हम हैं आपके साथ

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आईये! हम अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी में टिप्पणी लिखकर भारत माता की शान बढ़ाये.अगर आपको हिंदी में विचार/टिप्पणी/लेख लिखने में परेशानी हो रही हो. तब नीचे दिए बॉक्स में रोमन लिपि में लिखकर स्पेस दें. फिर आपका वो शब्द हिंदी में बदल जाएगा. उदाहरण के तौर पर-tirthnkar mahavir लिखें और स्पेस दें आपका यह शब्द "तीर्थंकर महावीर" में बदल जायेगा. कृपया "निर्भीक-आजाद पंछी" ब्लॉग पर विचार/टिप्पणी/लेख हिंदी में ही लिखें.

गुरुवार, अगस्त 25, 2011

माफ़ी मांग लेने के बाद क्या मामला खत्म समझ लेना चाहिए?

 श्री मनीष तिवारी के माफ़ी मांग लेने के बाद क्या यह मामला खत्म समझ लेना चाहिए? एक शर्त पर उसे रामलीला मैदान में जाकर श्री अन्ना हजारे जी के पांव पकडकर माफ़ी मागनी चाहिए, वर्ना यह माफ़ी के काबिल नहीं, क्योंकि जिस ढंग से बोला था, उसमें अहंकार दिखता था कुर्सी का, जब मनीष तिवारी श्री अन्ना हजारे जी जैसे महान आदमी के विरुध्द् ऎसा बोलता है. तब हम‍‍ तुम जैसे के संग कैसे बोलता होगा? इसलिए इन‌का अंहकार जरुर तोडना चाहियॆ, जाये और‌ अन्ना के पांव पकड कर माफ़ी मांगे, फ़िर श्री अन्ना जी की मर्जी माफ़ करें या नहीं.
 
श्री मनीष तिवारी जी, मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूँ कि आपने कौन से स्कूल में पढाई की है और किस मास्टर ने आपको पढाया है कि अपने से 28 साल बड़े व्यक्ति को "तुम" कहना चाहिए? बल्कि आयु में इतने बड़े व्यक्ति को "पिता" तुल्य समझा जाता है.मै मानता हूँ कि राजनीति में एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगया जाता हूँ. क्या आपके माता‍‍ पिता ने आपको इतने भी संस्कार नहीं दिए? बल्कि आप स्वयं ब्राहमण कुल परिवार से हो फिर पता नहीं आपने इतनी बड़ी गलती कैसे कर बैठे और फिर माफ़ी मांगने में भी ग्यारह दिन लगा दिए.

रविवार, अगस्त 07, 2011

दोस्तों, क्या आपको "रसगुल्ले" खाने हैं

दोस्तों, हमारी गुस्ताखी माफ करना! वैसे गूगल के विद्वानों के अनुसार हमारी गलती माफ करने के काबिल नहीं हैं. फिर भी इस नाचीज़ का "सिर-फिरा" हुआ है. यह समझकर माफ़ कर देना. हमारे पास एक अगस्त को नवभारत टाइम्स के ब्लॉग संपादक की एक ईमेल आई. हम ठहरे अनाड़ी, अनपढ़, गंवार और सिरफिरे. उनके ब्लॉग पर हमें जो परेशानी आ रही थी. गूगल की सुविधा कहूँ या तारीफ करते हुए वो सब लिखकर पूरी भड़ास(दोनों ईमेल नीचे देखें) निकाल दी. अब गूगल की थाली में घी ज्यादा देखकर नवभारत टाइम्स ब्लॉग के संपादक कई लेख एक के एक बाद पाठकों को जानकारी देने वाले प्रकाशित करने शुरू कर दिए है. जोकि इनके शीर्षक "अन्य" में "आप और हम" ब्लॉग में हर रोज एक या दो छप रहे हैं. अब हमें जो भी समस्या आ रही है, उसकी उनके लेखों पर टिप्पणी के रूप में खूब आलोचना कर रहे हैं. हमारी आलोचनाओं का जवाब में श्रीमान जी "मेरी खबर" और "राजनीति" नामक डिब्बे में  "रसगुल्ले" हमें दे रहें. अब कहेंगे कि रसगुल्ले मिल रहे हैं तो बहुत अच्छी बात है. अरे! भाई अगर हमें शुगर की बीमारी हो गई. तब दवाई के पैसे कौन देगा? हम यह सोचकर ज्यादा चिंतित हो रहे हैं.  इन दिनों अपनी हालत कुछ ज्यादा ही पतली जो चल रही हैं.
ब आप खुद देखें. इस लिंक में "अपनी पोस्ट का स्टेटस कैसे जानें? http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/aapaurhum/entry/%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%A8-%E0%A4%AA-%E0%A4%B8-%E0%A4%9F-%E0%A4%95-%E0%A4%B8-%E0%A4%9F-%E0%A4%9F%E0%A4%B8-%E0%A4%95-%E0%A4%B8-%E0%A4%9C-%E0%A4%A8      
कह रहे हैं कि किसी भी ब्लोग्गर की पोस्ट तीन दिन से पहले प्रकाशित नहीं होगी. फिर हमने यहाँ यह "आदरणीय संपादक जी, ब्लॉगर की जानकारी के लिए आप अच्छे लेख प्रकाशित कर रहे है. मेरे पास आपके इस लेख के हिसाब से बहुत "रसगुल्ले" है. मगर आपका तीन दिन का नियम के कारण नही डालता हूँ. मैं आपके उपरोक्त लेख से सहमत हू. मुझे अब अगले कई दिन तक समय नही मिलेगा/मिलता है. इसलिए अपने अनेक लेख मैने अपने ब्लॉग पर डाल दिए. जिससे मेरा एक लेख हर तीन दिन बाद आ सके"  टिप्पणी भी कर दी और इसलिए हमने अगले पंदह दिन के हिसाब से अपना कोटा भेज दिया. अब आप यह दोनों लिंक (नीचे) देखकर पता लगा लो. एक ही दिन में दो-दो पोस्ट को छाप रहे हैं.
प्रचार सामग्री:-दोस्तों/पाठकों, यह मेरा नवभारत टाइम्स पर ब्लॉग. इस को खूब पढ़ो और टिप्पणियों में आलोचना करने के साथ ही अपनी वोट जरुर दो.जिससे मुझे पता लगता रहे कि आपकी पसंद क्या है और किन विषयों पर पढ़ने के इच्छुक है. नवभारत टाइम्स पर आप भी अपना ब्लॉग बनाये.मैंने भी बनाया है. एक बार जरुर पढ़ें.
संपादक, नवभारत टाइम्स ब्लॉग की आई ईमेल
 मस्ते, नवभारत टाइम्स के ‘अपना ब्लॉग’ का आपने जिस तरह से स्वागत किया है, उससे हमें अत्यंत प्रसन्नता हुई है। हमें लग रहा है कि हमारी मेहनत सफल रही। एक महीने से कम समय में ही करीब 400 ब्लॉगर इससे जुड़ चुके हैं और अपना ब्लॉग एक परिवार-सा बन गया है।
             लेखक के परिचय के मार्फत इस परिवार के सदस्य एक-दूसरे को जानने भी लगे हैं। कुछ सदस्यों ने अपना परिचय विस्तृत रूप में नहीं दिया है। अगर वे चाहें तो अपने परिचय या तस्वीर में सुधार कर सकते हैं। यदि आप चाहें तो अपने ब्लॉग का नाम भी बदल सकते हैं। यह सब करने के लिए बस आपको एक मेल भेजनी है। पता वही – nbtonline@indiatimes.co.in
             सके साथ ही हम आपसे एक छोटी-सी जानकारी पाना चाहते हैं। हमने अपने प्रोफाइल पेज पर आपके शहर या गांव के नाम के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी थी जिस कारण हमें यह नहीं मालूम है कि आप कहां रहते हैं। यह जानकारी जरूरी है ताकि यदि आप अपने इलाके की कोई खबर दें तो वह खबर इस ब्लॉग के अलावा नवभारत टाइम्स की मेन साइट में शहरों की खबरों के साथ भी दिखे। इसके लिए आपको एक छोटा-सा काम करना है। आप इस मेल के जवाब में अपने शहर या गांव का नाम अंग्रेजी में लिखकर हमें भेज दें। यह मेल पढ़ने के तुरंत बाद ही यह काम कर दें क्योंकि कहते हैं न शुभस्य शीघ्रम। अच्छे काम में देरी नहीं करनी चाहिए।
                   ‘पना ब्लॉग’ के संबंध में कभी भी कोई समस्या हो, आप nbtonline@indiatimes.co.in पर तुरंत मेल करें और साथ में अपना मोबाइल नंबर भी दें। हम आपसे जल्द से जल्द संपर्क करेंगे और आपकी समस्या सुलझाएंगे।                                       -संपादक, नवभारत टाइम्स ब्लॉग

नवभारत टाइम्स ब्लॉग के संपादक को भेजी ईमेल
श्रीमान जी, मैंने आपकी वेबसाइट पर लगभग एक सप्ताह पहले अपना ब्लॉग बनाया है. यहाँ पर अगर छोटी-छोटी समस्याओं में सुधार कर दिया जाए. तब यहाँ पर "गूगल" की तरह से ब्लोग्गर बहुत ब्लॉग बनायेंगे. आपने इस पर तकनिकी जानकारी और ब्लॉग के कुछ नियमों और शर्तों को हिंदी में  नहीं दे रखा है. इस मामले में "गूगल" बहुत आगे है. आगे जाने के लिए सुधारों की जरूरत होती है. यहाँ पर फोटो भी जल्दी से लोड नहीं होती है. जहाँ पर पोस्ट डाली जा रही है, वो भी हिंदी में नहीं है. पोस्ट को प्रकाशित करने का आपके पास अधिकार होने के कारण पोस्ट देरी से प्रकाशित होती है. इसमें सुधार होना चाहिए. पाठक किसी भी ब्लॉग जाकर उलझ सा जाता है. एक ब्लोग्गर अपने ब्लॉग का लिंक आसानी से नहीं बता सकता है, क्योंकि उसका लिंक बहुत बड़ा है. गूगल पर इसी समस्या नहीं है. वहां पर कितनी भी फोटो डाल सकते हैं, मगर आपके यहाँ नहीं. आपके यहाँ पर कई बॉक्स अंग्रेजी में आते हैं, जिनके बारें में कम पढ़ें-लिखे कहूँ या तकनिकी जानकारी न होने के कारण व्यक्ति को परेशानी आती है.
                 बकि गूगल में एक बार "हिंदी" सलेक्ट करने के बाद उसको बार-बार किसी जानकारी के अभाव में किसी समस्या से नहीं जूझना नहीं पड़ता है. जहाँ पर आप ब्लोगों का नाम दिखाते हैं. अगर वहां पर हर ब्लोगर की अंतिम पोस्ट का शीर्षक दिखाए. नाम से नहीं पाता चल पाता है कि-लेखक ने क्या लिखा है. बल्कि शीर्षक से काफी कुछ जाना जा सकता है. एक ऐसा कॉलम होना चाहिए कि-किसी भी ब्लोग्गर को उसके नाम या उसके ब्लॉग के नाम से ढूढा जा सके. जैसे-मान लो मेरा नाम रमेश कुमार जैन है. उस बॉक्स में मेरा नाम डालते ही मेरे ब्लॉग का नाम आना चाहिए और अगर कोई ओर भी रमेश कुमार जैन हो तो उसके भी ब्लॉग का नाम आ जाना चाहिए, क्योंकि मैं अकेला रमेश कुमार जैन नहीं हूँ. ब्लॉग का नाम बदलने और तस्वीर में सुधार करने का अधिकार ब्लोगर के पास ही होने चाहिए. गूगल में यह सुविधा है. विषय-बहुत कम है, यह भी असीमित होने चाहिए. जैसे- मेरी खबर, राजनीती आदि. अपराध, महिला, परिवार, कानून, जागरूकता आदि भी होने चाहिए. वैसे इसको भी ब्लोग्गर के ऊपर रहने दे तब ज्यादा अच्छा है. जहाँ न्यू  एंट्री पर लिखा  वहां पर बॉक्स अंग्रेजी में है और जितने भी टूल है. उनको प्रयोग करने में परेशानी होती है और कई के बारें में जानकारी नहीं है. जैसे-गूगल में व्यवस्था है कि-उपरोक्त ब्लॉग पर कितने व्यक्ति या पाठक आ चुके हैं. यह संख्या बताई जाती हैं, आपके यहाँ पर इसी व्यवस्था होनी चाहिए कि-उपरोक्त पोस्ट को अब तक इतनी बार देखा जा चूका है. इससे ब्लोग्गर का हौंसला बढ़ता है. फ़िलहाल तो इतनी समस्याओं से परिचय हुआ है.इसमें कई चीजों को शामिल करने की आवश्कता है. जो ब्लोग्गर को पहचान दिलाने के साथ ही मददगार हो सकती हैं. बाकी फिर.....
नोट:-आपकी ईमेल के निर्देशानुसार मेरा नाम, शहर का नाम और फ़ोन नं.निम्नलिखित है.
Ramesh Kumar jain > uttam nagar, New dehli फ़ोन:09910350461,09868262751,011-28563826

प्रचार सामग्री:-दोस्तों/पाठकों, यह मेरा नवभारत टाइम्स पर ब्लॉग. इस को खूब पढ़ो और टिप्पणियों में आलोचना करने के साथ ही अपनी वोट जरुर दो.जिससे मुझे पता लगता रहे कि आपकी पसंद क्या है और किन विषयों पर पढ़ने के इच्छुक है. नवभारत टाइम्स पर आप भी अपना ब्लॉग बनाये.मैंने भी बनाया है. एक बार जरुर पढ़ें.

सोमवार, अगस्त 01, 2011

अभी ! मैं दूध पीता बच्चा हूँ और अपना जन्मदिन कब मनाऊं ?



दोस्तों, आज मेरे दो  "सिरफिरा-आजाद पंछी" और "रमेश कुमार सिरफिरा" ब्लोगों का जन्मदिन (ब्लॉग जगत के नियमानुसार) हैं. जिससे आप परिचित भी है. उसकी प्रथम अभी तो अजन्मा बच्चा हूँ मेरे दोस्तों!  पोस्ट को मैं जानकारी के अभाव में 31 जुलाई को डाल पाया था. जिससे किन्ही कारणों के चलते 2 अगस्त को देखा गया था, क्योंकि मैंने उससे 31 जुलाई को केवल "सेव" कर लिया था. फिर एक अगस्त को काफी प्रयास करके उसको प्रकाशित किया था. मुझे इन्टरनेट कहूँ या ब्लॉग जगत की ए.बी.सी भी नहीं आती थी और फिर बहुत कम शिक्षा होने के कारण अंग्रेजी न आने की वजह से आज भी अंग्रेजी में आने वाली ईमेल को डिलेट कर देता हूँ. मुझे टिप्पणी आदि और किसी को लिंक कैसे भेजना  होता है की जानकारी नहीं थी. 
         शुरू के दिनों में लगातार 20-22 घंटे कंप्यूटर पर बैठकर लगातार अध्ययन और सिर्फ अध्ययन करने के साथ प्रयास करता रहा. पहले एक पोस्ट फिर दूसरी पोस्ट भी डाल दी. मगर कोई जानकारी नहीं हो रही थीं कि कोई पढ़ भी रहा है या नहीं, क्योंकि समाचार पत्र में तो संपादक के नाम प्रशसकों और आलोचकों के पत्र आते रहते थें. संत कबीरदास के एक दोहे की प्रेरणा से आलोचकों अपने समाचार पत्र में सर्वक्ष्रेष्ट पत्र को थोडा इनाम तक देता था. इसके पीछे मेरी अपनी एक कमजोरी थीं, उसके द्वारा बताई गलतियों को दोहराने से मेरी पत्रकारिता में निखार आने लगा था और समाचार पत्र को विज्ञापन ज्यादा मिलने लग गए थें. मगर यहाँ यह व्यवस्था कैसे हो? इसकी कोई जानकारी नहीं थीं. 
 फिर मैंने अपने दो ब्लोगों पर एक ही तीसरी पोस्ट गुड़ खाकर, गुड़ न खाने की शिक्षा नहीं देता हूँ   डाल दी.उसके बाद मुझे एक पहली टिप्पणी मिली थी. वो मेरे गुरुवर जी की थी. उस टिप्पणी के सन्दर्भ में अपनी बात रखी और कई जानकारी प्राप्त की. आप देखें वो टिप्पणी-श्री दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…एक ही काम के लिए दो ब्लाग क्यों? शब्द पुष्टिकरण हटाएँ। आप के काम समाज में सकारात्मक योगदान कर रहे हैं। Friday, August 06, 2010 6:59:00 PM उसके बाद बिमारी की हालत में गलती से बने दो ब्लोगों पर अलग-अलग विषयों से संबंधित समाचार या लेख प्रकाशित करने का विचार किया. आज आप देखते भी होंगे.
      हाँ एक-एक से एक महानुभवों का जमावड़ा हैं. मैं आज भी ब्लॉग जगत की बहुत चीजों के चलते अनाड़ी हूँ और यहाँ पर बड़े-बड़े खिलाडी है. मैं भी चिंतित हूँ कि ब्लॉग जगत मीडिया के विकल्प के रूप में उभरकर आये और इसके  सदस्यों की संख्या 20-50 हजार हो जाए. तकनीकी जानकारी की भाषा इतनी सरल और आम-बोलचाल में हो कि-उसको एक अनाड़ी भी उपयोग में ला सकें. मैं बहुत दिनों तक पोस्ट कैसे दिखेंगी जानकारी के कारण वंचित रहा. जिससे तकनीकी जानकारी ना हो वो वेचारा क्या करेंगा. मैं आज भी ब्लॉग जगत का ए.बी ही सीख पाया हूँ. उससे आगे सिखने के लिए बहुत सारा अध्ययन कर रहा हूँ. मगर जटिल भाषा शैली के कारण बहुत ही थोड़ा-थोड़ा सीख पा रहा हूँ. अपने गुरुवर श्री दिनेशराय द्विवेदी के मार्गदर्शन से आगे बढ़ने के प्रयास भी कर रहा हूँ . मेरे विचार से:-यहाँ पर कुछ ऐसे लेख जो "ब्लॉग कैसे बनाये" की जानकारी देते हो उसका एक कालम हो.इससे नए ब्लोग्गर को बहुत फायदा होगा. हो सकता हैं मेरे विचार सही ना हो, मगर मेरा विश्वास है.अगर ऐसा होता है. तब ब्लॉग जगत मीडिया के विकल्प के रूप में बहुत आगे तक जा सकता हैं. यहाँ पर एक ब्लॉगर डी.ए.वी.पी(भारत सरकार की सरकारी विज्ञापन रिलीज करने वाली संस्था) और मार्किटिंग पर विज्ञापन के लिए निर्भर नहीं है. बातें बहुत सी है मगर फिर कभी.............
ब एक जिज्ञासा कहूँ या जानकारी मुझे अपने ब्लॉग का जन्मदिन कब मनाना चाहिए? क्या 19 जुलाई को या 31 जुलाई को या 2 अगस्त को? वैसे मेरे विचार में मेरा ब्लॉग "दूध पीता बच्चा है" क्योंकि गर्भकाल को न गिने तो मात्र मेरा ब्लॉग आज 3 महीने और 4 दिन का है. नन्हें शिशु को थोड़ा बड़ा होने दीजिए.फिर आप इसका जन्मदिन बना लेना उचित होगा. अभी तो यह केवल दूध पर ही निर्भर है.जरा अन्न-बन्न खाने लग जाने दो. सभी महानुभवों को दूध पीते बच्चे की ओर से प्रणाम. किसी प्रकार की गुस्ताखी के लिए क्षमा करें. क्षमादान से बड़ा कोई दान नहीं है.   
 दोस्तों, आप सब अच्छी तरह से परिचित होंगे कि-मैं कलम का सिपाही हूँ. मगर मेरे कुछ निजी कारणों से मेरी कलम का लेखन काफी समय से बंद था. अपनी निजी समस्यों के चलते मेरा परिचय 11 जुलाई 2010 को ब्लॉग जगत से परिचय हुआ. जानकारी के अभाव में सर्वप्रथम हम उसे एक वेबसाइट समझ बैठे. मगर अचानक 19 जुलाई 10 को एक कमाल हो गया. हम अपना भी ब्लॉग बना बैठे. मगर फिर जानकारी के अभाव में अगले 12 दिनों तक उस पर कुछ नहीं लिख सकें. अब हमें ब्लॉग जगत पर लिखते हुए कोई लगभग एक साल होने को है. अपनी निजी वैवाहिक समस्याओं के चलते वैसे हमने ज्यादा नहीं लिखा. मगर जितना लिखा, उतना सच लिखा. जहाँ एक ओर ब्लॉग जगत में अनेकों मित्र मिले, दूसरी ओर क़ानूनी ज्ञान देने वाले गुरुवर श्री दिनेश राय द्विवेदी जी जैसे गुरु मिले. जिन्होंने कदम-कदम पर निराशा के बादलों को दूर करके आशा में बदलने की कोशिश की, मगर हमारी भ्रष्ट न्याय व्यवस्था में अब तक कोई सफलता नहीं मिली. लेकिन उनके मार्गदर्शन में प्रयासरत हूँ. अनेक मित्रों  ने तकनीकी ज्ञान देकर काफी मदद की और कुछ हमारे सच लिखने के कारण अपने आप हमारे दुश्मन कहूँ या आलोचक बन बैठे. 

 
 म समाचार पत्र-पत्रिकाओं से जुडे होने के कारण ब्लॉग जगत की चालों और रणनीतियों के साथ कलाकारी से बिल्कुल अनजान है. लेकिन जैसे हम अपने समाचार पत्र में भारत सरकार के विभाग आर.एन.आई के नियमों का पालन करते हुए अपना नाम, पता और फोन नं. तक हर समाचार पत्र में लिखते हैं. उसी तरह से मैंने अपने सभी ब्लोगों में अपना पता, नाम, ईमेल और फोन नं आदि सब कुछ लिखा हुआ है. आज मुझे याद भी नहीं. कब किसकी सदस्यता ली. अपने सिखने के दौरान कहीं भी पढ़ने के लिए चला जाता था और उस मंच को नियमित रूप से पढ़ने के लिए बस ईमेल डाल देता था.पता ही नहीं चलता था. कहाँ-कहाँ,  क्या-क्या हो रहा है या हो जाता था. सिखने के चक्कर में इधर-उधर कहीं पर भी पंगा लेता रहता था. माउस को लेकर कहीं भी छेड़खानी(महिला से नहीं) करता रहता था. कभी कहीं से कोई अंग्रेजी में ईमेल आ जाती और पढ़ने में असमर्थ होने के कारण उस पर जगह-जगह पर क्लिक करके देखता था. बस और कुछ नहीं आता था.   
जैसे जैसे मुझे थोड़ी-थोड़ी जानकारी होती गई, मेरी किसी भी चीज़ को जानने की तीव्र जिज्ञासा और सिखने की लगन और कठिन परिश्रम ने काफी कुछ सीखा दिया है. मगर दूसरे ब्लोगों में नई-नई अनेक कलाकारियों को देखते हुए आज भी अपने आपको अभी अधुरा मानता हूँ. मुझे जब महसूस हुआ कि-उपरोक्त व्यक्ति को इस चीज़ का तकनीकी या दूसरा ज्ञान है. तभी मैंने उसके आगे ज्ञान की भीख मांगने के लिए अपनी झोली फैला दी. कुछ ने दुत्कार दिया और कुछ ने ज्ञान रूपी प्रकाश डालकर मेरी झोली को भर दिया. यहाँ  ब्लॉग जगत में सबसे अनाड़ी और कम पढ़ा-लिखा शायद मैं ही हूँ. इसलिए ब्लॉग जगत के विद्वान मेरे लेखन को सार्थक नहीं मानते हैं. मुझे अपनी बात को कहने के लिए कई वाक्यों का इस्तेमाल करना पड़ता है और वो उसी बात एक या दो वाक्यों में अपनी बात कह देते हैं. लेकिन मैंने अपनी पत्रकारिता और समाचार पत्रों में अपनी भाषा को बिलकुल सरल रखा. जिसे बेशक मेरे लेख कहूँ या समाचार पत्र विद्वान न भी पढ़ें, मगर जब उसका एक गरीब कहूँ कम पढ़ा-लिखा रिक्सा वाला, मोची या अन्य कोई पढ़े. तब उसको सारी बात समझ में आ जाए और उसको लगे कि-इसमें मेरे शब्दों में मेरी बात लिखी है और पढ़ते हुए ऐसा महसूस हो कि-मैं उसके सामने ही खड़ा होकर बात कर रहा हूँ. 
मेरे परिवार के आर्थिक हालत ठीक नहीं होने के कारण मेरी शिक्षा भी ज्यादा नहीं हुई थी. चाहे पत्रकारिता हो या अन्य कुछ भी सब कठिन परिश्रम से सीखा है. बहुत छोटी सी उम्र से बड़े-बड़े विद्वानों और जैन गुरुओं के कथनों को सुनकर समय और हालतों के अनुरूप उनकी शिक्षा का अमल अपने जीवन में करने लगा.अध्ययन और कुछ नया विचार करने के साथ लेखन ने पता नहीं कब पत्रकार के रूप में खड़ा कर दिया पता ही नहीं चला था. मुझे आज मुकाम तक पहुचने में पुस्तकों इतना बड़ा योगदान रहा है. जिसको मैं शब्दों में ब्यान नहीं कर सकता हूँ. (क्रमश:)
प्रचार सामग्री:-दोस्तों/पाठकों, http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/SIRFIRAA-AAJAD-PANCHHI/ यह मेरा नवभारत टाइम्स पर ब्लॉग. इस को खूब पढ़ो और टिप्पणियों में आलोचना करने के साथ ही अपनी वोट जरुर दो. जिससे मुझे पता लगता रहे कि आपकी पसंद क्या है और किन विषयों पर पढ़ने के इच्छुक है. नवभारत टाइम्स पर आप भी अपना ब्लॉग बनाये. मैंने भी बनाया है. एक बार जरुर पढ़ें.
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यह है मेरे सच्चे हितेषी (इनको मेरी आलोचना करने के लिए धन्यवाद देता हूँ और लगातार आलोचना करते रहेंगे, ऐसी उम्मीद करता हूँ)
पाठकों और दोस्तों मुझसे एक छोटी-सी गलती हुई है.जिसकी सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगता हूँ. अधिक जानकारी के लिए "भारतीय ब्लॉग समाचार" पर जाएँ और थोड़ा-सा ध्यान इसी गलती को लेकर मेरा नजरिया दो दिन तक "सिरफिरा-आजाद पंछी" पर देखें.

आदरणीय शिखा कौशिक जी, मुझे जानकारी नहीं थीं कि सुश्री शालिनी कौशिक जी, अविवाहित है. यह सब जानकारी के अभाव में और भूलवश ही हुआ.क्योकि लगभग सभी ने आधी-अधूरी जानकारी अपने ब्लोगों पर डाल रखी है. फिर गलती तो गलती होती है.भूलवश "श्रीमती" के लिखने किसी प्रकार से उनके दिल को कोई ठेस लगी हो और किसी भी प्रकार से आहत हुई हो. इसके लिए मुझे खेद है.मुआवजा नहीं देने के लिए है.अगर कहो तो एक जैन धर्म का व्रत 3 अगस्त का उनके नाम से कर दूँ. इस अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.

मेरे बड़े भाई श्री हरीश सिंह जी, आप अगर चाहते थें कि-मैं प्रचारक पद के लिए उपयुक्त हूँ और मैं यह दायित्व आप ग्रहण कर लूँ तब आपको मेरी पोस्ट नहीं निकालनी चाहिए थी और उसके नीचे ही टिप्पणी के रूप में या ईमेल और फोन करके बताते.यह व्यक्तिगत रूप से का क्या चक्कर है. आपको मेरा दायित्व सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए था.जो कहा था उस पर आज भी कायम और अटल हूँ.मैंने "थूककर चाटना नहीं सीखा है.मेरा नाम जल्दी से जल्दी "सहयोगी" की सूची में से हटा दिया जाए.जो कह दिया उसको पत्थर की लकीर बना दिया.अगर आप चाहे तो मेरी यह टिप्पणी क्या सारी हटा सकते है.ब्लॉग या अखबार के मलिक के उपर होता है.वो न्याय की बात प्रिंट करता है या अन्याय की. एक बार फिर भूलवश "श्रीमती" लिखने के लिए क्षमा चाहता हूँ.सिर्फ इसका उद्देश्य उनको सम्मान देना था.
कृपया ज्यादा जानकारी के लिए निम्न लिंक देखे. पूरी बात को समझने के लिए http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html,
गलती की सूचना मिलने पर हमारी प्रतिक्रिया: http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_4919.html

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