दोस्तों, मैंने कल अपनी भतीजी चारू जैन के साथ एक छोटी सी रोहतक,
हरियाणा की यात्रा की. जो उम्मीदों के अनुरूप बहुत ही निराशाजनक रही. दरअसल
मेरी भतीजी एम.बी.बी.एस का कोर्स करना चाहती है. पिछले साल ही बारहवीं पास
कर ली थी और दाखिले से पहले होने वाली परीक्षा में भी पास हो गई थी. लेकिन
उसकी आयु कम होने के कारण दाखिला नहीं मिल पाया था.
इस
बार उसने काफी कोचिंग भी ली और परीक्षा में पास भी हो गई. मगर इस बार थोड़े
कम नम्बर छह सौ में से चार सौ एक आये. दिल्ली के कालेज में दाखिला नहीं
मिल सकता था. फिर थोड़े बहुत चांस थें तो हमारे भारत की चरमराई हुई डाक
व्यवस्था (दिल्ली की दिल्ली में दो दिन में भी स्पीड पोस्ट से भरा हुआ
फॉर्म अपने स्थान पर नहीं पहुंचा था) के कारण वो भी चले गए.
हरियाणा
के लिए प्रयास शुरू कियें. फिर किसी तरह से जानकारी एकत्रित करके गुडगांव
दो बार फॉर्म लेने भी गई. मगर वहां नहीं मिलने के स्थिति में रोहतक से
फॉर्म लेकर आई और फिर एक दिन अपने पापा के साथ जाकर जमा करवाकर भी आई.
जानकारी
के अभाव में भतीजी और साइबर कैफे की गलती से दाखिले से पहले होने वाली
परीक्षा के फॉर्म में नजदीकी राज्य न भरने के कारण कल रोहतक के कालेज
(दिल्ली हो या अन्य राज्य के कालेज हो. कोई सही जानकारी नहीं देता है. जब
मेरी भतीजी की अंक तालिका पर नजदीकी राज्य का नाम नहीं था तो यदि कालेज
जानकारी देता तब मेरी भतीजी तीन हजार का फॉर्म ही नहीं खरीदती और जमा
करवाती.बस कालेज वालों को तो अपने फॉर्म बेचने से मतलब है) की कौन्सिलिंग
में मेरी भतीजी का नाम तक लिस्ट में नहीं आया था और यात्रा आदि काफी पैसे
भी खर्च हुए. मगर कोई लाभ नहीं मिला.
इससे मेरी भतीजी को
बहुत निराशा हुई और आँखें भी भर आई थी. फिर मैंने समझाया कि बेटा हर दिन
एक जैसा नहीं होता है. वक्त से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को नहीं
मिलता है. हमारा काम केवल प्रयास करना है और हमने प्रयास भी किये और मेहनत
भी. जब लोग सत्रह युद्ध हारकर भी अठारहवा युद्ध जीत सकते हैं. तब हम क्यों
एक दो प्रयास में अपना हौंसला छोड़ दें. आज नहीं तो कल हमें मंजिल जरुर
मिलेगी अपना प्रयास हमें नहीं छोड़ना है. यह मन में दृढ निश्चय कर लो.
अब
देखो एक अब ऑनलाइन कौन्सिलिंग होनी है. क्या पता उसमें उसका नम्बर आ जाये?
आप सभी दोस्त अपनी प्यारी और अच्छी-अच्छी प्रेरणादायक टिप्पणियों या
चित्रों से मेरी भतीजी का कुछ हौंसला बढाओ. मुझे पूरी उम्मीद है कि आप ऐसा
जरुर करेंगे.
दोस्तों, सच बताऊ अपनी भतीजी को तो समझाया
दिया मगर मुझे उसके कारण खुद भी बहुत निराशा हो रही थी. मैंने कोई दो-तीन
घंटे पहले उपरोक्त(नीचे)लिंक वाले वीडियो देखे/सुने. तब जाकर कल की यात्रा
के अनुभव आप तक पहुँचाने की हिम्मत कर पाया हूँ.मैं जब भी थोडा सा निराश
होता हूँ किसी के व्यवहार या बात को लेकर तब मैं अक्सर इन लिंकों जरुर सुन
लेता हूँ. मुझे तो काफी ऊर्जा मिलती है इसको देखकर/सुनकर. बाकी हर व्यक्ति
पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है. मेरा ऐसा मानना है.
खुशनुमा जीवन जीने की कला के लिंक
कौन्सिलिंग होने के इंतजार में बैठे छात्र व उनके अभिभावक और रोहतक बस अड्डे के दो चित्र.