदोलन कर रहे वकीलों के समर्थन में बार काउंसिल ऑफ राजस्थान ने अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति का समर्थन करके बहुत अच्छा किया है.
(5) पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस दया चौधरी ने बहुत अच्छा किया जो दोनों की सुरक्षा के लिए हाथ बढ़ाते हुए मोगा के एसएसपी को कानून के मुताबिक जरूरी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। काश असली में सही सुरक्षा मिली तो दो प्यार करने वालों का एक सुखमय जीवन व्यतीत होगा. वरना मात्र इज्जत की झूठी शान के लिए के कहीं एक और बलि न चढ़ जाये. जिस दिन हमारे देश के पुलिस थानों सुनवाई होने लग जाये और सही कार्यवाही होने लग जाएँगी. तब अपने-आप न्यायालाओं में केसों का इतना दबाब नहीं रहेगा.

(6) कनॉट प्लेस इलाके में जुलाई के आखिरी सप्ताह में एक महिला ने शंकर रोड पर एक बच्ची को जन्म दिया और इस दौरान वह चल बसी। तब मीडिया में आई रिपोर्ट पर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने संज्ञान लेकर कार्य तो बहुत अच्छा किया. मगर माननीय चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा जी काफी सारे ऐसे मामले भी होते हैं. जिनकी पहुँच मीडिया या हाईकोर्ट तक नहीं होती है. वो बेचारे यूँ ही कीड़े-मकोड़ों की तरह मर जाते हैं या आत्महत्या कर लेते हैं.अगर किसी बेचारे को कभी-कभार सरकारी वकील मिल भी जाता है तब सरकारी वकील दबाब में आ जाता है या बिक जाता है. अगर यह सम्भव नहीं होता है तब अपने कार्य की गति इतनी धीमी कर देता है कि-एक गरीब को न्याय मिलने में कई सालों लग जाते हैं और वो न्याय न होकर एक प्रकार से अन्याय ही होता है.

(7) आज के समय की मांग है कि- कंपनी विधेयक में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को जरुर शामिल करना चाहिए. न जाने हमारा देश अंग्रेजों के ज़माने के सड़े-गले कानूनों से कब मुक्त होगा.वो दिन कब आएगा जब हमारे देश की अदालतें आधुनिक ज़माने के कानूनों और सामानों से सुसज्जित होगी.आज अपराध करने का तरीका और अपराधी दोनों बदल चुके हैं. आज कानूनों में बदलाव समय की आवश्कता है.

(8) मैं जय कुमार झा के इस विचार से सहमत हूँ. सर्वोच्च न्यायलय द्वारा जनहित में एकदम सही निर्णय. ऐसे निर्णय लेने की आज जरूरत है. मगर साथ में मुआवजा की रकम कुछ ज्यादा भी कर देनी चाहिए थीं. जब रेलवे पंचाट ने हफीज के परिवार को दो लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया था, लेकिन उच्च न्यायालय ने यह कहकर रेलवे को मुआवजे की जवाबदेही से बचा लिया था कि हफीज की मौत उसकी अपनी लापरवाही से ट्रेन से गिरने के कारण हुई। क्या उपरोक्त निर्णय देखकर नहीं लगता है कि-आज केवल सुप्रीम कोर्ट जाकर ही न्याय मिलता है? यहाँ एक बात और कहना चाहता हूँ कि-ऐसे आदेश सिर्फ अखबार और ब्लॉग में सुर्खियाँ बनकर न रहें और भविष्य में इस प्रकार के मामलों को निचली अदालतों में ही न्याय मिलना चाहिए.

(9) फटकार जरुर पड़ी है मगर ऐसी फटकार से इनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. काश.... हमारे देश के नेताओं को ऐसी फटकारों से कुछ सबक मिल जाये और यह फटकार इनके दिल में जाकर लगे तो यह अपने-आप में सुधार लाकर तब शायद कुछ देशहित के बारें में सोचेंगे. मगर इसके लिए इनका "दिल" का संवेदनशील होना चाहिए.

(10) जब पुलिस रोक लगाने में असमर्थ है तब बहुत अच्छा सुझाव है. मैं अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेश शर्मा के विचारों से सहमत हूँ. देश में क्रिकेट और अन्य खेलों में सट्टे को कानूनी रूप से मान्यता देने का सुझाव दिया है। सट्टेबाजी को कानूनी मान्यता देने से सरकार को न सिर्फ धन के स्थानान्तरण का पता लगाने में मदद मिलेगी बल्कि इससे उसको राजस्व भी मिलेगा जिसका उपयोग सार्वजनिक कल्याण में किया जा सकता है।

(11) एक दुर्भाग्यपूर्ण आदेश है. जिसमें पक्षपात व तानाशाही की झलक मिलती हैं. माना कि-पत्नी की जिम्मेदारी उठाना पति का नैतिक कर्तव्य है। लेकिन क्या कभी पति के प्रति पत्नी द्वारा नैतिक जिम्मेदारी न निभाने पर कोर्ट ने कोई सजा दी है? वहां पर सभी मौन हो जाते हैं. गौरतलब है कि-हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक आदेश में कहा था कि बेरोजगार पति को गुजारा भत्ता देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। इस तरह के आदेश को देखकर लगता हैं कि-मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट व सत्र न्यायालय ही एक गरीब आदमी को भी हाईकोर्ट या उच्चतम न्यायालय जाने के लिए लगभग मजबूर कर देता है. अगर किसी बेचारे के पास वकीलों के लिए पैसे न हो तो बेचारा आत्महत्या नहीं करेगा तो क्या करेगा?

(12) भारत के मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाड़िया ने देश की निचली अदालतों की काम की दयनीय परिस्थितियों पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि जजों को भी गरिमा के साथ काम करने का अधिकार है। उन्होंने संविधान की धारा 21 का हवाला दिया। कपाड़िया ने कहा, "मैं पिछले 20 साल से देख रहा हूं कि ज्यादातर राज्यों के जिला जज बेहद खराब परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। कोई इमारत नहीं, कमरा नहीं और काम करने के लिए ठीक से जगह भी नहीं है। खुद मैंने ऐसी अदालतें देखी हैं।" पर्याप्त बुनियादी न्यायिक ढांचे की जरूरत पर बल देते हुए जस्टिस कपाड़िया ने कहा कि कोई भी न्याय व्यवस्था इसके बिना प्रभावी रूप से काम नहीं कर सकती।

माननीय भारत के मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाड़िया जी मैं आपके विचारों से सहमत हूँ. मगर आपकी उपरोक्त टिप्पणी आने में 20 साल का समय लगा उसका मुझे बहुत अफ़सोस है. आखिर इतनी देर से यह टिप्पणी क्यों? अब देर हुई तो कोई बात नहीं, लेकिन अब क्या इसमें सुधार का कोई प्रयास किया है या जा रहा है. हमारे देश की सरकारें व नेताओं से तो कोई उम्मीद नहीं है. आप ही कुछ करके दिखा दीजिये.

(13) मैं अख्तर खान "अकेला", दिनेश राय द्विवेदी, अंशुमाला, वन्दना गुप्ता और राकेश शेखावत के विचारों से सहमत हूँ. न्यायाधीश के इस तरह के कार्य से आम लोग तो बहुत खुश हैं.जज जे. वी. वी. सत्यनारायण मूर्ति का कहना है कि वह वादियों को राहत दिलाने के लिए और मामलों के त्वरित निपटारे को लेकर प्रतिबद्ध हैं. न्यायाधीश ने कहा कि वह आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता के अनुरूप काम कर रहे हैं और उन पर कोई भी सवाल नहीं उठा सकता। उन्होंने कहा कि वकीलों के मेहनताने की खातिर वादियों को कष्ट झेलने के लिए विवश नहीं किया जा सकता। गौरतलब है कि लगभग साढे़ तीन महीने के कार्यकाल के भीतर ही न्यायाधीश मूर्ति ने लगभग 500 मामलों का निपटारा किया है. (मेरी राय: हर केस को मात्र एक केस समझकर न निपटाया जाए बल्कि पूरी ईमानदारी के साथ यह देखा जाये कि-किसी के साथ नाइंसाफी न हो और किसी पक्ष पर मामले को निपटाने के लिए दबाब भी नहीं बनाना चाहिए.) बार एसोसिएशन के एक अधिकरी ने आईएएनएस को बताया कि प्रत्येक पेशी के लिए 100 से 200 रूपये मेहनताना कमाने वाले वकीलों के एक समूह ने उक्त न्यायाधीश से मिलकर काम करने की गति धीमी करने का आग्रह किया। (मेरी राय: अगर वकीलों लगता है कि-इससे बेरोजगार हो जायेंगे तब उनका यह सोचना गलत है बल्कि इससे हर दूसरा व्यक्ति कोर्ट में अन्याय के खिलाफ आना चाहेगा. तेजी से केस निपटाए जाने के कारण अगर किसी के साथ नाइंसाफी हुई हो तो उसका केस उच्च न्यायालयों में कम से कम फ़ीस पर क्यों नहीं लड़ते हो और प्रत्येक पेशी के लिए 100 से 200 रूपये मेहनताना वाली बात हजम नहीं हुई. क्या आज तक किसी वकील ने पूरी ईमानदारी 100-200 रूपये की अपने मुक्किवल को रसीद जारी की है या बगैर मांगे भी पूरे केस की फ़ीस रसीद जारी की है या अपने हर केस पर उसकी फ़ीस की रसीद जारी की है)(क्रमश:)

इन्टरनेट या अन्य सोफ्टवेयर में हिंदी की टाइपिंग कैसे करें और हिंदी में ईमेल कैसे भेजें जाने हेतु मेरा ब्लॉग http://rksirfiraa.blogspot.कॉम/  & http://sirfiraa.blogspot.com/ देखें. अच्छी या बुरी टिप्पणियाँ आप करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे.अपने बहूमूल्य सुझाव व शिकायतें अवश्य भेजकर मेरा मार्गदर्शन करें.
पहले हमने यह भी लिखा हैRelated Posts Plugin for WordPress, Blogger...
यह है मेरे सच्चे हितेषी (इनको मेरी आलोचना करने के लिए धन्यवाद देता हूँ और लगातार आलोचना करते रहेंगे, ऐसी उम्मीद करता हूँ)
पाठकों और दोस्तों मुझसे एक छोटी-सी गलती हुई है.जिसकी सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगता हूँ. अधिक जानकारी के लिए "भारतीय ब्लॉग समाचार" पर जाएँ और थोड़ा-सा ध्यान इसी गलती को लेकर मेरा नजरिया दो दिन तक "सिरफिरा-आजाद पंछी" पर देखें.

आदरणीय शिखा कौशिक जी, मुझे जानकारी नहीं थीं कि सुश्री शालिनी कौशिक जी, अविवाहित है. यह सब जानकारी के अभाव में और भूलवश ही हुआ.क्योकि लगभग सभी ने आधी-अधूरी जानकारी अपने ब्लोगों पर डाल रखी है. फिर गलती तो गलती होती है.भूलवश "श्रीमती" के लिखने किसी प्रकार से उनके दिल को कोई ठेस लगी हो और किसी भी प्रकार से आहत हुई हो. इसके लिए मुझे खेद है.मुआवजा नहीं देने के लिए है.अगर कहो तो एक जैन धर्म का व्रत 3 अगस्त का उनके नाम से कर दूँ. इस अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.

मेरे बड़े भाई श्री हरीश सिंह जी, आप अगर चाहते थें कि-मैं प्रचारक पद के लिए उपयुक्त हूँ और मैं यह दायित्व आप ग्रहण कर लूँ तब आपको मेरी पोस्ट नहीं निकालनी चाहिए थी और उसके नीचे ही टिप्पणी के रूप में या ईमेल और फोन करके बताते.यह व्यक्तिगत रूप से का क्या चक्कर है. आपको मेरा दायित्व सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए था.जो कहा था उस पर आज भी कायम और अटल हूँ.मैंने "थूककर चाटना नहीं सीखा है.मेरा नाम जल्दी से जल्दी "सहयोगी" की सूची में से हटा दिया जाए.जो कह दिया उसको पत्थर की लकीर बना दिया.अगर आप चाहे तो मेरी यह टिप्पणी क्या सारी हटा सकते है.ब्लॉग या अखबार के मलिक के उपर होता है.वो न्याय की बात प्रिंट करता है या अन्याय की. एक बार फिर भूलवश "श्रीमती" लिखने के लिए क्षमा चाहता हूँ.सिर्फ इसका उद्देश्य उनको सम्मान देना था.
कृपया ज्यादा जानकारी के लिए निम्न लिंक देखे. पूरी बात को समझने के लिए http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html,
गलती की सूचना मिलने पर हमारी प्रतिक्रिया: http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_4919.html

यह हमारी नवीनतम पोस्ट है: