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मंगलवार, सितंबर 07, 2010

बेबाक टिप्पणियाँ (2)

क़ानूनी समाचारों पर बेबाक टिप्पणियाँ (2)

प्रिय दोस्तों व पाठकों, पिछले दिनों मुझे इन्टरनेट पर हिंदी के कई लेख व क़ानूनी समाचार पढने को मिलें.उनको पढ़ लेने के बाद और उनको पढने के साथ साथ उस समय जैसे विचार आ रहे थें. उन्हें व्यक्त करते हुए हर लेख के साथ ही अपने अनुभव के आधार पर अपनी बेबाक टिप्पणियाँ कर दी. लेखों पर की कुछ टिप्पणियाँ निम्नलिखित है.किस लेख पर कौन सी की गई है यह जाने के लिए आपको http://teesarakhamba.blogspot.com/, http://adaalat.blogspot.com/और http://rajasthanlawyer.blogspot.com/ पर जाना होगा.इन पर प्रकाशित लेख व समाचारों को पढना होगा.
(1) अपराधों की जानकारी होने पर भी किसी मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को उन की सूचना न देने के दायित्व को पूरा न करना भारतीय दंड संहिता की धारा 176 व 202 के अंतर्गत दंडनीय अपराध घोषित किया गया है जिस के लिए उस व्यक्ति को छह माह के कारावास या जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
बहुत अच्छी जानकारी,मगर पुलिस ही अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ लेती है.तब एक जागरूक नागरिक का उत्साह कम हो जाता है. फिर पुलिस वालों का यह जुमला कि-"अच्छा तू है समाज सुधारक! तू सुधरेगा समाज को, अच्छा बता क्या करता है तू. वहां उस समय क्या काम गया था घर में नहीं बैठा रहा गया तेरे सै" एक सभ्य व्यक्ति को अंदर तक आहत कर जाता है.

(2) यदि पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न करे तो कोई भी व्यक्ति न्यायालय के समक्ष अपना परिवाद प्रस्तुत कर सकता है(मेरी राय:आज एक तो समय की कमी है, ऐसे मामलो में उस व्यकित को सरकारी वकील आसानी से मिलना चाहिए या उस व्यक्ति को बगैर वकील की सहायता के उपरोक्त विवाद पेश करने की अनुमति होनी चाहिए) जिसे न्यायालय पुलिस थाने को मामला दर्ज करने के लिए भेज सकता है (मेरी राय:आज एक-एक न्यायालय ऐसे मामलो में फैसले देने में एक-दो साल लगा देती है) और पुलिस उस में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर आगे कार्यवाही कर सकती है।(मेरी राय: पुलिस ऐसे मामलो में चिढ़ी रहती है) न्यायालय यह भी कर सकता है कि परिवाद प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति का बयान ले और अन्य सबूत व गवाह प्रस्तुत करने के लिए कहे। इस तरह के बयान दर्ज हो जाने के उपरांत न्यायालय उसी समय प्रसंज्ञान ले कर मुकदमा दर्ज कर सकता है.(मेरी राय: जब तक आदेश होता है और जाँच होती है तब तक अधिकांश सबूत व गवाह नष्ट हो चुके होते है या दबाब के कारण इनकार कर देते हैं और पुलिस ऐसे मामलो में जांच प्रक्रिया में कोताही बरती है)
(3) एक महत्वपूर्ण फैसला कि नपुंसकता के आधार तलाक लेने के लिए यह आवश्यक है कि इसे सिद्घ करने के लिए खास मेडिकल सबूत हों। मेरा यह विचार है कि-पत्नी द्वारा दो बार गर्भवती होने के बाद भी अपने पति पर नपुंसक होने का आरोप लगते हुए पति को अपनी जांचों के लिए मजबूर किये जाने को और बगैर किसी मेडिकल सबूत के अपने पति पर नपुंसक होने का आरोप लगाने वाली महिला को भी क्रूरता का दोषी माना जाए. ऐसी महिला के पति को क्रूरता के आधार पर तलाक दें देना चाहिए और उसको किसी प्रकार का कोई मुआवजा भी नहीं दिलवाना चाहिए. बल्कि उससे आदेश दिया जाना चाहिए कि अपने पति की समाज में बदनामी की है. जिससे उसका मान-सम्मान की हानि हुई है. इसलिए वो इतना.....मुआवजा दे अथवा इतने .....दिनों की सजा जेल में काटें. जब ऐसे आदेश आने शुरू होंगे, तब देखना कि- नपुंसकता के आरोप लगाने वाले केस कितने कम हो जाते हैं.
(4) देर आया एक बहुत अच्छा फैसला है कि-जीवनसाथी द्वारा क्रूरता की कुछ घटनाएं भी तलाक का पर्याप्त आधार हो सकती है. तलाक पाने की खातिर मानसिक या शारीरिक क्रूरता को साबित करने के लिए उत्पीड़न की हर घटना का उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है. कभी-कभार जीवनसाथी द्वारा की गयी क्रूरता को साबित करने के लिए दो या तीन घटनाएं पर्याप्त होती हैं. मानसिक क्रूरता शारीरिक क्रूरता से ज्यादा कठोर होती है. न्यायमूर्ति अरुणा सुरेश ने कहा पक्ष के लिए आवश्यक नहीं है कि वह जीवनसाथी के आचरण को क्रूरता की श्रेणी में लाने के लिए हर घटना बतायें.
(5) यह एक शर्मनाक घटना है कि-आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों को प्रोन्नति के लिए परीक्षा दे रहे न्यायाधीश परीक्षा के दौरान नकल करते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया गया। न्यायपालिका की तौहीनी करने के आरोप में रंगा रेड्डी के वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश के.अजीत सिम्हाराव, अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (द्वितीय) विजयानंद, बापातला के वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश श्रीनिवास चारी, अनंतपुर के वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश एम.किश्तप्पा और वारंगल के कनिष्ठ सिविल न्यायाधीश हनुमंत राव निलंबित कर दिया गया। अदालत ने राज्य सरकार को भी निर्देश दिया कि वह सभी न्यायाधीशों के खिलाफ कार्रवाई करे, क्योंकि इन्होंने कानून के पेशे को बदनाम किया है। मुझे तो उपरोक्त जजों द्वारा आज तक किये फैसलों पर भी संदेह हो रहा है कि-क्या इन्होने जानकारी के अभाव में कहीं गलत फैसले न दिए हों और किसी वेकसूर को सजा न हो गई हों क्योकि इन्हें जानकारी के अभाव में ही नकल का सहारा लेना पड़ा होगा.
(6) वाह! यह कमाल हो गया मुख्य आरोपी जेल में बंद, सह आरोपी फरार. याचिका उसकी और जमानत सह आरोपी की.
(7) बहुत अफ़सोस है कि-नौवीं योजना में सरकार ने न्यायिक प्रणाली के लिए सिर्फ 385 करोड़ रुपये आवंटित और राष्ट्रमंडल खेलों में करीब 40 हजार करोड़ रुपये के खर्च किए। 120 करोड़ की आबादी वाले देश के उच्च न्यायालय में 600 न्यायाधीश हैं, देश की आठ हजार अदालतों में दो करोड़ 40 लाख मामले लंबित हैं। न्यायाधीशों की वर्तमान संख्या और वर्तमान लंबित मामलों के समाधान में ही 300 से ज्यादा वर्ष लग जाएंगे।
यह हमारे देश के लोगों की बहुत बड़ी बदनसीबी हैं कि-आज देश की न्याय व्यवस्था इतनी ख़राब हो चुकी है फिर भी हमारे देश के नेता के सुधार हेतु इच्छुक नहीं है. होना तो यह चाहिए कि-आबादी को देखते हुए उच्च न्यायालयों में कम से कम 12000 न्यायाधीश और न्यायिक प्रणाली के लिए 20,000 करोड़ रुपये आवंटित हो
(8) उपरोक्त लेख पर मैं बबली, परमजीत सिंह बाली, अंतर सोहिल, नरेश सिंह राठौड़, महेंदर मिश्र, ताऊ रामपुरिया और राज भाटिया के विचारों से सहमत हूँ. आज के युग जहाँ एक ओर व्यक्तिओं की कागज के मात्र कुछ टुकड़ों के लिए नैतिकता गिरती जा रही है. वहां पर हर कार्य लिखित में करना आज की जरूरत बन गया है. आज लोग थूक कर चाटने को तैयार रहते हैं यानि अपनी कही बात से एक मिनट में मुकर जाते हैं. आज प्राण जाए मगर वचन न जाए का ज़माना नहीं रहा है. आज तो लोगों का कहना है कि-वचन जाए मगर पैसा न जाए.(क्रमश:)

# निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन: 09868262751, 09910350461 email: sirfiraa@gmail.com, महत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें.हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. नेत्रदान महादान आज ही करें. आपके द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है.

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यह है मेरे सच्चे हितेषी (इनको मेरी आलोचना करने के लिए धन्यवाद देता हूँ और लगातार आलोचना करते रहेंगे, ऐसी उम्मीद करता हूँ)
पाठकों और दोस्तों मुझसे एक छोटी-सी गलती हुई है.जिसकी सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगता हूँ. अधिक जानकारी के लिए "भारतीय ब्लॉग समाचार" पर जाएँ और थोड़ा-सा ध्यान इसी गलती को लेकर मेरा नजरिया दो दिन तक "सिरफिरा-आजाद पंछी" पर देखें.

आदरणीय शिखा कौशिक जी, मुझे जानकारी नहीं थीं कि सुश्री शालिनी कौशिक जी, अविवाहित है. यह सब जानकारी के अभाव में और भूलवश ही हुआ.क्योकि लगभग सभी ने आधी-अधूरी जानकारी अपने ब्लोगों पर डाल रखी है. फिर गलती तो गलती होती है.भूलवश "श्रीमती" के लिखने किसी प्रकार से उनके दिल को कोई ठेस लगी हो और किसी भी प्रकार से आहत हुई हो. इसके लिए मुझे खेद है.मुआवजा नहीं देने के लिए है.अगर कहो तो एक जैन धर्म का व्रत 3 अगस्त का उनके नाम से कर दूँ. इस अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.

मेरे बड़े भाई श्री हरीश सिंह जी, आप अगर चाहते थें कि-मैं प्रचारक पद के लिए उपयुक्त हूँ और मैं यह दायित्व आप ग्रहण कर लूँ तब आपको मेरी पोस्ट नहीं निकालनी चाहिए थी और उसके नीचे ही टिप्पणी के रूप में या ईमेल और फोन करके बताते.यह व्यक्तिगत रूप से का क्या चक्कर है. आपको मेरा दायित्व सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए था.जो कहा था उस पर आज भी कायम और अटल हूँ.मैंने "थूककर चाटना नहीं सीखा है.मेरा नाम जल्दी से जल्दी "सहयोगी" की सूची में से हटा दिया जाए.जो कह दिया उसको पत्थर की लकीर बना दिया.अगर आप चाहे तो मेरी यह टिप्पणी क्या सारी हटा सकते है.ब्लॉग या अखबार के मलिक के उपर होता है.वो न्याय की बात प्रिंट करता है या अन्याय की. एक बार फिर भूलवश "श्रीमती" लिखने के लिए क्षमा चाहता हूँ.सिर्फ इसका उद्देश्य उनको सम्मान देना था.
कृपया ज्यादा जानकारी के लिए निम्न लिंक देखे. पूरी बात को समझने के लिए http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html,
गलती की सूचना मिलने पर हमारी प्रतिक्रिया: http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_4919.html

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