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गुरुवार, सितंबर 09, 2010

बेबाक टिप्पणियाँ (3)

क़ानूनी समाचारों पर बेबाक टिप्पणियाँ (3)

प्रिय दोस्तों व पाठकों, पिछले दिनों मुझे इन्टरनेट पर हिंदी के कई लेख व क़ानूनी समाचार पढने को मिलें.उनको पढ़ लेने के बाद और उनको पढने के साथ साथ उस समय जैसे विचार आ रहे थें.उन्हें व्यक्त करते हुए हर लेख के साथ ही अपने अनुभव के आधार पर अपनी बेबाक टिप्पणियाँ कर दी. लेखों पर की कुछ टिप्पणियाँ निम्नलिखित है.किस लेख पर कौन सी की गई है यह जाने के लिए आपको http://teesarakhamba.blogspot.com/, http://adaalat.blogspot.com/  और http://rajasthanlawyer.blogspot.com/  पर जाना होगा.इन पर प्रकाशित लेख व समाचारों को पढना होगा.

(1) कभी कभी लगता है कि हमारी न्यायपालिका लकीर की फकीर है.अरे चाहे संविधान में लिखा हो या ना हो जब भारत के ज्यादातर लोग हिन्दी जानते हैं और अघोषित रूप से उसे राष्ट्रभाषा मानते हैं.तब उसे कानूनी तौर पर भी राष्ट्रभाषा मान लिया जाना चाहिए,क्योंकि इसी में देशहित है.न्यायपालिका एक चीज़ और स्पष्ट करे कि कानून जनता के लिए होता है या जनता कानून के लिए?आज भी भारत में तो अंग्रेजों का कानून लागू है.हिंदी का हिंदुस्तान में अपमान निश्चय ही यह गंभीर मामला है और सुप्रीमकोर्ट ने ऐसे गंभीर मामले को सुनवाई के लिए नहीं स्वीकार करके देश के लोगों के बीच अपनी छवि को ख़राब करने का काम किया है.कम से कम सुप्रीमकोर्ट को देश और देश की भावनाओं से जुडें मुद्दों पर ऐसा रुख नहीं अपनाना चाहिए था.देश के लोग सुप्रीमकोर्ट की तरफ न्याय और हर कीमत पर न्याय........... के लिए देखते हैं.जिसका सम्मान सुप्रीम कोर्ट को भी करना चाहिए.
(2) घरेलू हिंसा अधिनियम व दहेज क़ानून का दुऱुउयोग हो रहा है.वूमन्स सेल में जाँच के नाम पर अपनी रिश्व्त के लिए सौदेबाजी ज़्यादा होती है. अगर महिला आयोग इतना ही दूध का धुला है तब क्यो नही पति-पत्नी के पक्ष की विडीयो फिल्म बनवाता है. आज हमारे देश के जजो व पुलिस की मानसिकता बन गई है कि आदमी अत्याचार करता है.498अ नामक हथियार लङकी के हाथ आने से लङकी और मां-बाप के लिए पैसे कमाने का धंधा बन गया है और जो एक प्रकार से बेटी बेचने के समान है. इस मे जल्द से जल्द बदलाव होना चाहिए.
(3) किसी भी व्यवस्था की आलोचना के बिना उस की कमियों, कमजोरियों और दोषों को दूर किया जाना संभव नहीं है और ये कमियां, कमजोरियां तथा दोष ही व्यवस्था में जन-विश्वास को समाप्त कर देते हैं। न्याय प्रणाली में जन-विश्वास को केवल कमियों, कमजोरियों और दोषों को दूर करने और सुव्यवस्थित कार्यप्रणाली के द्वारा ही अर्जित किया जा सकता है,जन-हस्तक्षेप से ही दोषों का उपाय संभव है। श्रीमान जी आपने बिलकुल सही कहा है. जब तक किसी व्यक्ति या व्यवस्था की कमजोरियां पता नहीं चलेंगी तब तक सुधार नहीं हो सकता है.
(4) बहुत अच्छी विचारधारा के साथ ही बहुत अच्छे सुझाव दिए है. काश ऐसा संभव होता तो मेरा देश महान होता.
(5) आप बहुत अच्छा कार्य कर रहें हैं.इससे और ज्यादा लोगों को दुसरे ब्लोगों के बारे में भी पता चलता है. इसके अलावा एक नई पहचान मिलती है और काफी लोगों से जुड़ने का मौका मिलता है. छोटी सी जिंदगी में नया प्राप्त होता है. आपकी यह कोशिश सफल हो ऐसी कामना करता हूँ. आपके इस से ब्लोगेर्स को भी काफी फायदा होगा ऐसा मेरा विचार है.
(6) आप सभी(शुभचिंतकों) ने मेरी समस्या पर दी क़ानूनी सलाह पर टिप्पणी करते हुए मेरा जो उत्साह बढ़ा है.उसके लिए आप सभी का धन्यबाद करता हूँ
(7) शबास हर नागरिक को ऐसा ही जागरूक होने की जरुरत है.एक काम की बात कोई भी सामान लेते समय बिल जरूर ले यही तो आप की जीत का आधार है और इससे आप किसी प्रकार के धोखा होने से बचते है. अन्याय के खिलाफ यह एक पुख्ता सबूत के तौर पर काम आता है.
(8) हमारे देश की कहानी ही कुछ और है.यहीं कानून भी वोट को देखकर बनाये जाते है.जब राजनेता इस में फंसते है तब बदलाव की बात करते हैं
(9) पुलिस अगर जयादा से जयादा लोगो का नाम शामिल नहीं करेगी तो उसकी कमी कैसे होगी. घरेलू हिंसा अधिनियम व दहेज क़ानून का दुऱुउयोग हो रहा है.
(10) ताऊ रामपुरिया के विचारों से भी सहमत हूँ. 14 साल के बाद ही याद आई कुछ दस्तावेजों की बात कुछ हैरानी वाली है. इन कंपनियों की गुंडागर्दी रोकने के लिए सरकार को जल्द कुछ करना चाहिए.
(11) 60 वर्ष पूर्व पारिवारिक भूमि का मौखिक रूप से बँटवारा हो चूका है. मगर लालच ने नियत खराब कर दी है. इसलिए दुसरे पक्ष को कोर्ट कहचरी में घसीटना चाहता है.
(12) सभी जज लोक सेवक हैं, अगर कोई जज भ्रष्टतापूर्वक या विद्वेष पूर्वक फैसला देगा,या सुनाएगा.वह भी कारावास या जुर्माने से,या दोनों से,दंडित किया जाएगा।काफी अच्छी जानकारी है
(13) चाहे कोई कितना दूर का रिश्तेदार क्यों न हो वो हिन्दू धर्म के नि:सन्तान व्यक्ति (जिसने वसीयत न की हो ) की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति में हक़दार हो सकता है.आपने काफी अच्छी जानकारी दी है 
(14) लोगों को क़ानूनी जानकारी न होने की वजय से अपने क़ानूनी अधिकारों से वंचित रह जाते है.आप उन्हें जानकारी देकर उनके अधिकार दिलवा रहे हैं.आप बहुत अच्छा कर रहे हैं.  
(15) शिक्षण संस्थान प्रोस्पेक्टस में रोजगार दिलवाने की बातें तो बड़ी-बड़ी करते है.मगर छात्रों की धनराशी लेकर अक्सर भाग जाते है और बेचारे मुहं ताकते रह जाते है और उनके सभी ख्याब अधूरे रह जाते है.आपने काफी अच्छी जानकारी दी है. (क्रमश:)

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यह है मेरे सच्चे हितेषी (इनको मेरी आलोचना करने के लिए धन्यवाद देता हूँ और लगातार आलोचना करते रहेंगे, ऐसी उम्मीद करता हूँ)
पाठकों और दोस्तों मुझसे एक छोटी-सी गलती हुई है.जिसकी सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगता हूँ. अधिक जानकारी के लिए "भारतीय ब्लॉग समाचार" पर जाएँ और थोड़ा-सा ध्यान इसी गलती को लेकर मेरा नजरिया दो दिन तक "सिरफिरा-आजाद पंछी" पर देखें.

आदरणीय शिखा कौशिक जी, मुझे जानकारी नहीं थीं कि सुश्री शालिनी कौशिक जी, अविवाहित है. यह सब जानकारी के अभाव में और भूलवश ही हुआ.क्योकि लगभग सभी ने आधी-अधूरी जानकारी अपने ब्लोगों पर डाल रखी है. फिर गलती तो गलती होती है.भूलवश "श्रीमती" के लिखने किसी प्रकार से उनके दिल को कोई ठेस लगी हो और किसी भी प्रकार से आहत हुई हो. इसके लिए मुझे खेद है.मुआवजा नहीं देने के लिए है.अगर कहो तो एक जैन धर्म का व्रत 3 अगस्त का उनके नाम से कर दूँ. इस अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.

मेरे बड़े भाई श्री हरीश सिंह जी, आप अगर चाहते थें कि-मैं प्रचारक पद के लिए उपयुक्त हूँ और मैं यह दायित्व आप ग्रहण कर लूँ तब आपको मेरी पोस्ट नहीं निकालनी चाहिए थी और उसके नीचे ही टिप्पणी के रूप में या ईमेल और फोन करके बताते.यह व्यक्तिगत रूप से का क्या चक्कर है. आपको मेरा दायित्व सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए था.जो कहा था उस पर आज भी कायम और अटल हूँ.मैंने "थूककर चाटना नहीं सीखा है.मेरा नाम जल्दी से जल्दी "सहयोगी" की सूची में से हटा दिया जाए.जो कह दिया उसको पत्थर की लकीर बना दिया.अगर आप चाहे तो मेरी यह टिप्पणी क्या सारी हटा सकते है.ब्लॉग या अखबार के मलिक के उपर होता है.वो न्याय की बात प्रिंट करता है या अन्याय की. एक बार फिर भूलवश "श्रीमती" लिखने के लिए क्षमा चाहता हूँ.सिर्फ इसका उद्देश्य उनको सम्मान देना था.
कृपया ज्यादा जानकारी के लिए निम्न लिंक देखे. पूरी बात को समझने के लिए http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html,
गलती की सूचना मिलने पर हमारी प्रतिक्रिया: http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_4919.html

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