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मंगलवार, नवंबर 29, 2011

मद का प्याला-अहंकार

दि नरक को पास से देखना हो तो अहंकार के विचार अपना लीजिये, आपको पूरी दुनिया स्वार्थी नजर आने लगेगी. मद का दुसरा नाम शराब भी है जिसके पान के बाद बुद्धि सुप्त हो जाती है.अहंकार से सभी लौकिक और परलौकिक कर्म हमें अन्धकार के गर्त में ले जाते हैं.
अहंकार क्या है ?
-जब हम में "मैं" पन जाग जाता है. मैं और मेरे विचार, मेरी सोच ही हर जगह सही है, बाकी सब गौण या मूल्यहीन.
अहंकार होने के कारण-
धन-धनवान होने की भावना हमारे पर शासन करने लग जाये. हमारी सोच हमारे धन तक आकर ठहर जाये. हमारी द्रष्टि अन्य सद्गुणों की जगह सिर्फ धन को देखने लग जाये.
विद्या-वैसे तो विद्या हमें विनय तक ले जाने वाली होती है मगर हम खुद को विद्धवान समझने की भूल कर देते हैं तब हमें हमारे ज्ञान के अलावा सब फीका लगने लग जाता है.
जवानी-जवानी के जोश में हम अपने को करता-धरता मान बैठते हैं. हमें वृद्ध और पूजनीय लोगो की सलाह नागवार गुजरती है. यदि जवानी के साथ परमात्मा रूप -रंग भी प्रदान कर देता है तो हम अंधे तो जाते हैं.
कुल-यदि हम उच्चे कुल में जन्म ले लेते हैं तो बाकी के कुल को हम हेय मान बैठते हैं. हम अपने कुल पुरुषो की थाती के विपरीत कर्म करने लग जाते हैं.
धर्म-हम जब कोई भी परोपकार के, मानवता के भले के लिए कर्म करते है तो हम यह शीघ्र भूल जाते है की हमारे द्वारा किये जा रहे कर्म हमारे कर्तव्य हैं.हम अपने किये जाने वाले या कर चुके शुभ कर्मो का जोरशोर से ढिंढोरा पीटने लग जाते हैं.बड़ी-बड़ी नाम पट्टिकाए अपने नाम की लगाकर खुश होते हैं.
कीर्ति-यदि किसी शुभ कर्म के कारण हम लोकप्रिय हो जाते हैं तब हम अपनी कीर्ति का सुख लेने में लग जाते हैं. हमें लगाता है की नियंता भी हमारे सम्मुख कुछ भी सत्ता नहीं रखता है. हम अपनी यश गाथा को अपने मुंह से सुनाते हैं और दुनिया से सुनना पसंद करते हैं.
विजय-हमें अपनी छोटी मोटी हर सफलता पर घमंड हो जाता है, हम यह भूल जाते हैं की सफलता सिर्फ हमारे अकेले के सुप्रयासो का फल नहीं होती है वरन समय, प्रकृति नियति, परिवार और मित्र वर्ग के पूर्ण सहयोग से मिलती है.
संतान-यदि हमें सुयोग्य संतान मिल जाती है तो हम उसे अपने कर्म से जोड़ लेते हैं और अपने ही मुख से संतानों की प्रशंसा सारे जग में करते रहते हैं.
अहंकार के दुष्परिणाम-
1. अहंकार हमें कर्तव्य पथ से दूर ले जाता है.
2. अहंकार हमें मित्रो से विहीन कर देता है.
3. अहंकार हमारी योग्यता को कुंठित कर देता है.
4. अहंकार हमारे इर्दगिर्द भ्रम का निर्माण कर देता है.
5. अहंकार हमारे शुभ कर्मो का क्षरण कर लेता है.
6. अहंकार हमें नित नयी विपत्तियों में डाल देता है.
7. अहंकार हमें असफलता के नजदीक ले जाता है.
8. अहंकार हमारे विवेक का हरण कर लेता है.
9. अहंकार हमें इष्टमित्रो से दूर कर देता है.
10. अहंकार हमें आलोचना से परिचय करवाता है.
11. अहंकार हमें उद्दंड बना देता है .
12. अहंकार हमें नकारात्मक बना देता है.
13. अहंकार से अनचाहे संघर्ष उत्पन्न होते हैं.
14. अहंकार से असहयोग को जन्म देता है.
15. अहंकार से दुनिया हमसे नफरत करने लग जाती है.
16. अहंकार के कारण अनुकूल भी प्रतिकूल में बदल जाता है
अहंकार का त्याग कैसे करे-
1. हमें जो कुछ मिला है वह सामूहिक प्रयत्नों का फल है इसलिए सफलता में कृतज्ञ बने.
2. कर्म के परिणाम अगर अच्छे हैं तो सब में बराबर बाँट दे और बुरे हैं तो स्वयं पर ले ले.
3. हमें अपने कर्तव्यो का ज्ञान रहे परिणामो पर समय व्यतीत नहीं करे ,उत्सव नहीं मनाये.
4. स्वयं को निमित्त मात्र माने, यह काम तो होने ही वाला था मगर नियति ने मुझे गोरवान्वित कर दिया इसलिए नियति की कृतज्ञता प्रगट करे.
5. विनयी बने, विवेकशील बने .
6. समस्त कर्मो का फल नियति को समर्पित कर दे.

2 टिप्‍पणियां:

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यह है मेरे सच्चे हितेषी (इनको मेरी आलोचना करने के लिए धन्यवाद देता हूँ और लगातार आलोचना करते रहेंगे, ऐसी उम्मीद करता हूँ)
पाठकों और दोस्तों मुझसे एक छोटी-सी गलती हुई है.जिसकी सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगता हूँ. अधिक जानकारी के लिए "भारतीय ब्लॉग समाचार" पर जाएँ और थोड़ा-सा ध्यान इसी गलती को लेकर मेरा नजरिया दो दिन तक "सिरफिरा-आजाद पंछी" पर देखें.

आदरणीय शिखा कौशिक जी, मुझे जानकारी नहीं थीं कि सुश्री शालिनी कौशिक जी, अविवाहित है. यह सब जानकारी के अभाव में और भूलवश ही हुआ.क्योकि लगभग सभी ने आधी-अधूरी जानकारी अपने ब्लोगों पर डाल रखी है. फिर गलती तो गलती होती है.भूलवश "श्रीमती" के लिखने किसी प्रकार से उनके दिल को कोई ठेस लगी हो और किसी भी प्रकार से आहत हुई हो. इसके लिए मुझे खेद है.मुआवजा नहीं देने के लिए है.अगर कहो तो एक जैन धर्म का व्रत 3 अगस्त का उनके नाम से कर दूँ. इस अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.

मेरे बड़े भाई श्री हरीश सिंह जी, आप अगर चाहते थें कि-मैं प्रचारक पद के लिए उपयुक्त हूँ और मैं यह दायित्व आप ग्रहण कर लूँ तब आपको मेरी पोस्ट नहीं निकालनी चाहिए थी और उसके नीचे ही टिप्पणी के रूप में या ईमेल और फोन करके बताते.यह व्यक्तिगत रूप से का क्या चक्कर है. आपको मेरा दायित्व सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए था.जो कहा था उस पर आज भी कायम और अटल हूँ.मैंने "थूककर चाटना नहीं सीखा है.मेरा नाम जल्दी से जल्दी "सहयोगी" की सूची में से हटा दिया जाए.जो कह दिया उसको पत्थर की लकीर बना दिया.अगर आप चाहे तो मेरी यह टिप्पणी क्या सारी हटा सकते है.ब्लॉग या अखबार के मलिक के उपर होता है.वो न्याय की बात प्रिंट करता है या अन्याय की. एक बार फिर भूलवश "श्रीमती" लिखने के लिए क्षमा चाहता हूँ.सिर्फ इसका उद्देश्य उनको सम्मान देना था.
कृपया ज्यादा जानकारी के लिए निम्न लिंक देखे. पूरी बात को समझने के लिए http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html,
गलती की सूचना मिलने पर हमारी प्रतिक्रिया: http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_4919.html

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