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बुधवार, अप्रैल 24, 2013

क्या मुझे "आम आदमी पार्टी" के उम्मीदवार के चयन हेतु अपना फॉर्म भरना चाहिए या नहीं ?

दोस्तों ! अपने विचार व्यक्त करे कि क्या मुझे दिल्ली में होने वाले चुनाव के तहत अपने उत्तम नगर विधानसभा क्षेत्र से "आम आदमी पार्टी" के उम्मीदवार के चयन हेतु अपना फॉर्म भरना चाहिए या नहीं ? श्री अरविन्द केजरीवाल का कहना है कि अच्छे व्यक्तियों को "टिकट" दूँगा और मेरा उद्देश्य अच्छे लोगों को "राजनीति" में लाकर "अव्यवस्था" को बदलना है. आज आप और श्री अन्ना हजारे, बाबा रामदेव और अरविन्द केजरीवाल भी मानते हैं कि हर पार्टी में कुछ अच्छे व्यक्ति भी है. इसलिए "आम आदमी पार्टी" की कथनी और करनी भी देखना चाहता हूँ. इससे मेरा खुद का अवलोकन भी हो जाएगा और "आम आदमी पार्टी" की रणनीतियों की परीक्षा हो जायेगी. मैं तीन बार चुनाव चिन्ह"कैमरा" से निर्दलीय दो पार्षद के और एक विधानसभा का चुनाव लड चुका हूँ. तीनों चुनाव में बगैर किसी को दारू पिलाये ही मात्र अपनी अच्छी विचारधारा से काफी अच्छे वोट भी हासिल किये थें. 
               हमारे देश के स्वार्थी नेता "राज-करने की नीति से कार्य करते हैं" और मेरे विचार में "राजनीति" सेवा करने का मंच है. इसके अलावा मैं किसी जीव की हत्या करके उसका मांस परोसकर या मांसाहारी भोजन करवाकर और किसी व्यक्ति कहूँ या "मतदाता" को शराब पिलाकर यानि उसे नशे में करके अथार्त उसकी सोचने-समझने की शक्ति छीनकर उसका "मत" हासिल नहीं करना चाहता हूँ. एक मतदाता की नशे की हालत में लिया "मत" कायरता है और मैं मानता हूँ कि जब उससे उसके पूरे होशो-हवास में अपनी विचारधारा से उसको जागरूक करते हुए "मत" प्राप्त करें तब ही बहादुरी है.अगर मैंने किसी को शराब पिलाकर और मांसाहारी भोजन करवाकर जो "जीत" हासिल की. वो जीत कोई काम की नहीं है. उससे ज्यादा तो मुझे अपनी वो "हार" ज्यादा अच्छी लगती है. जो मैंने अपने सिद्धांतों और अनैतिक कार्य ना करते हुए प्राप्त की.
आज के समय में हर दूसरी पार्टी (एकाध अपवाद छोड़कर) "पार्टी फंड" के नाम पर या सिफारिश के नाम पर पिछले दरवाजे से पैसे लेकर "टिकट" देती हैं. जितनी बड़ी पार्टी या जितना बड़ा चुनाव हो उसी आधार पर "टिकट" के रेट तय होते हैं. जैसे-पार्षद (पचास लाख से दो करोड रूपये तक), विधायक(दो करोड से दस करोड रूपये तक) और सांसद(पांच करोड से बीस करोड रूपये तक) आदि. 
इसके साथ ही जितने पैसे में "टिकट" लिया जा रहा है, उसे दुगने से लेकर दस गुणा तक पैसा अपने चुनाव क्षेत्र में खर्च करने के लिए है या नहीं. यह पार्टियों द्वारा विशेष रूप से देखा जाता है. उन्हें व्यक्ति की दूरदृष्टि, ईमानदारी और अच्छी विचारधारा से कोई मतलब नहीं होता है. वो व्यक्ति चाहे फिर बलात्कारी हो या हत्या आरोपी हो. इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है. आप खुद सोचे जो इतने पैसे लगाकर "टिकट" लेगा और चुनाव प्रचार में खर्च करेगा. क्या आप उससे उम्मीद कर सकते हो कि वो आम आदमी के हित के "नीतियां" बना सकता है. पहले तो वो अपने लगाए पैसों का दस गुणा या उससे अधिक वसूल करेगा. फिर वो आम आदमी के बारे में सोचेंगा. जब सोचेंगा और जब करने का समय आएगा. तब फिर से चुनाव आ जायेगा और आप सब को फिर से नए वादें करके "बिकाऊ" वोटरों के जुगाड में जुड जाएगा. जो उम्मीदवार जितने ज्यादा "बिकाऊ" वोटरों का जुगाड कर लेगा, वो फिर से "जीत" जायेगा. आपका और मेरा शोषण करने के लिए हमारी मजबूरी पर पांच साल तक मुंह चिढाता रहेगा.
दोस्तों ! आप विश्वास करेंगे आज देश की जनता खुद नहीं चाहती है कि "देश की राजनीति में अच्छे लोग आये, क्योंकि हम खुद "चोर"(कुछ अपवाद को छोड़कर) है. हम चोरी (टैक्सों, नक्सा पास करवाने की फ़ीस आदि) करते हैं और यह जानते है कि कोई अच्छा व्यक्ति आ गया तो हमें चोरी नहीं करने देगा या नियमों/कानूनों का पालन करने के लिए मजबूर करेगा और हमें नियमों/कानूनों का उल्लंघन करने की आदत है. काफी लोग कहते है कि "राजनीति में बेईमान लोगों की ही जीत होती है और ईमानदार/अच्छे लोगों के लिए राजनीति में कोई जगह नहीं है" 
मेरे विचार में इसके भी हम ही जिम्मेदार है, क्योंकि हम (अधिकांश पढ़े-लिखें) वोट डालने ही नहीं जाते हैं और घर में बैठ चाय की चुस्कियां पीते रहते हैं या केबल पर फिल्म देखते रहते हैं या किसी हिल स्टेशन पर घूमने का कार्यक्रम बना लेते हैं. इससे गुंडों-बदमाशों और अपराधिक प्रवृति के लोगों द्वारा शराब की बोतल और पैसे देकर खरीदें वोटर अपनी वोट अपना बिना विवेक का प्रयोग करें ही अपना मत उनके पक्ष में करके उनकी जीत को सुनिश्चित कर देते हैं. इस प्रकार अच्छे व्यक्ति "राजनीति" में नहीं आ पाते हैं.

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यह है मेरे सच्चे हितेषी (इनको मेरी आलोचना करने के लिए धन्यवाद देता हूँ और लगातार आलोचना करते रहेंगे, ऐसी उम्मीद करता हूँ)
पाठकों और दोस्तों मुझसे एक छोटी-सी गलती हुई है.जिसकी सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगता हूँ. अधिक जानकारी के लिए "भारतीय ब्लॉग समाचार" पर जाएँ और थोड़ा-सा ध्यान इसी गलती को लेकर मेरा नजरिया दो दिन तक "सिरफिरा-आजाद पंछी" पर देखें.

आदरणीय शिखा कौशिक जी, मुझे जानकारी नहीं थीं कि सुश्री शालिनी कौशिक जी, अविवाहित है. यह सब जानकारी के अभाव में और भूलवश ही हुआ.क्योकि लगभग सभी ने आधी-अधूरी जानकारी अपने ब्लोगों पर डाल रखी है. फिर गलती तो गलती होती है.भूलवश "श्रीमती" के लिखने किसी प्रकार से उनके दिल को कोई ठेस लगी हो और किसी भी प्रकार से आहत हुई हो. इसके लिए मुझे खेद है.मुआवजा नहीं देने के लिए है.अगर कहो तो एक जैन धर्म का व्रत 3 अगस्त का उनके नाम से कर दूँ. इस अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.

मेरे बड़े भाई श्री हरीश सिंह जी, आप अगर चाहते थें कि-मैं प्रचारक पद के लिए उपयुक्त हूँ और मैं यह दायित्व आप ग्रहण कर लूँ तब आपको मेरी पोस्ट नहीं निकालनी चाहिए थी और उसके नीचे ही टिप्पणी के रूप में या ईमेल और फोन करके बताते.यह व्यक्तिगत रूप से का क्या चक्कर है. आपको मेरा दायित्व सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए था.जो कहा था उस पर आज भी कायम और अटल हूँ.मैंने "थूककर चाटना नहीं सीखा है.मेरा नाम जल्दी से जल्दी "सहयोगी" की सूची में से हटा दिया जाए.जो कह दिया उसको पत्थर की लकीर बना दिया.अगर आप चाहे तो मेरी यह टिप्पणी क्या सारी हटा सकते है.ब्लॉग या अखबार के मलिक के उपर होता है.वो न्याय की बात प्रिंट करता है या अन्याय की. एक बार फिर भूलवश "श्रीमती" लिखने के लिए क्षमा चाहता हूँ.सिर्फ इसका उद्देश्य उनको सम्मान देना था.
कृपया ज्यादा जानकारी के लिए निम्न लिंक देखे. पूरी बात को समझने के लिए http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html,
गलती की सूचना मिलने पर हमारी प्रतिक्रिया: http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_4919.html

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