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शुक्रवार, अगस्त 06, 2010

गुड़ खाकर, गुड़ न खाने की शिक्षा नहीं देता हूँ

गुड़ खाकर, गुड़ न खाने की शिक्षा नहीं देता हूँ
आज एक सज्जन व्यक्ति ने कई वेबसाइट http://www.saveindianfamily.org/ब्लॉग  http://teesarakhamba.blogspot.com/  व मेरे ब्लॉगhttp://rksirfiraa.blogspot.com/,  http://sirfiraa.blogspot.com/ आदि पर मेरे द्वारा की  टिप्पणियों के नीचे दिए जनहित हेतु संदेशों  को  पढ़कर फ़ोन करके  पूछता  है कि  "सिरफिरा"  जी  आप  हर टिप्पणी के नीचे एक संदेश देते है.नेत्रदान महादान आज ही करें, क्या  आपने  नेत्रदान किया है? इसका उत्तर तो मैंने उन सज्जन को फ़ोन पर ही दे दिया था. मगर आप सभी दोस्तों व पाठकों के लिए फोटो है.उन्हें देखकर कर ही फैसला लें. हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखें को फारसी क्या.दोस्तों मेरे द्वारा नेत्रदान करने के बाद ही मुझसे प्ररेणा पाकर और भी कई लोगों ने आपने नेत्र मेरी फर्म"शकुंतला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन" के माध्यम से "दान " किये थे.
 काश...........हमारे देश में ऐसे नेता होते तो आज देश की यह हालत न होती. आज हमारे देश ऐसे नेताओं से भरा पड़ा है. जो गुड़ खाकर दूसरों को गुड़ न खाने की शिक्षा देते हैं. रिश्वत खुद लेते हैं और संदेश देते हैं कि रिश्वत न लो और न दों, करते हैं न दोगली बातें. क्या यहीं है मेरा भारत महान?








4 टिप्‍पणियां:

  1. एक ही काम के लिए दो ब्लाग क्यों?
    शब्द पुष्टिकरण हटाएँ।
    आप के काम समाज में सकारात्मक योगदान कर रहे हैं।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही उम्दा प्रस्तुती ,आप एक सच्चे इन्सान हैं और आज इस हैवानों की अधिकता वाले युग में इंसानों की दर्दनाक अवस्था है ,आप चिंता ना करें हर रात के बाद सुबह आती है और सुबह जरूर आएगी |

    जवाब देंहटाएं
  3. क्या कहें, अब। कोई तो दिखा ऐसा। बहुत सुन्दर और प्रेरक!

    जवाब देंहटाएं

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यह है मेरे सच्चे हितेषी (इनको मेरी आलोचना करने के लिए धन्यवाद देता हूँ और लगातार आलोचना करते रहेंगे, ऐसी उम्मीद करता हूँ)
पाठकों और दोस्तों मुझसे एक छोटी-सी गलती हुई है.जिसकी सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगता हूँ. अधिक जानकारी के लिए "भारतीय ब्लॉग समाचार" पर जाएँ और थोड़ा-सा ध्यान इसी गलती को लेकर मेरा नजरिया दो दिन तक "सिरफिरा-आजाद पंछी" पर देखें.

आदरणीय शिखा कौशिक जी, मुझे जानकारी नहीं थीं कि सुश्री शालिनी कौशिक जी, अविवाहित है. यह सब जानकारी के अभाव में और भूलवश ही हुआ.क्योकि लगभग सभी ने आधी-अधूरी जानकारी अपने ब्लोगों पर डाल रखी है. फिर गलती तो गलती होती है.भूलवश "श्रीमती" के लिखने किसी प्रकार से उनके दिल को कोई ठेस लगी हो और किसी भी प्रकार से आहत हुई हो. इसके लिए मुझे खेद है.मुआवजा नहीं देने के लिए है.अगर कहो तो एक जैन धर्म का व्रत 3 अगस्त का उनके नाम से कर दूँ. इस अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.

मेरे बड़े भाई श्री हरीश सिंह जी, आप अगर चाहते थें कि-मैं प्रचारक पद के लिए उपयुक्त हूँ और मैं यह दायित्व आप ग्रहण कर लूँ तब आपको मेरी पोस्ट नहीं निकालनी चाहिए थी और उसके नीचे ही टिप्पणी के रूप में या ईमेल और फोन करके बताते.यह व्यक्तिगत रूप से का क्या चक्कर है. आपको मेरा दायित्व सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए था.जो कहा था उस पर आज भी कायम और अटल हूँ.मैंने "थूककर चाटना नहीं सीखा है.मेरा नाम जल्दी से जल्दी "सहयोगी" की सूची में से हटा दिया जाए.जो कह दिया उसको पत्थर की लकीर बना दिया.अगर आप चाहे तो मेरी यह टिप्पणी क्या सारी हटा सकते है.ब्लॉग या अखबार के मलिक के उपर होता है.वो न्याय की बात प्रिंट करता है या अन्याय की. एक बार फिर भूलवश "श्रीमती" लिखने के लिए क्षमा चाहता हूँ.सिर्फ इसका उद्देश्य उनको सम्मान देना था.
कृपया ज्यादा जानकारी के लिए निम्न लिंक देखे. पूरी बात को समझने के लिए http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html,
गलती की सूचना मिलने पर हमारी प्रतिक्रिया: http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_4919.html

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