दोस्तों, मैंने पिछले दस साल से मेरा पेंडिग यह काम ( देह दान करने का ) भी आखिर कल दिनांक 2 जून 2018 को निपटा ही दिया. इस विषय पर मेरा विचार काफी समय से बना हुआ था. इसी कड़ी में अपने नेत्रदान सन 2006 में ही कर चुका हूँ. जिसको आप इस पोस्ट (गुड़ खाकर, गुड़ न खाने की शिक्षा नहीं देता हूँ ) पर क्लिक करके देख सकते हैं. मगर देह दान की इच्छा पूरी करने में जानकारी के अभाव में खुद को असमर्थ महसूस कर रहा था. इस विषय पर छानबीन करते-करते लगभग सन-2007 या 2008 के आसपास मुझे "दधीचि देहदान समिति" का एड्रेस कहीं से प्राप्त हुआ. तब इनकी कोई ईमेल आई डी और बेबसाईट नहीं थीं. मैंने उनके एड्रेस पर एक पत्र लिखकर अपनी इच्छा प्रकट करते हुए पूरी प्रक्रिया की जानकारी मांगी. कुछ दिनों के बाद मुझे "दधीचि देहदान समिति" का एक पत्र प्राप्त हुआ और एक अंग्रेजी में फॉर्म प्राप्त हुआ. हिंदी भाषा से प्रेम और अपनी मातृभाषा होने के कारण मैंने फिर से पत्र लिखकर इनको हिंदी में फॉर्म के साथ मुझसे सम्पर्क करने को लिखा था.
उसके बाद काफी दिनों तक मुझे हिंदी में फॉर्म प्राप्त नहीं हुआ और न मैं ही दूबारा इनसे सम्पर्क कर पाया. फिर मैं अपनी पूर्व पत्नी के दहेज़ मांगने के झूठे केसों में फंसकर काफी डिस्टर्ब हो गया था. दहेज़ के झूठे केसों के कारण मेरा बिजनेस और "शकुंतला प्रेस ऑफ़ इण्डिया प्रकाशन" परिवार के अंतर्गत प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र-पत्रिका आदि के साथ ही मेरे देश व समाजहित में किये जाने वाले समाजिक कार्य और समाज सेवा काफी प्रभावित हो गई. हमारे देश की सुस्त व शोषित करने वाली न्याय व्यवस्था के चलते सन-2013 के सितम्बर में मेरा तलाक हुआ. दहेज़ मांगने के झूठे केसों की पारिवारिक समस्या के चलते अपने जीवन की रेलगाड़ी को वो रफ्तार न दे सका जो देना चाहता था, क्योंकि आर्थिक, मानसिक व शारीरिक रूप से काफी टूट गया था. तलाक की प्रक्रिया में होने वाले खर्चों की वजह से ज़िन्दगी में पहली बार चाँदी के चंद कागजों का कर्जवान भी हो गया था.
फिर श्रीमती सरिता भाटिया जी ने मुझे "दधीचि देहदान समिति" का देहदान करने से संबंधित सूचनाएं भरने हेतु अंग्रेजी में फॉर्म लाकर दिया. उसके बाद मैंने फॉर्म को पढ़ा और अपने हिंदी प्रेम के कारण सबसे पहले हिंदी और उसके बाद अंग्रेजी में अपनी मांगी गई सूचनाएं भरनी शुरू कर दी. फॉर्म को लगभग एक तरफ से भरने के बाद मैंने देखा कि देहदान के लिए अपने दो निकट संबंधियों की इसमें गवाही के रूप में उनकी जानकारी भरने के साथ ही उनके हस्ताक्षर भी करवाने हैं. तब मैंने श्रीमती सरिता भाटिया जी को कहा कि यह पूरी प्रक्रिया अपने घर पर फॉर्म ले जाकर ही पूरी हो पायेगी. बात ही बातों में मैंने कहा इन्होंने अभी तक अपने फॉर्म हिंदी में नहीं बनाएं.
तभी सरिता जी कहने लगी कि हिंदी में भी फॉर्म है. उनकी यह बात सुनते ही मुझे एक बार तो ऐसा लगा कि मैंने भगवान से "जहाँ" माँगा और भगवान ने पूरा "जहाँ" मेरी झोली में डाल दिया. यानि बहुत ख़ुशी हुई. फिर उसके बाद सरिता जी से उनके और अपने कार्यों के साथ ही क्षेत्रीय समस्याओं और सामाजिक समस्याओं पर बातचीत होती रही. उसके बाद उनसे देहदान का जल्द से जल्द एक कैम्प लगाकर लोगों को जागरूक करने की बात में अपना सहयोग भी देने कहते हुए विदा ली.
अपने घर आकर लंच करने के बाद अपने दूसरे निजी कार्यों को जल्दी से जल्दी खत्म करके देहदान का हिंदी वाला फॉर्म पूर्ण रूप से भरकर शाम को फिर से सरिता जी को कॉल किया और उनसे पूछा कि मेरा फॉर्म देने के लिए संस्था में आप कब जायेगी ? उन्होंने कहा कि कुछ दिनों में संस्था की मीटिंग होगी तभी जमा करवा दूंगी. मैंने फिर पूछा क्या मैं फॉर्म को कल स्पीड पोस्ट से उनको भेज दूँ या आपको अपने पास भी कोई देहदानियों का कोई रिकोर्ट रखना होता है. उन्होंने जबाब दिया ऐसा कुछ नहीं है और आप स्पीड पोस्ट से भी भेज सकते हो. इसके साथ ही मैंने संस्था के फॉर्म पर लिखा कि - मैंने नेत्रदान पहले से ही किये हुए है और मैं आपके सम्पर्क में लगभग दस साल पहले आया था. लेकिन उस समय आपके पास हिंदी में फॉर्म की व्यवस्था नहीं थीं. वर्तमान समय में श्रीमती सरिता भाटिया जी के सम्पर्क में आया तब मालूम हुआ कि वो आपकी संस्था के उपरोक्त कार्य में सहयोगी है.
नोट : अगर सम्भव हो तो मेरा प्रमाण-पत्र, पहचान-पत्र व वसीयत हिंदी में बनाई जाएँ.
अगले दिन यानि दो जून 2018 को अपनी दिनचर्या के कार्यों से निपटकर जब देहदान के संबंधित दस्तावेजों को भेजने के लिए चेक करने के साथ ही तैयार कर रहा था. तभी एक विचार आया कि-क्यों न अब अपनी सोशल मीडिया (पहले फेसबुक, व्हाट्सअप्प आदि का इतना प्रचार-प्रसार नहीं था) की प्रोफाइल के माध्यम से अपनी फर्म "शकुंतला प्रेस ऑफ़ इण्डिया प्रकाशन" परिवार के माध्यम से अपने देश व समाजहित के सामाजिक कार्यों को शुरू किया जाएँ.
दोस्तों, मैंने कल दो जून 2018 को अपनी देहदान करने के समय ही एक निर्णय लिया है कि मेरी फर्म "शकुंतला प्रेस ऑफ़ इण्डिया प्रकाशन" परिवार के माध्यम से हर महीने देहदान करने वाले पहले आने वाले दो व्यक्तियों का दान (150 रूपये प्रत्येक व्यक्ति) जो "दधीचि देहदान समिति" संस्था को देना होता है. वो दान की राशि "शकुंतला प्रेस ऑफ़ इण्डिया प्रकाशन" परिवार अपने बैंक खाते से अदा करेगा और भविष्य में अपने समाचार पत्र-पत्रिकाओं में उनका नाम प्रिंट करके उनके इस योगदान के विषय में अन्य लोगों को बताकर देहदान करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास करेगा. आपको सनद रहे "शकुंतला प्रेस ऑफ़ इण्डिया प्रकाशन" परिवार पहले भी नेत्रदान करवाने में और देश व समाजहित के कार्यों में बढ़-चढ़कर अपना सहयोग करता रहा है.
देहदान या अंगदान करने के इच्छुक दानी व्यक्ति फॉर्म निम्नलिखित पर क्लिक करके डाउनलोड कर सकता है.
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