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रविवार, जून 03, 2018

मानवता के लिए देहदान या अंगदान करें


दोस्तों, मैंने पिछले दस साल से मेरा पेंडिग यह काम ( देह दान करने का ) भी आखिर कल दिनांक 2 जून 2018 को निपटा ही दिया. इस विषय पर मेरा विचार काफी समय से बना हुआ था. इसी कड़ी में अपने नेत्रदान सन 2006 में ही कर चुका हूँ. जिसको आप इस पोस्ट (गुड़ खाकर, गुड़ न खाने की शिक्षा नहीं देता हूँपर क्लिक करके देख सकते हैं. मगर देह दान की इच्छा पूरी करने में जानकारी के अभाव में खुद को असमर्थ महसूस कर रहा था. इस विषय पर छानबीन करते-करते लगभग सन-2007 या 2008 के आसपास मुझे "दधीचि देहदान समिति" का एड्रेस कहीं से प्राप्त हुआ. तब इनकी कोई ईमेल आई डी और बेबसाईट नहीं थीं. मैंने उनके एड्रेस पर एक पत्र लिखकर अपनी इच्छा प्रकट करते हुए पूरी प्रक्रिया की जानकारी मांगी. कुछ दिनों के बाद मुझे "दधीचि देहदान समिति" का एक पत्र प्राप्त हुआ और एक अंग्रेजी में फॉर्म प्राप्त हुआ. हिंदी भाषा से प्रेम और अपनी मातृभाषा होने के कारण मैंने फिर से पत्र लिखकर इनको हिंदी में फॉर्म के साथ मुझसे सम्पर्क करने को लिखा था. 
उसके बाद काफी दिनों तक मुझे हिंदी में फॉर्म प्राप्त नहीं हुआ और न मैं ही दूबारा इनसे सम्पर्क कर पाया. फिर मैं अपनी पूर्व पत्नी के दहेज़ मांगने के झूठे केसों में फंसकर काफी डिस्टर्ब हो गया था.  दहेज़ के झूठे केसों के कारण मेरा बिजनेस और "शकुंतला प्रेस ऑफ़ इण्डिया प्रकाशन" परिवार के अंतर्गत प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र-पत्रिका आदि के साथ ही मेरे देश व समाजहित में किये जाने वाले समाजिक कार्य और समाज सेवा काफी प्रभावित हो गई. हमारे देश की सुस्त व शोषित करने वाली न्याय व्यवस्था के चलते सन-2013 के सितम्बर में मेरा तलाक हुआ. दहेज़ मांगने के झूठे केसों की पारिवारिक समस्या के चलते अपने जीवन की रेलगाड़ी को वो रफ्तार न दे सका जो देना चाहता था, क्योंकि आर्थिक, मानसिक व शारीरिक रूप से काफी टूट गया था. तलाक की प्रक्रिया में होने वाले खर्चों की वजह से ज़िन्दगी में पहली बार चाँदी के चंद कागजों का कर्जवान भी हो गया था. 
इससे पहले केवल अपनी जन्म देने वाली "माँ" का कर्जवान था. मेरे विचार जिसका कर्ज शायद ही कोई औलाद सात जन्म लेने के बाद भी उतार पाती होगी. अपनी माताश्री फूलवती जैन (अब स्वर्गीय) और परिवार के अन्य सदस्यों के सहयोग से धीरे-धीरे (-) माइनस से (0) जीरो तक का सफर करते हुए (+) प्लस पर पहुंचा और फिर कर्ज से मुक्त हुआ. अपने सभी सहयोगी व कस्टमरों के साथ ही अपने कार्य के प्रति ईमानदारी और समपर्णभाव के कारण धीरे-धीरे अपने जीवन की रेलगाड़ी को रफ्तार देने की कोशिश में लगा हुआ हूँ.  
पिछले लगभग छह महीने पहले ही श्रीमती सरिता भाटिया पत्नी स्व. श्री यशपाल भाटिया जी की व्हाट्सअप्प पर आने वाली सूचनाओं से ज्ञात हुआ कि उनकी संस्था "यश सेवा समिति" देहदान करने के इच्छुक दानियों को देहदान करने में सहयोग कर रही है. हम दोनों ही अपने अपने निजी कार्यों में बिज़ी होने के कारण काफी समय तक आमने-सामने हमारी मुलाक़ात सम्भव नहीं हुई. कभी मैं उनके निवास स्थान पर जाता तो वो नहीं मिलती और कभी उनका मैसेज आता तो मैं अपने निजी कार्यों में बिज़ी होने के कारण जाने का समय नहीं निकाल पाता था. जैसे कहा जाता है कि हर कार्य के होने का समय ऊपर वाले के यहाँ ही निश्चित होता है. ठीक उसी प्रकार मेरे पास 31 मई से 3 जून तक का कुछ समय अपने पेडिंग कार्यों को निपटाने के लिए मिल गया. मैंने 31 मई को श्रीमती सरिता भाटिया जी को अनेक बार फोन किया. लेकिन फोन पिक न होने की स्थिति में मैंने उनको व्हाट्सअप्प पर अपना संदेश छोड़ा. उसका जबाब मुझे 1 जून की सुबह मिला. बातचीत हुई दोपहर एक बजे मिलने का समय निर्धारित हुआ. समय का पाबन्द होने की आदत के चलते ही एक बजने से 11 मिनट पहले ही उनके यहाँ पहुँच गया. डोर बेल बजाने के बाद और दरवाजा खुलने के साथ ही चार मंजिल सीढ़ियों से चढ़ने के बाद आखिर एक बजने से दो मिनट पहले ही उनकी बैठक में पहुँच चुका था. 
फिर श्रीमती सरिता भाटिया जी ने मुझे "दधीचि देहदान समिति" का देहदान करने से संबंधित सूचनाएं भरने हेतु अंग्रेजी में फॉर्म लाकर दिया. उसके बाद मैंने फॉर्म को पढ़ा और अपने हिंदी प्रेम के कारण सबसे पहले हिंदी और उसके बाद अंग्रेजी में अपनी मांगी गई सूचनाएं भरनी शुरू कर दी. फॉर्म को लगभग एक तरफ से भरने के बाद मैंने देखा कि देहदान के लिए अपने दो निकट संबंधियों की इसमें गवाही के रूप में उनकी जानकारी भरने के साथ ही उनके हस्ताक्षर भी करवाने हैं. तब मैंने श्रीमती सरिता भाटिया जी को कहा कि यह पूरी प्रक्रिया अपने घर पर फॉर्म ले जाकर ही पूरी हो पायेगी. बात ही बातों में मैंने कहा इन्होंने अभी तक अपने फॉर्म हिंदी में नहीं बनाएं. 
तभी सरिता जी कहने लगी कि हिंदी में भी फॉर्म है. उनकी यह बात सुनते ही मुझे एक बार तो ऐसा लगा कि मैंने भगवान से "जहाँ" माँगा और भगवान ने पूरा "जहाँ" मेरी झोली में डाल दिया. यानि बहुत ख़ुशी हुई. फिर उसके बाद सरिता जी से उनके और अपने कार्यों के साथ ही क्षेत्रीय समस्याओं और सामाजिक समस्याओं पर बातचीत होती रही. उसके बाद उनसे देहदान का जल्द से जल्द एक कैम्प लगाकर लोगों को जागरूक करने की बात में अपना सहयोग भी देने कहते हुए विदा ली. 
अपने घर आकर लंच करने के बाद अपने दूसरे निजी कार्यों को जल्दी से जल्दी खत्म करके देहदान का हिंदी वाला फॉर्म पूर्ण रूप से भरकर शाम को फिर से सरिता जी को कॉल किया और उनसे पूछा कि मेरा फॉर्म देने के लिए संस्था में आप कब जायेगी ? उन्होंने कहा कि कुछ दिनों में संस्था की मीटिंग होगी तभी जमा करवा दूंगी. मैंने फिर पूछा क्या मैं फॉर्म को कल स्पीड पोस्ट से उनको भेज दूँ या आपको अपने पास भी कोई देहदानियों का कोई रिकोर्ट रखना होता है. उन्होंने जबाब दिया ऐसा कुछ नहीं है और आप स्पीड पोस्ट से भी भेज सकते हो. इसके साथ ही मैंने संस्था के फॉर्म पर लिखा कि - मैंने नेत्रदान पहले से ही किये हुए है और मैं आपके सम्पर्क में लगभग दस साल पहले आया था. लेकिन उस समय आपके पास हिंदी में फॉर्म की व्यवस्था नहीं थीं. वर्तमान समय में श्रीमती सरिता भाटिया जी के सम्पर्क में आया तब मालूम हुआ कि वो आपकी संस्था के उपरोक्त कार्य में सहयोगी है. 
नोट : अगर सम्भव हो तो मेरा प्रमाण-पत्र, पहचान-पत्र व वसीयत हिंदी में बनाई जाएँ.

अगले दिन यानि दो जून 2018 को अपनी दिनचर्या के कार्यों से निपटकर जब देहदान के संबंधित दस्तावेजों को भेजने के लिए चेक करने के साथ ही तैयार कर रहा था. तभी एक विचार आया कि-क्यों न अब अपनी सोशल मीडिया (पहले फेसबुक, व्हाट्सअप्प आदि का इतना प्रचार-प्रसार नहीं था) की प्रोफाइल के माध्यम से अपनी फर्म "शकुंतला प्रेस ऑफ़ इण्डिया प्रकाशन" परिवार के माध्यम से अपने देश व समाजहित के सामाजिक कार्यों को शुरू किया जाएँ. 


फिर मैंने भविष्य को लेकर अपने विचार पर मंथन करते हुए ठोस निर्णय लिया और देहदान के संबंधित सभी दस्तावेजों को भली-भांति चेक करने के बाद उनकी फोटोस्टेट कॉपी करवाकर अपने पास रखने के साथ ही डाक ऑफिस में जाकर "दधीचि देहदान समिति" के नाम पर स्पीड पोस्ट नम्बर ED784653547IN बुक करवाई. मैंने दो जून का अपना सबसे पहला यह ही कार्य किया था. उसके बाद अपने फील्ड के निजी अन्य कार्यों को अंजाम दिया. जो चित्र में ऊपर व निम्नलिखित है.   
     

दोस्तों,  मैंने कल दो जून 2018 को अपनी देहदान करने के समय ही एक निर्णय लिया है कि मेरी फर्म "शकुंतला प्रेस ऑफ़ इण्डिया प्रकाशन" परिवार के माध्यम से हर महीने देहदान करने वाले पहले आने वाले दो व्यक्तियों का दान (150 रूपये प्रत्येक व्यक्ति) जो "दधीचि देहदान समिति" संस्था को देना होता है. वो दान की राशि "शकुंतला प्रेस ऑफ़ इण्डिया प्रकाशन" परिवार अपने बैंक खाते से अदा करेगा और भविष्य में अपने समाचार पत्र-पत्रिकाओं में उनका  नाम प्रिंट करके उनके इस योगदान के विषय में अन्य लोगों को बताकर देहदान करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास करेगा. आपको सनद रहे "शकुंतला प्रेस ऑफ़ इण्डिया प्रकाशन" परिवार पहले भी नेत्रदान करवाने में और देश व समाजहित के कार्यों में बढ़-चढ़कर अपना सहयोग करता रहा है. 

देहदान या अंगदान करने के इच्छुक दानी व्यक्ति फॉर्म निम्नलिखित पर क्लिक करके डाउनलोड कर सकता है. 


Regarding by
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, श्री लालबहादुर शास्त्री व महात्मा गांधी जैसे सिध्दांतों वाले निष्पक्ष, निडर, आज़ाद विचार, अपराध विरोधी, स्वतंत्र पत्रकार, कवि और लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक (आरटीआई कार्यकर्त्ता और प्रधान संपादक-जीवन का लक्ष्य, शकुन्तला टाइम्स, उत्तम बाज़ार) चुनाव चिन्ह (कैमरा)  के  पूर्व प्रत्याशी-उत्तमनगर विधानसभा 2008 व 2013 और दिल्ली नगर निगम 2007 व 2012 (वार्ड नं. 127 व 128) 
सम्पर्क सूत्र : 9910350461 With Whatsapp , 9868262751, 011-28563826  
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 पत्रकार रमेश कुमार निर्भीक पर क्लिक करके हमसे फेसबुक पर मिलिए. 

सोमवार, जनवरी 30, 2017

हमारे जीवन का दर्शन ( दिसम्बर-2015 )

1 दिसम्बर 2015 : मोहजीत अपनी देह से भी नष्टो मोहा होते हैं.

2 दिसम्बर 2015 : कथनी और करनी में समरूपता रखना ही महान आत्मा का लक्षण है.

3 दिसम्बर 2015 : सच्ची सेवा वह है जिसमें सर्व की दुआओं के साथ ख़ुशी की अनुभूति हो.

4 दिसम्बर 2015 : ईश्वर से बुध्दि की लगन लगाना ही ईश्वर का सहारा लेना है. 

5 दिसम्बर 2015 : अपनी सूक्ष्म कमजोरियों का चिन्तन करके उन्हें मिटा देना ही स्व-चिंतन है.

6 दिसम्बर 2015 : ध्यान रहे ऐसा कोई कर्म न हो जो कुल का दीपक बुझ जाये.

7 दिसम्बर 2015 : सुनने-सुनाने में भावना और भाव को बदल देना भी वायुमंडल खराब करना है.

8 दिसम्बर 2015 : आपस में एक दो की विशेषताओं का वर्णन करो, कमियों का नहीं.

9 दिसम्बर 2015 : देश और समाज की सभी समस्याओं का हल है पवित्रता.

10 दिसम्बर 2015 : सम्पूर्ण अहिंसा अर्थात् संकल्प द्वारा भी किसी को दुःख न देना. 

11 दिसम्बर 2015 : सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य ही सम्पूर्ण अहिंसा है.

12 दिसम्बर 2015 : किसी पर कुदृष्टि रखना भी पाप है, इसलिए आँखों को शीतल बनाओ.

13 दिसम्बर 2015 : काम महाशत्रु है, इस पर जीत पाने से जगतजीत बनेंगे.

14 दिसम्बर 2015 : ब्रह्मचर्य ही परमात्मा के समीप जाने का साधन है.

15 दिसम्बर 2015 : अपनी गलती दूसरे पर लगाना यह भी पर-चिन्तन है.  

16 दिसम्बर 2015 : मुशिकलों को प्रभु अर्पण कर दो तो हर मुश्किल सहज हो जायेगी.

17 दिसम्बर 2015 : विपत्तियों को सहने का बल केवल ईश्वर की याद से ही मिलता है.

18 दिसम्बर 2015 : जीवन का सच्चा विश्राम आत्म अनुभूति में है.

19 दिसम्बर 2015 : दूसरों के अवगुण न देखना ही सबसे बड़ा त्याग है.

20 दिसम्बर 2015 : कल्याण भावना रखने से दृष्टि और वृत्ति दोनों बदल जाती है.

2दिसम्बर 2015 : आत्मा का परमात्मा से मिलन ही सर्वश्रेष्ट मिलन है. 

22 दिसम्बर 2015 : ईश्वर की स्मृति से ही हम सद्गति प्राप्त कर सकते हैं. 

23 दिसम्बर 2015 : अब भगवान से फरियाद करने के बजाय उसे याद करो. 

24 दिसम्बर 2015 : चिंता छोड़ प्रभु चिन्तन करो.

25 दिसम्बर 2015 : संसार में भंयकर तूफान-आंधी के समय एक भगवान ही श्रेष्ट रक्षक है. 

26 दिसम्बर 2015 : दूसरों के दोष न देखो, अपने अंदर के दोष देखो तो निर्दोष बन जायेंगे. 

27 दिसम्बर 2015 : स्वभाव को सरल बनाओ तो समय व्यर्थ नहीं जायेगा. 

28 दिसम्बर 2015 : दूसरों को गुणों के आधार पर आगे रखना भी अपने को आगे बढ़ाना है.

29 दिसम्बर 2015 : जो सदा संतुष्ट है, वही सदा हर्षित एवं आकर्षणमूर्त है.

30 दिसम्बर 2015 : व्यर्थ कार्य जीवन को थका देता है, रचनात्मक कार्य सुख और तेजस्विता बढ़ा देता है.

31 दिसम्बर 2015 : जो सदा प्रसन्न रहता है उसके अंदर आलस्य नहीं हो सकता है, आलस्य सबसे बड़ा दुर्गुण है. 

सोमवार, नवंबर 09, 2015

हमारे जीवन का दर्शन ( नवम्बर-2015 )

1 नवम्बर  2015 : हर स्थिति में सबको सम्मान देते चलें. घृणित भावनाओं से अपनी रक्षा करने के लिए दूसरों को सम्मान दीजिये. 

2 नवम्बर  2015 : कभी-कभी सम्मान देना ही सबसे बड़ा योगदान सिद्ध होता है. 

3 नवम्बर  2015 : यदि कोई आप पर हंसता है तो खिन्न न हो, क्योंकि कम-से-कम आप उसे ख़ुशी तो दे रहे हैं. 

4 नवम्बर  2015 : यदि आप गपोड़ शंख लोगों के साथ सहमत हो जाते हैं तब उनकी निंदा के अगले पात्र आप ही होंगे.

5 नवम्बर  2015 : यदि आप प्रसन्नचित्त रहना चाहते हैं तब अपनी विशेषताओं के लिए स्वयं को तथा दूसरों को विशेषताओं के लिए उन्हें धन्यवाद दें. 
6 नवम्बर  2015 : स्वयं को वचाव करने के लिए कभी दूसरों पर दोषारोपण मत करें, क्योंकि समय के पास सत्य को प्रकट करने का अपना तरीका है.  

7 नवम्बर  2015 :  आपकी विशेषताओ का दूसरों पर प्रभाव पड़ता है, अत : इनका प्रयोग जिस सर्वोत्तम विधि से आप कर सकते हों, तब दूसरों की भलाई के लिए जरुर कीजिये.  

8 नवम्बर  2015 : ख़ुशी से बढ़कर पौष्टिक खुराक और कोई नहीं है. दूसरों को ख़ुशी देना सबसे बड़ा पूण्य का काम है. 

9 नवम्बर  2015 : जिस बात में अपना विवेक खाता है, वह कभी नहीं करना है. 

10 नवम्बर  2015 : अब समस्या स्वरूप नहीं, समाधान स्वरूप बनो और बनाओ. 

11 नवम्बर  2015 :गम्भीरता का गुण धारण कर लो तब व्यर्थ टकराव से बच जायेंगे. 

12 नवम्बर  2015 : विशेषताएं व गुण दाता की देन हैं, दाता को देखो, व्यक्ति को नहीं.  

13 नवम्बर  2015 : अपनी उन्नति का प्रयत्न करते रहिये. स्वयं को पतन की ओर मत ले जाईये, क्योंकि व्यक्ति स्वयं ही अपना मित्र भी है और स्वयं ही अपना शत्रु भी. 

14 नवम्बर  2015 : धन का दान करना अच्छा है परन्तु पवित्र, दानशील आत्मा बनना और भी अधिक अच्छा है. अपनी शक्तियों व गुणों का प्रयोग दूसरों की उन्नति हेतु कीजिए. 

15 नवम्बर  2015 : दुखों से भरी इस दुनियां में वास्तविक सम्पत्ति धन नहीं, संतुष्टता है. 
16 नवम्बर  2015 : एकाग्रता से ही सम्पूर्ण आनन्द प्राप्त हो सकता है. 

17 नवम्बर  2015 : जो सदा संतुष्ट है, वही सदा हर्षित एवं आकर्षण मूर्त है. 

18 नवम्बर  2015 : दिव्य गुण ही मानव का सच्चा श्रृंगार है. 

19 नवम्बर  2015 : कर्म इन्द्रियों पर राज्य करने वाला ही सच्चा राजा है. 

20 नवम्बर  2015 : स्वभाव को सरल बनाओ तब समय व्यर्थ नहीं जायेगा. 
21 नवम्बर  2015 : यह संसार हार-जीत का खेल है, इसे नाटक समझ कर खेलो. 

22 नवम्बर  2015 : "सत्य कर्म" युद्ध -क्षेत्र में जीतने का पहला साधन है. 

23 नवम्बर  2015 : स्वयं को ट्रस्टी समझकर चलो तब हल्केपन का अनुभव होगा. 

24 नवम्बर  2015 : जीते जी मरना सीख लो तब मृत्य के भी से छुट जायेंगे. 

25 नवम्बर  2015 : गुण चोर बनो तब सब अवगुण रूपी चोर भाग जायेंगे. 

26 नवम्बर  2015 : आशीर्वाद प्राप्त करना हो तब पुण्यात्मा बनो. 

27 नवम्बर  2015 : जैसा लक्ष्य रखेंगे वैसे लक्षण स्वत: आयेंगे. 

28 नवम्बर  2015 : इच्छाएं रखने वाला कभी अच्छा कर्म नहीं कर सकता है. 

29 नवम्बर  2015 : सत्य को सांसारिक आतंक डरा नहीं सकता है. 

30 नवम्बर  2015 : सत्य के सूर्य को कभी असत्य के बादल ढक नहीं सकते हैं. 
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रविवार, अक्तूबर 11, 2015

हमारे जीवन का दर्शन (अक्टूबर -2015 )

1 अक्टूबर 2015 : यदि आप दूसरों की कमजोरियों अपने मन में रखते हैं तब शीघ्र ही वे आपका अंग बन जाएँगी.

2 अक्टूबर 2015 : मन के संकल्पों को बीच-बीच में रोकने का अभ्यास कर लें तब थकावट नहीं होगी.  

3 अक्टूबर 2015 : परमात्मा को अपना साथी बना लें तब चिंता की रेखाएं चेहरे पर नहीं आएँगी. 

4 अक्टूबर 2015 : जब दुसरे गलतियाँ करते हैं तब उनको गिनते न रहिए. उनका विश्वास जीतिए ताकि आप उनकी कमजोरियों को मिटाने में सहयोग दें सकें. 
5 अक्टूबर 2015 : गलतफहमी प्रेमपूर्ण व शुद्ध विचारों से तथा समुचित समय पर सही ज्ञान देकर दूर की जा सकती है. 

6 अक्टूबर 2015 : यदि हमारा पैर फिसल जाये तब हम संभल सकते हैं, परन्तु जुबान फिसल जाये तब यह गहरा घाव कर देती है, इसलिए सावधान रहिये. 

7 अक्टूबर 2015 : सुन्दरता व गुणों  की ओर हर व्यक्ति आकर्षित होता है किन्तु कुरूप व अयोग्य की सहायता करना एक दुर्लभ गुण है. 

8 अक्टूबर 2015 : महान कार्य करने के लिए उमंग-उत्साह को अपना साथी बनाइए.  

9 अक्टूबर 2015 : इस संसार में दूसरों की लोभ-वृति के कारण बहुत से लोग भूखे मरते हैं. यदि हम बाँटना सीख लेते तब यह समस्या हल हो गई होती. 

10 अक्टूबर 2015 : यह ऑंखें प्रभु का विशेष उपहार हैं, इनके द्वारा दूसरों को प्रेम, शांति व ख़ुशी का दान करो. 

11 अक्टूबर 2015 : किसी से प्रतियोगिता करने के बजाए उसकी सहायता करना बेहतर है. 

12 अक्टूबर 2015 : स्वयं एक समस्या बनने के बजाय क्यों न हम दूसरों की समस्याएं हल करने में सहायक बन जाएँ ? 

13 सितम्बर 2015 : दूसरों को बदलने का प्रयत्न करने के बजाए स्वयं को बदल लेना कहीं अधिक अच्छा है. 

14 अक्टूबर 2015 : हर एक के विचार और स्वभाव में अंतर होता है लेकिन स्नेह में अंतर नहीं होना चाहिए. 

15 अक्टूबर 2015 : जो बात आपकी ख़ुशी को नष्ट करने वाली हो, उसे कभी नहीं सुनो. 

16 अक्टूबर 2015 : यदि आप अस्वस्थ हैं तब धैर्य रखिये तथा मन को स्वस्थ बनाये रखिये. 

17 अक्टूबर 2015 : यदि हम भविष्य के बारे में भयभीत हो जायेंगे तब वर्तमान में प्राप्त अवसरों को खो देंगे. 

18 अक्टूबर 2015 : सेवा में ईमानदारी का गुण सफलता मूर्त बना देता है.

19 अक्टूबर 2015 : अच्छा संग आगे बढ़ने का बल और हिम्मत देता है. 

20 अक्टूबर 2015 : आप अपने जीवन का महत्व समझकर चलो तब दूसरों भी महत्व देंगे. 

21 अक्टूबर 2015 : किसी दुसरे व्यक्ति को विपत्ति में देखकर हँसना आपकी अज्ञानता दर्शाता है.

22 अक्टूबर 2015 : कभी-कभी ईर्ष्यावश हम दूसरों को गिराना चाहते हैं, परन्तु ऐसा करके हम स्वयं ही गिर जाते हैं. 

23 अक्टूबर 2015 : आदर व सम्मान मांगने से नहीं, धारण करने से मिलता है. 

24 अक्टूबर 2015 : यदि आप केवल अपना ही ध्यान रखेंगे तब दूसरे आपका ध्यान रखना कम कर देंगे. 

25 अक्टूबर 2015 : अपनी दृष्टि को गुण ग्राहक बनाओ, अवगुणों को देखते हुए भी नहीं देखो. 

26 अक्टूबर 2015 : सबसे बड़ी सेवा है जीवन की खुशियों को दूसरों के साथ बाँटना. 

27 अक्टूबर 2015 : दूसरों की गलती सहन करना एक बात है, परन्तु उन्हें माफ़ कर देना और भी महान बात हैं. 

28 अक्टूबर 2015 : न किसी के धोखे में आओ, न किसी को धोखे में डालो. 

29 अक्टूबर 2015 : ईश्वर का स्मरण करने से हमारी शांति व ख़ुशी का खाता बढ़ जाता है. उन्हें भूल जाने से यह खाता घट जाता है. 

30 अक्टूबर 2015 : सहयोगी होने का अर्थ गुलाम बनना नहीं है. निराशाजनक परिस्थितियों में भी कभी आशा मत छोड़ें.  


31 अक्टूबर 2015 : जो कार्य हाथ में लो, वह निश्चय से करो तब सफलता अवश्य होगी. 


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शनिवार, अगस्त 29, 2015

हमारे जीवन का दर्शन ( सितम्बर -2015 )

1 सितम्बर 2015 :मान-शान की इच्छा से दिये गए लाख रूपये की तुलना में प्रेम व ईमानदारी से दान किये गए मुट्ठी भर चावल का अधिक महत्व है.

2 सितम्बर 2015 : यदि आप हिम्मत का पहला कदम आगे बढायेगे तब परमात्मा की सम्पूर्ण मदद मिल जायेगी.

3 सितम्बर 2015 : मुस्कराना, संतुष्टता की निशानी है. इसलिए सदा मुस्कराते रहो.

4 सितम्बर 2015 : क्या मेरे विचारों का स्तर ऐसा है कि मैं परमात्मा का बच्चा कहलाने का अधिकारी हूँ.
5 सितम्बर 2015 : स्वयं में दैवी गुणों का आह्वान करो तो अवगुण भाग जायेंगे.

6 सितम्बर 2015 : एक अच्छा, स्वच्छ मन वाला व्यक्ति दूसरों की विशेषताओं को देखता है. दूषित मन वाला व्यक्ति दूसरों में बुराई ही तलाशता है.

7 सितम्बर 2015 : जो संकल्प करो उसे बीच-बीच में दृढ़ता का ठप्पा लगाओ तब विजयी बन जायेंगे.

8 सितम्बर 2015 : जितना आप दूसरों में अवगुण देखेंगे, उतना ही आप पर अवगुणों का असर पड़ेगा, इसलिए गुणग्राही बनो.

9 सितम्बर 2015 : सहनशील बनो, सहनशीलता कायरता नहीं, वीरता है.

10 सितम्बर 2015 : स्वयं को सिद्ध करने का प्रयास क्यों किया जाये? आपकी निर्दोषिता से दूसरे लोग स्वत: ही समझ जायेंगे.

11 सितम्बर 2015 : दूसरों को सहयोग देना ही उन्हेया अपना सहयोगी बनाना है.

12 सितम्बर 2015 : धैर्यता, विश्वास और सहनशीलता ही सफलता की कुँजी है.

13 सितम्बर 2015 : नम्र बनो तो लोग नमन करते हुए सहयोग देंगे. 

14 सितम्बर 2015 : यह सत्य है कि "सत्य का अस्तित्व" है, सत्यता की महानता आपको महान बना देंगी.

15 सितम्बर 2015 : सदा प्रसन्न रहने के लिए प्रशंसा की इच्छा का त्याग करना आवश्यक है. 

16 सितम्बर 2015 :पवित्र प्रेम शाश्वत सम्बन्धों का आधार है. शिष्ट व्यवहार शालीनता से भरा होता है, जबकि दूषित व्यवहार अकीर्तिकार होता है. 

17 सितम्बर 2015 : अपने संकल्प, बोल और कर्म द्वारा सुख देने से सुख के देवता बन जायेंगे. 
18 सितम्बर 2015 : स्वयं की खोज के लिए स्वयं के प्रति सच्चा बनना होगा. 

19 सितम्बर 2015 : हमें सरल होना चाहिए, परन्तु मूर्ख नहीं. अपना सद-विवेक आपका अच्छा मित्र है, इसकी बात प्राय: सुनिये. 

20 सितम्बर 2015 : भगवान की इच्छाओं को पूर्ण करने से हमारी इच्छाएं स्वत: ही पूरी हो जाती है. 

21 सितम्बर 2015 : भगवान का बच्चा होने का अर्थ है कि उनकी विशेषताओं को स्वयं में प्रत्यक्ष करना.  
22 सितम्बर 2015 : यदि आप गलती करके स्वयं को सही सिद्ध करने का प्रयास करते हैं तब समय आपकी मूर्खता पर हंसा करेगा. 

23 सितम्बर 2015 : यदि आप अपने मन के संशयों को दूर नहीं करते तब मानों आप कैंसर की बीमारी को बढ़ने डे रहे हैं. 
24 सितम्बर 2015 :बीती बातों को भूलकर, बीती बातों से शिक्षा लेकर आगे के लिए सावधान रहिये.  
25 सितम्बर 2015 : अपने सहज स्वाभाविक स्वरूप में रहिए, यह कुछ और होने का स्वांग करने से कहीं अधिक अच्छा है. 

26 सितम्बर 2015 : यदि आपके संकल्प शुद्ध हैं तब जो आप सोचते हैं, वह कहना तथा जो आप कहते हैं वह करना सरल हो जाता है. 

27 सितम्बर 2015 : यदि आप हमेशा ऊँची दृष्टि रखते हैं तब आपका मस्तक स्वत: ऊँचा रहेगा. 

28 सितम्बर 2015 : सरलता में महान सौन्दर्य होता है. जो सरल है, वह सत्य के समीप है.
29 सितम्बर 2015 : चाहे कोई आपकी निंदा या अपमान करता है फिर भी उस पर मुस्कान व शुभकामनाओं के पुष्पों की वर्षा करें. 

30 सितम्बर 2015 : यदि कोई आपसे नाराज है और आपको बुरा-भला कह रहा है तब उस समय उत्तेजित होने के बजाय धैर्यता से काम लें. 



नोट : तस्‍वीरों का इस्‍तेमाल सिर्फ प्रस्‍तुतिकरण के लिए किया गया है। फोटो-गूगल+फेसबुक साभार.
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गुरुवार, अगस्त 06, 2015

हमारे जीवन का दर्शन ( अगस्त -2015 )

1 अगस्त 2015 : जब तक आप प्रयत्न करना बंद न कर दें, अंतिम परिणाम घोषित नहीं किया जा सकता है. 

2 अगस्त 2015 : क्या आपको जीवन रूपी वृक्ष का ज्ञान है या आप केवल इसकी टहनियों के नीचे ही खड़े हैं?

3 अगस्त 2015 : धन कमाना बुरा नहीं है, धन का दुरूपयोग करना बुरा है.

4 अगस्त 2015 : कभी भी गलतफहमी के शिकार होकर अच्छे सम्बधों को बिगड़ने न दें. 

5 अगस्त 2015 : दूसरों को बदलने के पहले स्वयं को बदलना आवश्यक है.

6 अगस्त 2015 : लाठी व पत्थर से हड्डियाँ टूटती है परन्तु शब्दों से प्राय: सम्बन्ध टूट जाते हैं.

7 अगस्त 2015 : आलसी व्यक्ति को आसान-से-आसान काम भी कठिन लगता है. आलस्य ही मानव जीवन की प्रगति में बाधक है.

8 अगस्त 2015 : सज्जनता की परीक्षा आपके व्यवहार से होती है.

9 अगस्त 2015 : याद रखिये कि माँ-बाप के आचरण से बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं.

10 अगस्त 2015 : यदि आपने एक अवसर गँवा दिया तो आंसुओं के बादलों से अपनी दृष्टि धुंधली मत कीजिये. अपनी दृष्टि स्वच्छ रखिये.

11 अगस्त 2015 : जवाबदारियां सम्भालते हुए मन को सदा स्वतंत्र रखना-यह भी एक कला है.

12 अगस्त 2015 : विचार ही सभी कर्मों के बीज है इसलिए मुझे सिर्फ अच्छे, शुध्द बीज ही बोने चाहिए, जिनसे श्रेष्ठ फल प्राप्त होंगे.

13 अगस्त 2015 : असत्यता पर आधारित सम्बन्ध रेत की नींव पर बने भवन के समान हैं. 

14 अगस्त 2015 : अगर हम सत्य से छिपते हैं तब इसका अर्थ है कि हम अवश्य ही असत्य के संग रह रहे हैं. 

15 अगस्त 2015 : अगर आपको देखना ही है तब हर एक की विशेषताएं देखिये. अगर आपको कुछ छोड़ना ही है तब अपनी कमजोरियां छोडियें.     

16 अगस्त 2015 : अगर आँखें आत्मा की खिड़कियाँ है तब क्या आप अपनी आँखें स्वच्छ रखते हैं ? गंदी खिडकियों का अर्थ है कि आपके पास छिपाने के लिए कुछ है.

17 अगस्त 2015 : यदि में अपने सारे लेन-देन ईमानदारी से करता हूँ तब मुझे कभी भी भय का अनुभव नहीं होगा.

18 अगस्त 2015 : बुराई का चिन्तन करने या बुराई से डरने से बुराई मन में घर कर जाती है.

19 अगस्त 2015 : जहाँ प्रेम नहीं, वहां शांति नहीं हो सकती. जहाँ पवित्रता नहीं, वहां प्रेम नहीं हो सकता है.

20 अगस्त 2015 : नैतिकता तथा गुण हीरे-रत्नों से भी अधिक मूल्यवान हैं. यह मनुष्य को सन्तुष्टि प्रदान करते हैं तथा उसे प्रभु-प्रिय व लोक-प्रिय बना देते हैं. 

21 अगस्त 2015 : जिस व्यक्ति ने प्रशंसा करना तो सीखा है परन्तु ईर्ष्या करना नहीं, वह अत्यंत भाग्यशाली है.

22 अगस्त 2015 : जैसे अहं भाव से घमंड पैदा होता है वैसे ही विभ्रम (शक, संदेह) मोह का परिणाम है. 

23 अगस्त 2015 : दिव्य गुण मानव को ईश्वर के समीप ले आते हैं जबकि विकार उसे ईश्वर से दूर ले जाते हैं. 

24 अगस्त 2015 : धैर्य व नम्रता नामक दो गुणों से व्यक्ति की ईश्वर से समीपता बनी रहती है.

25 अगस्त 2015 : अहं भाव से मानव में वे सारे लक्षण आ जाते हैं, जिनसे वह अप्रिय बन जाता है.

26 अगस्त 2015 : अपशब्द प्रयोग का करने का अर्थ यह है कि मुझ में इतनी भी अक्ल नहीं है कि मैं अन्य शब्दों का चयन कर सकूं. 

27 अगस्त 2015 : ईश्वर से सर्व सम्बन्ध अनुभव करने का अर्थ है कि आप सभी इच्छाओं से पार जा चुके हैं. 

28 अगस्त 2015 : यदि सत्यता व ईमानदारी मुझे सहज लगती हैं तब परमात्मा से प्रेम भी सहज प्राप्त हो सकता है. 

29 अगस्त 2015 : यदि व्यक्ति अपने नैतिक मूल्य खो देता है तब मानो अपना सब कुछ खो देता हैं. 

30 अगस्त 2015 : अच्छी व स्वच्छ प्रतियोगिता स्वस्थ बनाती है परन्तु ईर्ष्या एक घातक रोग है.

31 अगस्त 2015 : परमात्मा गुणों के सागर हैं. यदि आप किसी विकार की अग्नि में जल रहे हैं तब उस सागर में डुबकी लगाइये. 


ओवरसीज़ व हेल्थ मेडिक्लेम और गाड़ियों (1st पार्टी व 3rd पार्टी) के इंश्योरेस और भारत के सभी समाचार पत्रों / पत्रिकाओ में विज्ञापन बुकिंग हेतु : निष्पक्ष, निडर, आज़ाद विचार, अपराध विरोधी, स्वतंत्र पत्रकार, कवि और लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक (प्रधान संपादक-जीवन का लक्ष्य, शकुन्तला टाइम्स, उत्तम बाज़ार) पूर्व प्रत्याशी-उत्तमनगर विधानसभा 2008 व 2013 और दिल्ली नगर निगम 2007 व 2012 (वार्ड नं. 127 व 128) चुनाव चिन्ह-कैमरा # सम्पर्क सूत्र : 9910350461, 9868262751, 011-28563826  ईमेल: sirfiraa@gmail.com सोशल आई डी : www.facebook.com/sirfiraa, www.twitter.com/Nirbhik20 मेरे ब्लॉग :-www.rksirfiraa.blogspot.in, www.shakuntalapress.blogspot.in ऑफिस का पता : A-34-A, शीशराम पार्क, सामने-शिव मन्दिर, उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059.

सोमवार, जुलाई 06, 2015

हमारे जीवन का दर्शन ( जुलाई-2015 )

1 जुलाई-2015 : अगर आप सदा स्वयं की दूसरों के साथ तुलना करते रहते हैं तो आप अवश्य ही अहंकार अथवा ईर्ष्या के शिकार हो जायेंगे. 

2 जुलाई-2015 : अच्छी पुस्तकें अच्छे साथी की तरह हैं. अश्लील साहित्य हमारे मन को दूषित करता है तथा हमें गलत रास्ते की ओर अग्रसर करता है.

3 जुलाई-2015 : समस्याएं चाहे कैसी भी हों परन्तु इनसे घबराइए मत, बल्कि इन्हें परीक्षा समझकर पास कीजिये.

4 जुलाई-2015 : जीवन को आबाद करना है तो मैं कौन हूँ ? इस पहेली को हल कीजिये. मैं और मेरे-मन के भान से मुक्त हो जाइये.

5 जुलाई-2015 : ज्ञान सबसे धन है. स्वयं से पूछें -"मैं कितना धनवान हूँ?"

6 जुलाई-2015 : यदि आपके मुख से गंदे बोल निकलते हैं तो आपका मन कैसा होगा?

7 जुलाई-2015 : हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हों परन्तु दुनियां हमें हमारे कर्मों के द्वारा पहचानती है.

जुलाई-2015 : यदि आप मृत्यु से भयभीत होते हैं तो इसका अर्थ यह है कि आप जीवन का महत्त्व ही नहीं समझते हैं.

जुलाई-2015 : आप अपने अधिकारों के प्रति ही जागरूक न रहें अपितु इस बात का भी ध्यान रखें कि आप सही मार्ग पर हैं या नहीं.

10 जुलाई-2015 :अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से आप में अहंकार आ सकता है परन्तु आध्यामिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते है उतनी नम्रता आती है.

11 जुलाई-2015 : आप किसी समस्या के बारे में कितनी भी चिंता करें परन्तु क्या आपका चिंतित मन उस समस्या का समाधान कर सकता है ?

12 जुलाई-2015 : समय ही जीवन है. समय को बर्बाद करना अपने जीवन को बर्बाद करने के समान है.

13 जुलाई-2015 : किसी दूसरे व्यक्ति की आलोचना करने से पहले हमें अपने अन्दर झाँक कर देख लेना चाहिए.

14 जुलाई-2015 :लोभ को अभी जीतने का प्रयास करें, क्योंकि "मानव जब बूढ़ा भयो, तृष्णा भई जवान"

15 जुलाई-2015 :जब कोई व्यक्ति परमात्मा को आत्म-समर्पण करता है तो वह अपना मन ईश्वर की ओर लगाकर उसी की श्रीमत को सुनता है तथा उसी के अनुरूप कर्म करता है.

16 जुलाई-2015 : हम सितारों की दूरी तथा समुद्र की गहराई का माप करते हैं परन्तु हम कौन हैं तथा इस संसार में क्यों आये हैं, इस विषय में कितना जानते हैं?

17 जुलाई-2015 :कभी-कभी हम दूसरों को बदलने के लिए बाध्य कर देते हैं, क्योंकि हम चाहते हाँ कि वे वैसे ही बनें, जैसा हम चाहते हैं.

18 जुलाई-2015 : किसी चीज़ को समझने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है किन्तु उसे महसूस करने के लिए अनुभव की आवश्यकता होती है.

19 जुलाई-2015 : एक बार आपको कुछ न करने की आदत पड़ जाये तो आप पायेंगे कि व्यस्त होने के लिए समय ही नहीं बचता है.

20 जुलाई-2015 : दर्पण में आप अपना चेहरा देख सकते हैं, चरित्र नहीं.
21 जुलाई-2015 : हमारे विचारों का स्तर ही हमारी निजी प्रसन्नता का स्तर निर्धारित करता है. 

22 जुलाई-2015 : अगर आप अतीत (बीती) को ही याद करते रहेंगे तो वर्तमान में जीना कठिन लगेगा व भविष्य असम्भव प्रतीत होगा.

23 जुलाई-2015 : यदि घर में हिंसा शुरू हो जाएँ तो यह समाज में खून-खराबे जैसा उग्र रूप धारण कर सकती है.

24 जुलाई-2015 :  यदि आन्तरिक स्थिति अशांति की होगी तो सभी बाहरी चीजों मिएँ गडबडी मालूम पड़ती हैं.

25 जुलाई-2015 : आपके मुख से उच्चारित सभी शब्दों में से कितने शब्द परमात्मा के प्रति होते हैं?

26 जुलाई-2015 : वर्तमान समय जो कुछ आपके हाथ में है, यदि आप उसको महत्त्व नहीं देते हैं तब जो भविष्य में आपको मिलने वाला है , उसका सम्मान कैसे कर सकेंगे? 

27 जुलाई-2015 :कौन-सी चीज़ अधिक महत्त्वपूर्ण है-आपका जीवन स्तर या उचित आदर्शों वाला जीवन?

28 जुलाई-2015 : यदि कोई व्यक्ति नेत्रहीन है, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह अंधकार में है.

29 जुलाई-2015 :चरित्र ऐसी वस्तु है जो स्थूल दर्पण में नहीं देखी जा सकती है.

30 जुलाई-2015 :सावधान रहिए-आपकी प्रत्येक अभिव्यक्ति क्रिया की प्रतिक्रिया होती है.

31 जुलाई-2015 : श्रेष्ठ स्मृतियों का स्विच आपके हाथ में हो तो जीवन आनन्दमय बन जायेगा.


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यह है मेरे सच्चे हितेषी (इनको मेरी आलोचना करने के लिए धन्यवाद देता हूँ और लगातार आलोचना करते रहेंगे, ऐसी उम्मीद करता हूँ)
पाठकों और दोस्तों मुझसे एक छोटी-सी गलती हुई है.जिसकी सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगता हूँ. अधिक जानकारी के लिए "भारतीय ब्लॉग समाचार" पर जाएँ और थोड़ा-सा ध्यान इसी गलती को लेकर मेरा नजरिया दो दिन तक "सिरफिरा-आजाद पंछी" पर देखें.

आदरणीय शिखा कौशिक जी, मुझे जानकारी नहीं थीं कि सुश्री शालिनी कौशिक जी, अविवाहित है. यह सब जानकारी के अभाव में और भूलवश ही हुआ.क्योकि लगभग सभी ने आधी-अधूरी जानकारी अपने ब्लोगों पर डाल रखी है. फिर गलती तो गलती होती है.भूलवश "श्रीमती" के लिखने किसी प्रकार से उनके दिल को कोई ठेस लगी हो और किसी भी प्रकार से आहत हुई हो. इसके लिए मुझे खेद है.मुआवजा नहीं देने के लिए है.अगर कहो तो एक जैन धर्म का व्रत 3 अगस्त का उनके नाम से कर दूँ. इस अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.

मेरे बड़े भाई श्री हरीश सिंह जी, आप अगर चाहते थें कि-मैं प्रचारक पद के लिए उपयुक्त हूँ और मैं यह दायित्व आप ग्रहण कर लूँ तब आपको मेरी पोस्ट नहीं निकालनी चाहिए थी और उसके नीचे ही टिप्पणी के रूप में या ईमेल और फोन करके बताते.यह व्यक्तिगत रूप से का क्या चक्कर है. आपको मेरा दायित्व सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए था.जो कहा था उस पर आज भी कायम और अटल हूँ.मैंने "थूककर चाटना नहीं सीखा है.मेरा नाम जल्दी से जल्दी "सहयोगी" की सूची में से हटा दिया जाए.जो कह दिया उसको पत्थर की लकीर बना दिया.अगर आप चाहे तो मेरी यह टिप्पणी क्या सारी हटा सकते है.ब्लॉग या अखबार के मलिक के उपर होता है.वो न्याय की बात प्रिंट करता है या अन्याय की. एक बार फिर भूलवश "श्रीमती" लिखने के लिए क्षमा चाहता हूँ.सिर्फ इसका उद्देश्य उनको सम्मान देना था.
कृपया ज्यादा जानकारी के लिए निम्न लिंक देखे. पूरी बात को समझने के लिए http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html,
गलती की सूचना मिलने पर हमारी प्रतिक्रिया: http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_4919.html

यह हमारी नवीनतम पोस्ट है: