
चर्चित निशा शर्मा केस यू.पी. का है. उसमें फंसे मेरे मित्र मुनीष दलाल
को नौ साल "अदालत" में चले मामले में दोषी नहीं माना. लेकिन इन नौ साल में
उसका कैरियर बर्बाद हो गया. नौ साल कोर्ट के चक्कर लगाते हुए लाखों रूपये
खर्च हो गए. क्या बिगाड़ लिया यू.पी. पुलिस और सरकार ने "निशा शर्मा" का ?
यह तो उदाहरण मात्र एक ही केस है. ऐसे अब तक लाखों केस झूठे साबित हो
चुके है. आज लड़की वालों की तरफ से दहेज मांगने के लाखों केस राज्य सरकार
पूरे देश भर में लड़ रही है. जिसमें एक सर्व के अनुसार 94 % केस झूठे साबित
हो रहे है, जिसके कारण न्याय मिलने में देरी हो रही है और जजों का कीमती
समय खराब होने के साथ ही देश को आर्थिक नुकसान होने के साथ ही लाखों पुरुष
मानसिक दबाब ना सहन नहीं कर पाने के कारण आत्महत्या कर लेते है. सरकार और
देश की अदालतें आँख बंद करके बैठी हुई है. यदि सरकार कुछ नहीं कर रही है तो
जजों को चाहिए कि लड़की वालों को सख्त से सख्त सजा देते हुए पुरुष को
मुआवजा दिलवाए. जजों को एक-दो मामलों खुद संज्ञान लेकर लड़की वालों पर
कार्यवाही करने की जरूरत है. फिर कोई भी लड़की वाला झूठे केस दर्ज नहीं
करवाएगा. इससे दोषी को सजा मिलेगी और निर्दोष शोषित नहीं होगा.
यह है मेरे सच्चे हितेषी (इनको मेरी आलोचना करने के लिए धन्यवाद देता हूँ और लगातार आलोचना करते रहेंगे, ऐसी उम्मीद करता हूँ)
पाठकों और दोस्तों मुझसे एक छोटी-सी गलती हुई है.जिसकी सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगता हूँ. अधिक जानकारी के लिए "भारतीय ब्लॉग समाचार" पर जाएँ और थोड़ा-सा ध्यान इसी गलती को लेकर मेरा नजरिया दो दिन तक "सिरफिरा-आजाद पंछी" पर देखें.आदरणीय शिखा कौशिक जी, मुझे जानकारी नहीं थीं कि सुश्री शालिनी कौशिक जी, अविवाहित है. यह सब जानकारी के अभाव में और भूलवश ही हुआ.क्योकि लगभग सभी ने आधी-अधूरी जानकारी अपने ब्लोगों पर डाल रखी है. फिर गलती तो गलती होती है.भूलवश "श्रीमती" के लिखने किसी प्रकार से उनके दिल को कोई ठेस लगी हो और किसी भी प्रकार से आहत हुई हो. इसके लिए मुझे खेद है.मुआवजा नहीं देने के लिए है.अगर कहो तो एक जैन धर्म का व्रत 3 अगस्त का उनके नाम से कर दूँ. इस अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ. मेरे बड़े भाई श्री हरीश सिंह जी, आप अगर चाहते थें कि-मैं प्रचारक पद के लिए उपयुक्त हूँ और मैं यह दायित्व आप ग्रहण कर लूँ तब आपको मेरी पोस्ट नहीं निकालनी चाहिए थी और उसके नीचे ही टिप्पणी के रूप में या ईमेल और फोन करके बताते.यह व्यक्तिगत रूप से का क्या चक्कर है. आपको मेरा दायित्व सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए था.जो कहा था उस पर आज भी कायम और अटल हूँ.मैंने "थूककर चाटना नहीं सीखा है.मेरा नाम जल्दी से जल्दी "सहयोगी" की सूची में से हटा दिया जाए.जो कह दिया उसको पत्थर की लकीर बना दिया.अगर आप चाहे तो मेरी यह टिप्पणी क्या सारी हटा सकते है.ब्लॉग या अखबार के मलिक के उपर होता है.वो न्याय की बात प्रिंट करता है या अन्याय की. एक बार फिर भूलवश "श्रीमती" लिखने के लिए क्षमा चाहता हूँ.सिर्फ इसका उद्देश्य उनको सम्मान देना था.कृपया ज्यादा जानकारी के लिए निम्न लिंक देखे. पूरी बात को समझने के लिए http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html, गलती की सूचना मिलने पर हमारी प्रतिक्रिया: http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_4919.html