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सोमवार, नवंबर 09, 2015

हमारे जीवन का दर्शन ( नवम्बर-2015 )

1 नवम्बर  2015 : हर स्थिति में सबको सम्मान देते चलें. घृणित भावनाओं से अपनी रक्षा करने के लिए दूसरों को सम्मान दीजिये. 

2 नवम्बर  2015 : कभी-कभी सम्मान देना ही सबसे बड़ा योगदान सिद्ध होता है. 

3 नवम्बर  2015 : यदि कोई आप पर हंसता है तो खिन्न न हो, क्योंकि कम-से-कम आप उसे ख़ुशी तो दे रहे हैं. 

4 नवम्बर  2015 : यदि आप गपोड़ शंख लोगों के साथ सहमत हो जाते हैं तब उनकी निंदा के अगले पात्र आप ही होंगे.

5 नवम्बर  2015 : यदि आप प्रसन्नचित्त रहना चाहते हैं तब अपनी विशेषताओं के लिए स्वयं को तथा दूसरों को विशेषताओं के लिए उन्हें धन्यवाद दें. 
6 नवम्बर  2015 : स्वयं को वचाव करने के लिए कभी दूसरों पर दोषारोपण मत करें, क्योंकि समय के पास सत्य को प्रकट करने का अपना तरीका है.  

7 नवम्बर  2015 :  आपकी विशेषताओ का दूसरों पर प्रभाव पड़ता है, अत : इनका प्रयोग जिस सर्वोत्तम विधि से आप कर सकते हों, तब दूसरों की भलाई के लिए जरुर कीजिये.  

8 नवम्बर  2015 : ख़ुशी से बढ़कर पौष्टिक खुराक और कोई नहीं है. दूसरों को ख़ुशी देना सबसे बड़ा पूण्य का काम है. 

9 नवम्बर  2015 : जिस बात में अपना विवेक खाता है, वह कभी नहीं करना है. 

10 नवम्बर  2015 : अब समस्या स्वरूप नहीं, समाधान स्वरूप बनो और बनाओ. 

11 नवम्बर  2015 :गम्भीरता का गुण धारण कर लो तब व्यर्थ टकराव से बच जायेंगे. 

12 नवम्बर  2015 : विशेषताएं व गुण दाता की देन हैं, दाता को देखो, व्यक्ति को नहीं.  

13 नवम्बर  2015 : अपनी उन्नति का प्रयत्न करते रहिये. स्वयं को पतन की ओर मत ले जाईये, क्योंकि व्यक्ति स्वयं ही अपना मित्र भी है और स्वयं ही अपना शत्रु भी. 

14 नवम्बर  2015 : धन का दान करना अच्छा है परन्तु पवित्र, दानशील आत्मा बनना और भी अधिक अच्छा है. अपनी शक्तियों व गुणों का प्रयोग दूसरों की उन्नति हेतु कीजिए. 

15 नवम्बर  2015 : दुखों से भरी इस दुनियां में वास्तविक सम्पत्ति धन नहीं, संतुष्टता है. 
16 नवम्बर  2015 : एकाग्रता से ही सम्पूर्ण आनन्द प्राप्त हो सकता है. 

17 नवम्बर  2015 : जो सदा संतुष्ट है, वही सदा हर्षित एवं आकर्षण मूर्त है. 

18 नवम्बर  2015 : दिव्य गुण ही मानव का सच्चा श्रृंगार है. 

19 नवम्बर  2015 : कर्म इन्द्रियों पर राज्य करने वाला ही सच्चा राजा है. 

20 नवम्बर  2015 : स्वभाव को सरल बनाओ तब समय व्यर्थ नहीं जायेगा. 
21 नवम्बर  2015 : यह संसार हार-जीत का खेल है, इसे नाटक समझ कर खेलो. 

22 नवम्बर  2015 : "सत्य कर्म" युद्ध -क्षेत्र में जीतने का पहला साधन है. 

23 नवम्बर  2015 : स्वयं को ट्रस्टी समझकर चलो तब हल्केपन का अनुभव होगा. 

24 नवम्बर  2015 : जीते जी मरना सीख लो तब मृत्य के भी से छुट जायेंगे. 

25 नवम्बर  2015 : गुण चोर बनो तब सब अवगुण रूपी चोर भाग जायेंगे. 

26 नवम्बर  2015 : आशीर्वाद प्राप्त करना हो तब पुण्यात्मा बनो. 

27 नवम्बर  2015 : जैसा लक्ष्य रखेंगे वैसे लक्षण स्वत: आयेंगे. 

28 नवम्बर  2015 : इच्छाएं रखने वाला कभी अच्छा कर्म नहीं कर सकता है. 

29 नवम्बर  2015 : सत्य को सांसारिक आतंक डरा नहीं सकता है. 

30 नवम्बर  2015 : सत्य के सूर्य को कभी असत्य के बादल ढक नहीं सकते हैं. 
नोट : तस्‍वीरों का इस्‍तेमाल सिर्फ प्रस्‍तुतिकरण के लिए किया गया है। फोटो-गूगल+फेसबुक साभार.
ओवरसीज़ व हेल्थ मेडिक्लेम और गाड़ियों (1st पार्टी व 3rd पार्टी) के इंश्योरेस और भारत के सभी समाचार पत्रों / पत्रिकाओ में विज्ञापन बुकिंग हेतु : निष्पक्ष, निडर, आज़ाद विचार, अपराध विरोधी, स्वतंत्र पत्रकार, कवि और लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक (प्रधान संपादक-जीवन का लक्ष्य, शकुन्तला टाइम्स, उत्तम बाज़ार) पूर्व प्रत्याशी-उत्तमनगर विधानसभा 2008 व 2013 और दिल्ली नगर निगम 2007 व 2012 (वार्ड नं. 127 व 128) चुनाव चिन्ह-कैमरा 
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यह है मेरे सच्चे हितेषी (इनको मेरी आलोचना करने के लिए धन्यवाद देता हूँ और लगातार आलोचना करते रहेंगे, ऐसी उम्मीद करता हूँ)
पाठकों और दोस्तों मुझसे एक छोटी-सी गलती हुई है.जिसकी सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगता हूँ. अधिक जानकारी के लिए "भारतीय ब्लॉग समाचार" पर जाएँ और थोड़ा-सा ध्यान इसी गलती को लेकर मेरा नजरिया दो दिन तक "सिरफिरा-आजाद पंछी" पर देखें.

आदरणीय शिखा कौशिक जी, मुझे जानकारी नहीं थीं कि सुश्री शालिनी कौशिक जी, अविवाहित है. यह सब जानकारी के अभाव में और भूलवश ही हुआ.क्योकि लगभग सभी ने आधी-अधूरी जानकारी अपने ब्लोगों पर डाल रखी है. फिर गलती तो गलती होती है.भूलवश "श्रीमती" के लिखने किसी प्रकार से उनके दिल को कोई ठेस लगी हो और किसी भी प्रकार से आहत हुई हो. इसके लिए मुझे खेद है.मुआवजा नहीं देने के लिए है.अगर कहो तो एक जैन धर्म का व्रत 3 अगस्त का उनके नाम से कर दूँ. इस अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.

मेरे बड़े भाई श्री हरीश सिंह जी, आप अगर चाहते थें कि-मैं प्रचारक पद के लिए उपयुक्त हूँ और मैं यह दायित्व आप ग्रहण कर लूँ तब आपको मेरी पोस्ट नहीं निकालनी चाहिए थी और उसके नीचे ही टिप्पणी के रूप में या ईमेल और फोन करके बताते.यह व्यक्तिगत रूप से का क्या चक्कर है. आपको मेरा दायित्व सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए था.जो कहा था उस पर आज भी कायम और अटल हूँ.मैंने "थूककर चाटना नहीं सीखा है.मेरा नाम जल्दी से जल्दी "सहयोगी" की सूची में से हटा दिया जाए.जो कह दिया उसको पत्थर की लकीर बना दिया.अगर आप चाहे तो मेरी यह टिप्पणी क्या सारी हटा सकते है.ब्लॉग या अखबार के मलिक के उपर होता है.वो न्याय की बात प्रिंट करता है या अन्याय की. एक बार फिर भूलवश "श्रीमती" लिखने के लिए क्षमा चाहता हूँ.सिर्फ इसका उद्देश्य उनको सम्मान देना था.
कृपया ज्यादा जानकारी के लिए निम्न लिंक देखे. पूरी बात को समझने के लिए http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html,
गलती की सूचना मिलने पर हमारी प्रतिक्रिया: http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_4919.html

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