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रविवार, सितंबर 12, 2010

बेबाक टिप्पणियाँ (8)

क़ानूनी समाचारों पर बेबाक टिप्पणियाँ (8)

प्रिय दोस्तों व पाठकों, पिछले दिनों मुझे इन्टरनेट पर हिंदी के कई लेख व क़ानूनी समाचार पढने को मिलें.उनको पढ़ लेने के बाद और उनको पढने के साथ साथ उस समय जैसे विचार आ रहे थें.उन्हें व्यक्त करते हुए हर लेख के साथ ही अपने अनुभव के आधार पर अपनी बेबाक टिप्पणियाँ कर दी.लेखों पर की कुछ टिप्पणियाँ निम्नलिखित है.किस लेख पर कौन सी की गई है यह जाने के लिए आपको http://teesarakhamba.blogspot.com/,  http://adaalat.blogspot.com/  और http://rajasthanlawyer.blogspot.com/  पर जाना होगा.इन पर प्रकाशित लेख व समाचारों को पढना होगा.

(1) अदालत ने एक कंपनी के 'गांधी नंबर वन' साबुन की बिक्री से रोक दी है। गोदरेज ने कहा था कि यह नाम उसके 'गोदरेज नंबर वन'ब्रैंड से मिलता-जुलता है। उच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश की 'गांधी सोप एंड डिटरर्जेंट'को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए पूछा है क्यों न गोदरेज को इस मामले में राहत दी जाए। अदालत ने गांधी सोप्स पर 13 सितंबर तक इस उत्पाद के विपणन एवं बिक्री पर रोक लगा दी है।

आज तो केवल 'गांधी सोप एंड डिटरर्जेंट' ही है पता नहीं हमारे देश में कल "गांधी जी" के नाम से लोग क्या-क्या शुरु करेंगे? आज लोगों की मानसिकता पर अफ़सोस होता है कि-यह कैसा सम्मान है?

(2) आपके उपरोक्त लेख के विचारों से संपूर्ण रूप से और बी.एस.पाबला,महफूज अली, राज भाटिया, शिक्षा मित्र, जय कुमार झा, ताऊ रामपुरिया,पी.एन.सुब्रमनियन और काजल कुमार आदि से भी सहमत हूँ.

(3) आप द्वारा दी बहुत अच्छी जानकारी कभी समय मिले तब कृपया करके हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13, 24 और 27 के बारे में विस्तार से जानकारी देने का कष्ट करें.
(4) आपने उपरोक्त लड़की को बहुत अच्छी राय दी है. आपको मेरे पूरे नाचीज़ से प्रकाशन परिवार की ओर से पचपनवें जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ। मुझे काफी देरी से पता चला उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ. इस नये वर्ष में आप अपने तमाम केसों पर विजय प्राप्त करके नई बुलंदी पर पहुंचे. इन्ही कामनाओं के साथ .............आपका शुभाकांक्षी
(5) मैं काजल कुमार, मंसूर अली, सुमन, सुरेश शिप्लुनकर, शिक्षा मित्र, राजेंद्र, जय कुमार झा, डॉ. महेश सिन्हा, विवेक सिंह, बी.एस. पाबला, सतीश पंचम, राकेश शेखावत और आपके विचारों से पूर्णत: सहमत हूँ.
(6) आज जिस तरह से लोगों की नैतिकता गिरती जा रही है.उसी को देखते हुए ही लोग अपना मकान किराये पर न देकर ख़ाली रखना ज्यादा पंसद करते हैं और अगर देते भी है तो संविदा (कंट्रेक्ट) कर के दे रहे है. आज विश्वासघात करना एक फैशन बनता जा रहा है.
(7) मैंने जनवरी 2010 में एक आर.टी.आई रजिस्ट्रार को-आँप सोसायटी, दिल्ली में डाली थी.उसका मुझे जवाब नहीं मिला. तब मैंने "केंद्रीय सूचना आयोग" की वेबसाइट पर बहुत कोशिश की. मगर शिकायत की बहुत लम्बी प्रक्रिया होने की वजय से शिकायत दर्ज नहीं हुई.तब मैंने वेबसाइट से उनके उच्च अधिकारीयों की ईमेल id नोट करके 27 अप्रैल, 31 जुलाई व 6 अगस्त को ईमेल करा दी और अपनी परेशानी के बारे में भी लिख दिया था कि-शिकायत की प्रक्रिया सरल बनाये और प्लीज उचित कार्यवाही करे. क्या आपका rti@india.gov.in ईमेल आईडी ठीक नहीं है. उस पर ई-मेल जाती ही नहीं है. थंकयू!

मुझे आज तक "केंद्रीय सूचना आयोग" से कोई ईमेल या पत्र प्राप्त नहीं हुआ है. इस अनुभव को देखते हुए क्या यह नहीं कहा जा सकता कि-आवाम में सब नंगे है और कोई अपनी जिम्मेदारी समझना ही नहीं चाहता है. आम-आदमी को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के नाम का एक झुनझना थमा दिया है. जिससे सूचना के नाम पर हिलाता रहे जब प्रधानमंत्री कार्यालय सूचना देने में आनाकानी कर रहा है. तब दुसरे क्या क्या करते होंगे. इस बात का आप अंदाजा लगाकर देखिये. मेरे पास ऐसे अनेकों पुख्ता सबूत है. जहाँ पर सूचना मांगने वालों जान से मारने की धमकी मिलती और कईओं के साथ मारपीट भी की. इसके अलावा उनके वाहन कार व स्कूटर में आग लगा दी गई थीं.

(8) आपने बिलकुल सही लिखा है. हमारे देश के नेता चाहते ही नहीं कि-आम आदमी का भला हो.इसलिए ही तो सरकारें हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में कानून उपलब्ध नहीं कराती है.


# निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन: 09868262751, 09910350461 email: sirfiraa@gmail.com, महत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें.हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. नेत्रदान महादान आज ही करें.के द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है

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यह है मेरे सच्चे हितेषी (इनको मेरी आलोचना करने के लिए धन्यवाद देता हूँ और लगातार आलोचना करते रहेंगे, ऐसी उम्मीद करता हूँ)
पाठकों और दोस्तों मुझसे एक छोटी-सी गलती हुई है.जिसकी सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगता हूँ. अधिक जानकारी के लिए "भारतीय ब्लॉग समाचार" पर जाएँ और थोड़ा-सा ध्यान इसी गलती को लेकर मेरा नजरिया दो दिन तक "सिरफिरा-आजाद पंछी" पर देखें.

आदरणीय शिखा कौशिक जी, मुझे जानकारी नहीं थीं कि सुश्री शालिनी कौशिक जी, अविवाहित है. यह सब जानकारी के अभाव में और भूलवश ही हुआ.क्योकि लगभग सभी ने आधी-अधूरी जानकारी अपने ब्लोगों पर डाल रखी है. फिर गलती तो गलती होती है.भूलवश "श्रीमती" के लिखने किसी प्रकार से उनके दिल को कोई ठेस लगी हो और किसी भी प्रकार से आहत हुई हो. इसके लिए मुझे खेद है.मुआवजा नहीं देने के लिए है.अगर कहो तो एक जैन धर्म का व्रत 3 अगस्त का उनके नाम से कर दूँ. इस अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.

मेरे बड़े भाई श्री हरीश सिंह जी, आप अगर चाहते थें कि-मैं प्रचारक पद के लिए उपयुक्त हूँ और मैं यह दायित्व आप ग्रहण कर लूँ तब आपको मेरी पोस्ट नहीं निकालनी चाहिए थी और उसके नीचे ही टिप्पणी के रूप में या ईमेल और फोन करके बताते.यह व्यक्तिगत रूप से का क्या चक्कर है. आपको मेरा दायित्व सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए था.जो कहा था उस पर आज भी कायम और अटल हूँ.मैंने "थूककर चाटना नहीं सीखा है.मेरा नाम जल्दी से जल्दी "सहयोगी" की सूची में से हटा दिया जाए.जो कह दिया उसको पत्थर की लकीर बना दिया.अगर आप चाहे तो मेरी यह टिप्पणी क्या सारी हटा सकते है.ब्लॉग या अखबार के मलिक के उपर होता है.वो न्याय की बात प्रिंट करता है या अन्याय की. एक बार फिर भूलवश "श्रीमती" लिखने के लिए क्षमा चाहता हूँ.सिर्फ इसका उद्देश्य उनको सम्मान देना था.
कृपया ज्यादा जानकारी के लिए निम्न लिंक देखे. पूरी बात को समझने के लिए http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html,
गलती की सूचना मिलने पर हमारी प्रतिक्रिया: http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_4919.html

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