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शुक्रवार, जून 17, 2011

गुस्ताखी माफ़ करें-2

ब्लॉग राजभाषा हिंदी की पोस्ट "परिकल्पना सम्मान 2010 और एक बैक बेंचर ब्लोगर की रिपोर्ट" पर श्री अविनाश वाचस्पति जी, आपने कहा कि-निकेतन ने अपने प्रकाशन की एक एक प्रति प्रत्‍येक दर्शक को बतौर उपहार दी थी और अपनी पत्रिका शोध दिशा की प्रति भी। किसी भी समारोह में इस प्रकार की पुस्‍तकें फ्री में देने का चलन नहीं है। शोध दिशा का पुराना अंक (अक्तूबर-दिसंबर 2010) था. उसका अवलोकन करने पर पता चला कि-पत्रिका त्रेमासिक है और उसके बाद जनवरी-मार्च 2011 व अप्रैल-जून 2011 भी प्रकाशित हो चुकी हैं. इसके अलावा डॉ. योगेन्द्रनाथ शर्मा "अरुण" की ग़ज़लों वाली किताब "बहती नदी हो जाइए" भी 2006 में प्रकाशित हो चुकी थीं. अब पुराना माल तो कोई भी दे सकता है, कुछ थोड़ा-बहुत नया मिला भी तो "वटवृक्ष" त्रेमासिक पत्रिका है,वो उनकी नहीं है.
        हम ब्लोगिंग जगत के "अजन्मे बच्चे" हैं और ब्लोगिंग जगत की गुटबाजी के जानकार भी नहीं है, लेकिन ब्लोगिंग जगत का अनपढ़, ग्वार यह नाचीज़ इंसान प्यार, प्रेम और इंसानियत की अच्छी भावना के चलते एक ब्लॉगर के बुलाने(आपके अनुसार बिन बुलाये) चला आया था. वैसे मेरे पेशेगत गलत भी नहीं था, क्योंकि जहाँ कहीं चार-पांच व्यक्ति एकत्रित होकर देश व समाजहित में कोई चर्चा करें. तब वहां बगैर बुलाये जाना बुरा नहीं होता है. बाकी हमारा तो गरीबी में आटा गिला हो गया है. इन दिनों कुछ निजी कारणों से हमें भूलने की बीमारी है और उसी के चलते ही हम अपने डिजिटल कैमरे के एक सैट सैल(दो) और उसका चार्जर बिजली के प्लग में लगाये ही भूल आये क्योंकि हमें संपूर्ण कार्यक्रम की रुपरेखा की जानकारी नहीं थीं. हमने सोचा शायद कार्यक्रम अभी और चलने वाला है. तब क्यों नहीं "विक" सैलों को चार्जर कर लिया जाये. घर पहुंचकर याद आया तो आपको मैसेज किया और अगले दिन आपके 9868xxxxxx पर छह बार और 9717xxxxxx पर दो बार फ़ोन किया. मगर हमारी उम्मीदों के मोती बरसात के बुलबलों की तरह तुरंत खत्म हो गए.एक फ़ोन कई घंटों तक व्यस्त रहा और दूसरा रिसीव नहीं हुआ. अगले दिन हमें श्री अन्ना हजारे के इण्डिया गेट की कवरेज करने जाना था. जो उम्मीदों का टूटने का सदमा सहन नहीं कर पाने और सैल का सैट के साथ चार्जर तुरंत न खरीद(इन दिनों आर्थिक स्थिति डावाडोल है) पाने की व्यवस्था के चलते संभव नहीं हो पाया. अब यह तो पता नहीं कि-हमारा कैमरा कब दुबारा चित्र लेना शुरू करेगा, मगर उसकी कुछ "गुस्ताखी माफ़ करें" अनेक ब्लोगों पर उपरोक्त कार्यक्रम की अनेकों फोटोग्राफ्स प्रकाशित हो चुकी है. लेकिन मेरे पास कुछ ऐसी फोटो तैयार हो गई है. जो किसी का अचानक हाथ लगने से या किसी द्वारा अचानक आँखें बंद कर लेने से और कई अजब-गजब फोटो कुछ अन्य कारणों से तैयार हो गई है. आप देखने से पहले श्री अशोक चक्रधर की "कैमरा" पर लिखी एक कविता "कैमरा देव की आरती"भी पढ़ लें.
जय हो कैमरा देव की, शक्ति तुम्हीं हो सत्यमेव की. जय जय हो ....
दुनियां झूठी पर तुम सच्चे, पूजा करते हम सब बच्चे .
तुम्हें देखते ही जाने क्यों पानी मांगें अच्छे-अच्छे.
सन्मुख आया, लेकिन पहले, हीरो ने छ: बार शेव की. जय जय हो ....
तुम्हीं मीडिया के टायर हो, तुम्ही तीसरे अम्पायर हो.
पल में पोल खोलने वाले, ईश्वर हो तुम इन्क्वायर हो.
सत्य दिखाकर न्यायालय में, कितनों की जिन्दगी सेव की.जय जय हो ....
तुम चाहो तो वंडर कर दो, नाली बीच समन्दर कर दो.
सुंदर को बन्दर सा करके, बदसूरत को सुंदर कर दो.
अगर खींचने पर आ जाओ, भद्र्द पीट दो कामदेव की . जय जय हो ....
तुमने सारी दुनियां नपी, तुमने जी की बातें भांपी.
अच्छे-अच्छे पहलवान की, तुम्हारे आगे टाँगें कांपी.\
मुख पर आये पसीना लेकिन, फिलिंग होती कोल्ड वेव की. जय जय हो ....
फूल चढ़ाऊँ खील चढ़ाऊँ, दिया जला कंदील चढ़ाऊँ.
जितना चाहे उतना खींचों, टेप चढ़ाऊँ, रील चढ़ाऊँ.
खुले पिटारा, हो उध्दारा, स्वीकारो अरदास स्लेव की.जय जय हो ....  

भाई मैंने तम्हारा क्या बिगाड़ा  था जो मेरा चहेरा बिगड़ दिया यह कहते हुए श्री अविनास जी 

लो श्रीमान जी एक अच्छी सी फोटो कभी-कभी कैमरा भी धोखा दे जाता है.
अल्लाह बचाए इन कैमरे वालों से फोटो के नाम पर मजाक ज्यादा करते हैं.
अब मुझे फोटो खिंचवाने का शौक नहीं रहा मेरी बेटी की शादी जो हो गई है. 
मैं तो हाथ नहीं मिलना चाहता था,मगर देखो खुद मुख्यमंत्री जी ने हाथ मिलाया है.
कई दिनों से भागदौड़ बहुत हो रही है, भाई जरा थोड़ी देर खड़े-खड़े ही सो लेने दो.
इतने लोगों को इनाम बांटते-बांटते थक गया हूँ, थोडा आराम तो करने देते मेरे भाई. थोडा सो लेने के बाद ही कुछ बोलूँगा.

शाहनवाज सिद्दीकी- श्री दिनेश राय द्विवेदी जी, आज आपको एक कमाल दिखता हूँ-देखो मैं आँखे बंद करके भी मोबाईल के नं. मिला लेता हूँ. श्री दिनेश राय द्विवेदी जी-शाहनवाज सिद्दीकी, अच्छा! मुझसे तो नहीं होता है.

कवि श्री अशोक चक्रधर जी भी श्री अविनास जी को  आँखे बंद करके भी मोबाईल के नं. मिलाने की अपनी कला से अवगत करते हुए और यह बताते हुए कि-हम किसी से कम नहीं है.
    

गुस्ताखी माफ़ करें

गुस्ताखी माफ़ करें-अब कैमरा 
ऐसी फोटो नहीं लें पायेगा
हिंदी साहित्‍य निकेतन,हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग में सिरमौर रवीन्‍द्र प्रभात और अविनाश वाचस्‍पति का सामूहिक श्रम. शनिवार दिनांक 30 अप्रैल 2011 को हिंदी भवन दिल्‍ली में हिन्‍दी साहित्‍य निकेतन परिकल्‍पना सम्‍मान समारोह को संबोधित करते हुए यह कार्यक्रम अध्‍यक्षता हास्‍य व्‍यंग्‍य के सशक्‍त और लोकप्रिय हस्‍ताक्षर अशोक चक्रधर ने की। इस अवसर पर मुख्‍य अतिथि रहे वरिष्‍ठ साहित्‍यकार डॉ. रामदरश मिश्र और विशिष्‍ट अतिथि रहे प्रभाकर श्रोत्रिय। साथ ही प्रमुख समाजसेवी विश्‍वबंधु गुप्‍ता और डायमंड बुक्‍स के संचालक नरेन्‍द्र कुमार वर्मा भी मंचासीन थे।             
          इस अवसर पर प्रमुख समाजसेवी विश्‍वबंधु गुप्‍ता ने कहा कि जीवन के उद्देश्‍य ऐसे होने चाहिए कि जिसमें मानवीय सेवा निहित हो। मैं ब्‍लॉगिंग के बारे में बहुत ज्‍यादा तो नहीं जानता किंतु जहां तक मेरी जानकारी में है और मैंने महसूस किया है, उसके आधार पर यह दावे के साथ कह सकता हूं कि हिंदी ब्‍लॉगिंग में सामाजिक स्‍वर और सरोकार पूरी तरह दिखाई दे रहा है। कई ऐसे ब्‍लॉगर हैं जो सामाजिक जनचेतना को हिंदी ब्‍लॉगिंग से जोड़ने का महत्‍वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। यह दुनिया विचारों की दुनिया है, बस कोशिश यह करें कि हमारे विचार आम आदमी से जुड़कर आगे आएं. 

                 मैं वैसे पत्रकारों के सम्मेलन आदि जाता नहीं हूँ क्योंकि वहां पर वहीँ तीन-चार बातों को बोला जाता जो कोई पत्रकार अपने जीवन में अपनाकर गरीबी या भौतिक वस्तुओं के अभाव में जीना नहीं चाहता है. उपरोक्त कार्यक्रम में भी प्रमुख समाजसेवी विश्‍वबंधु गुप्‍ता ने जो कहा उसको एक कान से सुनकर दूसरे कान से बाहर निकालकर अपने-अपने रास्ते पर चल दिए और आज किसी को उनकी एकाध बात याद भी नहीं होगी. अगर होगी भी तो उसपर अमल करने के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. चलिए कोई बात नहीं. कुछ खाकर व कुछ बिना खाए लौट गए.  

           इसके बाद उपरोक्त कार्यक्रम को लेकर एक से एक पोस्ट आई. किसी पोस्ट में आलोचना और किसी में तारीफ के पुल बाँध गए. कहीं-कहीं पर पोस्ट में हंसी-मजाक के साथ-साथ गंभीर बातें तक की गई. कुछ इन्हीं बातों का समावेश लिये लिंक दे रहा हूँ. जो किसी करणवश नहीं पहुँच पाए हो या किसी पोस्ट की जानकारी न होने के कारण जाने से वंचित रह गए हो.   

शाहनवाज के घर से हिन्दी भवन तक


परिकल्पना सम्मान : लोकसंघर्ष के जनसंघर्ष से साहित्य निकेतन की उत्तर आधुनिकता तक


अग्रवाल जी की भाव विह्वलता और साढू़ भाई का प्रेम


मुख्य अतिथि के असम्मान से उखड़ा मूड खुशदीप का


बुरा नहीं प्रकाशन का व्यवसाय


उद्यमी ठाला नहीं बैठता


क्या कहते हैं? उद्यमी 'सिरफिरा' जी


 परिकल्‍पना डॉट कॉम 

 नुक्‍कड़ डॉट कॉम

सतीश सक्सेना की धमकी - सम्मान समारोह में बड़ा खुलासा

कई मायनों में भव्य था परिकल्पना सम्मान समारोह!

 "हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना सम्मान समारोह" 

हिंदी ब्लागिंग से आशाएं बढ़ा गया दिल्ली में हुआ ब्लागर्स सम्मलेन 

ब्लॉगिग , ब्लॉगर्स , पुरस्कार आयोजन , राजनीतिज्ञ , मीडियाकर्मी .....और कुछ कही अनकही .

ऐसा दिन जल्दी आये यही कामना हैं जब ब्लोगर मंच पर खडा हो और लोग उसके हाथ से पुरूस्कार ले । लेकिन होगा तब जब लोग अंधी दौड़ मे नहीं भागेगे

ब्लोगिंग का अब हर कदम देश व समाजहित में उठेगा तथा शर्मनाक भ्रष्टाचार मिटेगा...  

अरे भाई आगे से हटो हमें फोटो खींचने के लिए नहीं बुलाया क्या?
वहां पर श्री अविनाश जी से विवादित फोटो को लेकर भी जिक्र किया था. जिसकी पिछले दिनों ब्लॉग पर बहुत चर्चा हुई थीं. जवाब कोई तर्क पूवर्क नहीं था. ईनामों को लेकर भी बंदर -बाँट हुई है और वहां पर मौजूद कई ब्लॉगर विरोध जता रहे थें. कई ब्लॉगर विरोध के कारण ही दावत (खाना) खाए बगैर ही चले गए थें. करते ब्लोगगिरी और नाम गुप्त रखने का हमसे वादा लेते हैं आखिर क्यों करते हैं इतना दोगलापन? यह कोई समाचार पत्र नहीं है कि विज्ञापन नहीं मिले तो पत्र नहीं छपेगा ब्लॉग लिखने में केवल इन्टरनेट का ही खर्चा आता है या विरोध सिर्फ इसलिए कर रहे थें अगली बार उनको भी ईनाम देकर चुप करा दिया जाए. मुझे उपरोक्त कार्यक्रम की कोई सूचना नहीं थी .बल्कि अपनी समस्याओं के चलते कुछ लोगों से मिलना जरुरी था. किसी से कुछ न कुछ जानकारी लेनी थीं .किसी से ब्लॉग के बारे में तकनीकी और किसी से अपने केसों को लेकर क़ानूनी दांव -पेजों की छोटी -छोटी जानकारी. छोटी -छोटी गलतियों को छोड़कर कार्यक्रम अच्छा था. थियेटर के कलाकारों ने बहुत अच्छा एक उपन्यास की कहानी पर आधरित एक नाटक का बहुत सुन्दर मंचन किया था मैं अनेकों ब्लोगरों के नाम नहीं जानता और कई को चेहरों पर मुखोटे थें और कई का नाम मेरा फर्ज गवाही नहीं दे रहा है .
जल्दी से किताब देखने दो मीडिया को कहीं चली न जाये
भाई लोगों हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था जो हमारी फोटो बिगड़ दी
मुझे इनाम जल्दी से दो बेशक काजल कुमार ही दे दो. घर जल्दी जाना है
बेटा तुमको अपनी फोटो नहीं खिंचवानी है तो हमारी फोटो तो लेने दो.

 अच्छी तरह से देखभाल लेना भाई अपना ईनाम. जरा मैं भी अपना चश्मा ठीक कर लूँ.

भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की लड़ाई

भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे का एक सशक्त जन लोकपाल भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे का एक सशक्त जन लोकपाल विधेयक बनाने के लिए जब 5 अप्रैल 2011 को जंतर-मंतर पर एक बिगुल बजाया. तब ऐसा लगा कि-सारे मृत आदमियों में किसी ने जान डाल दी हो. देश का हर वो व्यक्ति जो भी देश में दीमक की तरह फैले भ्रष्टाचार से परेशान था. वो श्री अन्ना हजारे जी के साथ खड़ा नजर आया. जो प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया भी भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की लड़ाई को अहमियत नहीं दे रही. वो भी श्री हजारे को पूरे देश से मिले समर्थन को देखकर उनके आगे-पीछे घूमते नजर आये. उसके बाद ही ब्लॉग जगत के हर दुसरे ब्लॉग में हजारे जी के अनशन और उनकी लड़ी जा रही लड़ाई पर पक्ष-विपक्ष के लेखों की भरमार सी गई थी. भ्रष्टाचार के खिलाफ श्री हजारे की लड़ाई सोशल वेबसाईटों और ब्लोगों से शुरू होकर जब घर-घर तक पहुंची. तब सरकार को मजबूर होकर आखिर सशक्त जन लोकपाल विधेयक बनाने की शुरुयाती मांगों मानना पड़ा, क्योकि इसके अलावा उसके पास कोई चारा भी नहीं था. मैं भी अब तक पत्रकारिता के माध्यम से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाली लड़ाई के साथ ही अपनी बीमारी की हालत में जैसी भी हिम्मत थी. उसी हिम्मत को बटोरकर 5 अप्रैल को किसी से पूछ-ताछ कर जन्तर-मन्तर पर पहुंचा था, क्योंकि अपने क्षेत्र में पत्रकारिता करने के कारण ही दिल्ली के अधिक्तर स्थानों की आज भी जानकारी नहीं है.लेकिन अपने क्षेत्र में विश्वनीय सूत्रों के कारण अपने क्षेत्र की किसी सूचनाओं से पहले कभी वंचित नहीं रहा हूँ. आज भी अपने क्षेत्र के आम-आदमी में मेरे प्रति बहुत ज्यादा विश्वास है. इसका मुख्य कारण रहा मेरी लगभग 17 वर्षीय ईमानदारी और निष्ठापूवर्क निष्पक्ष और निडर पत्रकारिता का करना. अपने कुछ निजी कारणों (मेरे ब्लोगों के नियमित पाठक और दोस्त उनसे अवगत भी है) से इस पोस्ट को प्रकाशित करने देरी भी हो गई. लेकिन कार्य की प्राथमिकता को समझते हुए.समयानुसार कार्य भी किये. जिसमें अपने क्षेत्र में आन्दोलन को लगभग 2000 लोगों को मिस कॉल करने के लिए प्रेरित किया. अपनी समर्थता अनुसार प्रचार भी किया और पहले दिन जन्तर-मन्तर पर कवरेज भी की. अपने ब्लोगों पर भी आज भी प्रचार करने के साथ ही खुद भी प्रचार कर रहा हूँ और अपने क्षेत्र में दो दिन एक तख्ती पहन कर घुमा था उसकी कुछ फोटो प्रकाशित भी कर रहा हूँ और जिस दिन अनशन खत्म हुआ, उसी दिन लगभग 20 RWA की उत्तम नगर में कैंडल मार्च निकालने की तैयारी करा चूका था. मगर पहले दिन की ही रात 10 बजे अनशन खत्म होने की समाचारों में सूचना प्राप्त हुई. इंडिया अगेंस्ट करप्सन संस्था को अपना आवेदन भी लिखकर भेजा कि-श्रीमान जी, भ्रष्टाचार की लडाई में यह नाचीज़ "सिरफिरा" पत्रकार अपने समाचार पत्र "जीवन का लक्ष्य" के साथ ही सच्चाई के लिए फाँसी का फंदा तक चूमने को तैयार है. कभी मिलने का मौका मिले तो अपनी विचारधारा से अवगत करा सकता. मुझे भ्रष्टाचार से संबंधित कुछ मामलों की जानकारी देनी है. जो क़ानूनी ताकत, जानकारी और धन अभाव के कारण सामने लाने में असमर्थ हूँ. भ्रष्टाचार के खिलाफ मेरे पास संस्था के मेरे फ़ोन पर आज भी मैसेज रहे है. मैं अपने क्षेत्र से भ्रष्टाचार से लड़ने वाली बनने वाली किसी भी प्रकार की संस्था या सीमितियों में कार्यकर्त्ता के रूप में कार्य करने के लिए अपने नाम का प्रस्ताव भेज रहा हूँ. स्वीकार करने की कृपया करें. उसके बाद अभी कुछ दिनों पहले ही कोरियर से श्री हजारे कि टीम के एक सदस्य श्री अरविन्द केजरीवाल को श्री हजारे के नाम एक लैटर भी लिखकर भेजा, क्योंकि उनके नजदीक रहने के कारण श्री हजारे तक पत्र पहुँच सकता था. अपने अनुभवों से कैमरे में कैद कुछ अलग-सी फोटोग्राफ्स जिनका आप भी अवलोकन करें. एक पत्र भी जिसको शायद अब तक श्री अन्ना हजारे जी ने पढ़ लिया होगा.
 
  
                                                                               
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यह है मेरे सच्चे हितेषी (इनको मेरी आलोचना करने के लिए धन्यवाद देता हूँ और लगातार आलोचना करते रहेंगे, ऐसी उम्मीद करता हूँ)
पाठकों और दोस्तों मुझसे एक छोटी-सी गलती हुई है.जिसकी सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगता हूँ. अधिक जानकारी के लिए "भारतीय ब्लॉग समाचार" पर जाएँ और थोड़ा-सा ध्यान इसी गलती को लेकर मेरा नजरिया दो दिन तक "सिरफिरा-आजाद पंछी" पर देखें.

आदरणीय शिखा कौशिक जी, मुझे जानकारी नहीं थीं कि सुश्री शालिनी कौशिक जी, अविवाहित है. यह सब जानकारी के अभाव में और भूलवश ही हुआ.क्योकि लगभग सभी ने आधी-अधूरी जानकारी अपने ब्लोगों पर डाल रखी है. फिर गलती तो गलती होती है.भूलवश "श्रीमती" के लिखने किसी प्रकार से उनके दिल को कोई ठेस लगी हो और किसी भी प्रकार से आहत हुई हो. इसके लिए मुझे खेद है.मुआवजा नहीं देने के लिए है.अगर कहो तो एक जैन धर्म का व्रत 3 अगस्त का उनके नाम से कर दूँ. इस अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.

मेरे बड़े भाई श्री हरीश सिंह जी, आप अगर चाहते थें कि-मैं प्रचारक पद के लिए उपयुक्त हूँ और मैं यह दायित्व आप ग्रहण कर लूँ तब आपको मेरी पोस्ट नहीं निकालनी चाहिए थी और उसके नीचे ही टिप्पणी के रूप में या ईमेल और फोन करके बताते.यह व्यक्तिगत रूप से का क्या चक्कर है. आपको मेरा दायित्व सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए था.जो कहा था उस पर आज भी कायम और अटल हूँ.मैंने "थूककर चाटना नहीं सीखा है.मेरा नाम जल्दी से जल्दी "सहयोगी" की सूची में से हटा दिया जाए.जो कह दिया उसको पत्थर की लकीर बना दिया.अगर आप चाहे तो मेरी यह टिप्पणी क्या सारी हटा सकते है.ब्लॉग या अखबार के मलिक के उपर होता है.वो न्याय की बात प्रिंट करता है या अन्याय की. एक बार फिर भूलवश "श्रीमती" लिखने के लिए क्षमा चाहता हूँ.सिर्फ इसका उद्देश्य उनको सम्मान देना था.
कृपया ज्यादा जानकारी के लिए निम्न लिंक देखे. पूरी बात को समझने के लिए http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html,
गलती की सूचना मिलने पर हमारी प्रतिक्रिया: http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_4919.html

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