क़ानूनी समाचारों पर बेबाक टिप्पणियाँ (6)
प्रिय दोस्तों व पाठकों, पिछले दिनों मुझे इन्टरनेट पर हिंदी के कई लेख व क़ानूनी समाचार पढने को मिलें. उनको पढ़ लेने के बाद और उनको पढने के साथ साथ उस समय जैसे विचार आ रहे थें.उन्हें व्यक्त करते हुए हर लेख के साथ ही अपने अनुभव के आधार पर अपनी बेबाक टिप्पणियाँ कर दी. लेखों पर की कुछ टिप्पणियाँ निम्नलिखित है.किस लेख पर कौन सी की गई है यह जाने के लिए आपको http://teesarakhamba.blogspot.com/, http://adaalat.blogspot.com/ और http://rajasthanlawyer.blogspot.com पर जाना होगा.इन पर प्रकाशित लेख व समाचारों को पढना होगा.
(1) पत्नी ओ.सी.डी. (जुनूनी बाध्यकारी विकार) रोग की रोगी है, मुझे क्या करना चाहिए ? मेरे विचार से धोखे की सजा मिलनी चाहिए. पत्नी को वापिस लाकर भी कोई सुधार नहीं हुआ या कहे कुत्ते की दम सीधी नहीं हुई तब क्या होगा? इसका जीता-जागता सबूत है मेरे ऊपर दर्ज FIR नं.138 /2010 में धारा 498a और 406 के झूठे आरोपों की कहानी.
(2) दोस्त बिलकुल आगे आपको जरुर फँसा देगी? अगर आपकी पत्नी अब आती भी है तो आपके खिलाफ सबूत बनाने या इकठ्ठा करने के लिए आएगी. वैसे आप पर अब तक कोई कोई झूठा केस दर्ज नहीं हुआ है,यह बहुत अच्छी बात है. तब भविष्य में भी दर्ज नहीं होगा. दोस्त मैंने 5 -6 बार वापिस बुलाने गलती की थी.उसकी सजा आज भुगत रहा हूँ.दोस्त मेरा तो यहीं अनुभव है.इसका जीता-जागता सबूत है मेरे ऊपर थाना-मोती नगर, दिल्ली में दर्ज FIR नं.138 /2010 में धारा 498a और 406 के झूठे आरोपों की कहानी.
(3) मैं केवल ताऊ रामपुरिया के विचारों से और आपके लेख से सहमत हूँ
(4) लोक अदालत में ऐसा माहौल पैदा किया जाता है कि न्यायार्थी को लगने लगता है कि उस ने न्याय के लिए अदालत आ कर गलती कर दी। वैसी अवस्था में या तो वह अपने अधिकारों को छो़ड़ कर समझौता कर लेता है या फिर अपनी लड़ाई को छोड़ बैठता है।(इस पैरा 100 % सही लिखा है मेरे पिता स्व. रामस्वरूप जैन पर जानलेवा हमले का एक केस तीस हजारी कोर्ट में पिछले सात साल से चल रहा है, उसमें जज की यहीं कोशिश हो रही है. इसलिए हमें आठ-नौ महीने की तारीख देता है. गौरतलब है कि-आरोपी(जैन बंधू) हमारे जैन समाज में आकर माफ़ी मांगने को भी तैयार नहीं है) लेकिन क्या एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए समझौतों और लोक अदालतों की यह प्रक्रिया उचित है? मेरी राय में नहीं। इस से हम एक न्यापूर्ण समाज की ओर नहीं जा रहे हैं, अपितु अन्याय करने वालों को एक सुविधा प्रदान कर रहे हैं। वैसी ही जैसे किसी को एक झापड़ कस दिया जाए और फिर माफी मांग ली जाए। फिर भी नाराजगी दूर न होने पर कहा जाए कि बेचारे ने माफी तो मांग ली अब क्या एक झापड़ के लिए उस की जान लोगे क्या। (इस पैरा 100%सही लिखा है हम अन्याय करने वालों को एक सुविधा प्रदान कर रहे हैं। लोक अदालतों की यह प्रक्रिया उचित नहीं है. एक बेकसूर को झापड़ कीमत मात्र माफी नहीं बल्कि जितने लोगों के बीच आरोपी ने झापड़ मारा है उतने ही लोगों के बीच बेकसूर व्यक्ति आरोपी को दो झापड़ मारे)
(5) होनेस्टी प्रोजेक्ट डेमोक्रेसी के जय कुमार झा का कहना ... मूल समस्या न्यायिक व्यवस्था में बैठे लोगों के चरित्र का है ,अब देखिये एक जज अपनी मेहनत और ईमानदारी से 30000 मुकदमों को निपटा देता है साल में वहीँ एक भ्रष्ट जज 30 मुकदमे भी नहीं निपटा सकता,इनकी जवावदेही स्पष्ट नहीं है इनके ऊपर शिकायत पर ठोस कार्यवाही की कोई व्यवस्था नहीं है जिससे न्याय की जगह अन्याय हो रहा है ...भ्रष्ट जजों और वकीलों के गठजोड़ ने पूरी न्यायिक प्रक्रिया को सड़ाने का काम किया है. होनेस्टी प्रोजेक्ट डेमोक्रेसी के जय कुमार झा के विचारों से और टिप्पणियों पर प्रकाशित आपके लेख में दर्ज विचारों पर भी सहमत हूँ.
(6) सरकार को जनता को न्याय दिलाने की न तो कोई इच्छा है और न ही उस की कोशिश कहीं नजर आती है। सरकारों की नीयत स्पष्ट दिखाई देती है कि वे देश के करोड़पतियों और अरबपतियों को तो न्याय दिलाने को कटिबद्ध हैं लेकिन जनता का उन के सामने कोई मूल्य नहीं है। इस मामले में सभी दलों की राज्य सरकारें एक जैसी साबित हुई हैं चाहे वे कांग्रेस के नेतृत्व की सरकारे हों या फिर भाजपा, सपा, बसपा या माकपा के नेतृत्व की सरकारें क्यों न रही हों। जनता को न्याय प्रदान करने में किसी को कोई रुचि नहीं है। ताऊ रामपुरिया said... अब सरकार न्याय दिलाने की फ़ुरसत कहां से निकाले? अपनी जेब का न्याय करने तक ही दिलचस्पी रखती है सरकार क्योंकि 5 साल बीतते देर नही लगती. आपके उपरोक्त लेख की विचारधारा और ताऊ रामपुरिया के विचारों से सहमत हूँ.
(7) काफी अच्छी जानकारी दी है आपने.सूचित वकील ही सर्वोच्च न्यायालय में पैरवी कर सकते हैं। एक अन्य जिज्ञासा-सर्वोच्च न्यायालय में ऑन रिकॉर्ड के रूप में पंजीकृत वकील की जानकारी कहाँ पर उपलब्ध होती है? क्या इसकी सूचना इन्टरनेट पर भी है? (क्रमश:)
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