क़ानूनी समाचारों पर बेबाक टिप्पणियाँ (4)
प्रिय दोस्तों व पाठकों, पिछले दिनों मुझे इन्टरनेट पर हिंदी के कई लेख व क़ानूनी समाचार पढने को मिलें. उनको पढ़ लेने के बाद और उनको पढने के साथ साथ उस समय जैसे विचार आ रहे थें.उन्हें व्यक्त करते हुए हर लेख के साथ ही अपने अनुभव के आधार पर अपनी बेबाक टिप्पणियाँ कर दी.लेखों पर की कुछ टिप्पणियाँ निम्नलिखित है.किस लेख पर कौन सी की गई है यह जाने के लिए आपको http://teesarakhamba.blogspot.com/ , http://adaalat.blogspot.com और http://rajasthanlawyer.blogspot.com/ पर जाना होगा.इन पर प्रकाशित लेख व समाचारों को पढना होगा
(1) धारा 197 का उल्लेख है कि किसी भी न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट या लोक सेवक जिसे सरकार द्वारा या उस की मंजूरी से ही उस के पद से हटाया जा सकता है,यह धारा और सरकार द्वारा अभियोजन की अनुमति प्राप्त करने की जटिल प्रक्रिया के कारण ही अपनी पदीय कर्तव्य के दौरान अपराधिक कृत्य करने वाले न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट और लोक सेवकों को बचाती है। इस से पदीय कर्तव्यों के दौरान अपराधिक कृत्य किए जाने की संख्या लगातार बढ़ रही है।
(2) अपने बिलकुल सही कहा है कि- इस कानून में निश्चित ही ऐसा परिवर्तन जल्द से जल्द किया जाना निहायत आवश्यक है जिस से कोई भी अपराधी दंड से बचा न रह सके। क्या कोई लोक सेवक यह स्वीकार करेंगा कि उसने लालचवश आपराधिक कृत्य किया है?उपरोक्त धारा में आश्चर्यजनक यह है कि लोकसेवक से पूछा जा रहा है, क्या तुमको तुम्हारे पद से हटा दिया जाये?क्या कोई लोकसेवक कमाई वाला पद यूँ ही आसानी से छोड़ देंगा ?जय कुमार झा (होनेस्टी प्रोजेक्ट डेमोक्रेसी) की विचारों से भी सहमत हूँ.
(3) मैं शिक्षा मित्र के भी विचारों से सहमत हूँ. बहुत अच्छी जानकारी भी मिली.
(4) बहुत अच्छी सलाह; ऐसा तो कुछ जरुर होगा. सर ने सही कहा है कीर्ति जी, आप को यह तलाशना होगा कि ऐसा क्या है जिसे प्राप्त करने के लिए आप के पति को उस स्त्री से संबंध बनाना पड़ा है। आप के पति को वह सब अपने घर में प्राप्त हो जिसे प्राप्त करने के लिए उन्हें अन्य स्त्री के साथ संबंध बनाना पड़ा है.
(5) मैं राज भाटिया और ताऊ जी के विचारों से भी सहमत हूँ. इस रिश्ते का भविष्य भी अच्छा नहीं होता.
(6) आप अपने ब्लॉग पर साधारण नागरिकों को क़ानूनी सलाह देते है, मगर अपने पेशे से जुड़े व्यक्ति को भी जानकारी देकर आपने साबित कर दिया कि आपके यहाँ भेदभाव नहीं होता है और आप बड़े दिल वाले है. बहुत अच्छी जानकारी का आभार !
(7) मैं नीरज जाट, पी.सी.गोदियाल , नरेश सिंह राठौड़ और ताऊ जी के विचारों से भी सहमत हूँ. मेरी और से भी सुप्रीम कोर्ट को धन्यबाद ! जहाँ नेता हो जाये नाकारा , वहां सुप्रीम कोर्ट का सहारा!
(8) एक जागरूक नागरिक भी किसी भी अपराध की शिकायत दर्ज करा सकता है. चाहे वो अपराध से प्रभावित हो या नहीं. बहुत अच्छी जानकारी.
(9) श्रीमान द्विवेदी जी, आपने सही कहा है कि यह संख्या सही नहीं है, मेरे विचार से समाचार लिखने में कुछ कमी है या रह गई है. वैसे यह हो सकता है कि उपरोक्त संख्या सन 1995 में दर्ज मामलों की हो, जो पिछले 15 सालों से चल रहे हो. संपुर्ण समाचार न होने से यह भी कहा जा सकता है. उपरोक्त मामले आपसी सहमति से तलाक लेने वालों के हो.
(10) माननीय सुप्रीम कोर्ट ने क्या आज पहली बार सरकार व विधि आयोग को कहा हैं कि दहेज़ विरोधी कानून और घरेलू हिंसा अधिनियम संबंधित कानून के दुरुपयोग पर रोक लगाने के लिए आवश्यक संशोधन करने की.झूठे मुकदमों में बचाव पक्ष को भले ही बरी कर दिया जाए.लेकिन उन्हें जिन मानसिक परेशानियों से गुजरना होता है.उसकी कल्पना नहीं की जा सकती।
(11) मैं यह पूछना चाहता हूँ क्या ऐसे मामलों में पीड़ित को सरकार कोई मुआवजा दिला सकती हैं अपने खर्चे पर? अगर नहीं! तो फिर ऐसे कानूनों में बदलाव शीघ्रता क्यों नहीं करती है? सरकार में शामिल नुमंदे ही कुछ प्रयास नहीं कर रहे हैं तब बेचारा एक जज क्या कर सकता है?
(12) श्री नारायण दत्त तिवारी जी, आपने रोहित की याचिका पर डीएनए परीक्षण कराने से इंकार कर दिया और आपने इस बात से भी इंकार कर दिया था कि उसकी मां से उनका कोई शारीरिक रिश्ता भी था। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि आप अगर सच्चे हैं तो किस बात से डर रहे हैं. साँच को आंच नहीं आती है. फिर क्यों नहीं टेस्ट करवाकर सच्चे का बोलबाला और झूठे का मुंह काला वाली कहावत क्यों नहीं चरितार्थ कर रहे हैं.
(13) अगर उपरोक्त समाचार में ज्यूडिशियल एकादमी की वेबसाइट का नाम व पता दिया जाता तब उसको देखकर जानकारी प्राप्त की जा सकती थी. (क्रमश:)
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