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सोमवार, मई 06, 2013

मैंने "आम आदमी पार्टी" से कहा कि-मुझे आपसे झूठ बोलकर "टिकट" नहीं लेना है

दोस्तों, मैंने "आम आदमी पार्टी" का उम्मीदवार चयन प्रक्रिया के तहत अपना फार्म भरकर भेजा है और उसके साथ अपना निम्नलिखित कवरिंग पत्र भेजा है. जिसमें मेरी संक्षिप्त विचारधारा के साथ थोडा सा जीवन परिचय देने का प्रयास किया है. आमने-सामने बैठने पर और उसकी विचारधारा से अवगत हुआ जा सकता है. लेकिन पत्र के माध्यम से अपनी विचारधारा से अवगत करवाने का प्रयास किया है. अब आप ही पढकर बताएँगे कि आम आदमी पार्टी के संयोजक श्री अरविन्द केजरीवाल तक अपनी विचारधारा कितने सही तरीके से पहुँचाने में कितना कामयाब हुआ हूँ या नहीं. अपनी विचारधारा के साथ अपने पत्र और आपके बीच में कोई बाधा न बनते हुए, फ़िलहाल अपनी लेखनी को यहीं पर विराम देता हूँ.
मिलें:-  श्री दिलीप पांडे (सचिव) चुनाव समिति
आम आदमी पार्टी
मुख्य कार्यालय:ए-119, ग्राऊंड फ्लोर, कौशाम्बी, गाजियाबाद-201010.
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विषय:- उत्तम नगर विधानसभा उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव पत्र
स्क्रीनिंग कमेटी और श्री अरविन्द केजरीवाल जी,  

श्रीमान जी, मैं सबसे पहले आपको यहाँ एक बात साफ कर दूँ कि मुझे आपसे उत्तमनगर विधानसभा के उम्मीदवार के लिए "टिकट" झूठ बोलकर नहीं लेनी है. इसलिए मैंने अपने फार्म में अधिक से अधिक सही जानकारी देने का प्रयास किया है. मेरी ईमानदारी और सच्चाई के कारण यदि आप टिकट नहीं देते हैं तब मुझे कोई अफ़सोस नहीं होगा,  मगर आपसे झूठ बोलकर या गलत तथ्य देकर टिकट लेना मेरे "जीवन का लक्ष्य" नहीं है. झूठ बोलकर वो व्यक्ति टिकट लेगा, जिसको अपनी ईमानदारी और सच्चाई पर पूरा विश्वास नहीं होगा. माना कि सच्चाई की डगर पर चलना कठिन होता है. कहा जाता है कि-आसान कार्य तो सभी करते हैं, मगर मुश्किल कार्य कोई-कोई करता है. इसी सन्दर्भ में एक कहावत भी है कि-गिरते हैं मैदान-ए-जंग में शेर-ए-सवार, वो क्या खाक गिरेंगे, जो घुटनों के बल चलते हैं. आप की पार्टी (आम आदमी पार्टी) द्वारा विधानसभा उम्मीदवारों का विवरण प्राप्त करने के लिए प्रारूप (फार्म-ए) में यदि राज्य चुनाव आयोग के चुनाव उम्मीदवार के फार्म में शामिल कुछ प्रश्नों (कोलम) एवं प्रक्रिया को और जोड़ दिया जाता तो आपको हर विधानसभा क्षेत्र से आने वाले उम्मीदवारों के बारे में काफी अधिक जानकारी मिल सकती थी. चलिए अब जो हो गया है. उसको पीछे छोड़ते हुए अब आप पूरी दिल्ली के विधानसभा क्षेत्रों के लिए "अच्छे उम्मीदवारों" का चयन कर पाएँ. यहीं मेरी दिली तमन्ना है. आज अच्छे पदों हेतु केवल डिग्री या व्यक्ति के सामान्य ज्ञान की ही परीक्षा ली जाती है. आदमी में "इंसानियत"  है या नहीं. इस बात की परख नहीं की जाती है और इसका नतीजा अच्छा नहीं होता है. 
श्रीमान जी, जिस प्रकार लेखक मुंशी प्रेमचन्द की कहानी "परीक्षा" के पात्र बूढ़े जौहरी (पारखी) सरदार सुजान सिंह ने अपनी जिस सूझ-बुझ से रियासत के दीवान पद के लिए बुगलों (उम्मीदवारों) की भीड़ में से हंस (जो अपने विशिष्ट गुणों और सौंदर्य के आधार पर अलग होता है) यानि पंडित जानकीनाथ जैसे न्याय करने वाले ईमानदार, कर्त्तव्यनिष्ट उम्मीदवार का चयन कर लिया था. जिसके ह्रदय में साहस, आत्मबल और उदारता का वास था. ऐसा आदमी गरीबों को कभी नहीं सताएगा. उसका संकल्प दृढ़ है तो उसके चित्त को स्थिर रखेगा. वह किसी अवसर पर चाहे किसी से धोखा खा जाये. परन्तु दया और अपने धर्म से कभी पीछे नहीं हटेगा. उसी प्रकार आप और आपकी स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य यदि पूरी दिल्ली की विधानसभाओं के लिए "हंस" जैसे उम्मीदवारों का चयन कर पाए तो पूरी दिल्ली में आपकी पार्टी का राज हो सकता है. इस समय आप दो धारी तलवार की धार पर खड़े है. यदि आप की पार्टी ने किसी चमचागिरी या दबाब या लालचवश,  भेदभाव की नीति में उलझकर या धर्म या जाति समीकरण के आंकड़ों में उलझकर गलत व्यक्ति (बुगले) का चयन कर लिया तो आपको राष्ट्रीय स्तर पर काफी नुकसान होगा और आपकी छवि खराब होगी.  आपका सर्वप्रथम लक्ष्य अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझने वाला, दूरदृष्टि के साथ ही देश/समाज सेवा की भावना रखने वाले ईमानदार व्यक्ति (उम्मीदवार) का चयन करना ही होना चाहिए. जैसे अर्जुन को केवल मछली की आँख दिखाई देती थी. चुनाव में "हार" और "जीत" को इतने मायने न दें. बल्कि अपने आदर्शों और सिध्दांतों के साथ चुनाव मैदान में अपने उम्मीदवारों को उतारे. इससे आम आदमी प्रभावित होगा. बाकी जैसी आपकी मर्जी, क्योंकि आपकी पार्टी है. आप चाहे जैसे करें. यह आपके विवेक पर निर्भर है. 
श्रीमान जी, वर्तमान सरकार और विपक्ष के साथ ही सारे देश के आम आदमियों की निगाह आपकी तरफ है कि आप अपनी पार्टी के लिए कैसे-कैसे उम्मीदवारों का चयन करते हैं. यदि आप मात्र सत्ता पर कब्जा जमाने की अति महत्वकांक्षा चलते "हंस" (अच्छे उम्मीदवार) नहीं चुन पाएँ तो काफी लोगों की आपसे उम्मीदें टूट जायेंगी और यदि आप बिना सत्ता की भूख रखकर चुनाव मैदान में अच्छे उम्मीदवार(हंस) उतारने का उद्देश्य पूरा कर पाएँ तो आप एक अच्छे जौहरी बनकर अपना थाल मोतियों से भरा पायेंगे और आपके साथ जो आम आदमी सच में व्यवस्था बदलने के इच्छुक है, वो आपके साथ जुड जायेंगे. फ़िलहाल वो आपकी पार्टी की कार्यशैली पर अपनी गिध्द दृष्टि जमाए हुए है और देखना चाहते हैं कि आपकी कथनी और करनी में कहीं कोई अंतर तो नहीं आ रहा है. इसलिए आपको उम्मीदवार(हंस) चयन प्रक्रिया में अधिक से अधिक पारदर्शिता का उदाहरण पेश करते हुए एक-एक कदम फूंक-फूंककर रखना होगा. आपका उठाया एक गलत कदम देश के भविष्य को अंधकार में डूबा देगा.
श्री अरविन्द केजरीवाल जी, श्री अन्ना हजारे जी द्वारा किये प्रथम आंदोलन अप्रैल 2011 से आपको देश का बच्चा-बच्चा जानने लगा है. तब से काफी लोग मुझे उत्तम नगर का अरविन्द केजरीवाल कहते हैं और कहने को तो कुछ लोग "गरीबों का मसीहा" भी कहते हैं, क्योंकि पिछले 18 साल से अपनी पत्रकारिता के माध्यम से "आम आदमी" की आवाज को एक बुलंद आवाज देने का प्रयास करता आ रहा हूँ और आज तक जो कोई मेरे दरवाजे पर किसी भी प्रकार की मदद के लिए आया है. वो खाली हाथ या निराश नहीं लौटा है. यहाँ एक बात यह भी है कि मैंने कभी किसी की धन से मदद नहीं की है, बस अपनी कलम से और सही जानकारी देकर उसको जागरूक करके उसे उसकी समस्या का समाधान पाने की प्रक्रिया समझाई है और हाँ,  इसके अलावा ना मैं गरीबों का मसीहा हूँ और ना उत्तम नगर का अरविन्द केजरीवाल हूँ, क्योंकि हर व्यक्ति को अपने-अपने कर्मों द्वारा उसके शरीर को एक पहचान मिलती है.  मैं अपनी पूर्व की "सिरफिरा" और वर्तमान की "निर्भीक"  पहचान से ही संतुष्ट हूँ. आपको सनद होगा कि जो आप कर सकते हैं, वो मैं नहीं कर सकता हूँ और जो मैं कर सकता हूँ, वो आप नहीं कर सकते हैं. इसी प्रकार हर व्यक्ति को भगवान ने अपने-अपने कर्म करने के लिए हमारी- आपकी  "आत्मा" को मिटटी शरीर में समावेश करके भेजा है.  इसलिए कहाँ आप और कहाँ मैं यानि कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली.  मैं अपने आपको एक तुच्छ-सा जीव मानता हूँ. जिसे उस परम पिता परमेश्वर ने धरती पर जन्म लेकर नेक कार्य करने का आदेश दिया है. मैं उसी आदेश का पालन करता हूँ. मैंने कोई स्कूली/कालेज की ज्यादा किताबें नहीं पढ़ी है मगर "इंसानियत" (मानवता) नामक पाठ पढ़ा है और उसके अनुसार कार्य करने की कोशिश करता हूँ. 

यदि आप और आपकी पार्टी सचमुच में भारत देश को उन्नति व खुशहाली की ओर ले जाना चाहते हैं और आप अपनी पार्टी के संविधान के लिए बहुत अधिक कठोर और ठोस निर्णय ले सकते हैं.  तब मैं आपकी दिल्ली विधानसभा 2013 और लोकसभा 2014 के लिए ऐसा घोषणा पत्र तैयार करवा सकता हूँ.  जो पूरे भारत वर्ष की सभी राजनीतिक पार्टियों से अलग और निराला होगा. लेकिन इसके लिए बहुत ही त्यागी, तपस्वी और योगी उम्मीदवारों की जरूरत होगी और उनको तलाशने के लिए काफी प्रयास करने होंगे. हमारे भारत वर्ष में ऐसे व्यक्तियों को खोजना असंभव नहीं है. हमारे भारत देश में एक से एक बढकर त्यागी, बलिदानी और तपस्वी पैदा हुए है और आज भी है. ऐसा भारत देश का इतिहास गवाही दे रहा है.  बस इसके लिए आपके पास दृढ़ निश्चय होने के साथ वो जोश, वो जुनून होना चाहिए. मेरी इस बात को "सच" में बदलने के लिए आपको अपना कुछ कीमती समय मुझे देना होगा. उपरोक्त पत्र के माध्यम से अपने विचारों की अभिव्यक्ति करते हुए अपनी विचारधारा आप तक पहुँचाना ही मेरा "जीवन का लक्ष्य" है. अपने क्रांतिकारी विचारों और अपनी ईमानदारी से चलाई लेखनी से आपको या आपकी पार्टी को नीचा दिखाना या अपमान करना मेरा उद्देश्य नहीं है.  मेरे विचारों के भावों को अपने विवेकानुसार अच्छी तरह से समझने का प्रयास करें.   
श्रीमान जी, मैं कौन हूँ करने वाला ? मैं जो करता हूँ बस उस (भगवान) का आदेश होता है, उसी आदेश का पालन करता हूँ. इसलिए आज तक "नेकी करके दरिया में डालने" की नीति से कार्य किया है और नेकी करके जूते खाने की हिम्मत रखने के साथ ही भगवान महावीर स्वामी जी के आदर्शों पर चलने के कारण व अपने धर्मानुसार एक हाथ से परोपकार करो तो दूसरे हाथ को पता न चले का पालन करते हुए अपनी समाज/देश सेवा आदि करने के आंकड़े तैयार ही नहीं किये हैं कि कितनी विधवाओं की पेंशन लगवाने में मदद की और कितनों की कब-कब, कैसे-कैसे और किसकी मदद की. हमेशा यह कोशिश कि- जो व्यक्ति जिस मदद के लिए आया है. यदि हम उसके योग्य है तो उसकी पूरे दिल से मदद की जाये. 
जिस(भगवान) को मेरे आंकड़े देखकर मुझे इनाम (कर्मों का फल) देना है. उसके खाते में आंकड़े आपकी या हमारी सेवा करने की भावना को देखकर अपने आप दर्ज हो जाते हैं. आपके फार्म में मांगी जानकारी के अनुसार ही  अपना मुंह मिठ्ठू बनने का प्रयास करूँगा. कहते है कि कोशिश करने वालों की कभी "हार" नहीं होती है. डूब जाने के डर से तैरने की कोशिश भी ना करूँ. यह हो नहीं सकता है. असफलता के बाद ही "सफलता" की अहमियत को समझा जा सकता है. 

मैं आपको अपने बारे में उपरोक्त पत्र के माध्यम से संक्षिप्त में जानकारी देने का प्रयास करूँगा और इससे अधिक मेरे विषय में जानकारी उपरोक्त पत्र के साथ सलंग्न कुछ समाचार पत्र और अन्य सामग्री आदि का अध्ययन करके एवं मेरी फेसबुक आई डी https://www.facebook.com/sirfiraa की वाल, पोस्ट और नोट्स के साथ ही मेरे ब्लोगों/समूहों के लिंकों पर जाकर मेरी विचारधारा को पढ़ा/जाना जा सकता है. यदि आपने सलंग्न अखबार आदि को नहीं पढ़ा तो आप मेरी विचारधारा अच्छी तरह से समझ नहीं सकेंगे, जो मैं यहाँ समयाभाव के कारण व्यक्त करने में असमर्थ हूँ.  
श्रीमान जी, आज देश में दीमक की तरह से फैले भ्रष्टाचार और अंधी-बहरी जांच प्रक्रिया के कारण ही महिलाओं के हित में बनाये कानूनों के दुरूपयोग का मैं स्वयं भी शिकार हुआ हूँ. इसी के तहत मेरे ऊपर दहेज प्रताडना और अमानत में खयानत के झूठे आरोप लगाकर मेरे खिलाफ दिनांक 13.05.2010 को थाना-मोतीनगर, दिल्ली में धारा 498A, 406/34 के अंतर्गत एफ.आई.आर संख्या 138/2010 दर्ज हुई थी. जिसमें आग्रामी जमानत की याचिका तीन बार ख़ारिज होने पर मैंने अदालत में आत्मसमपर्ण कर दिया था और उसी केस में न्यायिक हिरासत में एक महीना तिहाड़ जेल (आठ फरवरी से सात मार्च 2012) में रहकर आया हूँ. अब आपसी सहमति से तलाक होने की स्थिति में दिल्ली हाईकोर्ट से मई 2013 में यह एफ.आई.आर ख़ारिज होनी है. इसके अलावा मेरे ऊपर केस संख्या: MP 75/4 धारा 125 के तहत गुजारे भत्ते का केस भी चला था, जो 12.12.2012 को सेशन कोर्ट में ख़ारिज हो चुका है. यहाँ पर गौरतलब बात है कि-मैंने दहेज विरोधी होने के कारण ही बिना दान-दहेज लिये एस.डी.एम ऑफिस, रामपुरा-दिल्ली में दिनांक 20.06.2005 को प्रेम विवाह किया था. अपने ऊपर अन्याय के खिलाफ बिकाऊ मीडिया व भष्ट पत्रकार और पुलिस अफसर से लेकर राष्ट्रपति तक हर छोटे-बड़े अफसर से मदद की गुहार लगाते हुए पत्र लिखें. लेकिन जिनके शरीरों में "आत्मा" तक नहीं थी और जिन्होंने पैसों की हवस में अपना ज़मीर तक बेच डाला था. उन्होंने पत्र का जबाब देने तक का नैतिक फर्ज भी नहीं निभाया. 

यदि मेरे पास श्री रामजेठमलानी और प्रशांत भूषण जी जैसे वकीलों की मोटी-मोटी फ़ीस देने के लिए होती तो मैं निर्दोष होते हुए जेल की सजा नहीं काटता और जाँच एजेंसी और न्याय व्यवस्था में मात्र सैलरी लेने वाले "जोकरों" को सरे-बाजार नंगा कर देता. आज मात्र कागज के चंद टुकड़ों के लिए कुछ दूषित मानसिकता वाली लडकियां अपने शरीर तक को दांव पर लगा देती हैं और पति-पत्नी के बीच स्थापित हुए संबंधों की कीमत तक वसूल करती या मांग करती हैं. बस उनकी दौलत की हवस पूरी होनी चाहिए और कुछ दूषित मानसिकता वाले उसके परिजन अपनी बेटी के शरीर की कीमत तक वसूलने लगें है या यह कहे तो अतिशोक्ति नहीं होगी कि अपनी बेटियां के नाम पर सौदेबाजी करते हुए धंधा(वेश्यावृति) करने लगे है. यदि कोई राह चलते चोर, लुटेरा या डाकू आपकी गर्दन पर चाकू या रिवाल्वर लगाकर आपके पास मौजूद धन मांगे तो आप अपनी जान बचाने के लिए अपना सब कुछ दे देंगे या कोई चोर, लुटेरा या डाकू आपके किसी परिजन या सन्तान का अपहरण करके ले जाये और उसको छोड़ने के एवज में आपसे जो कीमत मांगेगा, आप उस समय बेशक कर्ज लेकर उसका मुंह भरेंगे, क्योंकि जिस व्यक्ति/इंसान की "आत्मा" या "इंसानियत" मर गई हो. आप उससे दया और मानवता की उम्मीद नहीं कर सकते हैं. आज इसी प्रकार से कुछ दूषित मानसिकता वाले वधू पक्ष के वर पक्ष पर दहेज कानूनों का दुरूपयोग करते हुए फर्जी केस दर्ज करवाते देते है और यह कहे तो गलत नहीं होगा कि गले पर चाकू रखकर सौदेबाजी होती है. मुंह मांगी कीमत मिलने पर केस वापिस ले लिया जाता है. आज इन्ही जैसी कुछ दूषित मानसिकता वाली लड़कियों के कारण "विवाह" नामक संस्था का स्वरूप खराब होता जा रहा है. इसमें पैसों के लालची पुलिस वाले, वकील और जज आदि इनकी मदद करते हैं. यहाँ गौरतलब है जब ऐसे केस "हाईकोर्ट" से खारिज होते हैं तब अंधे-बहरे बैठे जज भी "वर" पक्ष पर क़ानूनी व्यवस्था का कीमती समय खराब करने के नाम जुरमाना लगाते हैं. ऐसे मामलों में आज तक इतिहास रहा है कि कभी किसी लड़की वालों पर जुरमाना किया हो, क्योकि "हाईकोर्ट" में बैठे जज भी भेदभाव करते हुए महिलाओं के पक्ष में "फैसला" देकर वाहवाही लूटने के साथ अपने "नम्बर" बनाने में व्यस्त रहते हैं. मैं अपनी दूषित मानसिकता वाली पत्नी के दुर्व्यहार के बाबजूद अपने जैन धर्म से नहीं डिगा यानि मैंने अपनी पत्नी पर कभी हाथ नहीं उठाया था. उसकी हिंसा का बदला प्रतिहिंसा से नहीं दिया, क्योकि अच्छे और बुरे इंसान में फिर कोई क्या फर्क रह जायेगा.  

अपने माता-पिता और जैन धर्म से मिले संस्कारों के अनुसार मैं अच्छी व सभ्य लड़कियों/महिलाओं का बहुत आदर-सम्मान करता हूँ. मेरा मानना है कि यह वहीँ ही भारत देश की नारियां है. जिन्होंने मेरे आदर्श नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, श्री लालबहादुर शास्त्री, शहीद भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद आदि जैसे अनेक वीरों, महापुरुषों और क्रांतिकारी नौजवानों को जन्म दिया है. आप विचार करें कि "क्या ऐसी विचारधारा रखने वाला एक सभ्य व्यक्ति और बुध्दिजीवी अपनी पत्नी को दहेज लाने के लिए प्रताडित कर सकता है ? आपको सनद होगा कि एक पत्रकार समाज में फैली कुरीतियों का खात्मा के लिए अपनी लेखनी के माध्यम से विरोध करते हुए अपना पूरा जीवन तक न्यौछावर कर देता है. वैसे जैन धर्म में बलिदान, क्रोध और त्याग आदि पर बहुत अच्छा साहित्य है. मैंने खूब पढ़ें भी हैं और अपने जीवन में उनका अमल भी किया. मगर अचानक मेरी पत्नी के बदले हुए व्यवहार और उसके परिजनों द्वारा द्वेष भावना, बदला लेने की भावना, लालचवश किये झूठे केसों ने मुझे बहुत अधिक तोड़ दिया था. इस कारण मुझे बहुत गहरा मानसिक आघात लगा.जिसके कारण ही "डिप्रेशन" में चला गया था.लगभग सात-आठ साल वैवाहिक विवादों और चार-पांच साल तक कोर्ट-कचहरी के साथ पुलिस कार्यवाही हेतु चक्कर लगाते-लगाते शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से काफी टूट गया था. फ़िलहाल मुझे सम्भलने में थोडा समय जरुर लगेगा. 

मैंने भ्रष्ट न्याय व्यवस्था और अपनी गरीबी के चलते हुए अपने सवा चार वर्षीय बेटे से मिलने/देखने का अधिकार खोया है, क्योंकि मेरे पास बड़े-बड़े वकीलों और बड़ी-बड़ी अदालतों में केस डालने की फ़ीस नहीं है और लीगल सैल से मिले सरकारी वकीलों की कार्यशैली के तो कहने ही क्या है ? यदि उनको पैसे दो तो काम करेंगे, नहीं तो आपका केस ही खराब कर देंगे या धमकी देते हैं और केस में पेश नहीं होते या जबाब ही पेश नहीं करते हैं. इनकी शिकायत करो तो जाँच अधिकारी उनसे पैसे खाकर या दबाब में आकर पीड़ित का ही शोषण करते हैं. यह मेरे निजी अनुभव रहे हैं. यदि आप इससे ज्यादा कोई जानकारी चाहते हैं तब आप मेरे ब्लॉग www.sach-ka-saamana.blogspot.in "सच का सामना" (आत्मकथा) को विस्तार से पढ़े.  भ्रष्ट व अंधी-बहरी न्याय व्यवस्था का भुक्तभोगी और पत्रकार होने के कारण से आम-आदमी की समस्याओं से पूरी तरह से अवगत हूँ. जिसकी विस्तार से मिलकर चर्चा की जा सकती है. इस लिंक पर क्लिक करके मेरी कुछ बातें और वहाँ आई सभी टिप्पणियाँ भी पढ़ें. https://www.facebook.com/photo.php?fbid=480566391975786&set=a.202187633146998.49402.100000672892387&type=3&theater 
श्रीमान जी, फ़िलहाल मैं तलाकशुदा हूँ मगर अपनी 79 वर्षीय बजुर्ग माँ के साथ रहता हूँ. कवि मुनव्वर राणा ने क्या खूब कहा है कि- बड़े भाई के हिस्से में घर आया, बीच वाले के हिस्से में दुकान आई, मैं सबसे छोटा था, इसलिए मेरे हिस्से में "माँ" आई. बस उसी अपनी "माँ" की सेवा करने के बाद बचे हुए समय में लेखन के माध्यम से देश और समाज सेवा में अपना योगदान देता हूँ. मेरा पेशा पत्रकारिता के कारण आपके गुरु श्री अन्ना हजारे से बस थोड़ी-सी अधिक वस्तुओं का मेरे पास संग्रह है. जैसे-कैमरा, कम्प्यूटर, प्रिंटर, मेज-कुर्सी, पुस्तकें और पत्र-पत्रिका आदि है. हाँ, मुझे यह स्वीकार करते हुए कोई संकोच नहीं हो रहा है कि मैं किसी को थप्पड़ तो नहीं मार सकता हूँ, लेकिन लेखनी से देशहित में आग उगलने का कार्य बेखुबी कर सकता हूँ और अपने नुकीले पैने शब्दों के लिए फांसी का फंदा चूमने की हिम्मत रखता हूँ. मेरे मन के भाव एक छोटी-सी मेरी रचना से समझने का प्रयास करें. 
 
 "तुम अघोषित युध्द लड़ते हो"
तुम जब-जब, अख़बार पढ़ते हो,
एक अघोषित-सा युध्द लड़ते हो,
असत्य से सत्य के लिए,
अन्याय से न्याय के लिए,
भ्रष्टाचार और अत्याचार के खिलाफ,
 युध्द.....महायुध्द......उनसे.......
जो संख्या में मुट्ठी भर है,
मगर अकूत दौलत के स्वामी है,
और क्रूर, ताकतवर हैं,
उनके दिमाग में धूर्तता है, छल है
उनके पास कानून, सत्ता का हथियार है,
और वो हर हालत में, हमें दबाने, कुचलने,
खत्म करने को तैयार है,
ऐसे में अपने अस्तित्व को
कायम रखने के लिए
कुछ तो करना होगा,
लिखें, पैने, नुकीले शब्द बाणों से,
हमें यह युध्द लड़ना होगा,
और.......इस महासंग्राम में,
मैं भी कलम का सिपाही बनकर,
अपना सबकुछ न्यौछावर करने आया हूँ
"जीवन का लक्ष्य" के नाम से जलते,
सुलगते शब्दों का हथियार
अख़बार लाया हूँ
मेरा एक ही जीवन का लक्ष्य,
असत्य का खंडन, पर्दाफाश.....
न्याय की स्थापना, सत्य का प्रचार,
रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का
पर्दाफाश करते हुए सनसनीखेज समाचार
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है
हमें मिलता रहेगा,
जागरूक पाठकगण का सहयोग और प्यार.
 श्रीमान जी, मैं अपने शरीर पर चिथड़े/फटे-पुराने कपड़े पहन सकता हूँ और मखमली कपड़े या भोग-विलास की वस्तुओं के लिए किसी से बेईमानी करके या धोखा देकर उससे ठगी नहीं कर सकता हूँ. खाली हाथ आया था और खाली हाथ ही जाऊंगा फिर क्यों ऐसी चीज के लिए किसी को दुःख पहुंचाऊ जो मेरे साथ जानी नहीं है. मेरे साथ मेरे कर्म जायेंगे, इसलिए कर्मों की दौलत खूब कमाने का प्रयास करता हूँ.  किसी ने क्या खूब कहा है कि "दुखी व्यक्ति सुखी हो सकता है मगर दुःख देने वाला व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकता है". कुछ लोग मौत के डर से अनजान लोगों से नहीं मिलते हैं. मैं खूब मिलता हूँ क्योंकि हर इंसान का दूसरे इंसान से बेशक कोई रिश्ता न हो मगर "इंसानियत" का रिश्ता तो होता ही है. जो सब रिश्तों से बड़ा रिश्ता होता है. वैसे कई बार अनजान लोगों में ऐसे व्यक्ति भी मिल जाते है. जो जिंदगी के हर मोड़ पर एक सच्चे दोस्त व मददगार के रूप में पहचाने जाते हैं. मैं आज पैसों का फ़कीर हूँ. मेरे पास अच्छे संस्कारों और विचारों की बहुत दौलत है. मगर भौतिकवादिता दुनियाँ में आज इनका मोल कम हो गया है. लेकिन मोह-माया की दुनियाँ से दूर उस दूसरी दुनियाँ में इसका मोल "अनमोल" है.
 श्रीमान जी, मैंने आज तक कभी किसी व्यक्ति को धमकी देकर या गरीब को पत्रकार का रोब दिखाकर सताया नहीं है. आप की पार्टी के भी आज हर व्यक्ति / कार्यकर्त्ता से यह उम्मीद करता हूँ कि वो पहले अपने भाई-बहनों,  परिवार के साथ ही आस-पड़ोस और समाज से अपने अच्छे संबंध बनाकर रखे. फिर पार्टी में आकार पूरे देश के नागरिकों से अच्छे संबंध कायम करते हुए एकता और अखंडता के सूत्र में सबको बांधकर देश को उन्नति की ओर ले जाने के लिए प्रयास करें.
श्रीमान जी, मुझे देशभक्त, सिरफिरा पत्रकार, हिंदीप्रेमी और पत्रकारिता के क्षेत्र में सिरफिरा प्रेसरिपोर्टर के नाम से पहचाना जाता है. अन्याय का विरोध करना और अपने अधिकारों हेतु जान की बाज़ी तक लगा देना. हास्य-व्यंग्य, साहित्य, लघुकथा-कहानी-ग़ज़ल-कवितायों का संग्रह, कानून की जानकारी वाली और पत्रकारिता का ज्ञान देने वाली किताबों का अध्ययन, लेखन, खोजबीन और समस्याग्रस्त लोगों की मदद करना ही मेरे शौक है. एक सच्चा, ईमानदार, स्वाभिमानी और मेहनती इंसान के रूप में मेरी एक पहचान है. मै अपने क्षेत्र दिल्ली के उत्तमनगर से चुनाव चिन्ह "कैमरा" पर निर्दलीय प्रत्याक्षी के रूप में तीन चुनाव लड़ चुका हूँ. दिल्ली नगर निगम 2007 और 2012, वार्ड न.127 व 128 के साथ ही उत्तमनगर विधानसभा 2008 के तीनों चुनाव में बगैर किसी को दारू पिलाये ही मात्र अपनी अच्छी विचारधारा से काफी अच्छे वोट हासिल किये थें. मेरी फर्म-"शकुंतला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन" परिवार द्वारा प्रकाशित पत्र-पत्रिकाएँ :- जीवन का लक्ष्य (पाक्षिक), शकुंतला टाइम्स (मासिक), शकुंतला सर्वधर्म संजोग (मासिक), शकुंतला के सत्यवचन (साप्ताहिक), उत्तम बाज़ार (त्रैमासिक) है और "शकुंतला एडवरटाईजिंग एजेंसी" द्वारा सभी पत्र-पत्रिकाओं की विज्ञापन बुकिंग होती है.
 श्रीमान जी, यदि मुझे आपकी पार्टी की तरफ से उम्मीदवार बनाया जाता है तो इसका आपको एक फायदा यह होगा कि कोई मेरी हत्या तो करवा सकता है लेकिन मुझे कोई धमकी देकर, दबाब बनाकर, लालच देकर या डराकर चुनाव मैदान से नहीं हटा नहीं सकता है, क्योंकि मैं मौत से नहीं डरता हूँ. अपनी मौत से भी देरी से आने का कारण पूछने की हिम्मत रखता हूँ. थोडा गौर कीजिये :- "मौत ने पूछा कि-मैं आऊँगी तो स्वागत करोंगे कैसे ! मैंने कहा कि-राह में फूल बिछाकर पूछूँगा आने में देर हुई इतनी कैसे" !!
 श्रीमान जी, मेरा मानना है कि-धन के लिए जीवन नहीं किन्तु जीवन के लिए धन है. मुझे धन से अधिक मोह भी नहीं है. अगर मैं धन के लिए अपनी पत्रकारिता का प्रयोग करता. तब आज करोड़पति होता, मगर मुझे आज अपनी गरीबी पर संतोष है. मैं देश व समाजहित में अच्छे कार्य करके अपने जीवन की सार्थकता साबित करना चाहता हूँ और शायद इससे कुछ अन्य लोग भी प्रेरणा लेकर देश व समाजहित में अच्छे कार्य करें. मैं पहले भी कहता आया हूँ और आज फिर से कह रहा हूँ कि-मुझे मरना मंजूर है,बिकना मंजूर नहीं. जो मुझे खरीद सकें, वो चांदी के कागज अब तक बनें नहीं. मेरा बस यह कहना है कि-आप आये हो, एक दिन लौटना भी होगा. फिर क्यों नहीं तुम ऐसा करो कि तुम्हारे अच्छे कर्मों के कारण तुम्हें पूरी दुनिया हमेशा याद रखें. धन-दौलत कमाना कोई बड़ी बात नहीं, पुण्य कर्म कमाना ही बड़ी बात है. थोडा गौर कीजिये :-
"खुदा ने पूछा कि-बोल "सिरफिरे" कैसी चाहता है अपनी मौत ! मैंने कहा कि-दुश्मन* की भी आँखें झलक आये ऐसी चाहता हूँ अपनी मौत" !! *क्योंकि हर मौत पर अपने रिश्तेदार तो रोते ही है.लेकिन मौत का मजा तब आता है. जब मौत पर दुश्मन भी रोता है.
श्रीमान जी, मैं खुद को शोषण की भट्टी में झोंककर समाचार प्राप्त करने के लिए जलता हूँ. फिर उस पर अपने लिए और दूसरों के लिए महरम हेतु इस कार्य को लेखनी से अंजाम देता हूँ. आपका यह नाचीज़ उम्मीदवार समाजहित में लेखन का कार्य करता है और कभी-कभी लेख की सच्चाई के लिए रंग-रूप बदलकर अनुभव प्राप्त करना पड़ता है. तब जाकर लेख का विषय पूरा होता है. इसलिए सच्चे पत्रकारों के लिए कहा जाता है कि रोज पैदा होते हैं और रोज मरते हैं. बाकी आप अंपने विचारों से हमारे मस्तिष्क में ज्ञानरूपी ज्योत का प्रकाश करें. मेरा सोचना है कि "गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे" और "ईमानदारी सर्वश्रेष्‍ठ नीति है, अभ्‍यास परिपूर्ण बनाता है. प्रत्येक व्यक्ति अपना भाग्य ख़ुद बनाता है. सादगी ही सर्वश्रेष्ठ दुनियादारी है"
 श्रीमान जी, अपने बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद उनका यह कहना है कि-आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. मुझे यह नहीं पता कितना सच है, मगर अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.  क्या पत्रकार केवल समाचार बेचने वाला है? नहीं. वह सिर भी बेचता है और संघर्ष भी करता है. उसके जिम्मे कर्त्तव्य लगाया गया है कि-वह अत्याचारी के अत्याचारों के विरुध्द आवाज उठाये. एक सच्चे और ईमानदार पत्रकार का कर्त्तव्य हैं, प्रजा के दुःख दूर करना, सरकार के अन्याय के विरुध्द आवाज उठाना, उसे सही परामर्श देना और वह न माने तो उसके विरुध्द संघर्ष करना. वह यह कर्त्तव्य नहीं निभाता है तो वह भी आम दुकानों की तरह एक दुकान है किसी ने सब्जी बेच ली और किसी ने खबर.  थोडा गौर कीजिये :- "इस जिंदगी के सफर में हम अकेले ही चलें हैं ! देखना है कितने लोग मिलते हैं और कितने बिछड़ते है" !!

श्रीमान जी, एक तुच्छ से जीव का क्या जीवन परिचय होगा ? लेकिन फिर भी मेरे अपने शब्दों में खुद को एक बहुत भावुक (संवेदनशील) इंसान मानता हूँ. जिसका दिल दूसरों की मदद करने के लिए धड़कता है. यदि हम मनुष्य जीवन पाकर अपने माता-पिता की सेवा करने के साथ ही अपनी भारत माँ की सेवा करते हुए हमारे प्राण निकले. इससे बड़ा किसी का क्या जीवन परिचय होगा ? मेरा उपरोक्त जीवन परिचय मेरे चुनाव(पार्षद का) लड़ने के दौरान मेरे दोस्तों द्वारा लिखा था. जो नीचे लिखें लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता हैं.  https://www.facebook.com/notes/रमेश-कुमार-निर्भीक/मेरा-रमेश-कुमार-जैन-जीवन-परिचय/530469960336979 

दोस्तों, जब मैंने मार्च-2012 में उत्तमनगर विधानसभा के बिंदापुर,वार्ड नं. 128 से दिल्ली नगर निगम के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याक्षी के रूप में चुनाव चिन्ह "कैमरा" से "निगम पार्षद" के लिए चुनाव लड़ा था. तब निम्नलिखित घोषणा पत्र बनाया था. आप एक बार सभी घोषणाएँ जरुर पढ़ें. https://www.facebook.com/notes/रमेश-कुमार-निर्भीक/यह-था-मेरा-चुनावी-घोषणा-पत्र/546805915370050

दोस्तों, जब मैंने पिछले साल मार्च 2012 में दिल्ली नगर निगम के बिंदापुर वार्ड (128) से चुनाव लड़ा था. तब उपरोक्त लेख मुख्य पेज पर लिखा था. https://www.facebook.com/notes/रमेश-कुमार-निर्भीक/आप-मुझे-वोट-दो-मैं-तुम्हारे-अधिकारों-के-लिए-अपना-खून-बहा-दूंगा-/546807408703234

दोस्तों, जब मैंने मार्च-2012 में उत्तमनगर विधानसभा के बिंदापुर,वार्ड नं. 128 से दिल्ली नगर निगम के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याक्षी के रूप में चुनाव चिन्ह "कैमरा" के लिए अपना फार्म भरा था तब अपनी संपत्ति की घोषणा की थी. जिसको चुनाव आयोग की वेबसाइट www.ecodelhi.gov.in पर देखा जा सकता है. यहाँ पर क्लिक करके मेरी संपत्ति देखें- http://www.delhi.gov.in/wps/wcm/connect/doit_dsec/Delhi+State+Election+Commission/Our+Services/Affidavit+2012/South+Delhi/Ward+128-+Binda+pur/
 
श्रीमान जी, समय की परत ने मासूमित से एक जिम्मेदार इंसान बनाने में बहुत मदद की. समय के साथ-साथ चेहरा बदला, शौक बदले, कार्यशैली बदली, रुढ़िवादी विचारों ने साथ छोड़ा, नए विचारों का आगमन हुआ. मैट्रिक कक्षा से लेकर अब तक के मेरे कुछ पुराने चित्रों का यहाँ नीचे लिखें लिंक पर क्लिक करके आप भी अवलोकन करें. https://www.facebook.com/media/set/?set=a.470092399689852.111792.100000672892387&type=3&l=54f7fc3cda

श्रीमान जी, उत्तमनगर में और फेसबुक आदि पर आपकी पार्टी की यह अफ़वाह भी गर्म है कि जो आपकी पार्टी का अपने क्षेत्र से "सक्रिय कार्यकर्त्ता"(यानि जिसने आपकी पार्टी के बिजली-पानी बिल के आंदोलन में फार्म नहीं भरवाएं होंगे या सर्वे नहीं किया हो या आपकी हर रैली में नहीं गया हो) नहीं होगा उसको टिकट नहीं दिया जाएगा और टिकट देने का निर्णय तो पहले ही हो चुका है एवं उम्मीदवारों के फार्म मंगवाने की प्रक्रिया तो केवल पब्लिक (आम आदमी) को दिखाने मात्र के लिए है. यदि ऐसा सब कुछ है तो भी मुझे कोई चिंता नहीं है कि आप मुझे टिकट नहीं देंगे. आप यह देखें कि इतना सब जानकर भी मुझमें कितनी हिम्मत, हौंसला और निडरता होने के साथ ही मैं कितना साहसी हूँ कि आपके पास अपने उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव भेज रहा हूँ. हाँ, मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं उत्तमनगर के क्षेत्र से आपकी सूची में "सक्रिय सदस्य" के रूप में दर्ज नहीं हूँ और ना मैंने आपकी पार्टी के बिजली-पानी बिल के आंदोलन में फार्म भरवाएं, ना मैंने सर्वे किया है और ना मैं आपकी हर रैली में गया हूँ. यदि आप ने "सक्रिय कार्यकर्त्ता" बनने का मापदंड बना रखा है तब मुझे उससे अवगत करवाए. लेकिन मैंने श्री अन्ना हजारे जी के अप्रैल-2011 के आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के साथ ही अपने ब्लॉग आदि पर काफी कुछ लिखा (जिनके कुछ लिंक जो याद है वो यह http://sirfiraa.blogspot.in/2011/06/blog-post.html, http://rksirfiraa.blogspot.in/2012/07/blog-post.html है) था. जो आज तक वो पोस्ट मेरे ब्लॉग पर सबसे ज्यादा देखी गई है. जिसकी आप फोटो आदि गूगल पर Ramesh Kumar Sirfiraa सर्च करके Images में जाकर देख सकते हैं.

श्रीमान जी, आपको कोरियर से पत्र भेजने के साथ ही कई ईमेल आदि भी भेजी थीं. जिनका नैतिकता के आधार पर आज तक मुझे कोई जबाब भी प्राप्त नहीं हुआ है. आपके द्वारा श्री अन्ना हजारे जी से अलग होकर "पार्टी" गठन करने के बाद भी आपको ईमेल आदि के साथ ही फेसबुक पर आपके लिए और आपकी पार्टी के लिए सुझाव आदि भी भेजें. उनका भी नैतिकता के आधार पर आज तक मुझे कोई जबाब प्राप्त नहीं हुआ है. लेकिन आज भी यदि उत्तमनगर विधानसभा में आपकी पार्टी के कोई भी कार्यक्रम होने की सूचना मिलती हैं तो उस कार्यक्रम में जाता हूँ और अपनी पत्रकारिता का फर्ज अपनी नैतिक जिम्मेदारी से निभाता हूँ. 

इसका स्पष्ट प्रमाण मेरी फेसबुक आई डी https://www.facebook.com/sirfiraa की फोटो एल्बम में देखा जा सकता हैं. फ़िलहाल में मैंने आपको और आपके कुछ कार्यकर्ताओं को  6 मार्च को फेसबुक पर और 8 अप्रैल 2013 को ईमेल से एक निम्नलिखित सुझाव भेजा था.
  आम आदमी पार्टी के संयोजक श्री अरविन्द केजरीवाल को एक छोटा-सा सुझाव.
 श्री अरविन्द केजरीवाल जी, आप "आम आदमी पार्टी" की वेबसाइट(http://AamAadmiParty.org/) को हिंदी में भी बनाकर सबसे पहले देश के प्रति ईमानदारी दिखाते हुए "राष्ट्रधर्म" निभाए. हम अंग्रेजों के गुलाम नहीं है. फिर जब आप एक आम आदमी की बात करें तो उसको अंग्रेजी नहीं आती है. आपकी पार्टी के संविधान के अनुसार ही आप दिल्ली विधानसभा के लिए अपने उम्मीदवार जून के अंत तक जरुर घोषित कर दें. इससे उस (उम्मीदवार) की जनता के अंदर चुनाव तक एक अच्छी पहचान बन जायेगी और जनता को उसके विचारों और उसकी छवि का अवलोकन करने का समय मिल जायेगा. आप अपनी पार्टी के अपने उम्मीदवार साफ छवि के गरीब से गरीब आम आदमी को बनाये. आप भी अन्य पार्टियों की तरह से पार्टी के कोष में ज्यादा फंड देने वाले को अपना उम्मीदवार ना बनाये. बल्कि ऐसे उम्मीदवार को उम्मीदवार बनाये जो देश के लिए जीना और मरना चाहता हो और बड़े से बड़ा त्याग, बलिदान करने से झिझकता नहीं हो. हमारा यह लिंक भी देखें- https://www.facebook.com/photo.php?fbid=474269019294479&set=a.204952319559485.54351.100001341566208&type=3&theater और आप अपने यहाँ से हिंदी में ईमेल भी भेजें और अपने फॉर्म में लिखें कि आपको हिंदी में या अंग्रेजी में या अन्य किसी क्षेत्रीय भाषा में ईमेल या पत्र व्यवहार चाहिए.  मैं आपसे पूछता हूँ कि क्या आजादी की लड़ाई में कलम के सिपाहियों ने कोई योगदान नहीं दिया था ? मैं तो राजनीति में ही आना नहीं चाहता था लेकिन "नायक" फिल्म से प्रभावित होकर विचार किया कि यदि राजनीति से अच्छे लोग दूर भागेंगे तो एक दिन आजकल के नेता हमारे देश को अपनी कार्यशैली द्वारा फिर से गुलाम बना देंगे. अब मैं राजनीति में आकर यह दिखाना चाहता हूँ कि राजनीति में आने के बाद कैसे अच्छी सेवा की जा सकती है ? 
 श्रीमान जी, हमारे देश के स्वार्थी नेता "राज-करने की नीति से कार्य करते हैं" और मेरे विचार में "राजनीति" सेवा करने का मंच है. इसके अलावा मैं किसी जीव की हत्या करके उसका मांस परोसकर या मांसाहारी भोजन करवाकर या पैसे का लालच देकर और किसी व्यक्ति कहूँ या "मतदाता" को शराब पिलाकर यानि उसे नशे में करके अथार्त उसकी सोचने-समझने की शक्ति छीनकर उसका "मत" हासिल नहीं करना चाहता हूँ. एक मतदाता की नशे की हालत में लिया गया "मत" कायरता है और मैं मानता हूँ कि जब आप उससे उसके पूरे होशो-हवास में अपनी विचारधारा से उसको जागरूक करते हुए "मत" प्राप्त करें तब ही बहादुरी है. अगर मैंने किसी को पैसे का लालच देकर या शराब पिलाकर और मांसाहारी भोजन करवाकर जो "जीत" हासिल की. वो जीत कोई काम की नहीं है. उससे ज्यादा तो मुझे अपनी वो "हार" ज्यादा अच्छी लगती है. जो मैंने अपने सिद्धांतों की वजह से प्राप्त की. 
"भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी है"
भारत माता फिर मांग रही आजादी
कल अंग्रेजों की जंजीरों से थी जकड़ी
आज भ्रष्टाचारियों की जंजीरों से है जकड़ी
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी है
चलो उठो नौजवानों! सर पर बांध लो कफन
भारत माता को दिए बगैर क़ुर्बानी के
इन भ्रष्टाचारियों से नहीं मिलेगी आजादी
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी है
कल थें हम अंग्रेजों के गुलाम
आज हैं भ्रष्टाचारियों के मोहताज
नहीं मिलता है अब गरीब को इन्साफ
बिका प्रशासन, नाकाम हुई कार्यप्रणाली
बिगड़ी व्यवस्था, भ्रष्ट हुई मीडिया भी
अब जजों के भी लगने लगे मोल
कोई कम में बिका, कोई ज्यादा में
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी है
चलो उठो नौजवानों! फिर बढ़ालो अपने कदम
फिर से कब पैदा होंगे चन्द्रशेखर आजाद,
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, लालबहादुर शास्त्री
महात्मा गाँधी आदि जैसे नौजवान
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी है
आओ फिर से भरे दिल में जज्बा देशप्रेम का,
चलो उठो नौजवानों! हो जाओ तैयार!
भारत माता की आजादी के लिए
अपना खून बहाने को,
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी है
भौतिक सुखों के लालच में हुई
आज कलम भी बेईमान है
स्वार्थी राजनीतिज्ञों ने स्विस के बैंक भर दिए
हमारे देश की जनता की जेब खाली है
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी है
कोमनवेल्थ गेम्स के नाम पर लाखों-अरबों लुटा दिए
आज आम आदमी मंहगाई से बेहाल है
राजनीतिज्ञों और पूंजीपतियों के साथ
ही मीडिया के गंठ्बधन के भी
खुले अब यह राज है.
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी हैं
अब फाँसी का फंदा खुद बढ़-चढ़कर
चूमने वाले ऐसे नौजवान कब पैदा होंगे
कर रही भारत माता इंतज़ार है.
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी हैं
आओ नौजवानों ! एक नया संकल्प लें
या हम मिट जायेंगे,
या भ्रष्टाचारियों को मिटा देंगे
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी हैं
चलो उठो नौजवानों, देने अपनी कुर्बानी
भरकर दिल में देशप्रेम का जज्बा
अब भ्रष्टाचारियों को बतला दें
हम भारत माँ के ऐसे बेटे हैं
जो अपनी कुर्बानी देने से,
अब नहीं झिझकेंगे.
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी हैं
 श्रीमान जी, वर्तमान समय में जितना याद था, उतना पूरी ईमानदारी से अपनी लेखनी द्वारा सच लिखा है. अब आपका अपना विवेक है कि मुझे उत्तमनगर विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाये या न बनाये. मगर मुझे आपसे झूठ बोलकर "टिकट" नहीं लेना है.
 एक विशेष बात- मेरे सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार आपकी पार्टी के उत्तमनगर विधानसभा क्षेत्र  के कुछ अनुभवी कार्यकर्त्ता आपसी गुटबाजी और कुछ अन्य कारणों से नाराज हो गए है. यदि आप उनकी मेरे साथ कुछ देर की वार्तालाप करवा दें. तब अपनी विचारधारा के माध्यम से मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि उनको दुबारा आपके साथ जोड़ दिया जाये.
नोट:-यदि आपने उम्मीदवारों के लिए कोई अलग से ईमेल उपलब्ध करवाई होती तो मेरे उपरोक्त पत्र में दिए लिंक केवल क्लिक करके खोलकर ही पढ़ें जा सकते थें. इसलिए कागज पर लिंक होने के कारण थोड़ी-सी असुविधा हो सकती है. उसके लिए मुझे खेद है. उपरोक्त पत्र को आप मेरे ब्लॉग  www.sirfiraa.blogspot.inwww.kaimra.blogspot.in पर लिंकों सहित पढ़ सकते हैं.   
देश और समाजहित में जनहित संदेश:- समय की मांग,हिंदी में काम.हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है.हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें. हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. राष्ट्र के प्रति हर व्यक्ति का पहला धर्म है अपने राष्ट्र की राष्ट्रभाषा का सम्मान करना. नेत्रदान महादान आज ही करें. आपके द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है. 

पाठकों ! मैंने जो फार्म "आम आदमी पार्टी" को उत्तम नगर विधानसभा की "टिकट" हेतु भरकर भेजा उसको आप यहाँ पर क्लिक करके देख सकते हैं. यहाँ पर भरे हुए फार्म के सभी पेज डालने का मात्र उद्देश्य इतना है कि अन्य व्यक्ति भी जानकारी प्राप्त करें. अपना फार्म भरे और व्यवस्था बदलने के लिए अच्छे व्यक्ति आगे आये.

6 टिप्‍पणियां:

  1. रमेश जी, आप ने सब कुछ ठीक लिखा है। आप की ईमानदारी पर किसी को कोई संदेह नहीं हो सकता। लेकिन इत्ती लंबी चिट्ठी कोई पढ़ेगा भी उस में मुझे संदेह है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. गुरुदेव जी, प्रणाम! मुझे इसकी चिंता नहीं है, कोई इत्ती लम्बी चिट्ठी पढ़ेगा या नहीं. यदि "आम आदमी पार्टी" को सच में राजनीति में "अच्छे व्यक्ति" लाने होंगे तो सब पढ़ना होगा और अपनी प्रक्रिया में पारदर्शिता तो लानी होगी. आप उनका फार्म भी देखें उसमें उनहोने ऐसी कई जानकारी मांगी है, जो मेरे विचार उपयोगी नहीं है. जैसे -क्या आपने "स्वराज" पुस्तक पढ़ी या नहीं आदि..

      हटाएं
  2. जोरदार घोषणा पत्र ..ऐसी ही निर्भीक लोगों की सत्ता में सख्त जरुरत है लेकिन संभलकर भैया जी ....हमें तो आपकी आक्रामक शैली बहुत जोरदार लगी है ....शुभकामनायें ..

    जवाब देंहटाएं
  3. न्याय व्यवस्था की त्रासदी है कि न्याय पाना भी इतना खर्चीला है कि गरीब आदमी अपने हिस्से का लाखों का न्याय भी उधार छोड़ता चलता है। खैर, जब टिकट मिले तो बताइये, यह भी अंदाज़ लग जाएगा कि कौन पार्टी कितने पानी मे है।

    जवाब देंहटाएं
  4. बंधू कुछ ज्यादा लम्बी चिट्ठी हो गई | थोडा एडिट कीजिये | जय हो

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  5. आपने अपने गुरु का सुझाव भी नज़रंदाज़ कर दिया, सिरफिरा जी
    :)
    अच्छा लगा आपने सिरफिरा नाम हटा दिया !
    मंगलकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं

अपने बहूमूल्य सुझाव व शिकायतें अवश्य भेजकर मेरा मार्गदर्शन करें. आप हमारी या हमारे ब्लोगों की आलोचनात्मक टिप्पणी करके हमारा मार्गदर्शन करें और हम आपकी आलोचनात्मक टिप्पणी का दिल की गहराईयों से स्वागत करने के साथ ही प्रकाशित करने का आपसे वादा करते हैं. आपको अपने विचारों की अभिव्यक्ति की पूरी स्वतंत्रता है. लेकिन आप सभी पाठकों और दोस्तों से हमारी विनम्र अनुरोध के साथ ही इच्छा हैं कि-आप अपनी टिप्पणियों में गुप्त अंगों का नाम लेते हुए और अपशब्दों का प्रयोग करते हुए टिप्पणी ना करें. मैं ऐसी टिप्पणियों को प्रकाशित नहीं करूँगा. आप स्वस्थ मानसिकता का परिचय देते हुए तर्क-वितर्क करते हुए हिंदी में टिप्पणी करें.

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यह है मेरे सच्चे हितेषी (इनको मेरी आलोचना करने के लिए धन्यवाद देता हूँ और लगातार आलोचना करते रहेंगे, ऐसी उम्मीद करता हूँ)
पाठकों और दोस्तों मुझसे एक छोटी-सी गलती हुई है.जिसकी सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगता हूँ. अधिक जानकारी के लिए "भारतीय ब्लॉग समाचार" पर जाएँ और थोड़ा-सा ध्यान इसी गलती को लेकर मेरा नजरिया दो दिन तक "सिरफिरा-आजाद पंछी" पर देखें.

आदरणीय शिखा कौशिक जी, मुझे जानकारी नहीं थीं कि सुश्री शालिनी कौशिक जी, अविवाहित है. यह सब जानकारी के अभाव में और भूलवश ही हुआ.क्योकि लगभग सभी ने आधी-अधूरी जानकारी अपने ब्लोगों पर डाल रखी है. फिर गलती तो गलती होती है.भूलवश "श्रीमती" के लिखने किसी प्रकार से उनके दिल को कोई ठेस लगी हो और किसी भी प्रकार से आहत हुई हो. इसके लिए मुझे खेद है.मुआवजा नहीं देने के लिए है.अगर कहो तो एक जैन धर्म का व्रत 3 अगस्त का उनके नाम से कर दूँ. इस अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.

मेरे बड़े भाई श्री हरीश सिंह जी, आप अगर चाहते थें कि-मैं प्रचारक पद के लिए उपयुक्त हूँ और मैं यह दायित्व आप ग्रहण कर लूँ तब आपको मेरी पोस्ट नहीं निकालनी चाहिए थी और उसके नीचे ही टिप्पणी के रूप में या ईमेल और फोन करके बताते.यह व्यक्तिगत रूप से का क्या चक्कर है. आपको मेरा दायित्व सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए था.जो कहा था उस पर आज भी कायम और अटल हूँ.मैंने "थूककर चाटना नहीं सीखा है.मेरा नाम जल्दी से जल्दी "सहयोगी" की सूची में से हटा दिया जाए.जो कह दिया उसको पत्थर की लकीर बना दिया.अगर आप चाहे तो मेरी यह टिप्पणी क्या सारी हटा सकते है.ब्लॉग या अखबार के मलिक के उपर होता है.वो न्याय की बात प्रिंट करता है या अन्याय की. एक बार फिर भूलवश "श्रीमती" लिखने के लिए क्षमा चाहता हूँ.सिर्फ इसका उद्देश्य उनको सम्मान देना था.
कृपया ज्यादा जानकारी के लिए निम्न लिंक देखे. पूरी बात को समझने के लिए http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html,
गलती की सूचना मिलने पर हमारी प्रतिक्रिया: http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_4919.html

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