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सोमवार, दिसंबर 09, 2013

चुनाव चिन्ह "झाड़ू" और जलती हुई "बैटरी टॉर्च" से वोटर हुए कन्फ्यूज


नई दिल्ली : दिल्ली विधानसभा के कई विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव चिन्ह "झाड़ू" और जलती हुई "बैटरी टॉर्च" के कारण मतदाताओं में संशय की स्थिति बनी रही। कुछ वोटरों ने इसे चुनाव चिह्न "झाड़ू" समझकर गलती करने की बात भी कही है। उत्तम नगर, जनकपुरी, त्रिनगर, मुंडका, विश्वास नगर विधानसभा सहित कुल उनतीस सीटों पर वोटर्स को यह चुनाव चिह्न नजर आया। कई मतदाताओं ने माना झाड़ू और जलती टार्च के निशान में अंतर नहीं कर पाए. मतदाताओं को इस बात को लेकर काफी परेशानी हो रही थी कि कौन-सा किसका चुनाव निशान है। वैसे तो आम आदमी पार्टी के मतदाता काफी जागरूक थे, लेकिन कम पढ़े-लिखे और झुग्गी के मतदाताओं को काफी परेशानी हुई। हालांकि ज्यादातर जगहों पर झाड़ू और जलती हुई टॉर्च में चार-पांच तो कहीं-कहीं पर दो-तीन चुनाव निशानों का ऊपर-नीचे का अंतर था।


इस कारण से अनेक निर्दलियों को बिना प्रचार करें ही काफी फायदा मिला और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के उम्मीदवार को पीछे छोड़ते हुए अपनी-अपनी विधानसभा में चौथे, पांचवे, छठे, सातवें और नौवें स्थान प्राप्त किये. जहाँ एक ओर "आम आदमी पार्टी" के वोट प्रतिशत में फर्क आया. वहीँ दूसरी ओर जनकपुरी विधानसभा की सीट उसके हाथ आते-आते बच गई, क्योंकि वहाँ भाजपा के उम्मीदवार प्रो. जगदीश मुखी (42886) ने "आप" के उम्मीदवार राजेश ऋषि (40242) को केवल 2644 वोटों से ही हारा है. जबकि उनके कवरिंग उम्मीदवार संजय पुरी ने बिना किसी प्रकार का प्रचार किये ही 4332 वोट प्राप्त किये हैं. जिनका चुनाव चिन्ह जलती हुई "बैटरी टॉर्च" था. इसमें सबसे ज्यादा फायदा उत्तम नगर विधानसभा से निर्दलीय उम्मीदवार श्याम बाबू गुप्ता को हुआ, उन्हें 5272 वोट प्राप्त हुए थें और उनके द्वारा किये प्रचार ने भी बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. इस पर आम आदमी पार्टी के लोगों का कहना था कि यह चुनावी टोटके न तो भाजपा के काम आएंगे, न ही कांग्रेस के। उत्तम नगर विधानसभा में वोट डालने गए एक मतदाता ने बताया कि मिलते जुलते चुनाव चिह्न से खासतौर पर उन बुजुर्ग मतदाताओं के सामने थोड़ी परेशानी पेश आती है, जिन्हें न तो पढ़ना आता है और आंखें कमजोर होने के कारण चित्र पहचानने में परेशानी होती है। मिलते-जुलते चुनाव चिह्न के कारण आप के कुछ मतदाताओं से गलती होने की बात से इनकार नहीं किया जा सकता। आप सभी नीचे दी सूची देख सकते हैं.



विधानसभा नं. व नाम-उम्मीदवार का नाम- प्राप्त वोट =विधानसभा में स्थान 
  8.  मुंडका -                          राजकुमार परिहार               2912                                        5
14 शालीमार बाग-           जी.एल.खन्ना                3751                               4

16 त्रिनगर -                  धर्मेन्द्र कुमार राय            2313                               5

17 वजीरपुर-                 सुभाष चन्द्र सैनी             1008                                6
19 सदर बाज़ार-              जय प्रकाश                    2785                                5
20 चांदनी चौंक-             मौ. शाहजमा                  1461                                5
21 मटिया महल-           उमर फारुक                    1668                                5
25 मोती नगर-              संजीव गुप्ता                     2681                               4
27 राजौरी गार्डन-           राजेन्द्र                          2468                               5
28 हरिनगर-                 सतपाल सिंह                  4649                               4
30 जनकपुरी-                संजय पुरी                     4332                                4
32 उत्तम नगर-              श्याम बाबू गुप्ता               5272                                4
33 द्वारका-                    रजनीश कुमार झा           4398                                4
34 मटियाला-                सत्येन्द्र सिंह                  2718                                4
37 पालम-                     नीरज कुमार शर्मा          3631                                 5
43 मालवीय नगर-          किशोर                         2389                                 4
49 संगम विहार-            दशरथ चौहान                1500                                  6
51 कालकाजी-               धर्मेन्द्र कुमार                 3092                                 4
52 तुगलकाबाद-             शीशपाल                      1269                                   5
53 बदरपुर-                    ओमप्रकाश गुप्ता            1275                                   5
54 ओखला-                    संतोष कुमार                  737                                   9
55 त्रिलोकपुरी -              जगदीश प्रसाद               4175                                  5
58 लक्ष्मी नगर-              मोहम्मद नईम              3410                                  4
59 विश्वास नगर -            उषा सुरयान                 3221                                   4
60 कृष्णा नगर-               सहरुर                         2876                                   4
62 शाहदरा-                     अचल शर्मा                  2725                                   4
66 घोंडा-                         किरण पाल सिंह           1857                                   6
67 बाबरपुर-                    शागुफ्ता रानी               2744                                  7
69 मुस्तफाबाद-               ब्रिजेश चन्द्र शुक्ला         1740                                  6

शुक्रवार, नवंबर 29, 2013

एक अपील उत्तम नगर के मतदाताओं के नाम

सम्मानीय मतदाताओं, इस बार अपना अखबार "जीवन का लक्ष्य" आर्थिक कारणों से आप सब तक पहुंचाने में असमर्थ हूं लेकिन आप इस लिंक  www.sirfiraa.blogspot.in/2013/11/2013.html पर जाकर मेरा अखबार, मेरे विचार और घोषणा पत्र आदि पढ़ सकते हैं और इस लिंक www.ceodelhi.gov.in/WriteReadData/Affidavits/U05/SE/32/32Candidate.htm पर जाकर मेरी शिक्षा, आयु, व्यवसाय और संपत्ति आदि का ब्यौरा देख या डाऊनलोड कर सकते हैं। 
मेरा पूरा अखबार 'जीवन का लक्ष्य पढ़कर यदि आपकी आत्मा से मेरे लिए आवाज आये, तब ही मुझे वोट देना लेकिन अपना वोट जरूर डालें। आप चुनाव से संबंधित मेरे अन्य लेख और अन्य विषयों पर मेरी विचारधारा को मेरी फेसबुक आई डी www.facebook.com/sirfiraa & www.facebook.com/kaimara200 और ब्लोग्स www.rksirfiraa.blogspot.in, www.sirfiraa.blogspot.in, www.kaimra.blogspot.in आदि पर पढ़ सकते हैं और उत्तमनगर विधानसभा के नाम से पेज www.facebook.com/uttamnagarassembly पर अपनी समस्या रख सकते हैं व उस पेज पर मुझे बात करके अपनी समस्या के समाधान की सलाह ले सकते है। मेरा प्रयास रहेगा कि-वोटों और जाति-धर्म की राजनीति से ऊपर उठकर आपकी समस्या का जल्द से जल्द समाधान हो जायें। 
कोई भी पार्टी किसी गरीब को 'टिकट नहीं देती हैं, बल्कि धनवानों को टिकट देती हैं। ऐसी ही हकीकत देखने, जानने के लिए आप इस लिंक www.sirfiraa.blogspot.in/2013/05/blog-post.html को पढे़। जो पत्र(आवेदन) मैंने 'आम आदमी पार्टी को लिखें थें। स्वार्थी और धनवान व्यकित के साथ लोगों की भीड़ होती है। निस्वार्थी व्यक्ति  के पास त्याग भावना, अच्छा चरित्र, अच्छे संस्कार, उसकी ईमानदारी व योजनाएं, देश पर मर-मिटने का जज्बा, निडरता और उसकी हिम्मत साथ होती है। किसी ने सच ही कहा है कि ''आप जीते जी मरना सीख लो तो मृत्यु के भय से छूट जायेंगे।
  पूरी दुनियाँ पत्रकारों से बहुत उम्मीद करती हैं, क्या आप उत्तमनगर विधानसभा को 'उत्तम' बनाने और विकास करने के साथ ही उन्नति की ओर लेकर जाने में धर्म, जाति और दलों (पाटियों) से ऊपर उठकर मुझे अपनी वोट देना चाहेंगे? फिल्म 'नायक की कहानी को उत्तमनगर विधानसभा (जरूरत अनुसार) में हकीकत में बदलूंगा और उत्तमनगर विधानसभा को 'उत्तम' बनाऊंगा। अपना जीवन सार्वजनिक (24 घंटे सी.सी.टी.वी की नजरों में रहने को तैयार हूं।) जीऊंगा। जीतने पर न शादी करूंगा और न बच्चे पैदा करूंगा, सभी बच्चों को अपना बच्चा समझकर उनके हितों की रक्षा करूंगा। मुझे दौलत नहीं, दुआएं और पुण्य कर्म कमाने है। 
         क्या एक ईमानदार पत्रकार किसी जाति, धर्म का होता है? नहीं। वो जहाँ अन्याय हो रहा हो, वहाँ खड़ा होता है। क्या पत्रकार केवल समाचार बेचने वाला है? नहीं। वह सिर भी बेचता है और संघर्ष भी करता है। उसके जिम्मे कर्त्तव्य लगाया गया है कि वह अत्याचारी के अत्याचारों के विरूद्ध आवाज उठाए। एक सच्चे और ईमानदार पत्रकार का कर्त्तव्य हैं, प्रजा के दुख दूर करना, सरकार के अन्याय के विरूद्ध आवाज उठाना, उसे सही परामर्श देना और वह न माने तो उसके विरूद्ध संघर्ष करना। वह यह कर्त्तव्य नहीं निभाता है तो वह भी आम दुकानो की तरह एक दुकान है, किसी ने सब्जी बेच ली और किसी ने खबर।


-पत्रकार रमेश कुमार जैन उर्फ निर्भीक,

निवेदक: शकुंतला प्रेस ऑफ इंडिया प्रकाशन द्वारा प्रकाशित जीवन का लक्ष्य (पाक्षिक समाचार पत्र)



उस मलिक ने हमें इंसान बनाया था, हमने धर्म बना दिये।

न मैं हिन्दू हूं, न मुस्लिम,
न मैं सिक्ख हूं, न ईसाई
सब धर्मों से बढ़कर है इंसानियत, 
सेवा करना ही बस मेरा धर्म 

अगर आपको बिजली, पानी, रसोई गैस, राशन (गेहूँ व चावल) और क्षेत्र का विकास चाहिए तो नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, श्री लालबहादुर शास्त्री व महात्मा गांधी जैसे सिद्धांतों वाले निष्पक्ष, निडर, आजाद विचार, अपराध विरोधी, आपकी सेवा में हमेशा तत्पर कवि, लेखक एवं उत्तमनगर विधानसभा के निर्दलीय उम्मीदवार पत्रकार रमेश कुमार जैन उर्फ 'निर्भीक का चुनाव चिन्ह 'कैमरा' के सामने वाला बटन दबाकर विजयी बनायें।

चुनाव चिन्ह ''कैमरा के पूर्व प्रत्याशी (दिल्ली नगर निगम 2007 & 2012 में उत्तमनगर वार्ड नं. 127 व बिन्दापुर वार्ड नं. 128 और उत्तमनगर विधानसभा 2008) का देश, समाज व प्रशासन को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने के लिए नारा "आप मुझे वोट दो, मैं तुम्हारे अधिकारों के लिए अपना खून बहा दूंगा।" "भ्रष्टाचार मिटाओ, भारत बचाओ। तुम मेरा साथ दो, मैं तुम्हें समृद्ध भारत दूंगा।"

आशियाना :A-34-A, शीशराम पार्क,सामने-शिव मंदिर,उत्तम नगर,नई दिल्ली-59 फोन : 9910350461, 9868262751, 011-28563826 
E-mail: kaimara200@gmail.com, sirfiraa@gmail.com, rksirfiraa@gmail.com ,

गगन बेच देंगे, पवन बेच देंगे, चमन बेच देंगे, सुमन बेच देंगे। कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गये, वतन के मसीहा वतन बेच देंगे।।

बुराई पर अच्छाई की विजय के लिए अपनी वोट जरूर डालें।

सोमवार, मई 06, 2013

मैंने "आम आदमी पार्टी" से कहा कि-मुझे आपसे झूठ बोलकर "टिकट" नहीं लेना है

दोस्तों, मैंने "आम आदमी पार्टी" का उम्मीदवार चयन प्रक्रिया के तहत अपना फार्म भरकर भेजा है और उसके साथ अपना निम्नलिखित कवरिंग पत्र भेजा है. जिसमें मेरी संक्षिप्त विचारधारा के साथ थोडा सा जीवन परिचय देने का प्रयास किया है. आमने-सामने बैठने पर और उसकी विचारधारा से अवगत हुआ जा सकता है. लेकिन पत्र के माध्यम से अपनी विचारधारा से अवगत करवाने का प्रयास किया है. अब आप ही पढकर बताएँगे कि आम आदमी पार्टी के संयोजक श्री अरविन्द केजरीवाल तक अपनी विचारधारा कितने सही तरीके से पहुँचाने में कितना कामयाब हुआ हूँ या नहीं. अपनी विचारधारा के साथ अपने पत्र और आपके बीच में कोई बाधा न बनते हुए, फ़िलहाल अपनी लेखनी को यहीं पर विराम देता हूँ.
मिलें:-  श्री दिलीप पांडे (सचिव) चुनाव समिति
आम आदमी पार्टी
मुख्य कार्यालय:ए-119, ग्राऊंड फ्लोर, कौशाम्बी, गाजियाबाद-201010.
www. aamaadmiparty.org  Email id  :  info@aamaadmiparty.org
Helpline    :  9718500606 Facebook :  AamAadmiParty 
Twitter : @AamAadmiParty 





विषय:- उत्तम नगर विधानसभा उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव पत्र
स्क्रीनिंग कमेटी और श्री अरविन्द केजरीवाल जी,  

श्रीमान जी, मैं सबसे पहले आपको यहाँ एक बात साफ कर दूँ कि मुझे आपसे उत्तमनगर विधानसभा के उम्मीदवार के लिए "टिकट" झूठ बोलकर नहीं लेनी है. इसलिए मैंने अपने फार्म में अधिक से अधिक सही जानकारी देने का प्रयास किया है. मेरी ईमानदारी और सच्चाई के कारण यदि आप टिकट नहीं देते हैं तब मुझे कोई अफ़सोस नहीं होगा,  मगर आपसे झूठ बोलकर या गलत तथ्य देकर टिकट लेना मेरे "जीवन का लक्ष्य" नहीं है. झूठ बोलकर वो व्यक्ति टिकट लेगा, जिसको अपनी ईमानदारी और सच्चाई पर पूरा विश्वास नहीं होगा. माना कि सच्चाई की डगर पर चलना कठिन होता है. कहा जाता है कि-आसान कार्य तो सभी करते हैं, मगर मुश्किल कार्य कोई-कोई करता है. इसी सन्दर्भ में एक कहावत भी है कि-गिरते हैं मैदान-ए-जंग में शेर-ए-सवार, वो क्या खाक गिरेंगे, जो घुटनों के बल चलते हैं. आप की पार्टी (आम आदमी पार्टी) द्वारा विधानसभा उम्मीदवारों का विवरण प्राप्त करने के लिए प्रारूप (फार्म-ए) में यदि राज्य चुनाव आयोग के चुनाव उम्मीदवार के फार्म में शामिल कुछ प्रश्नों (कोलम) एवं प्रक्रिया को और जोड़ दिया जाता तो आपको हर विधानसभा क्षेत्र से आने वाले उम्मीदवारों के बारे में काफी अधिक जानकारी मिल सकती थी. चलिए अब जो हो गया है. उसको पीछे छोड़ते हुए अब आप पूरी दिल्ली के विधानसभा क्षेत्रों के लिए "अच्छे उम्मीदवारों" का चयन कर पाएँ. यहीं मेरी दिली तमन्ना है. आज अच्छे पदों हेतु केवल डिग्री या व्यक्ति के सामान्य ज्ञान की ही परीक्षा ली जाती है. आदमी में "इंसानियत"  है या नहीं. इस बात की परख नहीं की जाती है और इसका नतीजा अच्छा नहीं होता है. 
श्रीमान जी, जिस प्रकार लेखक मुंशी प्रेमचन्द की कहानी "परीक्षा" के पात्र बूढ़े जौहरी (पारखी) सरदार सुजान सिंह ने अपनी जिस सूझ-बुझ से रियासत के दीवान पद के लिए बुगलों (उम्मीदवारों) की भीड़ में से हंस (जो अपने विशिष्ट गुणों और सौंदर्य के आधार पर अलग होता है) यानि पंडित जानकीनाथ जैसे न्याय करने वाले ईमानदार, कर्त्तव्यनिष्ट उम्मीदवार का चयन कर लिया था. जिसके ह्रदय में साहस, आत्मबल और उदारता का वास था. ऐसा आदमी गरीबों को कभी नहीं सताएगा. उसका संकल्प दृढ़ है तो उसके चित्त को स्थिर रखेगा. वह किसी अवसर पर चाहे किसी से धोखा खा जाये. परन्तु दया और अपने धर्म से कभी पीछे नहीं हटेगा. उसी प्रकार आप और आपकी स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य यदि पूरी दिल्ली की विधानसभाओं के लिए "हंस" जैसे उम्मीदवारों का चयन कर पाए तो पूरी दिल्ली में आपकी पार्टी का राज हो सकता है. इस समय आप दो धारी तलवार की धार पर खड़े है. यदि आप की पार्टी ने किसी चमचागिरी या दबाब या लालचवश,  भेदभाव की नीति में उलझकर या धर्म या जाति समीकरण के आंकड़ों में उलझकर गलत व्यक्ति (बुगले) का चयन कर लिया तो आपको राष्ट्रीय स्तर पर काफी नुकसान होगा और आपकी छवि खराब होगी.  आपका सर्वप्रथम लक्ष्य अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझने वाला, दूरदृष्टि के साथ ही देश/समाज सेवा की भावना रखने वाले ईमानदार व्यक्ति (उम्मीदवार) का चयन करना ही होना चाहिए. जैसे अर्जुन को केवल मछली की आँख दिखाई देती थी. चुनाव में "हार" और "जीत" को इतने मायने न दें. बल्कि अपने आदर्शों और सिध्दांतों के साथ चुनाव मैदान में अपने उम्मीदवारों को उतारे. इससे आम आदमी प्रभावित होगा. बाकी जैसी आपकी मर्जी, क्योंकि आपकी पार्टी है. आप चाहे जैसे करें. यह आपके विवेक पर निर्भर है. 
श्रीमान जी, वर्तमान सरकार और विपक्ष के साथ ही सारे देश के आम आदमियों की निगाह आपकी तरफ है कि आप अपनी पार्टी के लिए कैसे-कैसे उम्मीदवारों का चयन करते हैं. यदि आप मात्र सत्ता पर कब्जा जमाने की अति महत्वकांक्षा चलते "हंस" (अच्छे उम्मीदवार) नहीं चुन पाएँ तो काफी लोगों की आपसे उम्मीदें टूट जायेंगी और यदि आप बिना सत्ता की भूख रखकर चुनाव मैदान में अच्छे उम्मीदवार(हंस) उतारने का उद्देश्य पूरा कर पाएँ तो आप एक अच्छे जौहरी बनकर अपना थाल मोतियों से भरा पायेंगे और आपके साथ जो आम आदमी सच में व्यवस्था बदलने के इच्छुक है, वो आपके साथ जुड जायेंगे. फ़िलहाल वो आपकी पार्टी की कार्यशैली पर अपनी गिध्द दृष्टि जमाए हुए है और देखना चाहते हैं कि आपकी कथनी और करनी में कहीं कोई अंतर तो नहीं आ रहा है. इसलिए आपको उम्मीदवार(हंस) चयन प्रक्रिया में अधिक से अधिक पारदर्शिता का उदाहरण पेश करते हुए एक-एक कदम फूंक-फूंककर रखना होगा. आपका उठाया एक गलत कदम देश के भविष्य को अंधकार में डूबा देगा.
श्री अरविन्द केजरीवाल जी, श्री अन्ना हजारे जी द्वारा किये प्रथम आंदोलन अप्रैल 2011 से आपको देश का बच्चा-बच्चा जानने लगा है. तब से काफी लोग मुझे उत्तम नगर का अरविन्द केजरीवाल कहते हैं और कहने को तो कुछ लोग "गरीबों का मसीहा" भी कहते हैं, क्योंकि पिछले 18 साल से अपनी पत्रकारिता के माध्यम से "आम आदमी" की आवाज को एक बुलंद आवाज देने का प्रयास करता आ रहा हूँ और आज तक जो कोई मेरे दरवाजे पर किसी भी प्रकार की मदद के लिए आया है. वो खाली हाथ या निराश नहीं लौटा है. यहाँ एक बात यह भी है कि मैंने कभी किसी की धन से मदद नहीं की है, बस अपनी कलम से और सही जानकारी देकर उसको जागरूक करके उसे उसकी समस्या का समाधान पाने की प्रक्रिया समझाई है और हाँ,  इसके अलावा ना मैं गरीबों का मसीहा हूँ और ना उत्तम नगर का अरविन्द केजरीवाल हूँ, क्योंकि हर व्यक्ति को अपने-अपने कर्मों द्वारा उसके शरीर को एक पहचान मिलती है.  मैं अपनी पूर्व की "सिरफिरा" और वर्तमान की "निर्भीक"  पहचान से ही संतुष्ट हूँ. आपको सनद होगा कि जो आप कर सकते हैं, वो मैं नहीं कर सकता हूँ और जो मैं कर सकता हूँ, वो आप नहीं कर सकते हैं. इसी प्रकार हर व्यक्ति को भगवान ने अपने-अपने कर्म करने के लिए हमारी- आपकी  "आत्मा" को मिटटी शरीर में समावेश करके भेजा है.  इसलिए कहाँ आप और कहाँ मैं यानि कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली.  मैं अपने आपको एक तुच्छ-सा जीव मानता हूँ. जिसे उस परम पिता परमेश्वर ने धरती पर जन्म लेकर नेक कार्य करने का आदेश दिया है. मैं उसी आदेश का पालन करता हूँ. मैंने कोई स्कूली/कालेज की ज्यादा किताबें नहीं पढ़ी है मगर "इंसानियत" (मानवता) नामक पाठ पढ़ा है और उसके अनुसार कार्य करने की कोशिश करता हूँ. 

यदि आप और आपकी पार्टी सचमुच में भारत देश को उन्नति व खुशहाली की ओर ले जाना चाहते हैं और आप अपनी पार्टी के संविधान के लिए बहुत अधिक कठोर और ठोस निर्णय ले सकते हैं.  तब मैं आपकी दिल्ली विधानसभा 2013 और लोकसभा 2014 के लिए ऐसा घोषणा पत्र तैयार करवा सकता हूँ.  जो पूरे भारत वर्ष की सभी राजनीतिक पार्टियों से अलग और निराला होगा. लेकिन इसके लिए बहुत ही त्यागी, तपस्वी और योगी उम्मीदवारों की जरूरत होगी और उनको तलाशने के लिए काफी प्रयास करने होंगे. हमारे भारत वर्ष में ऐसे व्यक्तियों को खोजना असंभव नहीं है. हमारे भारत देश में एक से एक बढकर त्यागी, बलिदानी और तपस्वी पैदा हुए है और आज भी है. ऐसा भारत देश का इतिहास गवाही दे रहा है.  बस इसके लिए आपके पास दृढ़ निश्चय होने के साथ वो जोश, वो जुनून होना चाहिए. मेरी इस बात को "सच" में बदलने के लिए आपको अपना कुछ कीमती समय मुझे देना होगा. उपरोक्त पत्र के माध्यम से अपने विचारों की अभिव्यक्ति करते हुए अपनी विचारधारा आप तक पहुँचाना ही मेरा "जीवन का लक्ष्य" है. अपने क्रांतिकारी विचारों और अपनी ईमानदारी से चलाई लेखनी से आपको या आपकी पार्टी को नीचा दिखाना या अपमान करना मेरा उद्देश्य नहीं है.  मेरे विचारों के भावों को अपने विवेकानुसार अच्छी तरह से समझने का प्रयास करें.   
श्रीमान जी, मैं कौन हूँ करने वाला ? मैं जो करता हूँ बस उस (भगवान) का आदेश होता है, उसी आदेश का पालन करता हूँ. इसलिए आज तक "नेकी करके दरिया में डालने" की नीति से कार्य किया है और नेकी करके जूते खाने की हिम्मत रखने के साथ ही भगवान महावीर स्वामी जी के आदर्शों पर चलने के कारण व अपने धर्मानुसार एक हाथ से परोपकार करो तो दूसरे हाथ को पता न चले का पालन करते हुए अपनी समाज/देश सेवा आदि करने के आंकड़े तैयार ही नहीं किये हैं कि कितनी विधवाओं की पेंशन लगवाने में मदद की और कितनों की कब-कब, कैसे-कैसे और किसकी मदद की. हमेशा यह कोशिश कि- जो व्यक्ति जिस मदद के लिए आया है. यदि हम उसके योग्य है तो उसकी पूरे दिल से मदद की जाये. 
जिस(भगवान) को मेरे आंकड़े देखकर मुझे इनाम (कर्मों का फल) देना है. उसके खाते में आंकड़े आपकी या हमारी सेवा करने की भावना को देखकर अपने आप दर्ज हो जाते हैं. आपके फार्म में मांगी जानकारी के अनुसार ही  अपना मुंह मिठ्ठू बनने का प्रयास करूँगा. कहते है कि कोशिश करने वालों की कभी "हार" नहीं होती है. डूब जाने के डर से तैरने की कोशिश भी ना करूँ. यह हो नहीं सकता है. असफलता के बाद ही "सफलता" की अहमियत को समझा जा सकता है. 

मैं आपको अपने बारे में उपरोक्त पत्र के माध्यम से संक्षिप्त में जानकारी देने का प्रयास करूँगा और इससे अधिक मेरे विषय में जानकारी उपरोक्त पत्र के साथ सलंग्न कुछ समाचार पत्र और अन्य सामग्री आदि का अध्ययन करके एवं मेरी फेसबुक आई डी https://www.facebook.com/sirfiraa की वाल, पोस्ट और नोट्स के साथ ही मेरे ब्लोगों/समूहों के लिंकों पर जाकर मेरी विचारधारा को पढ़ा/जाना जा सकता है. यदि आपने सलंग्न अखबार आदि को नहीं पढ़ा तो आप मेरी विचारधारा अच्छी तरह से समझ नहीं सकेंगे, जो मैं यहाँ समयाभाव के कारण व्यक्त करने में असमर्थ हूँ.  
श्रीमान जी, आज देश में दीमक की तरह से फैले भ्रष्टाचार और अंधी-बहरी जांच प्रक्रिया के कारण ही महिलाओं के हित में बनाये कानूनों के दुरूपयोग का मैं स्वयं भी शिकार हुआ हूँ. इसी के तहत मेरे ऊपर दहेज प्रताडना और अमानत में खयानत के झूठे आरोप लगाकर मेरे खिलाफ दिनांक 13.05.2010 को थाना-मोतीनगर, दिल्ली में धारा 498A, 406/34 के अंतर्गत एफ.आई.आर संख्या 138/2010 दर्ज हुई थी. जिसमें आग्रामी जमानत की याचिका तीन बार ख़ारिज होने पर मैंने अदालत में आत्मसमपर्ण कर दिया था और उसी केस में न्यायिक हिरासत में एक महीना तिहाड़ जेल (आठ फरवरी से सात मार्च 2012) में रहकर आया हूँ. अब आपसी सहमति से तलाक होने की स्थिति में दिल्ली हाईकोर्ट से मई 2013 में यह एफ.आई.आर ख़ारिज होनी है. इसके अलावा मेरे ऊपर केस संख्या: MP 75/4 धारा 125 के तहत गुजारे भत्ते का केस भी चला था, जो 12.12.2012 को सेशन कोर्ट में ख़ारिज हो चुका है. यहाँ पर गौरतलब बात है कि-मैंने दहेज विरोधी होने के कारण ही बिना दान-दहेज लिये एस.डी.एम ऑफिस, रामपुरा-दिल्ली में दिनांक 20.06.2005 को प्रेम विवाह किया था. अपने ऊपर अन्याय के खिलाफ बिकाऊ मीडिया व भष्ट पत्रकार और पुलिस अफसर से लेकर राष्ट्रपति तक हर छोटे-बड़े अफसर से मदद की गुहार लगाते हुए पत्र लिखें. लेकिन जिनके शरीरों में "आत्मा" तक नहीं थी और जिन्होंने पैसों की हवस में अपना ज़मीर तक बेच डाला था. उन्होंने पत्र का जबाब देने तक का नैतिक फर्ज भी नहीं निभाया. 

यदि मेरे पास श्री रामजेठमलानी और प्रशांत भूषण जी जैसे वकीलों की मोटी-मोटी फ़ीस देने के लिए होती तो मैं निर्दोष होते हुए जेल की सजा नहीं काटता और जाँच एजेंसी और न्याय व्यवस्था में मात्र सैलरी लेने वाले "जोकरों" को सरे-बाजार नंगा कर देता. आज मात्र कागज के चंद टुकड़ों के लिए कुछ दूषित मानसिकता वाली लडकियां अपने शरीर तक को दांव पर लगा देती हैं और पति-पत्नी के बीच स्थापित हुए संबंधों की कीमत तक वसूल करती या मांग करती हैं. बस उनकी दौलत की हवस पूरी होनी चाहिए और कुछ दूषित मानसिकता वाले उसके परिजन अपनी बेटी के शरीर की कीमत तक वसूलने लगें है या यह कहे तो अतिशोक्ति नहीं होगी कि अपनी बेटियां के नाम पर सौदेबाजी करते हुए धंधा(वेश्यावृति) करने लगे है. यदि कोई राह चलते चोर, लुटेरा या डाकू आपकी गर्दन पर चाकू या रिवाल्वर लगाकर आपके पास मौजूद धन मांगे तो आप अपनी जान बचाने के लिए अपना सब कुछ दे देंगे या कोई चोर, लुटेरा या डाकू आपके किसी परिजन या सन्तान का अपहरण करके ले जाये और उसको छोड़ने के एवज में आपसे जो कीमत मांगेगा, आप उस समय बेशक कर्ज लेकर उसका मुंह भरेंगे, क्योंकि जिस व्यक्ति/इंसान की "आत्मा" या "इंसानियत" मर गई हो. आप उससे दया और मानवता की उम्मीद नहीं कर सकते हैं. आज इसी प्रकार से कुछ दूषित मानसिकता वाले वधू पक्ष के वर पक्ष पर दहेज कानूनों का दुरूपयोग करते हुए फर्जी केस दर्ज करवाते देते है और यह कहे तो गलत नहीं होगा कि गले पर चाकू रखकर सौदेबाजी होती है. मुंह मांगी कीमत मिलने पर केस वापिस ले लिया जाता है. आज इन्ही जैसी कुछ दूषित मानसिकता वाली लड़कियों के कारण "विवाह" नामक संस्था का स्वरूप खराब होता जा रहा है. इसमें पैसों के लालची पुलिस वाले, वकील और जज आदि इनकी मदद करते हैं. यहाँ गौरतलब है जब ऐसे केस "हाईकोर्ट" से खारिज होते हैं तब अंधे-बहरे बैठे जज भी "वर" पक्ष पर क़ानूनी व्यवस्था का कीमती समय खराब करने के नाम जुरमाना लगाते हैं. ऐसे मामलों में आज तक इतिहास रहा है कि कभी किसी लड़की वालों पर जुरमाना किया हो, क्योकि "हाईकोर्ट" में बैठे जज भी भेदभाव करते हुए महिलाओं के पक्ष में "फैसला" देकर वाहवाही लूटने के साथ अपने "नम्बर" बनाने में व्यस्त रहते हैं. मैं अपनी दूषित मानसिकता वाली पत्नी के दुर्व्यहार के बाबजूद अपने जैन धर्म से नहीं डिगा यानि मैंने अपनी पत्नी पर कभी हाथ नहीं उठाया था. उसकी हिंसा का बदला प्रतिहिंसा से नहीं दिया, क्योकि अच्छे और बुरे इंसान में फिर कोई क्या फर्क रह जायेगा.  

अपने माता-पिता और जैन धर्म से मिले संस्कारों के अनुसार मैं अच्छी व सभ्य लड़कियों/महिलाओं का बहुत आदर-सम्मान करता हूँ. मेरा मानना है कि यह वहीँ ही भारत देश की नारियां है. जिन्होंने मेरे आदर्श नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, श्री लालबहादुर शास्त्री, शहीद भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद आदि जैसे अनेक वीरों, महापुरुषों और क्रांतिकारी नौजवानों को जन्म दिया है. आप विचार करें कि "क्या ऐसी विचारधारा रखने वाला एक सभ्य व्यक्ति और बुध्दिजीवी अपनी पत्नी को दहेज लाने के लिए प्रताडित कर सकता है ? आपको सनद होगा कि एक पत्रकार समाज में फैली कुरीतियों का खात्मा के लिए अपनी लेखनी के माध्यम से विरोध करते हुए अपना पूरा जीवन तक न्यौछावर कर देता है. वैसे जैन धर्म में बलिदान, क्रोध और त्याग आदि पर बहुत अच्छा साहित्य है. मैंने खूब पढ़ें भी हैं और अपने जीवन में उनका अमल भी किया. मगर अचानक मेरी पत्नी के बदले हुए व्यवहार और उसके परिजनों द्वारा द्वेष भावना, बदला लेने की भावना, लालचवश किये झूठे केसों ने मुझे बहुत अधिक तोड़ दिया था. इस कारण मुझे बहुत गहरा मानसिक आघात लगा.जिसके कारण ही "डिप्रेशन" में चला गया था.लगभग सात-आठ साल वैवाहिक विवादों और चार-पांच साल तक कोर्ट-कचहरी के साथ पुलिस कार्यवाही हेतु चक्कर लगाते-लगाते शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से काफी टूट गया था. फ़िलहाल मुझे सम्भलने में थोडा समय जरुर लगेगा. 

मैंने भ्रष्ट न्याय व्यवस्था और अपनी गरीबी के चलते हुए अपने सवा चार वर्षीय बेटे से मिलने/देखने का अधिकार खोया है, क्योंकि मेरे पास बड़े-बड़े वकीलों और बड़ी-बड़ी अदालतों में केस डालने की फ़ीस नहीं है और लीगल सैल से मिले सरकारी वकीलों की कार्यशैली के तो कहने ही क्या है ? यदि उनको पैसे दो तो काम करेंगे, नहीं तो आपका केस ही खराब कर देंगे या धमकी देते हैं और केस में पेश नहीं होते या जबाब ही पेश नहीं करते हैं. इनकी शिकायत करो तो जाँच अधिकारी उनसे पैसे खाकर या दबाब में आकर पीड़ित का ही शोषण करते हैं. यह मेरे निजी अनुभव रहे हैं. यदि आप इससे ज्यादा कोई जानकारी चाहते हैं तब आप मेरे ब्लॉग www.sach-ka-saamana.blogspot.in "सच का सामना" (आत्मकथा) को विस्तार से पढ़े.  भ्रष्ट व अंधी-बहरी न्याय व्यवस्था का भुक्तभोगी और पत्रकार होने के कारण से आम-आदमी की समस्याओं से पूरी तरह से अवगत हूँ. जिसकी विस्तार से मिलकर चर्चा की जा सकती है. इस लिंक पर क्लिक करके मेरी कुछ बातें और वहाँ आई सभी टिप्पणियाँ भी पढ़ें. https://www.facebook.com/photo.php?fbid=480566391975786&set=a.202187633146998.49402.100000672892387&type=3&theater 
श्रीमान जी, फ़िलहाल मैं तलाकशुदा हूँ मगर अपनी 79 वर्षीय बजुर्ग माँ के साथ रहता हूँ. कवि मुनव्वर राणा ने क्या खूब कहा है कि- बड़े भाई के हिस्से में घर आया, बीच वाले के हिस्से में दुकान आई, मैं सबसे छोटा था, इसलिए मेरे हिस्से में "माँ" आई. बस उसी अपनी "माँ" की सेवा करने के बाद बचे हुए समय में लेखन के माध्यम से देश और समाज सेवा में अपना योगदान देता हूँ. मेरा पेशा पत्रकारिता के कारण आपके गुरु श्री अन्ना हजारे से बस थोड़ी-सी अधिक वस्तुओं का मेरे पास संग्रह है. जैसे-कैमरा, कम्प्यूटर, प्रिंटर, मेज-कुर्सी, पुस्तकें और पत्र-पत्रिका आदि है. हाँ, मुझे यह स्वीकार करते हुए कोई संकोच नहीं हो रहा है कि मैं किसी को थप्पड़ तो नहीं मार सकता हूँ, लेकिन लेखनी से देशहित में आग उगलने का कार्य बेखुबी कर सकता हूँ और अपने नुकीले पैने शब्दों के लिए फांसी का फंदा चूमने की हिम्मत रखता हूँ. मेरे मन के भाव एक छोटी-सी मेरी रचना से समझने का प्रयास करें. 
 
 "तुम अघोषित युध्द लड़ते हो"
तुम जब-जब, अख़बार पढ़ते हो,
एक अघोषित-सा युध्द लड़ते हो,
असत्य से सत्य के लिए,
अन्याय से न्याय के लिए,
भ्रष्टाचार और अत्याचार के खिलाफ,
 युध्द.....महायुध्द......उनसे.......
जो संख्या में मुट्ठी भर है,
मगर अकूत दौलत के स्वामी है,
और क्रूर, ताकतवर हैं,
उनके दिमाग में धूर्तता है, छल है
उनके पास कानून, सत्ता का हथियार है,
और वो हर हालत में, हमें दबाने, कुचलने,
खत्म करने को तैयार है,
ऐसे में अपने अस्तित्व को
कायम रखने के लिए
कुछ तो करना होगा,
लिखें, पैने, नुकीले शब्द बाणों से,
हमें यह युध्द लड़ना होगा,
और.......इस महासंग्राम में,
मैं भी कलम का सिपाही बनकर,
अपना सबकुछ न्यौछावर करने आया हूँ
"जीवन का लक्ष्य" के नाम से जलते,
सुलगते शब्दों का हथियार
अख़बार लाया हूँ
मेरा एक ही जीवन का लक्ष्य,
असत्य का खंडन, पर्दाफाश.....
न्याय की स्थापना, सत्य का प्रचार,
रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का
पर्दाफाश करते हुए सनसनीखेज समाचार
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है
हमें मिलता रहेगा,
जागरूक पाठकगण का सहयोग और प्यार.
 श्रीमान जी, मैं अपने शरीर पर चिथड़े/फटे-पुराने कपड़े पहन सकता हूँ और मखमली कपड़े या भोग-विलास की वस्तुओं के लिए किसी से बेईमानी करके या धोखा देकर उससे ठगी नहीं कर सकता हूँ. खाली हाथ आया था और खाली हाथ ही जाऊंगा फिर क्यों ऐसी चीज के लिए किसी को दुःख पहुंचाऊ जो मेरे साथ जानी नहीं है. मेरे साथ मेरे कर्म जायेंगे, इसलिए कर्मों की दौलत खूब कमाने का प्रयास करता हूँ.  किसी ने क्या खूब कहा है कि "दुखी व्यक्ति सुखी हो सकता है मगर दुःख देने वाला व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकता है". कुछ लोग मौत के डर से अनजान लोगों से नहीं मिलते हैं. मैं खूब मिलता हूँ क्योंकि हर इंसान का दूसरे इंसान से बेशक कोई रिश्ता न हो मगर "इंसानियत" का रिश्ता तो होता ही है. जो सब रिश्तों से बड़ा रिश्ता होता है. वैसे कई बार अनजान लोगों में ऐसे व्यक्ति भी मिल जाते है. जो जिंदगी के हर मोड़ पर एक सच्चे दोस्त व मददगार के रूप में पहचाने जाते हैं. मैं आज पैसों का फ़कीर हूँ. मेरे पास अच्छे संस्कारों और विचारों की बहुत दौलत है. मगर भौतिकवादिता दुनियाँ में आज इनका मोल कम हो गया है. लेकिन मोह-माया की दुनियाँ से दूर उस दूसरी दुनियाँ में इसका मोल "अनमोल" है.
 श्रीमान जी, मैंने आज तक कभी किसी व्यक्ति को धमकी देकर या गरीब को पत्रकार का रोब दिखाकर सताया नहीं है. आप की पार्टी के भी आज हर व्यक्ति / कार्यकर्त्ता से यह उम्मीद करता हूँ कि वो पहले अपने भाई-बहनों,  परिवार के साथ ही आस-पड़ोस और समाज से अपने अच्छे संबंध बनाकर रखे. फिर पार्टी में आकार पूरे देश के नागरिकों से अच्छे संबंध कायम करते हुए एकता और अखंडता के सूत्र में सबको बांधकर देश को उन्नति की ओर ले जाने के लिए प्रयास करें.
श्रीमान जी, मुझे देशभक्त, सिरफिरा पत्रकार, हिंदीप्रेमी और पत्रकारिता के क्षेत्र में सिरफिरा प्रेसरिपोर्टर के नाम से पहचाना जाता है. अन्याय का विरोध करना और अपने अधिकारों हेतु जान की बाज़ी तक लगा देना. हास्य-व्यंग्य, साहित्य, लघुकथा-कहानी-ग़ज़ल-कवितायों का संग्रह, कानून की जानकारी वाली और पत्रकारिता का ज्ञान देने वाली किताबों का अध्ययन, लेखन, खोजबीन और समस्याग्रस्त लोगों की मदद करना ही मेरे शौक है. एक सच्चा, ईमानदार, स्वाभिमानी और मेहनती इंसान के रूप में मेरी एक पहचान है. मै अपने क्षेत्र दिल्ली के उत्तमनगर से चुनाव चिन्ह "कैमरा" पर निर्दलीय प्रत्याक्षी के रूप में तीन चुनाव लड़ चुका हूँ. दिल्ली नगर निगम 2007 और 2012, वार्ड न.127 व 128 के साथ ही उत्तमनगर विधानसभा 2008 के तीनों चुनाव में बगैर किसी को दारू पिलाये ही मात्र अपनी अच्छी विचारधारा से काफी अच्छे वोट हासिल किये थें. मेरी फर्म-"शकुंतला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन" परिवार द्वारा प्रकाशित पत्र-पत्रिकाएँ :- जीवन का लक्ष्य (पाक्षिक), शकुंतला टाइम्स (मासिक), शकुंतला सर्वधर्म संजोग (मासिक), शकुंतला के सत्यवचन (साप्ताहिक), उत्तम बाज़ार (त्रैमासिक) है और "शकुंतला एडवरटाईजिंग एजेंसी" द्वारा सभी पत्र-पत्रिकाओं की विज्ञापन बुकिंग होती है.
 श्रीमान जी, यदि मुझे आपकी पार्टी की तरफ से उम्मीदवार बनाया जाता है तो इसका आपको एक फायदा यह होगा कि कोई मेरी हत्या तो करवा सकता है लेकिन मुझे कोई धमकी देकर, दबाब बनाकर, लालच देकर या डराकर चुनाव मैदान से नहीं हटा नहीं सकता है, क्योंकि मैं मौत से नहीं डरता हूँ. अपनी मौत से भी देरी से आने का कारण पूछने की हिम्मत रखता हूँ. थोडा गौर कीजिये :- "मौत ने पूछा कि-मैं आऊँगी तो स्वागत करोंगे कैसे ! मैंने कहा कि-राह में फूल बिछाकर पूछूँगा आने में देर हुई इतनी कैसे" !!
 श्रीमान जी, मेरा मानना है कि-धन के लिए जीवन नहीं किन्तु जीवन के लिए धन है. मुझे धन से अधिक मोह भी नहीं है. अगर मैं धन के लिए अपनी पत्रकारिता का प्रयोग करता. तब आज करोड़पति होता, मगर मुझे आज अपनी गरीबी पर संतोष है. मैं देश व समाजहित में अच्छे कार्य करके अपने जीवन की सार्थकता साबित करना चाहता हूँ और शायद इससे कुछ अन्य लोग भी प्रेरणा लेकर देश व समाजहित में अच्छे कार्य करें. मैं पहले भी कहता आया हूँ और आज फिर से कह रहा हूँ कि-मुझे मरना मंजूर है,बिकना मंजूर नहीं. जो मुझे खरीद सकें, वो चांदी के कागज अब तक बनें नहीं. मेरा बस यह कहना है कि-आप आये हो, एक दिन लौटना भी होगा. फिर क्यों नहीं तुम ऐसा करो कि तुम्हारे अच्छे कर्मों के कारण तुम्हें पूरी दुनिया हमेशा याद रखें. धन-दौलत कमाना कोई बड़ी बात नहीं, पुण्य कर्म कमाना ही बड़ी बात है. थोडा गौर कीजिये :-
"खुदा ने पूछा कि-बोल "सिरफिरे" कैसी चाहता है अपनी मौत ! मैंने कहा कि-दुश्मन* की भी आँखें झलक आये ऐसी चाहता हूँ अपनी मौत" !! *क्योंकि हर मौत पर अपने रिश्तेदार तो रोते ही है.लेकिन मौत का मजा तब आता है. जब मौत पर दुश्मन भी रोता है.
श्रीमान जी, मैं खुद को शोषण की भट्टी में झोंककर समाचार प्राप्त करने के लिए जलता हूँ. फिर उस पर अपने लिए और दूसरों के लिए महरम हेतु इस कार्य को लेखनी से अंजाम देता हूँ. आपका यह नाचीज़ उम्मीदवार समाजहित में लेखन का कार्य करता है और कभी-कभी लेख की सच्चाई के लिए रंग-रूप बदलकर अनुभव प्राप्त करना पड़ता है. तब जाकर लेख का विषय पूरा होता है. इसलिए सच्चे पत्रकारों के लिए कहा जाता है कि रोज पैदा होते हैं और रोज मरते हैं. बाकी आप अंपने विचारों से हमारे मस्तिष्क में ज्ञानरूपी ज्योत का प्रकाश करें. मेरा सोचना है कि "गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे" और "ईमानदारी सर्वश्रेष्‍ठ नीति है, अभ्‍यास परिपूर्ण बनाता है. प्रत्येक व्यक्ति अपना भाग्य ख़ुद बनाता है. सादगी ही सर्वश्रेष्ठ दुनियादारी है"
 श्रीमान जी, अपने बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद उनका यह कहना है कि-आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. मुझे यह नहीं पता कितना सच है, मगर अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.  क्या पत्रकार केवल समाचार बेचने वाला है? नहीं. वह सिर भी बेचता है और संघर्ष भी करता है. उसके जिम्मे कर्त्तव्य लगाया गया है कि-वह अत्याचारी के अत्याचारों के विरुध्द आवाज उठाये. एक सच्चे और ईमानदार पत्रकार का कर्त्तव्य हैं, प्रजा के दुःख दूर करना, सरकार के अन्याय के विरुध्द आवाज उठाना, उसे सही परामर्श देना और वह न माने तो उसके विरुध्द संघर्ष करना. वह यह कर्त्तव्य नहीं निभाता है तो वह भी आम दुकानों की तरह एक दुकान है किसी ने सब्जी बेच ली और किसी ने खबर.  थोडा गौर कीजिये :- "इस जिंदगी के सफर में हम अकेले ही चलें हैं ! देखना है कितने लोग मिलते हैं और कितने बिछड़ते है" !!

श्रीमान जी, एक तुच्छ से जीव का क्या जीवन परिचय होगा ? लेकिन फिर भी मेरे अपने शब्दों में खुद को एक बहुत भावुक (संवेदनशील) इंसान मानता हूँ. जिसका दिल दूसरों की मदद करने के लिए धड़कता है. यदि हम मनुष्य जीवन पाकर अपने माता-पिता की सेवा करने के साथ ही अपनी भारत माँ की सेवा करते हुए हमारे प्राण निकले. इससे बड़ा किसी का क्या जीवन परिचय होगा ? मेरा उपरोक्त जीवन परिचय मेरे चुनाव(पार्षद का) लड़ने के दौरान मेरे दोस्तों द्वारा लिखा था. जो नीचे लिखें लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता हैं.  https://www.facebook.com/notes/रमेश-कुमार-निर्भीक/मेरा-रमेश-कुमार-जैन-जीवन-परिचय/530469960336979 

दोस्तों, जब मैंने मार्च-2012 में उत्तमनगर विधानसभा के बिंदापुर,वार्ड नं. 128 से दिल्ली नगर निगम के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याक्षी के रूप में चुनाव चिन्ह "कैमरा" से "निगम पार्षद" के लिए चुनाव लड़ा था. तब निम्नलिखित घोषणा पत्र बनाया था. आप एक बार सभी घोषणाएँ जरुर पढ़ें. https://www.facebook.com/notes/रमेश-कुमार-निर्भीक/यह-था-मेरा-चुनावी-घोषणा-पत्र/546805915370050

दोस्तों, जब मैंने पिछले साल मार्च 2012 में दिल्ली नगर निगम के बिंदापुर वार्ड (128) से चुनाव लड़ा था. तब उपरोक्त लेख मुख्य पेज पर लिखा था. https://www.facebook.com/notes/रमेश-कुमार-निर्भीक/आप-मुझे-वोट-दो-मैं-तुम्हारे-अधिकारों-के-लिए-अपना-खून-बहा-दूंगा-/546807408703234

दोस्तों, जब मैंने मार्च-2012 में उत्तमनगर विधानसभा के बिंदापुर,वार्ड नं. 128 से दिल्ली नगर निगम के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याक्षी के रूप में चुनाव चिन्ह "कैमरा" के लिए अपना फार्म भरा था तब अपनी संपत्ति की घोषणा की थी. जिसको चुनाव आयोग की वेबसाइट www.ecodelhi.gov.in पर देखा जा सकता है. यहाँ पर क्लिक करके मेरी संपत्ति देखें- http://www.delhi.gov.in/wps/wcm/connect/doit_dsec/Delhi+State+Election+Commission/Our+Services/Affidavit+2012/South+Delhi/Ward+128-+Binda+pur/
 
श्रीमान जी, समय की परत ने मासूमित से एक जिम्मेदार इंसान बनाने में बहुत मदद की. समय के साथ-साथ चेहरा बदला, शौक बदले, कार्यशैली बदली, रुढ़िवादी विचारों ने साथ छोड़ा, नए विचारों का आगमन हुआ. मैट्रिक कक्षा से लेकर अब तक के मेरे कुछ पुराने चित्रों का यहाँ नीचे लिखें लिंक पर क्लिक करके आप भी अवलोकन करें. https://www.facebook.com/media/set/?set=a.470092399689852.111792.100000672892387&type=3&l=54f7fc3cda

श्रीमान जी, उत्तमनगर में और फेसबुक आदि पर आपकी पार्टी की यह अफ़वाह भी गर्म है कि जो आपकी पार्टी का अपने क्षेत्र से "सक्रिय कार्यकर्त्ता"(यानि जिसने आपकी पार्टी के बिजली-पानी बिल के आंदोलन में फार्म नहीं भरवाएं होंगे या सर्वे नहीं किया हो या आपकी हर रैली में नहीं गया हो) नहीं होगा उसको टिकट नहीं दिया जाएगा और टिकट देने का निर्णय तो पहले ही हो चुका है एवं उम्मीदवारों के फार्म मंगवाने की प्रक्रिया तो केवल पब्लिक (आम आदमी) को दिखाने मात्र के लिए है. यदि ऐसा सब कुछ है तो भी मुझे कोई चिंता नहीं है कि आप मुझे टिकट नहीं देंगे. आप यह देखें कि इतना सब जानकर भी मुझमें कितनी हिम्मत, हौंसला और निडरता होने के साथ ही मैं कितना साहसी हूँ कि आपके पास अपने उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव भेज रहा हूँ. हाँ, मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं उत्तमनगर के क्षेत्र से आपकी सूची में "सक्रिय सदस्य" के रूप में दर्ज नहीं हूँ और ना मैंने आपकी पार्टी के बिजली-पानी बिल के आंदोलन में फार्म भरवाएं, ना मैंने सर्वे किया है और ना मैं आपकी हर रैली में गया हूँ. यदि आप ने "सक्रिय कार्यकर्त्ता" बनने का मापदंड बना रखा है तब मुझे उससे अवगत करवाए. लेकिन मैंने श्री अन्ना हजारे जी के अप्रैल-2011 के आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के साथ ही अपने ब्लॉग आदि पर काफी कुछ लिखा (जिनके कुछ लिंक जो याद है वो यह http://sirfiraa.blogspot.in/2011/06/blog-post.html, http://rksirfiraa.blogspot.in/2012/07/blog-post.html है) था. जो आज तक वो पोस्ट मेरे ब्लॉग पर सबसे ज्यादा देखी गई है. जिसकी आप फोटो आदि गूगल पर Ramesh Kumar Sirfiraa सर्च करके Images में जाकर देख सकते हैं.

श्रीमान जी, आपको कोरियर से पत्र भेजने के साथ ही कई ईमेल आदि भी भेजी थीं. जिनका नैतिकता के आधार पर आज तक मुझे कोई जबाब भी प्राप्त नहीं हुआ है. आपके द्वारा श्री अन्ना हजारे जी से अलग होकर "पार्टी" गठन करने के बाद भी आपको ईमेल आदि के साथ ही फेसबुक पर आपके लिए और आपकी पार्टी के लिए सुझाव आदि भी भेजें. उनका भी नैतिकता के आधार पर आज तक मुझे कोई जबाब प्राप्त नहीं हुआ है. लेकिन आज भी यदि उत्तमनगर विधानसभा में आपकी पार्टी के कोई भी कार्यक्रम होने की सूचना मिलती हैं तो उस कार्यक्रम में जाता हूँ और अपनी पत्रकारिता का फर्ज अपनी नैतिक जिम्मेदारी से निभाता हूँ. 

इसका स्पष्ट प्रमाण मेरी फेसबुक आई डी https://www.facebook.com/sirfiraa की फोटो एल्बम में देखा जा सकता हैं. फ़िलहाल में मैंने आपको और आपके कुछ कार्यकर्ताओं को  6 मार्च को फेसबुक पर और 8 अप्रैल 2013 को ईमेल से एक निम्नलिखित सुझाव भेजा था.
  आम आदमी पार्टी के संयोजक श्री अरविन्द केजरीवाल को एक छोटा-सा सुझाव.
 श्री अरविन्द केजरीवाल जी, आप "आम आदमी पार्टी" की वेबसाइट(http://AamAadmiParty.org/) को हिंदी में भी बनाकर सबसे पहले देश के प्रति ईमानदारी दिखाते हुए "राष्ट्रधर्म" निभाए. हम अंग्रेजों के गुलाम नहीं है. फिर जब आप एक आम आदमी की बात करें तो उसको अंग्रेजी नहीं आती है. आपकी पार्टी के संविधान के अनुसार ही आप दिल्ली विधानसभा के लिए अपने उम्मीदवार जून के अंत तक जरुर घोषित कर दें. इससे उस (उम्मीदवार) की जनता के अंदर चुनाव तक एक अच्छी पहचान बन जायेगी और जनता को उसके विचारों और उसकी छवि का अवलोकन करने का समय मिल जायेगा. आप अपनी पार्टी के अपने उम्मीदवार साफ छवि के गरीब से गरीब आम आदमी को बनाये. आप भी अन्य पार्टियों की तरह से पार्टी के कोष में ज्यादा फंड देने वाले को अपना उम्मीदवार ना बनाये. बल्कि ऐसे उम्मीदवार को उम्मीदवार बनाये जो देश के लिए जीना और मरना चाहता हो और बड़े से बड़ा त्याग, बलिदान करने से झिझकता नहीं हो. हमारा यह लिंक भी देखें- https://www.facebook.com/photo.php?fbid=474269019294479&set=a.204952319559485.54351.100001341566208&type=3&theater और आप अपने यहाँ से हिंदी में ईमेल भी भेजें और अपने फॉर्म में लिखें कि आपको हिंदी में या अंग्रेजी में या अन्य किसी क्षेत्रीय भाषा में ईमेल या पत्र व्यवहार चाहिए.  मैं आपसे पूछता हूँ कि क्या आजादी की लड़ाई में कलम के सिपाहियों ने कोई योगदान नहीं दिया था ? मैं तो राजनीति में ही आना नहीं चाहता था लेकिन "नायक" फिल्म से प्रभावित होकर विचार किया कि यदि राजनीति से अच्छे लोग दूर भागेंगे तो एक दिन आजकल के नेता हमारे देश को अपनी कार्यशैली द्वारा फिर से गुलाम बना देंगे. अब मैं राजनीति में आकर यह दिखाना चाहता हूँ कि राजनीति में आने के बाद कैसे अच्छी सेवा की जा सकती है ? 
 श्रीमान जी, हमारे देश के स्वार्थी नेता "राज-करने की नीति से कार्य करते हैं" और मेरे विचार में "राजनीति" सेवा करने का मंच है. इसके अलावा मैं किसी जीव की हत्या करके उसका मांस परोसकर या मांसाहारी भोजन करवाकर या पैसे का लालच देकर और किसी व्यक्ति कहूँ या "मतदाता" को शराब पिलाकर यानि उसे नशे में करके अथार्त उसकी सोचने-समझने की शक्ति छीनकर उसका "मत" हासिल नहीं करना चाहता हूँ. एक मतदाता की नशे की हालत में लिया गया "मत" कायरता है और मैं मानता हूँ कि जब आप उससे उसके पूरे होशो-हवास में अपनी विचारधारा से उसको जागरूक करते हुए "मत" प्राप्त करें तब ही बहादुरी है. अगर मैंने किसी को पैसे का लालच देकर या शराब पिलाकर और मांसाहारी भोजन करवाकर जो "जीत" हासिल की. वो जीत कोई काम की नहीं है. उससे ज्यादा तो मुझे अपनी वो "हार" ज्यादा अच्छी लगती है. जो मैंने अपने सिद्धांतों की वजह से प्राप्त की. 
"भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी है"
भारत माता फिर मांग रही आजादी
कल अंग्रेजों की जंजीरों से थी जकड़ी
आज भ्रष्टाचारियों की जंजीरों से है जकड़ी
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी है
चलो उठो नौजवानों! सर पर बांध लो कफन
भारत माता को दिए बगैर क़ुर्बानी के
इन भ्रष्टाचारियों से नहीं मिलेगी आजादी
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी है
कल थें हम अंग्रेजों के गुलाम
आज हैं भ्रष्टाचारियों के मोहताज
नहीं मिलता है अब गरीब को इन्साफ
बिका प्रशासन, नाकाम हुई कार्यप्रणाली
बिगड़ी व्यवस्था, भ्रष्ट हुई मीडिया भी
अब जजों के भी लगने लगे मोल
कोई कम में बिका, कोई ज्यादा में
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी है
चलो उठो नौजवानों! फिर बढ़ालो अपने कदम
फिर से कब पैदा होंगे चन्द्रशेखर आजाद,
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, लालबहादुर शास्त्री
महात्मा गाँधी आदि जैसे नौजवान
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी है
आओ फिर से भरे दिल में जज्बा देशप्रेम का,
चलो उठो नौजवानों! हो जाओ तैयार!
भारत माता की आजादी के लिए
अपना खून बहाने को,
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी है
भौतिक सुखों के लालच में हुई
आज कलम भी बेईमान है
स्वार्थी राजनीतिज्ञों ने स्विस के बैंक भर दिए
हमारे देश की जनता की जेब खाली है
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी है
कोमनवेल्थ गेम्स के नाम पर लाखों-अरबों लुटा दिए
आज आम आदमी मंहगाई से बेहाल है
राजनीतिज्ञों और पूंजीपतियों के साथ
ही मीडिया के गंठ्बधन के भी
खुले अब यह राज है.
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी हैं
अब फाँसी का फंदा खुद बढ़-चढ़कर
चूमने वाले ऐसे नौजवान कब पैदा होंगे
कर रही भारत माता इंतज़ार है.
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी हैं
आओ नौजवानों ! एक नया संकल्प लें
या हम मिट जायेंगे,
या भ्रष्टाचारियों को मिटा देंगे
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी हैं
चलो उठो नौजवानों, देने अपनी कुर्बानी
भरकर दिल में देशप्रेम का जज्बा
अब भ्रष्टाचारियों को बतला दें
हम भारत माँ के ऐसे बेटे हैं
जो अपनी कुर्बानी देने से,
अब नहीं झिझकेंगे.
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी हैं
 श्रीमान जी, वर्तमान समय में जितना याद था, उतना पूरी ईमानदारी से अपनी लेखनी द्वारा सच लिखा है. अब आपका अपना विवेक है कि मुझे उत्तमनगर विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाये या न बनाये. मगर मुझे आपसे झूठ बोलकर "टिकट" नहीं लेना है.
 एक विशेष बात- मेरे सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार आपकी पार्टी के उत्तमनगर विधानसभा क्षेत्र  के कुछ अनुभवी कार्यकर्त्ता आपसी गुटबाजी और कुछ अन्य कारणों से नाराज हो गए है. यदि आप उनकी मेरे साथ कुछ देर की वार्तालाप करवा दें. तब अपनी विचारधारा के माध्यम से मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि उनको दुबारा आपके साथ जोड़ दिया जाये.
नोट:-यदि आपने उम्मीदवारों के लिए कोई अलग से ईमेल उपलब्ध करवाई होती तो मेरे उपरोक्त पत्र में दिए लिंक केवल क्लिक करके खोलकर ही पढ़ें जा सकते थें. इसलिए कागज पर लिंक होने के कारण थोड़ी-सी असुविधा हो सकती है. उसके लिए मुझे खेद है. उपरोक्त पत्र को आप मेरे ब्लॉग  www.sirfiraa.blogspot.inwww.kaimra.blogspot.in पर लिंकों सहित पढ़ सकते हैं.   
देश और समाजहित में जनहित संदेश:- समय की मांग,हिंदी में काम.हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है.हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें. हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. राष्ट्र के प्रति हर व्यक्ति का पहला धर्म है अपने राष्ट्र की राष्ट्रभाषा का सम्मान करना. नेत्रदान महादान आज ही करें. आपके द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है. 

पाठकों ! मैंने जो फार्म "आम आदमी पार्टी" को उत्तम नगर विधानसभा की "टिकट" हेतु भरकर भेजा उसको आप यहाँ पर क्लिक करके देख सकते हैं. यहाँ पर भरे हुए फार्म के सभी पेज डालने का मात्र उद्देश्य इतना है कि अन्य व्यक्ति भी जानकारी प्राप्त करें. अपना फार्म भरे और व्यवस्था बदलने के लिए अच्छे व्यक्ति आगे आये.

बुधवार, अप्रैल 24, 2013

क्या मुझे "आम आदमी पार्टी" के उम्मीदवार के चयन हेतु अपना फॉर्म भरना चाहिए या नहीं ?

दोस्तों ! अपने विचार व्यक्त करे कि क्या मुझे दिल्ली में होने वाले चुनाव के तहत अपने उत्तम नगर विधानसभा क्षेत्र से "आम आदमी पार्टी" के उम्मीदवार के चयन हेतु अपना फॉर्म भरना चाहिए या नहीं ? श्री अरविन्द केजरीवाल का कहना है कि अच्छे व्यक्तियों को "टिकट" दूँगा और मेरा उद्देश्य अच्छे लोगों को "राजनीति" में लाकर "अव्यवस्था" को बदलना है. आज आप और श्री अन्ना हजारे, बाबा रामदेव और अरविन्द केजरीवाल भी मानते हैं कि हर पार्टी में कुछ अच्छे व्यक्ति भी है. इसलिए "आम आदमी पार्टी" की कथनी और करनी भी देखना चाहता हूँ. इससे मेरा खुद का अवलोकन भी हो जाएगा और "आम आदमी पार्टी" की रणनीतियों की परीक्षा हो जायेगी. मैं तीन बार चुनाव चिन्ह"कैमरा" से निर्दलीय दो पार्षद के और एक विधानसभा का चुनाव लड चुका हूँ. तीनों चुनाव में बगैर किसी को दारू पिलाये ही मात्र अपनी अच्छी विचारधारा से काफी अच्छे वोट भी हासिल किये थें. 
               हमारे देश के स्वार्थी नेता "राज-करने की नीति से कार्य करते हैं" और मेरे विचार में "राजनीति" सेवा करने का मंच है. इसके अलावा मैं किसी जीव की हत्या करके उसका मांस परोसकर या मांसाहारी भोजन करवाकर और किसी व्यक्ति कहूँ या "मतदाता" को शराब पिलाकर यानि उसे नशे में करके अथार्त उसकी सोचने-समझने की शक्ति छीनकर उसका "मत" हासिल नहीं करना चाहता हूँ. एक मतदाता की नशे की हालत में लिया "मत" कायरता है और मैं मानता हूँ कि जब उससे उसके पूरे होशो-हवास में अपनी विचारधारा से उसको जागरूक करते हुए "मत" प्राप्त करें तब ही बहादुरी है.अगर मैंने किसी को शराब पिलाकर और मांसाहारी भोजन करवाकर जो "जीत" हासिल की. वो जीत कोई काम की नहीं है. उससे ज्यादा तो मुझे अपनी वो "हार" ज्यादा अच्छी लगती है. जो मैंने अपने सिद्धांतों और अनैतिक कार्य ना करते हुए प्राप्त की.
आज के समय में हर दूसरी पार्टी (एकाध अपवाद छोड़कर) "पार्टी फंड" के नाम पर या सिफारिश के नाम पर पिछले दरवाजे से पैसे लेकर "टिकट" देती हैं. जितनी बड़ी पार्टी या जितना बड़ा चुनाव हो उसी आधार पर "टिकट" के रेट तय होते हैं. जैसे-पार्षद (पचास लाख से दो करोड रूपये तक), विधायक(दो करोड से दस करोड रूपये तक) और सांसद(पांच करोड से बीस करोड रूपये तक) आदि. 
इसके साथ ही जितने पैसे में "टिकट" लिया जा रहा है, उसे दुगने से लेकर दस गुणा तक पैसा अपने चुनाव क्षेत्र में खर्च करने के लिए है या नहीं. यह पार्टियों द्वारा विशेष रूप से देखा जाता है. उन्हें व्यक्ति की दूरदृष्टि, ईमानदारी और अच्छी विचारधारा से कोई मतलब नहीं होता है. वो व्यक्ति चाहे फिर बलात्कारी हो या हत्या आरोपी हो. इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है. आप खुद सोचे जो इतने पैसे लगाकर "टिकट" लेगा और चुनाव प्रचार में खर्च करेगा. क्या आप उससे उम्मीद कर सकते हो कि वो आम आदमी के हित के "नीतियां" बना सकता है. पहले तो वो अपने लगाए पैसों का दस गुणा या उससे अधिक वसूल करेगा. फिर वो आम आदमी के बारे में सोचेंगा. जब सोचेंगा और जब करने का समय आएगा. तब फिर से चुनाव आ जायेगा और आप सब को फिर से नए वादें करके "बिकाऊ" वोटरों के जुगाड में जुड जाएगा. जो उम्मीदवार जितने ज्यादा "बिकाऊ" वोटरों का जुगाड कर लेगा, वो फिर से "जीत" जायेगा. आपका और मेरा शोषण करने के लिए हमारी मजबूरी पर पांच साल तक मुंह चिढाता रहेगा.
दोस्तों ! आप विश्वास करेंगे आज देश की जनता खुद नहीं चाहती है कि "देश की राजनीति में अच्छे लोग आये, क्योंकि हम खुद "चोर"(कुछ अपवाद को छोड़कर) है. हम चोरी (टैक्सों, नक्सा पास करवाने की फ़ीस आदि) करते हैं और यह जानते है कि कोई अच्छा व्यक्ति आ गया तो हमें चोरी नहीं करने देगा या नियमों/कानूनों का पालन करने के लिए मजबूर करेगा और हमें नियमों/कानूनों का उल्लंघन करने की आदत है. काफी लोग कहते है कि "राजनीति में बेईमान लोगों की ही जीत होती है और ईमानदार/अच्छे लोगों के लिए राजनीति में कोई जगह नहीं है" 
मेरे विचार में इसके भी हम ही जिम्मेदार है, क्योंकि हम (अधिकांश पढ़े-लिखें) वोट डालने ही नहीं जाते हैं और घर में बैठ चाय की चुस्कियां पीते रहते हैं या केबल पर फिल्म देखते रहते हैं या किसी हिल स्टेशन पर घूमने का कार्यक्रम बना लेते हैं. इससे गुंडों-बदमाशों और अपराधिक प्रवृति के लोगों द्वारा शराब की बोतल और पैसे देकर खरीदें वोटर अपनी वोट अपना बिना विवेक का प्रयोग करें ही अपना मत उनके पक्ष में करके उनकी जीत को सुनिश्चित कर देते हैं. इस प्रकार अच्छे व्यक्ति "राजनीति" में नहीं आ पाते हैं.

मंगलवार, अप्रैल 02, 2013

रूपये के प्रतीक चिह्न पर खेला गया खेल (नया घोटला)

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रुपये के बहुचर्चित नए प्रतीक के पीछे भ्रष्टाचार का एक कम चर्चित पक्ष भी है और एक बिल्कुल ही नई किस्म का यह भ्रष्टाचार सिर्फ रुपये के प्रतीक तक ही सीमित नहीं है.
'भारतीय रुपये के प्रतीक चिह्न का निर्माता कौन है?'- सामान्य ज्ञान की किताबों से लेकर कई प्रतियोगिताओं और परीक्षाओं में आपका भी सामना शायद इस सवाल से हो चुका होगा. यदि आपने इस प्रश्न का जवाब 'डी उदया कुमार' दिया होगा तो आपको पूरे अंक भी मिले होंगे. लेकिन यदि आपको यह बताया जाए कि यह चिह्न तो उदया कुमार से बहुत पहले ही किसी दूसरे व्यक्ति ने बना लिया था तो क्या तब भी आप मानेंगे कि इस प्रश्न का सही जवाब उदया कुमार ही होना चाहिए?
वैसे इस तथ्य को महज एक संयोग समझकर आप मान भी सकते हैं कि सही जवाब तो डी उदया कुमार ही होना चाहिए. लेकिन जिस शख्स ने यह चिह्न उदया कुमार से बहुत पहले बनाया था उसने इसे अपने तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि भारतीय रिजर्व बैंक और प्रधानमंत्री कार्यालय को एक सुझाव पत्र के साथ भेजा भी था. इस सुझाव पत्र में इस शख्स ने कहा था कि अब भारतीय रुपये का भी कोई प्रतीक चिह्न होना चाहिए जिसके लिए उसके द्वारा बनाए गए चिह्न पर विचार किया जा सकता है. प्रधानमंत्री कार्यालय से यह सुझाव पत्र वित्त मंत्रालय भेजा गया और इस तरह से सरकारी महकमा इस चिह्न से कई साल पहले ही परिचित हो चुका था. फिर एक प्रतियोगिता आयोजित करवाई गई और डी उदया कुमार वही चिह्न प्रस्तुत करके विजेता बन गए. लेकिन इस प्रतियोगिता के लिए उदया कुमार एक अयोग्य प्रतिभागी थे. वे डीएमके के पूर्व विधायक श्री धर्मलिंगम के पुत्र हैं और जब यह प्रतियोगिता करवाई गई थी उस दौरान डीएमके भी केंद्र सरकार का एक हिस्सा थी. वैसे उनकी अयोग्यता का कारण यह नहीं कि वे एक पूर्व विधायक के पुत्र हैं बल्कि यह है कि उन्होंने प्रतियोगिता की शर्तों का उल्लंघन किया था जिस कारण वे प्रतियोगिता हेतु अयोग्य हो चुके थे. इन तथ्यों को जानने के बाद भी क्या आप मानेंगे कि इस ऐतिहासिक महत्व के प्रश्न का 'सही जवाब' डी उदया कुमार ही होना चाहिए?
प्रतीक, प्रतियोगिता और प्रश्न
  • प्रतियोगिता के नियम और शर्तें सिर्फ अंग्रेजी में जारी हुए जो राजभाषा अधिनियम का उल्लंघन है 
  • चयन के लिए बनी जूरी के सभी सदस्य प्रतियोगिता के दौरान एक बार भी एक साथ नहीं बैठे
    प्रतिभागियों द्वारा प्रतीक चिह्न के साथ जमा की गई स्क्रिप्ट जूरी के सामने पेश ही नहीं की गई
  • एक प्रतिभागी दो ही चिह्न जमा कर सकता था, पर विजेता डी उदयाकुमार ने एक बयान में कई चिह्न जमा करने की बात कही. कायदे से उन्हें अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए था
  • प्रतीक चिह्न राष्ट्रीय सम्मान से जुड़े तो होते ही हैं, वे अरबों रुपये के व्यापार को भी प्रभावित करते हैं. इसलिए कुछ व्यापारिक कंपनियों के भी इस गड़बड़झाले में शामिल होने के आरोप लग रहे हैं
  • ऐसी गड़बड़ियां दूसरे प्रतीक चिह्नों के चयन में भी हुई हैं
दरअसल रुपये का प्रतीक चिह्न चुनने के लिए भारत सरकार द्वारा 2009 में एक प्रतियोगिता आयोजित करवाई गई थी. इस प्रतियोगिता का परिणाम 15 जुलाई, 2010 को घोषित हुआ और रुपये को उसकी नई पहचान मिल गई. देश के करोड़ों लोगों ने इस बात पर गर्व किया कि अब रुपया भी दुनिया की सबसे मजबूत मुद्राओं यानी डॉलर, यूरो और येन की श्रेणी में आ खड़ा हुआ है. इसके साथ ही देश के इतिहास में इस चिह्न को बनाने वाले का नाम भी हमेशा के लिए अमर हो गया.  लेकिन तहलका को मिले दस्तावेजों से यह स्पष्ट होता है कि राष्ट्रीय महत्व की यह प्रतियोगिता एक औपचारिकता मात्र थी जो सिर्फ लोगों को भ्रमित करने के लिए आयोजित की गई थी. जिस तरह से इस प्रतियोगिता की प्रक्रिया संपन्न हुई, उससे यह भी संकेत मिलता है कि सरकार पहले ही यह मन बना चुकी थी कि भारतीय रुपये का प्रतीक चिह्न क्या होगा.
रुपये के प्रतीक चिह्न के बारे में अधिकतर लोग बस यही जानते हैं कि इसके निर्धारण के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता आयोजित की गई और इस प्रतियोगिता में सबसे बेहतरीन चिह्न प्रस्तुत करने वाले को विजेता घोषित करते हुए उसके चिह्न को रुपये का प्रतीक बना लिया गया. लेकिन ऐसा नहीं है. इस पूरे मामले में हुई गड़बड़ियों को समझने के लिए इसे उसी क्रम में देखना अनिवार्य हो जाता है जिस क्रम में इन गड़बड़ियों का खुलासा होता चला गया.  फरवरी, 2009 में भारत सरकार द्वारा रुपये का चिह्न चुनने के लिए एक प्रतियोगिता के आयोजन की घोषणा की गई. कई अखबारों और वेबसाइटों पर इस संबंध में विज्ञापन जारी किये गए. विज्ञापन भले ही अंग्रेजी और हिंदी दोनों ही भाषाओं में जारी किए गए थे लेकिन प्रतियोगिता की शर्तों को सिर्फ अंग्रेजी में जारी किया गया. ऐसा करना राजभाषा अधिनियम का सीधा उल्लंघन था. प्रतियोगिता के विज्ञापन में यह भी लिखा गया था कि यह चिह्न भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को परिलक्षित करता हो, लेकिन प्रतियोगिता के नियम व शर्तों को सिर्फ अंग्रेजी में जारी करके भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को समझने वाले उन तमान लोगों को इसमें हिस्सा लेने से वंचित कर दिया गया जो अंग्रेजी में निपुण नहीं थे. वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किए गए इस विज्ञापन में आवेदन जमा करवाने की अंतिम तिथि 15 अप्रैल, 2009 निर्धारित की गई थी. प्रत्येक आवेदन के साथ 500 रुपये के आवेदन शुल्क की मांग भी की गई थी. देश भर के हजारों नागरिकों ने रुपये का प्रतीक दर्शाती अपनी-अपनी रचनाएं मंत्रालय में जमा करवाईं. प्रतियोगिता आयोजित करने वाले वित्त मंत्रालय के पास इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि कुल कितने आवेदन मंत्रालय को देश भर से प्राप्त हुए. कुछ राष्ट्रीय समाचार पत्रों की मानें तो यह संख्या 25,000 के करीब है. हालांकि सूचना के अधिकार में पूछे जाने पर अधिकारी बताते हैं कि कुल आवेदनों की संख्या का कोई भी ब्योरा मंत्रालय के पास नहीं है, लेकिन मौखिक रूप से गणना करने पर 3,331 आवेदन सही पाए गए थे जिन्हें जूरी के समक्ष प्रस्तुत किया गया.
आवेदनों में से सबसे बेहतरीन चिह्न चुने जाते वक्त जूरी की अध्यक्ष और रिजर्व बैंक की डिप्टी गवर्नर श्रीमती उषा थोराट अनुपस्थित थीं
प्रतियोगिता में भाग लेने वाले हजारों प्रतिभागी परिणाम घोषित होने की प्रतीक्षा में थे. इन्ही में से एक थे लखनऊ निवासी राकेश कुमार सिंह. सरकारी सेवा में तैनात राकेश बताते हैं, ‘परिणामों के प्रति हमारा उत्सुक होना स्वाभाविक था. आखिर यह एक ऐसी प्रतियोगिता थी जिससे एक ऐतिहासिक फैसला होने वाला था और जो भी इसमें विजेता घोषित होता उसका नाम हमेशा के लिए इस ऐतिहासिक फैसले के साथ ही अमर हो जाता.’ प्रतियोगिता के अंतिम चरण में पांच प्रतिभागियों का चयन होना था जिन्हें  25-25 हजार रुपये का पुरस्कार दिया जाना था और अंतिम विजेता को ढाई लाख का इनाम दिया जाना था. इसी क्रम में आठ दिसंबर, 2009 को अंतिम पांच प्रतिभागियों के नाम वित्त मंत्रालय की वेबसाइट पर घोषित कर दिए गए. इनमें से चार मुंबई से ही थे. विभाग की वेबसाइट पर इनके नाम तो घोषित कर दिए गए थे लेकिन इनके द्वारा प्रस्तुत किए गए चिह्नों को नहीं दर्शाया गया था. प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले अन्य प्रतिभागियों को अपना नाम अंतिम पांच में न पाकर हताशा तो हुई लेकिन उससे ज्यादा उन चिह्नों को देखने की जिज्ञासा हुई जिन्हें अंतिम पांच में चुना गया था. इसी जिज्ञासा के चलते लखनऊ के राकेश कुमार ने सूचना के अधिकार के जरिए वित्त मंत्रालय से इन चिह्नों की प्रतिलिपि मांगी. साथ ही उन्होंने जूरी/चयन समिति के सदस्यों के नाम एवं कुछ अन्य जानकारियां भी मांगीं. देश के कोने-कोने से अन्य लोगों ने भी मंत्रालय से इस बारे में विभिन्न सूचनाएं मांगीं. आवेदनों के जवाब में जो जानकारियां मंत्रालय द्वारा प्रदान की गईं उनसे धीरे-धीरे इस प्रतियोगिता की खामियां सामने आने लगीं.
इस महत्वपूर्ण चिह्न को चुनने के लिए सात लोगों की एक जूरी बनाई गई थी. इस समिति में भारतीय रिजर्व बैंक से लेकर संस्कृति मंत्रालय तक के प्रतिनिधियों को सम्मिलित किया गया था. लेकिन यह जूरी इस राष्ट्रीय चिह्न के चयन को कितनी गंभीरता से ले रही थी इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि पूरी चयन प्रक्रिया के दौरान एक बार भी जूरी के सभी सदस्य एक साथ नहीं बैठे. संस्कृति मंत्रालय के प्रतिनिधि तो इस पूरी चयन प्रक्रिया में एक दिन भी उपस्थित नहीं हुए. प्रतियोगिता में हुई गड़बड़ियों को उजागर करने वालों में शामिल रहे मुंबई निवासी अनिल खत्री कहते हैं, ‘संस्कृति मंत्रालय के एक प्रतिनिधि को जूरी में इसलिए शामिल किया गया था ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि रुपये का चिह्न भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को भी परिलक्षित करता हो. लेकिन पूरी चयन प्रक्रिया में एक दिन भी संस्कृति मंत्रालय से कोई भी उपस्थित नहीं हुआ. तो फिर इस बात को किसने सुनिश्चित किया कि हजारों आवेदनों में से यही चिह्न भारतीय संस्कृति का सबसे बेहतर परिचायक है?’ चयन प्रक्रिया का पहला चरण 29 और 30 सितंबर को आयोजित किया गया. इस पहले और मुख्य दौर में जब कुल आवेदनों में से सबसे बेहतरीन चिह्नों को चुना जाना था तो जूरी के सात में से तीन सदस्य उपस्थित ही नहीं थे. इनमें जूरी की अध्यक्ष और रिजर्व बैंक की डिप्टी गवर्नर श्रीमती उषा थोराट भी शामिल थीं. जूरी के जो सदस्य उपस्थित थे उन्होंने भी यह चयन प्रक्रिया टालने वाले अंदाज में पूरी की. इन दो दिन में जूरी ने सुबह 10 बजे से शाम पांच बजे तक काम किया. इस दौरान जूरी द्वारा कुल 3,331 चिह्नों का अवलोकन किया गया. विज्ञापन के अनुसार प्रत्येक चिह्न को विभिन्न आकारों में जमा करवाना था जिनमें सबसे छोटा आकार '4 पॉइंट फॉन्ट' में होना अनिवार्य था. इस तरह से प्रत्येक चिह्न का अवलोकन करने के लिए काफी ध्यान दिए जाने की जरूरत थी.
नोंदिता कोरिया द्वारा जो प्रतीक 2005 में रिजर्व बैंक को भेजा गया था वह बिल्कुल वही था जिसे आज हम रुपये के प्रतीक के तौर पर पहचानते हैं
लेकिन जूरी ने जितना समय इन आवेदनों के अवलोकन में बिताया उसका यदि औसत देखा जाए तो मात्र 16 सेकंड में जूरी द्वारा प्रत्येक चिह्न का अवलोकन कर लिया गया. राकेश कुमार कहते हैं, ‘दुनिया का विद्वान से विद्वान व्यक्ति भी 16 सेकंड में किसी चिह्न का अवलोकन करके उसे समझ नहीं सकता. यह चिह्न तो देश का भविष्य होने वाला था, राष्ट्रीय सम्मान का प्रतीक बनने वाला था. इतने महत्वपूर्ण चिह्न को जूरी द्वारा चुटकी बजाते ही चुन लिया गया. क्या दुनिया का कोई भी व्यक्ति कुछ सेकंड में ही किसी चिह्न को देखकर यह तय कर सकता है कि कैसे वह भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को परिलक्षित करता है?’
प्रत्येक आवेदन के साथ ही प्रतिभागियों को चिह्न से संबंधित स्क्रिप्ट भी लिखित रूप में जमा करवानी थी. इस स्क्रिप्ट में प्रत्येक प्रतिभागी को अपने चिह्न की व्याख्या करते हुए यह बताना था कि कैसे वह चिह्न भारत में रुपए का प्रतीक हो सकता है और कैसे वह भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को परिलक्षित करता है. लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि पूरी चयन प्रक्रिया के दौरान प्रतिभागियों की स्क्रिप्ट को जूरी के सामने प्रस्तुत ही नहीं किया गया. बिना स्क्रिप्ट देखे ही अंतिम पांच चिह्नों का निर्धारण कर लिया गया. किसी भी प्रतीक चिह्न को समझने के लिए उसकी स्क्रिप्ट को पढ़ा जाना जरूरी होता है. उदाहरण के लिए, जिस व्यक्ति को यह पता न हो कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज में तीनों रंग किन-किन चीजों को परिलक्षित करते हैं या बीचोबीच मौजूद चक्र क्या दर्शाता है, वह व्यक्ति सिर्फ तिरंगे को देखने भर से उसकी अहमियत नहीं समझ सकता. चिह्नों का कोई निर्धारित अर्थ नहीं होता और प्रत्येक व्यक्ति अपने विवेकानुसार ही उनका अर्थ समझता है. एक गोल आकृति का अर्थ सूर्य से लेकर और शून्य तक कुछ भी हो सकता है. ऐसे में जूरी का स्क्रिप्ट देखे बिना ही इस राष्ट्रीय चिह्न का निर्धारण कर देना कई सवाल खड़े करता है.

(रुपये के प्रतीक चिह्न और प्रतिभागी जो अंतिम पांच में जगह बनाने में कामयाब हुए थे)
ये सारी जानकारियां राकेश कुमार सूचना के अधिकार से हासिल कर ही रहे थे कि इस बीच उन्हें सबसे महत्वपूर्ण जानकारी हासिल हुई. 18 दिसंबर 2009 के एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र में एक खबर छपी जिसके अनुसार नोंदिता कोरिया ने कुछ वर्ष पूर्व रिजर्व बैंक और प्रधानमंत्री कार्यालय को यह सुझाव दिया था कि भारत में रुपये का कोई प्रतीक चिह्न होना चाहिए. राकेश कुमार को आश्चर्य इस बात का हुआ कि नोंदिता कोरिया नाम की ही एक प्रतिभागी अंतिम पांच में भी चुनी गई थी. उन्होंने पहले यह सुनिश्चित किया कि क्या अंतिम पांच में चुनी गई नोंदिता कोरिया वही हैं जिन्होंने कुछ साल पहले सरकार को सुझाव भेजा था. इस तथ्य के सुनिश्चित होने से यह पूरी प्रक्रिया और भी ज्यादा संदेह के घेरे में आ गई. सरकारी स्तर पर कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं हुआ था कि भारत सरकार को कभी कोई सुझाव इस संबंध में प्राप्त हुआ हो. फिर जिस व्यक्ति ने सुझाव भेजा था, प्रतियोगिता में भी उसी व्यक्ति का अंतिम पांच में चुना जाना संदेह के और भी कारण पैदा करता था. राकेश कुमार एवं अन्य प्रतिभागियों द्वारा इस संबंध में सूचनाएं मांगी गईं. नोंदिता कोरिया मशहूर वास्तुकार चार्ल्स कोरिया की बेटी हैं. चार्ल्स भारत में वास्तु के क्षेत्र के एक दिग्गज माने जाते हैं और पद्मश्री एवं पद्म विभूषण से सम्मानित हो चुके हैं. चार्ल्स कोरिया द्वारा अगस्त, 2005 में रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर को एक पत्र लिखा गया था. इस पत्र में उन्होंने अपनी बेटी नोंदिता कोरिया द्वारा बनाए गए रुपये के प्रतीक को भारतीय रुपये का प्रतीक बनाए जाने के संबंध में विचार करने को लिखा था. इसके साथ ही नोंदिता कोरिया का पत्र भी रिजर्व बैंक को भेजा गया था. फिर 2006 में प्रधानमंत्री कार्यालय को भी चार्ल्स द्वारा ऐसा ही एक पत्र भेजा गया जिसके साथ नोंदिता का पत्र एवं सुझाव भी मौजूद था. प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस पत्र को वित्त मंत्रालय को भेजते हुए कहा कि रिजर्व बैंक की राय लेते हुए इस संबंध में उचित कदम उठाए जाएं. तत्कालीन वित्त मंत्री ने भी इस सुझाव पत्र एवं रुपये के प्रस्तावित चिह्न को देखा और फिर वित्त मंत्रालय ने विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय को इस संबंध में एक विज्ञापन जारी करने को कहा. कई बार सूचना मांगने पर भी वित्त मंत्रालय ने नोंदिता कोरिया द्वारा दिए गए सुझाव से संबंधित सूचना राकेश कुमार को नहीं दी. सूचना आयोग के आदेश के बाद जब वित्त मंत्रालय ने मजबूरन सूचना प्रदान भी की तो उसमें नोंदिता कोरिया द्वारा भेजे गए सुझाव पत्र की प्रतिलिपि तो उपलब्ध करवा दी गई लेकिन जो चिह्न उन्होंने भेजा था उसे प्रतिलिपि में से हटा दिया गया. नोंदिता द्वारा भेजा गया प्रतीक प्रदान न किए जाने के पीछे सरकार का तर्क था कि यह चिह्न उनकी 'बौद्धिक संपदा' होने के चलते सार्वजानिक नहीं किया जा सकता.

 नोंदिता  कोरिया
"अगस्त, 2005 में एक दिन मैं अपने खातों से संबंधित कुछ काम कर रही थी. उनमें मेरे अकाउंटेंट ने रुपये को कहीं 'Rs' लिखा था तो कहीं 'Rs.'. इस वजह से कई बार पूर्ण विराम और दशमलव में अंतर कर पाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था. तभी मुझे यह खयाल आया कि भारतीय रुपये का भी कोई प्रतीक चिह्न होना चाहिए. आर्थिक उदारीकरण के साथ हमारे रुपये का वैश्विक बाजार में भी व्यापार बढ़ना तय था, इसलिए मुझे लगा कि हमारे पास रुपये का एक ऐसा प्रतीक होना चाहिए जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचाना जा सके. तो मैंने एक प्रतीक चिह्न बनाया और अगस्त, 2005 में ही रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर को यह सुझाव भेजा. कई महीनों तक जब रिजर्व बैंक से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं मिली तो अप्रैल, 2006 में मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय को इस संबंध में लिखते हुए अपना बनाया हुआ प्रतीक चिह्न भेजा. मुझे लगता था कि यह एक महत्वपूर्ण विषय है और सरकार को इस क्षेत्र में आवश्यक कदम उठाने चाहिए. अंततः मार्च, 2009 में मैंने इंटरनेट पर प्रतियोगिता के बारे में पढ़ा. प्रतियोगिता के विज्ञापन में रुपये के प्रतीक की बिल्कुल वही व्याख्या की गई थी जो मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय और रिजर्व बैंक को भेजी अपनी स्क्रिप्ट में की थी. मैंने भी इसमें हिस्सा लिया और दिसंबर, 2009 में मुझे पता चला कि हजारों प्रतिभागियों में से चुने गए अंतिम पांच में मेरा भी नाम है. मैंने दिल्ली जाकर अपने प्रतीक को जूरी के सामने प्रस्तुत किया. यह तो सरकार का विवेकाधिकार है कि वह किसी भी चिह्न को चुने लेकिन उन्हें इतना तो स्वीकार करना चाहिए था कि इस प्रतीक और इस विचार को मूलतः मैंने जन्म दिया था और सरकार को यह सुझाया था. यह कल्पना मेरी बौद्धिक संपदा है. आप यदि चुने गए अंतिम पांच प्रतीकों को देखें तो पाएंगे कि वे सभी मेरे सुझाए उस प्रतीक के ही इर्द-गिर्द थे."
अभी तक यह तथ्य सबके लिए एक रहस्य ही बना हुआ था कि नोंदिता ने 2005 और 2006 में जो चिह्न प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा था वह क्या था. राकेश कुमार और उनके साथी इस पूरी प्रतियोगिता में हुई गड़बड़ियों के विरुद्ध कदम उठाने की सोच ही रहे थे कि उन्हें एक और विवादास्पद तथ्य मालूम हुआ. प्रतियोगिता की शर्तों के अनुसार एक प्रतिभागी सिर्फ दो चिह्न जमा कर सकता था. लेकिन अंतिम पांच में चुने गए प्रतिभागियों में से डी उदया कुमार ने एक समाचार पत्र को दिए बयान में यह कह दिया कि उनके द्वारा कई चिह्न जमा करवाए गए थे. कायदे से तो ऐसा करने पर वे अयोग्य हो चुके थे और उनकी प्रतिभागिता रद्द हो जानी चाहिए थी लेकिन उन्हें न सिर्फ अंतिम पांच में जगह मिली बल्कि अंततः उन्हें ही विजेता भी घोषित किया गया. अनिल खत्री बताते हैं, ‘हमें सूचना के अधिकार में यह भी जानकारी मिली कि दो से ज्यादा चिह्न जमा करवाने वाले कुछ प्रतिभागियों को प्रतियोगिता से बाहर कर दिया गया था. फिर उदया कुमार को बाहर क्यों नहीं किया गया इसका सही कारण तो सरकार ही बता सकती है.’ राकेश कुमार ने इस संबंध में वित्त मंत्रालय से सूचना मांगी कि क्या चुने गए अंतिम पांच प्रतिभागियों में से किसी ने भी दो से ज्यादा चिह्न जमा करवाए थे. जवाब में सूचना अधिकारी ने यह तथ्य पूरी तरह छिपाना चाहा और झूठी सूचना प्रदान करते हुए कहा कि अंतिम पांच में से किसी भी प्रतिभागी ने दो से ज्यादा चिह्न जमा नहीं करवाए हैं. लेकिन डी उदया कुमार खुद ही अपने बयान में कह चुके थे कि उन्होंने कई चिह्न जमा करवाए थे तो सूचना अधिकारी को मजबूरन यह कबूलना पड़ा और उन्होंने फिर से सूचना प्रदान करते हुए यह मान लिया कि उदया कुमार द्वारा चार चिह्न जमा करवाए गए थे. इसके बाद वित्त मंत्रालय का कहना था कि उदया कुमार के पहले दो चिह्नों को ही जूरी के सामने भेजा गया था और सिर्फ उन्हें सही माना गया था जो कि मंत्रालय को पहले प्राप्त हुए थे.  लेकिन स्वयं वित्त मंत्रालय ने यह स्वीकार किया है कि उनके पास इसका कोई भी रिकॉर्ड नहीं है कि उन्हें कौन-सा आवेदन किस तिथि को प्राप्त हुआ. सभी आवेदनों की जांच मंत्रालय द्वारा आवेदन प्राप्त करने की अंतिम तिथि के पांच दिन बाद शुरू की गई. ऐसे में डी उदया कुमार के कौन-से चिह्न पहले प्राप्त हुए थे यह मंत्रालय ने कैसे तय किया, इसका जवाब स्वयं मंत्रालय के पास भी नहीं है.
नोंदिता कोरिया द्वारा जो प्रतीक 2005 में रिजर्व बैंक को भेजा गया था वह बिल्कुल वही था जिसे आज हम रुपये के प्रतीक के तौर पर पहचानते हैं
प्रतियोगिता में हुई इतनी गलतियों की पुख्ता जानकारी जब राकेश कुमार को हो गई तो उन्होंने वित्त मंत्री, प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति को 138 पन्नों का एक ज्ञापन भेजकर इस पूरी प्रक्रिया में हो रही गड़बड़ियों से अवगत करवाया और इस संबंध में उच्च स्तरीय जांच की मांग की. लेकिन कई साक्ष्य उपलब्ध कराने के बाद भी उन पर जांच करने के बजाय 15 जुलाई, 2010 को उदया कुमार को विजेता घोषित कर दिया गया. इसके बाद राकेश कुमार ने उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की जिसमें उन्होंने सरकार के इस फैसले पर रोक लगाने एवं पूरी प्रक्रिया पुनः आयोजित करवाने की प्रार्थना की. इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने क्षेत्राधिकार के आधार पर यह याचिका खारिज कर दी. अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता स्वयं प्रतियोगिता का एक प्रतिभागी था इसलिए उसके द्वारा जनहित याचिका नहीं की जा सकती. 
राकेश कुमार की ही तरह कुछ अन्य लोग भी विभिन्न विभागों से इस प्रतियोगिता के संबंध में जानकारी मांग रहे थे. नोंदिता कोरिया का जो सुझाव पत्र वित्त मंत्रालय से कई बार आवेदन करने पर भी राकेश को पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हुआ था वही पत्र मुंबई के एक प्रतिभागी अनिल खत्री को रिजर्व बैंक से सूचना मांगने पर हासिल हो गया. इस पत्र के प्राप्त होने पर सभी को हैरान करने वाली जानकारी मिली. नोंदिता कोरिया द्वारा रुपये का जो प्रतीक 2005 में रिजर्व बैंक को भेजा गया था वह चिह्न बिल्कुल वही था जिसे आज हम रुपये के प्रतीक के तौर पर पहचानते हैं. इस जानकारी ने सबको चौंकाया जरूर लेकिन इससे ही सरकार की मंशा भी समझने में मदद मिली. राकेश कुमार बताते हैं, ‘नोंदिता कोरिया के पत्र में सुझाए गए चिह्न को देखकर यह स्पष्ट हुआ कि सरकार पहले ही अपना मन बना चुकी थी कि रुपए का प्रतीक किसे चुनना है. यह पूरी प्रतियोगिता सिर्फ एक दिखावा और अपने कुछ नजदीकियों को पुरस्कृत करने का माध्यम ही थी.’ जूरी के सदस्य वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक से भी थे जिन्हें इस चिह्न की पहले से ही जानकारी थी. चुने गए अंतिम पांच चिह्न देखकर भी यह साफ होता है कि ये सभी एक ही तरह की सोच के हैं. शायद यही कारण था कि इतना कम समय लगाते हुए जूरी ने हजारों आवेदनों में से उन्हीं को चुना जिसका सुझाव सालों पहले ही प्राप्त हो चुका था. सरकार के इस पूर्वाग्रह के कारण शायद कई ऐसी रचनाओं को देखा भी नहीं गया होगा जो एक बेहतर विकल्प हो सकती थीं.
डी उदया कुमार के जिस चिह्न को आज हम रुपये के प्रतीक के रूप में पहचानते हैं उसके बारे में यह भी कहा जा रहा है कि वह प्रतियोगिता के मानकों पर भी खरा नहीं उतरता था. इस चिह्न को सबसे पहले बनाने वाली नोंदिता कोरिया बताती हैं, ‘मैंने प्रतियोगिता के दौरान इस चिह्न में संशोधन और सुधार करके एक नया चिह्न प्रस्तुत किया था. पुराने चिह्न को जब छोटा किया जाता था तो उसकी ऊपर की दोनों रेखाएं आपस में मिल जाती थीं इसलिए वह प्रतियोगिता के मानकों पर खरा नहीं उतरता था.’ खत्री बताते हैं, ‘विज्ञापन के अनुसार प्रतिभागियों से अपने चिह्न को विभिन्न आकारों में प्रस्तुत करने को कहा गया था. उदया कुमार का यह चिह्न उन मानकों पर खरा नहीं उतरता था. जूरी ने भी यह खामी देखी होगी लेकिन फिर भी वही चिह्न चुन लिया गया.’ इस प्रतियोगिता के लिए प्रत्येक प्रतिभागी को 500 रुपये आवेदन शुल्क के तौर पर जमा करने थे. हजारों प्रतिभागियों द्वारा जमा किए गए आवेदन शुल्क से तो सरकार की कमाई हुई ही लेकिन पैसों का यह खेल यहीं समाप्त नहीं होता. जानकार बताते हैं कि राष्ट्रीय स्तर के ये प्रतीक चिह्न राष्ट्रीय सम्मान से जुड़े तो होते ही हैं साथ ही वे अरबों रुपये के व्यापार को भी प्रभावित करते हैं. रुपये के इस चिह्न को भारतीय मुद्रा के साथ-साथ कंप्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल फोन के कीपैड तक में उतारा जाता है. ऐसे में बड़ी कंपनियां सबसे पहले इस चिह्न को अपने उत्पादों में उतारने के लिए करोड़ों रुपए लगा सकती हैं और सबसे पहले इसे हासिल करके हर जगह छापना चाहती हैं. आरोप लग रहे हैं कि अगर सरकार ने पहले ही तय कर लिया था कि रुपये का चिह्न क्या होना है तो मुमकिन है कि कुछ बड़े व्यापारियों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका रही हो. 
उधर, डी उदया कुमार कहते हैं, ‘मुझे इस संबंध में कोई भी जानकारी नहीं थी कि किसी ने रुपये के प्रतीक के संबंध में पहले कभी सरकार को सुझाव दिया है. प्रतियोगिता के बारे में मुझे आईआईटी बॉम्बे के मेरे एक मित्र ने बताया था. फिर दिल्ली में अंतिम प्रेजेंटेशन के दौरान मैंने सुना कि किसी प्रतिभागी ने इस संबंध में पहले कभी सरकार को सुझाव भेजा था.’  यह बात सिर्फ राष्ट्रीय स्तर तक सीमित नहीं है. रुपये का प्रतीक चिह्न अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी हमारी पहचान बन चुका है  या बन रहा है. इतने महत्वपूर्ण और राष्ट्रीय सम्मान के चिह्न के चयन में हुई अनियमितताओं से आप लोग भी शर्मिंदा तो हो सकते हैं लेकिन भविष्य में जब भी आपका सामना इस प्रश्न से होगा कि भारतीय रुपये के प्रतीक का निर्माता कौन है तो पूरे अंक आपको डी उदया कुमार के रूप में दिया हुआ उत्तर ही दिला सकता है.   
अन्य प्रतीक चिन्हों के साथ भी लूटमारी का खेल खेला गया है.
सिर्फ रुपए का प्रतीक चिह्न ही ऐसा नहीं है जिसमें नियमों की अनदेखी की गई हो. राष्ट्रीय महत्व के अन्य कई प्रतीक चिह्नों का चयन पिछले कुछ सालों में इसी तरह से किया गया है. ऐसे ही चिह्नों के निर्धारण में हुई गड़बड़ियों के बाद राकेश कुमार सिंह द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई थी. इस याचिका में ऐसे कुल पांच चिह्नों का जिक्र किया गया था जिनमें सरकार मनमाने तरीकों से फैसले कर चुकी है. सूचना के अधिकार का प्रतीक/लोगो भी इनमें से एक है. सूचना का अधिकार एक ऐसा अधिकार है जो सीधे तौर से जनता के ही हाथों में है. इस अधिकार के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए कई संस्थाएं कार्य कर रही हैं. स्वयं सरकार भी इस अधिकार के प्रति लोगों को जागरूक करने की बात करती है. लेकिन इस अधिकार का जो 'लोगो' सरकार द्वारा तय किया गया है उससे अभी तक अधिकतर लोग परिचित नहीं हैं. राकेश कुमार की जनहित याचिका की पैरवी कर रहे अधिवक्ता कमल कुमार पांडे बताते हैं, ‘सूचना के अधिकार के 'लोगो' का निर्धारण यदि एक राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता आयोजित करके होता और ज्यादा से ज्यादा लोग इसमें शामिल होते तो इसके दोहरे परिणाम होते. एक तरफ तो ज्यादा लोगों की भागीदारी से ज्यादा विचार और रचनाएं सरकार तक पहुंचतीं वहीं दूसरी तरफ ऐसी प्रतियोगिता लोगों को इस अधिकार के प्रति जागरूक भी करती.’
सूचना के अधिकार का 'लोगो' सरकार ने बिना कोई प्रतियोगिता करवाए ही किसी व्यक्ति से बनवा लिया था. लेकिन जिन प्रतीक चिह्नों अथवा 'लोगो' के निर्धारण के लिए सरकार द्वारा प्रतियोगिताएं आयोजित की भी गईं वहां भी ऐसा सिर्फ औपचारिकता पूरी करने को ही किया गया. सरकार की अति महत्वाकांक्षी योजना 'आधार' के लोगो का चयन भी कई खामियों से भरा है. 'समाज के अंतिम व्यक्ति को उसकी पहचान का बोध कराने' के उद्देश्य से चलाई जा रही इस योजना के लोगो के लिए एक प्रतियोगिता करवाई गई. प्रतियोगिता का विज्ञापन सिर्फ अंग्रेजी भाषा में जारी किया गया. इस योजना के बारे में लोगों को जानकारी देने और अधिक से अधिक लोगों को इससे जोड़ने के लिए भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण में अलग से एक समिति का भी गठन किया गया है जिसने कि इस प्रतियोगिता में जूरी का भी कार्य किया. लेकिन इस विशेष समिति द्वारा भी इस प्रतियोगिता में ज्यादा से ज्यादा लोगों को शामिल करने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया गया. लोगो का चयन करने हेतु जिस जूरी को चुना गया था उसमें से कई लोग चयन के दिन उपस्थित भी नहीं थे और जो सदस्य उपस्थित थे उन्होंने मात्र तीन घंटे में 2,270 आवेदनों में से सबसे बेहतरीन लोगो को छांटने का करिश्मा कर दिखाया. विजेता को एक लाख रुपये का इनाम मिला और 'आधार' को उसका लोगो.
ये चिह्न या लोगो सिर्फ राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों, संस्थाओं या संस्थानों के प्रतीक नहीं होते बल्कि उनको एक ऐसी विशेष पहचान भी देते हैं जिसमें हमारे समाज और सांस्कृतिक धरोहर की भी झलक मिलती है. अनिल खत्री बताते हैं, ‘ऐसी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों को किसी इनाम का लालच नहीं बल्कि देश के प्रति अपने योगदान की लालसा होती है. यह तथ्य ही प्रतिभागियों को उत्साहित कर देता है कि उनकी रचना देश के किसी महत्वपूर्ण मुद्दे या संस्थान का प्रतीक बनेगी. लेकिन जब इन प्रतियोगिताओं में ऐसी धोखाधड़ी सामने आती है तो लोग अपने ही देश से ठगा हुआ महसूस करते हैं.’ 
रेलवे द्वारा लाखों रुपये खर्च करके और लाखों का इनाम देकर बनवाए गए इस नए लोगो को आज कहीं भी इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है
इंडियन डिजाइन काउंसिल ने भी एक ऐसी ही प्रतियोगिता आयोजित की थी. इस संस्था पर सारे देश के डिजाइनों की जिम्मेदारी है, लेकिन डिजाइन के निर्धारण में सबसे ज्यादा गड़बड़ियां यहीं हुई हैं. जापान के 'जी मार्क' और जर्मनी के 'रेड डॉट' की ही तरह भारत में 'आई मार्क' के चयन हेतु यह प्रतियोगिता आयोजित हुई थी. इस प्रतियोगिता का विज्ञापन सिर्फ एक इंटरनेट ग्रुप पर जारी किया गया. यह ग्रुप सुधीर शर्मा नाम के एक व्यक्ति द्वारा बनाया गया था जो स्वयं ही इस प्रतियोगिता की जूरी में भी शामिल थे. इस ग्रुप के सीमित सदस्य हैं और सिर्फ वे सदस्य ही इस ग्रुप की गतिविधियों को देख सकते हैं. प्रतियोगिता के लिए चुने गए पांच सबसे बेहतरीन लोगो में से चार सुधीर शर्मा के संस्थान से ही थे. चयन प्रक्रिया में भी सुधीर शर्मा की अहम भूमिका थी. आखिर में जो डिजाइन चुना गया वह सुधीर शर्मा के संस्थान वालों द्वारा ही बनाया गया था. इस तरह से एक राष्ट्रीय चिह्न चुनने पर काफी लोगों द्वारा आपत्ति जताई गई जिसके चलते इस प्रतियोगिता को रद्द करके एक नए सिरे से आयोजित किया गया.
ऐसी ही एक प्रतियोगिता रेल मंत्रालय ने भी आयोजित की थी. प्रतियोगिता के विज्ञापन में कहा गया कि भारतीय रेल के लोगो की पुनर्कल्पना हेतु प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है. इस प्रतियोगिता में विजेता के लिए पांच लाख रुपये का इनाम रखा गया. पांच मई, 2010 को जारी हुए विज्ञापन में आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि 12 मई, 2010 तय की गई. इस तरह से पूरी प्रतियोगिता के लिए सिर्फ एक सप्ताह का समय दिया गया. इस प्रतियोगिता में जिस 'पैम एडवर्टाइजिंग ऐंड मार्केटिंग' कंपनी को विजेता घोषित किया गया वह पहले से भी भारतीय रेल के लिए काम कर रही थी. कुछ समय बाद रेल मंत्रालय द्वारा यह कहा गया कि नया लोगो सिर्फ राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान इस्तेमाल किया जाएगा और भारतीय रेल का लोगो वही रहेगा जो कई सालों से है. इस प्रतियोगिता की चयन समिति में सभी लोग रेल मंत्रालय से ही थे और डिजाइन के क्षेत्र से किसी भी विशेषज्ञ को चयन समिति में नियुक्त नहीं किया गया. राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय रेल भी एक प्रमुख प्रायोजक था. जाहिर है इस नए लोगो को खेलों के टिकट से लेकर और कई जगह छापने का काम बड़ी-बड़ी कंपनियों को दिया गया होगा. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता बताते हैं, ‘रेलवे द्वारा करवाई इस प्रतियोगिता से उन कंपनियों के अलावा किसी को फायदा नहीं हुआ जिनको इस नए लोगो को छापने के ठेके दिए गए होंगे और जिसने इसे बनाकर इनाम जीता. ऐसी अनावश्यक प्रतियोगिता आयोजित करना खुले आम जनता के पैसों को लूटने का एक तरीका ही है.’ रेलवे द्वारा लाखों रुपये खर्च करके और लाखों का ईनाम देकर बनवाए गए इस नए लोगो को आज कहीं भी इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है.
 बहरहाल राकेश कुमार द्वारा इन सभी गड़बड़ियों को न्यायालय के सामने प्रस्तुत करने से आने वाले समय में ऐसी लूट होने की आशंका कुछ हद तक कम हो गई है. बीती 30 जनवरी को दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस जनहित याचिका में फैसला देते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिए हैं. इन निर्देशों में तीन महीने के भीतर सरकार को अपने सभी मंत्रालयों एवं विभागों में ऐसी प्रतियोगिताएं आयोजित करवाने हेतु नियमावली तैयार करने को कहा गया है. अधिवक्ता कमल कुमार पांडेय कहते हैं, ‘उच्च न्यायालय का यह फैसला हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है. अभी तो सरकार ने इन चिह्नों के जरिए लूट का नया रास्ता ढूंढ़ा ही था. न्यायालय का अगर यह आदेश न आता तो आने वाले कुछ समय में न जाने कितने और ऐसे ही मनमाने फैसले सरकार द्वारा कर लिए गए होते. इस लिहाज से राकेश कुमार देश के लिए एक बहुत बड़ा काम इस मायने में तो कर ही चुके हैं कि भ्रष्टाचार की एक पूरी सड़क पर उन्होंने नाकाबंदी कर दी है.’ 
चिह्नों (लोगो) के जरिए लूट का धंधा बनाये सरकार के अधिकारीयों को सबक सिखाने के उद्देश्य से श्री राकेश कुमार सिंह और अनिल खत्री ने बहुत अधिक प्रयास किये है. उसके लिए हम शत-शत नमन करते हैं. दोस्तों, हमें आपको बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि श्री राकेश कुमार सिंह जी, मेरे साथ फेसबुक पर भी जुड़े हुए है. आप से विनम्र अनुरोध है कि पूरा समाचार जरुर पढ़ें और अपनी टिप्पणी के साथ श्री राकेश कुमार सिंह को बधाई देना ना भूले. आज जहाँ देश हर रोज नित एक नया घोटला सामने आ रहा है, उसको देखते हुए हमें "श्री राकेश कुमार सिंह" जैसे साहसी होने के साथ ही एकजुट होने की जरूरत है.          साभार-तहलका डॉट कॉम से
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यह है मेरे सच्चे हितेषी (इनको मेरी आलोचना करने के लिए धन्यवाद देता हूँ और लगातार आलोचना करते रहेंगे, ऐसी उम्मीद करता हूँ)
पाठकों और दोस्तों मुझसे एक छोटी-सी गलती हुई है.जिसकी सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगता हूँ. अधिक जानकारी के लिए "भारतीय ब्लॉग समाचार" पर जाएँ और थोड़ा-सा ध्यान इसी गलती को लेकर मेरा नजरिया दो दिन तक "सिरफिरा-आजाद पंछी" पर देखें.

आदरणीय शिखा कौशिक जी, मुझे जानकारी नहीं थीं कि सुश्री शालिनी कौशिक जी, अविवाहित है. यह सब जानकारी के अभाव में और भूलवश ही हुआ.क्योकि लगभग सभी ने आधी-अधूरी जानकारी अपने ब्लोगों पर डाल रखी है. फिर गलती तो गलती होती है.भूलवश "श्रीमती" के लिखने किसी प्रकार से उनके दिल को कोई ठेस लगी हो और किसी भी प्रकार से आहत हुई हो. इसके लिए मुझे खेद है.मुआवजा नहीं देने के लिए है.अगर कहो तो एक जैन धर्म का व्रत 3 अगस्त का उनके नाम से कर दूँ. इस अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.

मेरे बड़े भाई श्री हरीश सिंह जी, आप अगर चाहते थें कि-मैं प्रचारक पद के लिए उपयुक्त हूँ और मैं यह दायित्व आप ग्रहण कर लूँ तब आपको मेरी पोस्ट नहीं निकालनी चाहिए थी और उसके नीचे ही टिप्पणी के रूप में या ईमेल और फोन करके बताते.यह व्यक्तिगत रूप से का क्या चक्कर है. आपको मेरा दायित्व सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए था.जो कहा था उस पर आज भी कायम और अटल हूँ.मैंने "थूककर चाटना नहीं सीखा है.मेरा नाम जल्दी से जल्दी "सहयोगी" की सूची में से हटा दिया जाए.जो कह दिया उसको पत्थर की लकीर बना दिया.अगर आप चाहे तो मेरी यह टिप्पणी क्या सारी हटा सकते है.ब्लॉग या अखबार के मलिक के उपर होता है.वो न्याय की बात प्रिंट करता है या अन्याय की. एक बार फिर भूलवश "श्रीमती" लिखने के लिए क्षमा चाहता हूँ.सिर्फ इसका उद्देश्य उनको सम्मान देना था.
कृपया ज्यादा जानकारी के लिए निम्न लिंक देखे. पूरी बात को समझने के लिए http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html,
गलती की सूचना मिलने पर हमारी प्रतिक्रिया: http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_4919.html

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